चिन्तन की धारा -
आदतें , जो हमें वैसा ही बनाती है, जैसा चाहें...
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एक सेठ जी की मैंने जीवनी सुनी है जो सच्ची घटना पर आधारित है.....
एक मामूली से व्यापारी की संतान थे, जब शादी हुई तो पिता ने कुछ पैसे दिए और कहा कि अब मुझसे कोई मतलब मत रखना ,ये लो पैसा और इतने से पैसे से व्यापार करो और अपना परिवार पालो....
न ही मुझे तुमसे कोई पैसा चाहिए और ना ही तुम बार बार मेरी तरफ देखना......पैसे इतने थे जिससे नमक का व्यापार आसानी से चल सकता था , उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से नमक और मसाले के व्यापार में अच्छा मुनाफा कमाया फिर कपड़े के व्यापार में उतर गए......धीरे धीरे मुनाफा बढ़ता गया और व्यापार भी बढ़ता गया।
मुनाफे से कई स्थानों पर सस्ती जमींने ले रखी थी जो 15 साल बाद सोने के भाव की हो गयी पर उन्होंने जमीन को कभी भी बेचा नहीं......
अपने परिवार को उन्होंने एक आदत लगा रखी थी ,जैसे कि मंगलवार और बृहस्पतिवार को ऐसी कोई चीज घर में नहीं बनेगी जिसमें लहसून प्याज़ पड़ता हो, शनिवार को शाम को खिचड़ी ही बनेगी और हफ्ते में एक दिन गरीबों वाला भोजन जिसमें सिर्फ नमक तेल अचार रोटी होगी, इस दिन वो परिवार के साथ ही भोजन किया करते थे और बताते थे कि भगवान का एहसान मानो कि हमें यह भी नसीब हो रहा है अन्यथा कई ऐसे हैं जिनके घर मे रोटी तक नसीब नहीं होती......
ठहरिए.....!! ऐसा वो कंजूसी वश नहीं कर रहे थे बल्कि स्वयं और स्वयं के परिवार को परिस्थितियों से लड़ने के काबिल बना रहे थे क्योंकि हफ्ते के अन्य दिन तो पकवान बन ही रहे थे अर्थात ये समझिए कि भगवान राम का वन जाना उन्हें इस बात के लिए भी तैयार कर रहा है कि सिर्फ राजमहल के सुख नहीं ,वनों के संघर्ष को भी सह सकने की क्षमता होनी चाहिए। सभी को पता है अमीरी गरीबी का आना जाना लगा रहता है,राजा से रंक और रंक से राजा बनाने का इतिहास है समय के पास....
सनातन में भोजन से लेकर दिनचर्या को इसीलिए सशक्त बनाया गया है ताकि आप हर परिस्थिति से लड़ सको,एकायक समस्या आने पर बौखला ना उठो..... धन,दौलत ,शौहरत सब समय का दिया हुआ उपहार है ,कब वापस मांग ले कोई पता नहीं....
सेठ जी की इस दिनचर्या का असर यह भी था कि उनके घर में बडी तोंद लिए कोई व्यक्ति नहीं था और ना ही बेवजह की कोई बीमारी थी, सभी स्वस्थ्य थे।
समय ने पलटा खाया और उन्हीं के जीवित रहते ,उन्हीं की आंखों के सामने व्यापार में ऐसा घाटा लगातार होता गया कि लगभग सब नष्ट हो गया। उनके बच्चे अब व्यापार चला रहे थे सभी उदास थे पर घर में किसी को यह शिकायत नहीं थी कि AC क्यों नहीं चल रहा ....मैं ये खाना नहीं खाऊंगा वो खाना नहीं खाऊंगा.... ऐसा नाटक करने वाला कोई नहीं था क्योंकि हफ्ते का एक दिन और दो दिन बिना लहसून प्याज़ के खाने ने उन्हें हफ्ते भर साधारण भोजन करने में भी आनंद दे रहा था......सुख की लत नहीं थी इसलिए गया भी तो कोई खास असर नहीं पड़ा....
सेठ जी बूढ़े हो चुके थे,बच्चों का संघर्ष देख रहे थे फिर अंत मे उन्होंने सभी बच्चों को बुलाया और बताया कि इन इन स्थानों पर मैंने जो जमीनें ले रखी थी उन्हें बेच दो....आज वो इतने दाम की हैं कि व्यापार पुनः दौड़ पड़ेंगे लेकिन ध्यान रहे जब मुनाफा आने लगे तो पुनः जैसे मैंने जमीनें ली थी उससे कहीं अधिक तुम तीनो भाईयों को लेना है.......मुझे वापसी में पुनः अपनी जमीनें चाहिए....
फिर क्या था एक वक्त के बाद उनके बच्चों ने व्यापार को पुनः सही दिशा दे दी और अपना सबसे सुरक्षित बैंक यानी पहले से अधिक जमीनें फिर खरीद ली, ताकि आपत्ति काल मे सहायक हों.... -शचि ✍️
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सुखी जीवन का रहस्य
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