रविवार, 2 जुलाई 2023

काया का मोह

 

कहानी

पहले समय की वेश्याओं के अंदर भी नैतिक बल होता था । वह अपने कर्तव्यों और समाज के प्रति योगदान का पूरा निर्वहन करती थी ।

एक बहुत ही सुंदर गणिका थी । राजा का मन उस पर मोहित हो गया । उस राजा के स्वयं की पत्नी और बच्चे थे लेकिन मन की चंचलता ने उसे अपना दास बना रखा था ।

हालांकि वह राजा भी धर्मनिष्ठ था , ज्ञानी था , सब कुछ था , लेकिन माया बड़ी बलवती होती है , एक क्षण का कुसंग भी अजामिल जैसे  जितेंद्रिय और तपोनिष्ठ का पतन करा कर उसे पापियों का ऐसा सरदार बना दे जिसकी मिसालें दी जाएं , तो यह राजा तो राजा था, जिसके पास सुख भोग ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी ।
ऐसा व्यक्ति इन सब चीजों में आसक्त हो जाये तो आश्चर्य कैसा !!

तो क्या हुआ कि वह राजा उस गणिका की सुंदरता पर मोहित हो गया और उसको प्राप्त करने के लिए उसने उस गणिका के पास संदेशा भिजवा दिया ।

गणिका भी भले देह व्यापार में थी लेकिन थी वह भी ज्ञानी ही। 

उसने देखा कि राजा मेरे मोह पाश में और मेरे शारीरिक सुंदरता को देखकर अपना नैतिक कर्तव्य भूल रहा है ।
अगर राजा अपने कर्तव्य से च्युत हो जाएगा तो देश की प्रजा और राज्य के संचालन में बाधा आएगी। 
राज्य के संचालन में बाधा आएगी तो शत्रु देश आक्रमण कर देगा और राज्य में अनैतिकता फैल जाएगी जिससे वर्ण संकर संतानें पैदा होंगी और सब विनष्ट ।

राजा का किसी गणिका के मोह पाश में बंधना पूरी प्रजा के नैतिक मूल्यों का ह्रास था ।  क्योंकि प्रजा में यह संदेश जाएगा कि जब राजा ही ऐसा अनैतिक कृत्य कर रहा है तो हम तो साधारण लोग हैं , हम कर सकते हैं । जिससे परिवार में विखंडन बढ़ेगा , स्त्रियाँ पति के दूसरी तरफ लगने के कारण दूषित और चरित्रहीन हो जाएंगी । और स्त्री पुरुष दोनों के चरित्र हीन होने से वर्ण संकर संतानें पैदा होंगी जो समाज और देश के लिए घातक होगा ।

इतनी दूरदर्शी और उच्च विचारों की वह वेश्या थी । 

उसने राजा को संदेश भिजवा दिया कि वह राजा को प्राप्त हो जाएगी लेकिन उसे 3 दिन का समय चाहिए । 3 दिन के पश्चात आकर राजा उसकी असीम सुंदरता का और सुंदर शरीर का भोग कर सकता है ।

राजा ने उसकी बात स्वीकार कर ली। 

3 दिन के पश्चात राजा सज धज कर उस गणिका के पास मन में उसकी सुंदरता को धारण कर उसके पास जाता है ।

गणिका की परिचायिका ने राजा को उसके कमरे में जाने को कहा ।

राजा के मन में बहुत सारे लड्डू फुट रहे थे ।

जब वह अंदर गया तो पूरा कमरा एक अज़ीब से दुर्गंध से भरा हुआ था । वह नाक पर हाथ रखे कमरे में घुसा तो देखता है कि एक स्त्री बहुत ही जीर्ण अवस्था में बिस्तर पर लेटी है ।

राजा को संबोधन कर उस स्त्री ने जब अपने पास बुलाया तब राजा को पता लगा कि यह वही अद्वितीय सुंदरी गणिका है। 

जब वह उसके पास जाता है तो उसका चेहरा देखकर दंग रह जाता है ।

बालों में रूक्षता , निस्तेज आँखें , रसीले होंठ सूखे हुए से , गालों की गोलाई और गुलाबीपन को पीले और शुष्कता ने ढक लिया था,  मांसल की जगह अत्यंत ढीले स्तन , हाथों की उँगलियों तक में भयावहता और रुक्षता ।

यह देखकर राजा अचानक से पीछे हटा ।

राजा ने कहा कि तुम तो अद्वितीय सुंदरी थी , मैं तो तुम्हारी सुंदरता को भोगने आया था , पर यह तुम्हें क्या हो गया ??? कहाँ गयी तुम्हारी सब सुंदरता ???

उस गणिका ने कहा कि महाराज मेरी सुंदरता मेरे पास ही बगल में रखी है ।  और उसने इशारे से एक स्वर्ण मटका दिखाया और कहा कि मेरी सुंदरता उसमें भरी पड़ी है ।

राजा चकित होकर उस मटके के पास गया और मटके का ढक्कन उठाता है । उठाते ही उसे भयानक उल्टियाँ होनी शुरू हो गयी और वह नाक पर हाथ रखकर वहीं गिर पड़ा ।

क्रोध के मारे उसने गणिका को देखा कि यह कैसा मजाक है ???

तो गणिका ने कहा महाराज यह मजाक नहीं , बल्कि यही सत्य है ।

उस मटके में मेरी सभी सुंदरता "विष्ठा" के रूप में भरी पड़ी हुई है ।
यही विष्ठा ही मेरी सुंदरता है ।

उसने राजा को समझाया कि मात्र तीन दिन के अंदर मैंने अपनी सभी सुंदरता "जमालगोटा" के माध्यम से निकाल निकाल कर इस मटके में आपके लिए भर दिया है। 

और यही सत्य है कि इसी के कारण मनुष्य सुंदर लगता है ।

मैंने अपने शरीर में कुछ नहीं किया , एकमात्र अपने शरीर के 3 दिन के मल को इकट्ठा किया है ताकि आपको दिखा सकूँ कि यह स्त्री का देह या यह मानव देह कुछ नहीं मल मूत्र का पिटारा है ।

इसी मल के कारण मेरी सुंदरता थी । आज जब सभी मल मैंने बाहर निकाल दिया तो मैं आपके राज्य की सबसे बदसूरत स्त्री के रूप में आ गयी ।

इसलिए हे राजन ! इस रूप पर मोहित न होकर अपने कर्तव्य से कर्तव्यच्युत न हो । यह सब धोखा है , छलावा है ,  थोड़े समय के सुख का झूठा आभास है ।

आप साधारण पुरुषों की तरह न बनें । आप राजा हैं और आपका दायित्व और कर्तव्य दूसरों की अपेक्षा कहीं बढ़कर है। 

जैसे जैसे आप आचरण करेंगे ,आप को देखकर प्रजा भी वैसा ही आचरण करने लगती है ।

इसलिए अपने कर्तव्यों को पहचान कर तत्व दर्शन करें और एकमात्र भगवान की सुंदरता पर ही मोहित हों जिससे आपका कल्याण हो और आपको देखकर अन्य लोग भी अपना कल्याण करें ।

राजा को तुरंत चटकना लगी और वह उस वेश्या के पैरों पर गिर पड़ा । उसने कहा कि तुमने मेरी बुद्धि पर पड़ा माया का पर्दा अपने तत्व ज्ञान से स्वतः हटा दिया है । आज से तुम मेरी गुरु हुई ।

फिर राजा अपने सामाजिक कर्तव्य को निभाते हुए हुए स्व कल्याण के निमित्त लग गया और उसने अपना कल्याण किया ।

सार यही है कि सब मोह माया है ।

जिस सुंदरता को देखकर आप लार चुवाते हैं , उसी सुंदरता को कुत्ते और मांसाहारी जीव भोजन के अलावा कुछ नहीं समझते ।

जो सुख और आनंद आपको रसगुल्ले में आता है , वही सुख एक गाय को हरी घास में आता है ,सुवर को विष्ठा चाटने में आता है ,गुबरैले को गोबर में आता है । कहीं सुख नहीं है ।

जो सुख राजा को अपने कामदेव के समान सुंदर पुत्र को चिपटाने में आता है , वही सुख एक दरिद्र स्त्री को अपने काना कुबड़े पुत्र को चिपटाने में आता है ।

इसीलिए तत्व जान कर एकमात्र :- भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते " . -  श्वेताभ पाठक

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