गुरुवार, 6 जुलाई 2023

1975 की चर्चा 3

 

1975 की चर्चा - Part 3

उत्तावर दिल्ली से अस्सी किलोमीटर दूर एक मेवाती मुस्लिम्स का एक गांव है। १९७६ में एक रात तीन बजे अचानक पूरे गांव को घोड़े पर सवार पुलिस ने घेर लिया और अन्नोउंस हुआ - १५ साल से बड़े मर्द बस स्टैंड मैन रोड पर जमा हो। चार सौ के ऊपर लोग जब वहां इक्कठे हुए - पुलिस ने पूरे गांव की तलाशी , लूटमार और आगजनी करी। एक दिन में पूरे गांव के सब आदमियों का ऑपरेशन कर दिया गया। इसी तरह मुज़्ज़फरनगर में दंगा शुरू हो गया जब पुलिस और प्रशासन ने जबरजस्ती करनी शुरू की। लोकल कांग्रेस नेताओ ने जब हाई कमांड को फ़ोन किया तो उन्हें डांट डपट कर चुप करा दिया गया । यहाँ का डीएम सीधा संजय के कण्ट्रोल में था और लोकल नेताओ आदि का उस पर कोई प्रभाव ना था। डेली का छह हज़ार का टारगेट लिए इस डीएम ने किसी को ना बक्शा - रिक्शा वाले से लेकर रोड पर रेहड़ी लगाने वालो तक को ऑपरेट करवा दिया। ये सीधे लोगो के वाहन उठवा लेता था - लौटने के एवज में नसबंदी करवा कर छोड़ता। ७५ साल के बूढ़े से लेकर १५ साल के लड़को तक को नहीं छोड़ा । जब लोगो ने मिल कर डीएम आवास पर धावा बोला तो जबाब में पुलिस ने आंसू गैस , गोली और लाठीचार्ज किया - कई लोग मरे और जख्मी हुए । ७५ पुलिस वाले तक जख्मी बताये गए। विपक्ष ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से जाँच की मांग रखी लेकिन ये दंगे सुल्तान पुर से मेरठ से गोरखपुर तक फ़ैल चुके थे। mp up बिहार , बंगाल सब जगह से दंगे की खबर आ रही थी - लोग या तो दंगो में मर रहे थे या नसबंदी के दौरान लापरवाही से।

हरयाणा में सबसे ज्यादा लोगो को झेलना पड़ा क्यूंकि चौधरी बंसीलाल ने बहुत सख्ती से प्रोग्राम लागू करवाया था - हरयाणा टॉप पर था आंकड़ों में। ताज्जुब की बात थी जम्मू कश्मीर के शेख अब्दुल्लाह इस रेस में बहुत बहुत पीछे थे - ना के बराबर आंकड़े और शेख को डांटने वाला भी कोई ना था। सुल्ताना का दोजना हाउस में सबसे ज्यादा लोग ऑपरेशन की लापरवाही से मरे - कोई पांच सौ मौत बताता कोई हज़ार , जितने मुँह उतनी बाते । लेकिन सुल्ताना पर कोई ऊँगली तक नहीं उठा पाया । विपक्ष संसद से लापता था क्यूंकि आपातकाल में लोग धड़ाधड़ गिरफ्तार हो रहे थे तो आम जनता की कहने वाला भी कोई ना था। इस टाइम इंदिरा ने एक नया एलान किया -हर राज्य अपने हिसाब से नसबंदी लागू करवाए - तो सब ये राज्य के cm ड्राफ्ट पेश करने में लग गए और सबसे पहले महाराष्ट्र ने कानून बनाया नसबंदी के लिए। cm थे sb चवण । कानून था - ५५ तक के आदमी और ४५ तक की औरत को कानूनन नसबंदी करवानी पड़ेगी तीसरे बालक के होने के छह महीने के अंदर । एक बार फिर पढ़िए ये कानून और सोचिये। नहीं किया तो दो साल की क़ैद !! इस से पहले ये राष्ट्रपति से पारित होता , आपातकाल समाप्त हो गया और नया चुनाव अन्नोउंस हो गया ।

किस्से और दर्दनाक कहानिया और भी बहुत है लेकिन पोस्ट को अब समापन के ओर ले जाना जरुरी है । ये प्रोग्राम 270 दिन तक चला था और सब नियम कानून ताक पर रख दिए गए थे। जनता पार्टी की सरकार में अनेको जाँच कमिटी बनी इसके लिए लेकिन कुछ नहीं हुआ।

चुनाव प्रचार के दौरान जब बंसीलाल जी हरियाणा में घुमते तो युवक अपनी धोती खोल कर खड़े हो जाते थे। कई लोगो ने घर के बहार नोटिस चिपका दिया - वही वोट मांगने आये जिसके पास नसबंदी का सर्टिफिकेट हो। ये नल और कनेक्शन वाला चुटकुला भी इसी चुनाव में से निकला था और वो सब नारे भी। एक सवाल उठता है - नसबंदी से हिन्दू और मुस्लिम पर क्या असर पड़ा ? सीधा कोई उत्तर नहीं है - लेकिन जो लोग सरकारी नौकरी वाले थे - वो ज़्यदातर बहुसंख्यक थे और उन्होंने शराफत से नसबंदी करवाई - वही से डेमोग्राफिक्स बदलने शुरू हुए थे। अल्पसंख्यक ने इतनी आसानी से हार नहीं मानी थी इस प्रोग्राम में।

अंत में - जब इंदिरा चुनाव हार गयी तो उन्हें भनक पड़ी कि कई सत्ताधारी लोग संजय की नसबंदी करवाने पर तुले है तुर्कमान गेट पर। तो वो सीधे jp नारायण के पास पहुंची गुहार लगाने और jp ने सब लोगो को शांत किया। ये बात अलग है - कि महज ढाई साल बाद जनता ने इंदिरा और संजय को बम्पर जीत के साथ फिर सत्ता दे दी थी। इस बार संजय के पास सांसद की कुर्सी भी थी - लेकिन आयु नहीं बची थी। यदि आयु होती - तो आज भारत की क्या तस्वीर होती ?

ये पूरा प्रकरण लगभग आठ किताबो के पढ़ने के बाद संक्षेप में लिखा है - गुहा जैसे लेखकों ने इस काण्ड को चार लाइन में समेट दिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। कुछ जगह थोड़ा विवरण मौजूद है लेकिन एक जगह सब डिटेल फिर भी नहीं मिलती।
पूरे प्रकरण का मतलब समझे जनाब? -Mann Jee

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