मंगलवार, 4 जुलाई 2023

इंदिरी बचाओ पार्ट 1

 

इंदिरी बचाओ - सेव योर पेनिस ::Part 1

आज़ाद भारत के गुमनाम किस्से शृंखला की पांचवी कड़ी में पेश है आपातकाल के दौरान नसबंदी काण्ड। हालांकि ये किस्सा गुमनाम नहीं है , लेकिन इस काण्ड की डिटेल बहुत गजब की है और पब्लिक डोमेन में इतनी आसानी से नहीं मिलती।

एक सस्ता चुटकुला कुछ इस प्रकार है - नसबंदी वाले एक गांव में पहुंचे जहां वो पिछले साल ही नसबंदी कर चुके थे । गांव वालों ने उन्हें दौड़ा लिया , कहा - कनेक्शन तो पहले ही काट दिया , अब क्या नल उखाड़ने आये हो ? चुटकुला भद्दा जरूर है , लेकिन यही सच्चाई थी आपातकाल के समय लगे नसबंदी प्रोग्राम की। थोड़ा और पीछे यदि इतिहास में जाओ , तो नाज़ी पार्टी के सत्ता में आने के बाद हिटलर ने चार लाख लोगों की नसबंदी करवाई थी जो अनुवांशिक रूप से कमजोर थे। हिटलर का कहना था - ऐसे लोगों की आने वाली नस्ल को आने का कोई हक़ नहीं क्यूंकि वो एक मजबूत जर्मन रेस बनाना चाहता था। संजय गाँधी ने आपातकाल के दौरान लगभग साठ लाख लोगों की नसबंदी करवाई थी -सीधा साधा सूत्र - वो हिटलर से पंद्रह गुना बड़ा तानाशाह था।

भारत की जनसख्यां साल दर साल बढ़ती आयी है , आज़ादी के बाद से। इस में कोई संशय नहीं है। आज़ादी के समय भारत की आबादी लगभग बत्तीस करोड़ थी और भारत की पहली हेल्थ मंत्री थी राजकुमारी अमृत कौर जी। उन्होंने एक अमेरिकन डॉक्टर अब्राहम स्टोन की ईजाद - rhythm मेथड को भारत में सौ महिलाओ में एक एक्सपेरिमेंट के रूप में लागू किया - इसमें एक रंग बिरंगा नेकलेस इन महिलाओं को दिया गया और कहा - हरे बीड का मतलब सुरक्षित और लाल बीड का मतलब खतरा - इस प्रकार इन्हें गर्भाधान से बचने के लिए ट्रेनिंग दी गयी। इन्हें केवल बीड को देखना था और बड़े सीधे रूल फॉलो करने थे। लेकिन कुछ समय बाद पाया गया इन महिलाओ ने वो नेकलेस बच्चो को दे दिए खेलने के लिए क्यूंकि वो गहने नहीं थे। इन सौ में से पचास महिलाये कुछ महीनो में ही गर्भवती पायी गयी। ये आज़ाद भारत का पहला कदम था आबादी कण्ट्रोल करने का। इस बाद अगले तीस सालो में कोई तरक्की नहीं हुई इस दिशा में। IMF , वर्ल्ड बैंक , दुसरे पश्चिमी देशो ने जब जब भारत को कोई मदद थी - आर्थिक , अनाज आदि की तो हर बार इंटरनेशनल लेवल से पापुलेशन कण्ट्रोल का प्रेशर आया । हर पांच वर्षीय योजना में इसके लिए प्रावधान और पैसा था - लेकिन वो छु मंतर हो जाता था। तो जब आपातकाल लगा तो इंदिरा गाँधी पर इसका प्रेशर तो था ही , ऊपर से बर्थ कण्ट्रोल का भी अलग प्रेशर था । स्टेज सज चूका था संजय गाँधी की एक और सनक का । मारुती का काम तो टॉय टॉय फिस्स था ही , तो खाली दिमाग शैतान का घर । संजय ने नसबंदी करवाने की ठानी - वो भी बगैर हेल्थ मिनिस्ट्री के पूछे बिना ।

संजय को ना तो कार बनानी आती थी - तो कार बनाने की कोशिश की , नसबंदी कैसे लागू करे - वो भी नहीं ज्ञात था ; लेकिन वो भी किया। और ऐसा किया कि उसके बाद किसी सरकार में हिम्मत नहीं रही बर्थ कण्ट्रोल प्रोग्राम को सख्ती से लागू करे। फल स्वरुप आज हम एक सौ बत्तीस करोड़ हो चुके है और आगे बढ़ेंगे। अब बाकी बर्थ कण्ट्रोल के तरीके उस समय बड़े अलग थे - संयुक्त परिवार में रहना , ग्रामीण परिवेश में ये सब बातें सत्तर के दशक में बहुत अलग थी। तो केवल एक ही इलाज था - नसबंदी। ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी। हालांकि इंदिरा के सब सलाहकारों का मानना था ये बहुत बुरा कदम है क्यूंकि आबादी से ही कृषि वृद्धि होगी आदि आदि। नसबंदी की जगह आर्थिक विस्तार करना चाहिए - लेकिन संजय के दिमाग में सनक घर चुकी थी। संजय ने इस काम का बीड़ा उठाया और एक प्रोग्राम बनाया - लोकल नसबंदी : तीन मिनट का ऑपरेशन , लोकल anesthesia के द्वारा , बिना एक खून की बूँद के। अब जनता में नसबंदी को लेकर कुछ भ्रांतिया फैली थी जैसे - नसबंदी के बाद आदमी इच्छुक नहीं रहता , मर्दानगी समाप्त हो जाती है आदि आदि। यहाँ तक महिलाये भी यही सोचती थी। एक ऐसे देश में , जहां पुरुष होना एक बहुत बड़ा एडवांटेज हो , वहां ऐसी बातें मायने रखती है । लोग कहते - नसबंदी के बाद आदमी लकड़ी बन जाएगा , हर वक़्त थका थका रहेगा , औरतें उस से चौका-बासन करवाएंगी आदि। संजय के पास इन सब बातो से निबटने का समय ना था। हेल्थ मिनिस्ट्री के अनुसार ये काम दो साल के दौरान धीरे धीरे करना चाहिए लेकिन इन सब को दरकिनार कर संजय ने मोर्चा खोल दिया।

कहानी है थोड़ी लम्बी और थोड़ी दिलचस्प। तो ये हुआ पहला पार्ट । जारी रहेगी । क्रमश:

अंत में :
अगली किश्तों में पढ़िए : नसबंदी के तीन दलाल - इंदिरा ,संजय और बंसीलाल ;

संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी ;

ज़मीन गयी चकबंदी में , मकान गया हदबंदी में , दरवज्जे पर खड़ी औरत चिल्लाये - मेरा मरद गया नसबंदी में !
Mann Jee

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