चिन्तन की धारा
नयी पौध से दो बात।
जब भी आप पहली बार अपने/अपनी मित्र को जानने समझने के लिए मिलें, डेट पर जाएं तो दो बातों का ध्यान अवश्य रखें। आपके/आपकी मित्र का सारा चरित्र शायद उन दो बातों से प्रकट हो जायेगा।
पहला - वह ऑर्डर लेने आये कर्मचारी से कैसा व्यवहार करता है। अगर वह ‘छोटू’ के साथ उतने तमीज से पेश आए जितना वह अपने किसी वरिष्ठ के साथ पेश आता है, तो समझिये कि आपकी तलाश पूरी हो गयी।
अपने से बड़ों से, बॉस से, ताकतवर से तो सभी को सभ्यता से पेश आना ही होता है। वह विवशता है व्यक्ति की। ‘स्वभाव’ तो वह है, जो आप छोटों के साथ, कमजोरों के साथ बरतते हैं।
और दूसरी महत्वूपुर्ण बात - आप गौर करें कृपया कि वह प्लेट में खाना छोड़ता तो नहीं है! खाना बर्बाद तो नहीं करता है?
इस सृष्टि में कुछ अत्यधिक चुनिन्दे महत्वपूर्ण वरदानों में से ‘अन्न’ एक है। अगर कोई प्लेट में खाना छोड़े, तो ऐसे व्यक्ति को भरोसे लायक कभी मत समझिये। जो इस महान अन्न का अनादर कर सकता है, उसे सम्मान किसी का भी करना नहीं आता होगा। अगर वह किसी का सम्मान करता/करती दिखे, तो वह स्वाभाविक नहीं अपितु परिस्थितिजन्य होगा।
जानता हूं कि इतना सामान्यीकरण नहीं हो सकता मानव व्यवहार का। यह भी जानता हूं कि दस-बीस आदमी होते हैं एक आदमी में। फिर भी एक मापदंड तो आप इन दोनों आधारों को मान ही सकते हैं।
अन्यों के लिए मात्र ही नहीं, वरन् स्वयं को जांचने-आंकने की कसौटी भी आप इसे मान सकते हैं। मजदूरों, स्वयं से कम हैसियत वालों से आप कैसे पेश आते हैं? क्या आप भी अपनी थाली में जूठन छोड़ते हैं?
बताइयेगा या स्वयं से तो अवश्य पूछियेगा एक बार। पूछेंगे न ?
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