चिन्तन की धारा
डिप्रेशन का ऑपरेशन
==============
मेरे पड़ोस ने एक पंडित जी के दो पोते है।
पांडित जी के बेटे का जिक्र इस लिए नही किया, क्योंकि उसके विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है। पंडित जी के नाम से ही वो मंदिर का नाम मशहूर था जिसमे पंडित जी सेवा देते थे।
तो पंडित जी का छोटा पोता, मेरा जानने वाला था। जान पहचान जायदा भी नही थी कम भी नहीं, बस राम राम भाई राम राम वाली थी। कारण हम दोनो हम उम्र थे, तो बचपन के कभी कभार एक दूसरे के महोल्ले में खेलने चले जाते थे।
उसका कद भी मेरे बराबर 6 फूट। अच्छा खासा मजबूत बदन रौबीला चरित्र था
पंडित जी का बड़ा पोता, मुझ से लगभग पांच या सात साल बड़ा है। जब हम छोटे थे तब ही सुना था की पंडित जी के बड़े पोते का एक्सीडेंट हो गया। शायद बस में चढ़ते वक्त पांव फिसल गया था।
इस बात को 25 से वर्ष के आस पास हो गए होंगे।
एक्सीडेंट में जान बच गई, लेकिन शरीर में काफी ज्यादा नुकसान हुआ। उसकी चाल ऐसी बन गई के क्या बताऊं। ना घुटना मुड़ता है ना कुल्हा।
आप को अगर जानना वो कैसे चलता है। तो यूं समझे की आप टांगो को V शेप के तान दे। और बिना घुटना मोडे बिना कूल्हे से कदम आगे बढ़ाए, चल एक देखे। सिर्फ कमर से दाए बाएं कर के आगे बढ़ना है।
खैर इस लडके ने खाने कमाने के लिए और क्या क्या किया ये तो पता नही। लेकिन मेरे होशो हवास में इसने, चाय की एक रेहड़ी लगाई थी। जिसे लगाते हुए आज 20 साल के आस पास हो गए होंगे।
आज उसी रेहड़ी लगाने और कमाने से इस आदमी ने, सुना है अपनी बेटी की शादी कर दी और बेटा पढ़ा लिखा लिया।
सुबह कई बार इसे देखता हूं, उसी मंदिर के द्वार पर सिर झुका कर धन्यवाद की मुद्रा में, जिस मंदिर के पंडित जी इनके दादा जी थे।
माथे पर छोटा सा तिलक, हाथ में चाय की केतली, और गिलासों का गुच्छा लिए बाजार में अक्सर उसी बत्तख जैसी चाल से चाय पहुंचाता दिख जाता है आज भी।
चेहरे पर ना कोई दीनता है, ना असमर्थता। बस एक धन्यवाद देखता हूं। की जो है बहुत है।
मैं कई बार जब जीवन मे हारा बेसहारा या असहाय महसूस करता था, और ईश्वर के प्रति भी आवेश से भर गया होता था। तो जैसे ही इसे देखता था, सारा डिप्रेशन विप्रेषण दूर हो जाता था की, अगर ये दो रोटी कमा खा सकता है और मेहनत कर सकता है तो मैं क्यों नही।
लोग कहते है हमे डिप्रेशन है। हमे एंजाइटी है। हमे फलाना है ढिकाना है।
वास्तव में ये वो लोग हैं जिनके पास इतनी लग्जरी है की, ऐसा बोल पा रहे है । उनके पास इतने साधन और संपन्नता है की इतना समय सोशल मिडिया पर देकर अपने डिप्रेशन से बचने के तरीकों पर आप रिसर्च कर सकते है।
वास्तव में सिवाय मनुष्य के कोई जीव जंतु डिप्रेशन में नही जा रहा। क्योंकि उसके पास फुरसत ही नही है उदास होने की।
मधुमक्खी को तीन दिन की लाइफ में अगली पीढ़ी के लिए शहद इकट्ठा करना है।
मच्छर को एक दिवसीय जीवन यात्रा में आपका खून चूसना है।
पक्षियों को सुबह उठते ही उस दिन के लिए दाना चुगना है और दस तरह के शिकारियों से जान बचानी है।
गली के कुत्ते को आपकी एक रोटी के लिए रात भर जाग कर भौंकना है।
किसी जीव के पास अस्तित्व की लड़ाई से इतना अवकाश ही नही है की उसे विषाद सुझे।
पूरी सृष्टि में केवल एक मानव ही है, जिसके पास जितना साधन और सुविधाएं आती गई उतना उदासीन और विषाद से भरता चला गया।
और हां वो छोटा पोता जो छोटा पोता था जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया था वो छह फुट लम्बा देह से भीम समान, कुछ भी कर सकने में सक्षम शरीर वाला व्यक्ति आज वह इस दुनिया में नहीं है उसने सुसाइड कर लिया था।
क्योंकि मेरे जानने तक ना उसकी शादी हुई थी ना ही उसने कोई काम धंधा जोड़ा था। बस अलाने फलाने रसूखदार का चमचा बना घूमता रहा था।
एक लक्ष्य रहित, अनियमित जीवन शैली, आपको सिवाय विषाद, अस्वस्थता और मृत्यु के कुछ नही देती। - कुलदीप वर्मा
_________🌱_________
*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
https://chat.whatsapp.com/K141GbKPXWuGHlBNIxmycD
*अब आप भी ग्रुप में अपने परिचितों को जोड़ सकते हैं !!*
_________🌱__________
पुराने प्रसंग आप यहाँ देख पाएंगे -
https://dulmera.blogspot.com/?m=1
_________🌱__________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें