बुधवार, 12 जुलाई 2023

हर हर महादेव

 

   *हर हर महादेव !!!!*


    महादेव को समर्पण,  सेवा व एकाकार होने का सर्वथा अनुकूल समय सावन महीने की शुभकामनाएं !!
     समयानुकूल चर्चा - लिंग का सामान्यतः अर्थ प्रतीक कहा जाता रहा है । राजशेखर जी तिवारी ने सुंदर व्याख्या व दृष्टिकोण दिया है, आप भी ज्ञान गंगा में डुबकी लगा ही लीजिए ....

लिंग का अर्थ संस्कृत भाषा में कभी भी किसी रूप में भी नर के मूत्रेंद्रिय के रूप में नहीं किया गया था । उसे शिश्न ही कहा गया है ।

शिश्न से लिंग का डारविनीकरण एक बेहूदा और निकृष्ट
सोच है ।  लिंग , स्त्रीलिंग के लिये भी उपयुक्त हुआ है और नपुंसक लिंग के लिये भी अतः लिंग को केवल शिश्न का पर्यायवाची बनाना एकदम दुर्बल चिंतन है ।

सांख्य दर्शन जिसमें स्पष्ट रूप से कहा है कि अग्नि कहाँ है ? जहां पर अग्नि का चिन्ह हो अर्थात् धुआँ हो ।  कहावत भी है कि बिना आग के धुआ नहीं निकलता ।

धुए को संस्कृत भाषा में अग्नि का लिंग अर्थात् चिन्ह या सूचक कहेंगे ।
( ईश्वर कृष्ण की सांख्य कारिका में अनुमान  के दो स्वरूप बताये गये हैं। लिंग-पूर्वक और लिंगी पूर्वक !
इसको उदाहरण से समझे ..
किसी पहाड़ पर धुआ देख कर आग का अनुमान करना !
यहाँ धुंआ कार्य हैं ..और आग कारण ! धुंआ लिंग है..आग लिंगी ! इस ये लिंग अनुमान का उदाहरण हैं !
इसी को उल्टा कर दे ..आग को देख कर धुंये का अनुमान करना ! ये लिंगी पूर्वक अनुमान का उदाहरण हैं !
लिंग का सामान्य अर्थ प्रतीक ही होता हैं !
ये कुछ महानुभाव ..जब सनातन ग्रंथो जैसे शिव पुराण का अंग्रेजी में अनुवाद करने लगे ..तो उन्होंने लिंग का अनुवाद Panis  कर दिया! )

सनातन हिन्दू धर्म के सभी दर्शनों में चिन्ह और सूचनाओं पर जब विमर्श किया गया है उसे “ लिंग परामर्श “ ही कहते हैं।

लिंग का दूसरा सबसे बड़ा उपयोग “ अनुमान “ के अर्थ में किया गया है । 

सांख्य दर्शन में जहां जहां अनुमान लगाया गया है उसे भी लिंग परामर्श ही कहा गया है । यहाँ तक कि सांख्योक्त प्रकृति को भी लिंग कहा गया है ।

शिव की मूर्ति जगत का कारण मानी गयी है अतः वह भी लिंग कहलाती है । प्रकृति को “ योनि “ और जगत के कारण को “ लिंग “ कहा गया है ।

व्याकरण ( नैरूक्त ) कहता है जो सबका आलिंगन करे और जिसमें सब कुछ लीन हो जाये उसे लिंग कहते है । ध्यान दें जिसमें सबकुछ लीन हो जाये और जो सबका आलिंगन कर सके वह परमात्मा ही हो सकता है ।

और गीता में भी भगवान ने प्रकृति के लिये ही “ योनि “ शब्द का प्रयोग किया है ।

अब आते हैं पश्चिमी ( और कुछ धूर्त भारतीय भी ) शिश्नीकरण पर ..

पश्चिमी सोच वासनाओं से उपर उठ ही नहीं पायी है और उठी भी है तो fertility ( उपजाऊपने ) पर जाकर अटक गयी है उससे उपर नहीं उठ पायी ।

ध्यान दें । सनातन हिन्दू धर्म में किये गये यज्ञ या कर्मकांड जिससे संतान उत्पन्न हो यह अंतिम लक्ष्य नहीं था वह गृहस्थाश्रम का एक महत्वपूर्ण अंग था ।

अब आपको आधुनिक फ़्रांस की यात्रा पर लेकर चलते हैं जो कि बड़का वैज्ञानिक सोच वाला देश माना जाता है ।

संलग्न  चित्र फ़्रांस के एक पत्रकार विक्टर नोयर का है , (ज़मीन पर लेटे हुवे स्टेच्यू ) जिसकी हत्या नेपालियन बोनापार्ट के भतीजे के समयकाल में कर दी गयी थी । उसकी कांसे की स्टैचू बनी ..

आधुनिक फ़्रेंच स्त्रियाँ बच्चे पैदा करने के लिये या अपनी सेक्स लाइफ़ को बढ़ाने के लिये इसके स्टैचू पर चढ़कर बेहूदी हरकतें करती हैं ..

यही है दुर्बल चिंतन और पतनोन्मुख कार्य ..

मनुष्य सदैव से परोक्ष शक्तियों पर विश्वास करता रहा है । मनुष्य का मन बिना कोई आकृति बनाये सोच भी नहीं सकता ..मूर्ति पूजा जहां एक विज्ञान है वहीं यदि इसे दुर्बल कर दिया जाये तो एक विकृत रूप उभरने लगता है । जैसे मुर्दे पर चादर इत्यादि ।

सनातन हिन्दू धर्म ने प्रत्यक्ष से परोक्ष और परोक्ष पर ले जाकर पटक नहीं दिया , हम मनुष्य को वापस साक्षात अपरोक्ष पर लेकर आये ..

और किताबी तथा तथाकथित आधुनिक अंततः ७२ हूर या विक्टर नोयेर पर जाकर अटक गये ।

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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