सोमवार, 23 जनवरी 2023

सोच का प्रभाव

सोमवारीय चिन्तन ...!!!

सोच/श्रद्धा/विश्वास का विज्ञान
●The Power of a Thought●

1 मई, 1992 के न्यूरोफिजियोलॉजी के साइंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध अनुसार वैज्ञानिकों ने दो समूहों पर प्रयोग किये। इस बेहद सामान्य प्रयोग में एक समूह एक्सरसाइज कर रहा था, तो वहीं दूसरा समूह बैठ कर सोच रहा था कि वे भी एक्सरसाइज कर रहे हैं। एक महीनें बाद निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि एक्सरसाइज कर रहे पहले समूह की मसल्स स्ट्रेंथ 30% तक बढ़ चुकी थीं, तो वहीं दूसरा ग्रुप, जो बैठ कर सिर्फ "सोच" रहा था, उसकी मसल्स स्ट्रेंथ आश्चर्यजनक रूप से 22% बढ़ गयी थी, वो भी बिना कुछ किये, सिर्फ "सोच" के सहारे...
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हमारी सोच और शरीर/मस्तिष्क पर उसके प्रभाव का उतना ही गहरा संबंध है जितना न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया सिद्धांत का। इसे और बेहतर समझने के लिए आइए, एक प्रयोग करते हैं।
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आप अगर दाहिने हाथ से लिखते हैं तो आंखें बंद कर सोचिए, कि आप हवा में अपना बायां हाथ घुमा कर अपने हस्ताक्षर कर रहे हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आप अपनी इमेजिनेशन में भी उसी प्रकार टेढ़ा-मेढ़ा लिख पा रहे होंगे, जैसा वास्तविकता में लिखते। यकीन नहीं तो कर के देख लीजिए। आख़िर क्या कारण है कि आप अपनी सोच तक में सीधा नहीं लिख पा रहे हैं?
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इसका कारण यह है कि हमारा दिमाग पूरी तरह मेकेनिकल प्रोसेस पर कार्य करता है और इसमें प्रत्येक लर्निग/अनुभव पैटर्न-आधारित कोड के रूप में स्टोर किये जाते हैं। यह पैटर्न आप उसी फॉर्म में एक्सेस कर सकते हैं, जिस फॉर्म में आपने अनुभव को दिमाग में स्टोर किया था। अर्थात, मैं आपसे A to Z सुनाने को कहूँ तो आप एक सांस में सुना देंगे, पर Z से A तक सुनाने में आप पस्त हो जाएंगे। अब सीधा सुनाओ या उल्टा, है तो अंग्रेजी वर्णमाला ही, डेटा नहीं बदला, फिर भी आप Z से A तक बिना अभ्यास के प्रवाह में इसलिए नहीं सुना पाते क्योंकि आपने कभी इस क्रम में डेटा स्टोर करने की कोशिश ही नहीं की। उदाहरण अनेक दिए जा सकते है, स्थापना सिर्फ यह कि ब्रेन पूरी तरह मेकेनिकल है।
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ब्रेन की वायरिंग पैटर्न बेस्ड होने का साइड इफ़ेक्ट यह है कि आपका ब्रेन बातों/अनुभवों/किस्सों के आधार पर स्टोर हुए "Fake Patterns" पर भी वास्तविक रेस्पॉन्स देता है, बशर्ते वह फेक पैटर्न आपके अंतर्मन में गहरे तक पैवस्त हो। यही कारण है कि चूंकि पूर्वकाल में खूंखार जानवरों के मध्य जंगलों में रहते आपके पूर्वजों ने आपको अंधेरे में न जाने के लिए आपको निरंतर कहानियां सुनाई, बाद में अंधेरे का संबंध अमानवीय शक्तियों से जोड़ दिया गया। हजारों वर्ष पीढ़ी दर पीढ़ी ये कहानियां सुनकर बड़ी हुईं और आज भी ये कहानियां आपके डीएनए में घुसी हुई हैं और इस कारण भले ही आज आप आराम से अपने कमरे में लेटे हो और आपको पता हो कि आसपास कोई खतरा नहीं, फिर भी अंधेरा हर तार्किक/अतार्किक व्यक्ति की असहज/भयभीत कर देता है। याद रखिये, डीएनए सूचना कभी नष्ट नहीं करता।
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अवचेतन में मौजूद पैटर्न से उत्पन्न वास्तविक रिस्पांस को समझना है तो कुछ दिन लगातार हॉरर फिल्में देखिए, कुछ दिन बाद रात में रसोई में बिल्ली द्वारा गिराए गए गिलास की आवाज भी आपको आतंकित करने लगेगी। कुछ दिन एलियंस की फ़िल्म देखते रहिए, उसके बाद आसमान में चमकती हर रोशनी आपको एलियंस का जहाज ही प्रतीत होगी, भले ही वो रोशनी का स्त्रोत कुछ और हो।
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इन्ही फेक पैटर्न्स पर वास्तविक रिएक्शन देने के कारण एक ग्रुप बिना एक्सरसाइज किये भी कसरत के लाभ प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि सपने के दौरान अगर आप किसी अप्रिय स्थिति में हैं तो किसी भी आघात के ठीक पूर्व आपका दिमाग एक झटके से आपको जगा देता है क्योंकि सोच में हुआ आघात भी आप पर वास्तविक प्रभाव डालता है और आपका जीवन खतरे में पड़ सकता है।
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दिमाग पर सोच के प्रभाव के कारण ही अगर मन में डॉक्टर के प्रति विश्वास हो तो वह आपको चूरन की गोली चटा कर भी स्वस्थ कर सकता है। यही कारण है कि अगर आपको विश्वास है कि फलाना जगह नारियल चढ़ाने से, अलाने जगह धागा बांधने से या किसी इष्ट के चरणों में शीश नवाने से आपका भला होगा, तो बहुत ज्यादा चान्सेस हैं कि आपका भला हो, आपके शरीर में गुणात्मक बदलाव आए। हो सकता है कि कहीं नारियल चढ़ाने पर उस दिन आपके साथ इत्तेफाकन कुछ अच्छा हो और आपका पैटर्न आधारित दिमाग उस घटना को उस दिन किये आपके धर्मकाज से जोड़कर आपको ऊर्जावान महसूस कराएगा।
यही कारण है कि एक देहाती माहौल में परियों/प्रेतों/भूतों की कहानियां सुनकर पैदा हुआ व्यक्ति अगर विभिन्न कारणों से कोई मानसिक विकार उत्पन्न कर लेता है तो उसे कोई मनोचिकित्सक कितना भी कोशिश कर ले, ठीक वह किसी ओझा द्वारा तैयार किये माहौल में ही होगा क्योंकि उसकी ब्रेन की वायरिंग ही ऐसी है।
चमत्कार नारियल, चुन्नी, ओझाओं में नहीं, चमत्कारी आपका दिमाग होता है, जो निरंतर आपको बेवकूफ बना रहा होता है।
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अब आप इसे कुदरत का मजाक कह लीजिए अथवा खूबसूरती पर सच यही है कि हमारा अवचेतन वास्तविकता से कहीं अधिक भ्रम से संचालित होता है। मानव मन की माया बेहद जटिल है। ये जो सोचता है, वही देखता है, वही महसूस करता है, और उस सोच के उसके दिमाग और शरीर पर प्रभाव पड़ते हैं। यह सब निरंतर प्रयोगों में साबित हुआ है और इसे Placeboo Effect का नाम दिया गया है।
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यकीन मानिए, सोच आपकी जिंदगी बदल सकती है।
विजय सिंह जी ठकुराय द्वारा ।।
*A Powerful Thought Can Change Your Life.*
So now go out there and "think" something good now.

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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