बातों बातों में - बातें ज्ञान की, विज्ञान की ...
●ELEMENTS: Historical & Comic Perspectives●
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सन 1624 में फ्रेंच वैज्ञानिक एचियन डे क्लेव को प्रचलित मत विरोधी बातें करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। एचियन की बातें न तो पवित्र ग्रंथों के विरोध में थीं। न ही उन्होंने मनुष्य के ईश्वर के प्रिय पुत्र होने अथवा पृथ्वी के ब्रह्मांड के केंद्र होने पर कोई सवाल उठाया था। उनका अपराध यह विश्वास करना था कि संसार प्राथमिक रूप से दो तत्वों - पृथ्वी और जल - तथा अन्य तीन उपतत्वों - मरकरी, सल्फर और नमक - से मिलकर बना है। यह अपराध क्यों था, यह जानने के लिए हमें समय में 2 हजार वर्ष पीछे जाना होगा।
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प्राचीनकाल से ही जब से मनुष्य ने होश संभाला, तब से ही वह ब्रह्मांड के मूल ढांचे को समझने का प्रयास कर रहा है। प्राचीन लोगों ने विश्व को कुछ मूल तत्वों से निर्मित माना। प्राचीन देवता मरडूक पृथ्वी को जल से निकाल कर लाया था, अंतः उससे प्रभावित मायलीटस के थेलिस ने संसार के जल से बने होने की बात की। बाद में आये एनेक्सीमीन ने दुनिया को वायु से निर्मित होना बताया तो हेराक्लिट्स का अनुमान था कि अग्नि तत्व ने ही इस संसार मे प्राण फूंके हैं।
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अरस्तू के आते-आते संसार के मूलभूत तत्वों की संख्या 4 हुई - अग्नि, वायु, पृथ्वी और जल। भारतीयों के पंचतत्वों में आकाश को भी एक तत्व समझा गया। वहीं ग्रीस में डेमोक्रिट्स और पूर्व में ऋषि कणाद जैसे कुछ ऐसे भी बिरले हुए, जिन्होंने सभी प्रचलित मान्यताओं के विरुद्ध जा कर समस्त जगत के सूक्ष्म कणों से बने होने की संभावना जताई।
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यहां एक सवाल उठता है कि मूलभूत तत्वों की खोज का औचित्य ही क्या है? लकड़ी को लकड़ी, जल को जल, लोहे को लोहा समझ लो तो कौन सा सूर्य की गति रूक जाएगी और धरा पर अंधकार छा जाएगा? इसका उत्तर यह है कि लकड़ी जल कर राख बन जाती है, पानी भाप बन जाता है, धातु गल कर अपना आकार बदल देती है, भोजन पेट मे जा कर कुछ और ही रूप धारण कर लेता है। वस्तुओं के रूप बदलने की यह प्रवृत्ति ही यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि सभी चीजें किसी मूलभूत तत्व से बनी हैं, जो तत्व बाहरी कारणों जैसे - सुखाना, गीला करना, गर्म करना, ठंडा करना - से अपना रूप बदल देते हैं। अरस्तू की 4 तत्वों की यह फिलॉसफी सर्वमान्य थी, साथ ही साथ, अरस्तू राजशाही के प्रिय थे। यही कारण है कि 2 हजार वर्ष बीतने के बावजूद अरस्तू विरोधी बातें करना भी पश्चिम में एक प्रकार से प्रभु निंदा के समकक्ष ही रखा जाता था।
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आज हम जानते हैं कि अगर आपके केंद्र में एक प्रोटॉन है तो आपका नाम हाइड्रोजन है, दो प्रोटॉन हैं तो आप हीलियम हैं, 8 प्रोटॉन - ऑक्सीजन, 16 प्रोटॉन - सल्फर.... इस तरह मात्र प्रोटॉन की संख्या बढ़ाने मात्र से आप प्राकृतिक रूप से कुल 92 तत्वों को प्राप्त कर सकते हैं।
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तो तत्त्वों की कुल संख्या कितनी हुई? कई लोग कहते हैं कि तत्व तो 118 हैं, और तत्वों की खोज चल रही है। मेरी मानेंगे, तो तत्वों की संख्या 100 से ऊपर होना असंभव है और प्रयोगशाला में नित नये तत्वों को बनाने की कवायद एक खामखाह की एक्सरसाइज के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं।
इसकी वजह यह है कि प्रोटॉन पॉजिटिव चार्ज होने के कारण एक-दूसरे से दूर भागते हैं। फिर भी स्ट्रांग फ़ोर्स नाम का एक मूलभूत बल उन्हें आपस में चिपका कर रखता है। यहां आपको बता दूँ कि स्ट्रांग फ़ोर्स इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ोर्स के मुकाबले 100 गुना शक्तिशाली है। अर्थात, इसका अर्थ यह भी है कि स्ट्रांग फ़ोर्स 100 से ज्यादा प्रोटॉन को एकसाथ जोड़ कर नहीं रख सकती। इसलिए प्रकृति में 100 से अधिक प्रोटॉन वाले तत्व होना खामखाह की बात है। लैब में 100 प्रोटॉन से अधिक मात्रा वाले तत्व बेहद क्षणिक समय के लिए बनते हैं पर उनका स्टेबल रह पाना असंभव है।
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प्रकृति में पाए जाने वाले 92 तत्वों में मात्र 4 - कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन - ही हैं जिनका आपके शरीर के निर्माण में 95% योगदान है। डीएनए में पाया जाने वाला फास्फोरस ले लीजिए, प्रोटीन निर्माण में प्रयुक्त सल्फर जोड़ लीजिये, रक्त में मौजूद आयरन, कोशिकाओं में बिजली दौड़ाते सोडियम-पोटेशियम, क्लोरोफिल को अंजाम देते मैग्नीशियम इत्यादि छोटे-छोटे योगदान देते तत्वों को भी जोड़ लिया जाए तो आपका शरीर कुल 26 तत्वों से निर्मित है।
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वैसे आपको बता दूँ कि हाइड्रोजन-हीलियम को छोड़ कर आपके शरीर के अन्य सभी भारी तत्वों का निर्माण किसी सितारे के भीतर हुआ था। सिर्फ सूर्य ही वो एकलौती मशीन है जो प्रोटॉनों को प्रोटॉन से टकरा कर जोड़ते हुए नये तत्वों को जन्म देते हैं और अपनी आयु पूरी होने के बाद... सुपरनोवा बन कर... अपने भीतर के पदार्थों को ब्रह्मांड में दूर-दूर तक छितरा देते हैं। समय के साथ इन पदार्थों से बने गैसीय बादल फिर एक बार सितारों और ग्रहों को जन्म देते हैं और जीवनचक्र दोहराया जाता है। सूर्य, पृथ्वी, ग्रहों समेत हम सबका जन्म ऐसे ही किसी मृत सितारे की राख से हुआ है।
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सुदूर अंतरिक्ष मे टिमटिमाते इन तारों को देखिए। ऐसा ही कोई सितारा था, जिसके विनाश पर आपके सृजन की पटकथा लिखी गयी। एटॉमिक लेवल पर हम सब कुछ और नहीं.... सितारों की धूल मात्र हैं।
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In a literal sense...You are made of Stardust.
Feel big !!!
- झकझकिया द्वारा
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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