*सभी सनातनी मित्रों को आज मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ...!!*
मकर संक्रांति का मतलब हमलोग दही चूड़ा और तिलकुट ही जानते हैं. मतलब कि... जब से जन्म हुआ है हमलोग मकर संक्रांति को तिलकुट तो अनिवार्य रूप से खाते ही खाते हैं.
लेकिन, कुमार सतीश जी को हमेशा इस बात से आश्चर्य होता था कि आखिर हमलोग मकर संक्रांति को तिल क्यों खाते हैं.
घर में पूछने पर मालूम पड़ा कि...
एक बार भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से बहुत नाराज हो गए थे और क्रोध में आकर अपने तेज से शनि देव के एक घर को जला दिए थे.
शनिदेव का वह घर है कुंभ राशि.
घर जलने के बाद शनि देव ने अपने पिता से क्षमा मांगी और उनकी वंदना की तो सूर्यदेव का क्रोध शांत हुआ.
पुत्र शनि देव पर कृपा करके सूर्य देव ने कहा कि वह हर साल जब भी राशि चक्र में भ्रमण करते हुए मकर राशि में आएंगे जो शनि देव का एक अन्य घर है तो शनि महाराज के घर को धन धान्य और खुशियों से भर देंगे.
और, इसके बाद शनि देव के घर जब सूर्य देव का आगमन हुआ तो शनि महाराज ने तिल और गुड़ से पिता सूर्य का पूजन किया तथा उन्हें खाने के लिए भेंट किया.
इसकी वजह यह थी कि शनि देव के घर कुंभ के जल जाने से शनिदेव के पास और कुछ नहीं था.
पुत्र द्वारा तिल और गुड़ भेंट करने से सूर्य देव बहुत प्रसन्न हुए और शनिदेव से कहा कि जो भी मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगे उस पर शनि सहित मेरी भी कृपा बनी रहेगी. उस घटना के बाद से ही मकर संक्रांति पर तिल गुड़ खाने की परंपरा चली आ रही है.
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लेकिन, बाद में पता लगा कि....
अरे यार, तिल में तो कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. एक चौथाई कप या मात्र 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है.
साथ ही साथ... तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं जिस कारण यह रक्त के ‘लिपिड प्रोफाइल’ को भी बढ़ाता है.
और तो और.... जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें तिल के सेवन से लाभ होता है.
और तो और तिल बैक्टीरिया तथा इनसेक्टिसाइड का भी शमन करता है.
इन सबके साथ सबसे बड़ी बात यह है कि... तिल और गुड़ की प्रकृति गर्म होती है.
और, सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने के बाद मौसम में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है...
तो, मौसम बदलने के कारण धरती पर मौजूद इंसानों में रोग आदि की संभावना बढ़ जाती है.
इस समस्या से निपटने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने प्रकृति में उपलब्ध चीजों का प्रयोग हमें बता दिया कि मौसम के परिवर्तन को रोकना तो हम इंसानों के वश में नहीं है, लेकिन हम इन चीजों का प्रयोग कर उसके दुष्प्रभावों को मिनिमाइज कर सकते हैं. भारतीय पर्व वैज्ञानिक है, कठिन बातों को सहज ही जीवन में उतार लेने की परम्परा ही पर्व है ।
और, उन्होंने अपनी रिसर्च और उसके निष्कर्ष को एक परंपरा का रूप दे दिया.
अब इस पूरे प्रकरण में दो-तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण है कि...
मकर संक्रांति पर्व से ये तो स्थापित है कि आज से हजारो लाखों साल पहले भी हमारे ऋषि मुनियों को... खगोल विद्या अर्थात सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने की बिल्कुल सटीक जानकारी थी..
साथ ही... मौसम बदलने से हमारे शरीर में हो सकने वाले दुष्प्रभावो की जानकारी थी...
यहाँ तक कि... उन्होंने अपने गहन रिसर्च से इन दुष्प्रभावों से निपटने का उपाय भी खोज निकाला था.
इसीलिए... जिन्हें भी ये लगता है कि आज से हजारों लाखों साल पहले मनुष्य या तो बंदर था या फिर गुफाओं और कंदराओं में रहता था... उन्हें अपने इस बेसिर-पैर की थ्योरी पर पुनर्विचार करने की जरूरत है.
यदि... हर कुछ इतने स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो जाने के बाद भी किसी को अबतक यही लगता है कि.... नहीं, उनकी थ्योरी सही है..
तो फिर... मैं यही कह सकता हूँ कि.... भाई, हो सकता है कि तुम्हारे पूर्वज बंदर ही रहे हों..
अथवा, जंगलों और कंदराओं में रहते हों...
लेकिन, हमारे पूर्वज तो महान वैज्ञानिक थे.... जिन्हें, खगोल विद्या से लेकर चिकित्सा विज्ञान एवं माइक्रोबायोलॉजी की पूरी जानकारी थी.
तो, फिर आखिर हम क्यों न गर्व करें अपने उन महान पूर्वजों एवं अपने सनातन संस्कृति पर ???
🙏🙏
पंचांग के अनुसार, सूर्य देव 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे.ऐसे में उदया तिथि के कारण 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी.
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