मंगलवार, 31 जनवरी 2023

प्रासंगिक

 


मैंने अपने शहर को इतना विह्वल कभी नहीं देखा! तीन से चार लाख लोग सड़क किनारे हाथ जोड़े खड़े हैं।
     *अयोध्या में प्रभु की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल से शालिग्राम पत्थर जा रहा है, और आज वह ट्रक गोपालगंज से गुजर रहा है। कोई प्रचार नहीं, कोई बुलाहट नहीं, पर सारे लोग निकल आये हैं सड़क पर... युवक, बूढ़े, बच्चे... बूढ़ी स्त्रियां, घूंघट ओढ़े खड़ी दुल्हनें, बच्चियां...*
    स्त्रियां हाथ में जल अक्षत ले कर सुबह से खड़ी हैं सड़क किनारे! ट्रक सामने आता है तो विह्वल हो कर दौड़ पड़ती हैं उसके आगे... छलछलाई आंखों से निहार रही हैं उस पत्थर को, जिसे राम होना है।
    बूढ़ी महिलाएं, जो शायद शालिग्राम पत्थर के राम-लखन बनने के बाद नहीं देख सकेंगी। वे निहार लेना चाहती हैं अपने राम को... निर्जीव पत्थर में भी अपने आराध्य को देख लेने की शक्ति पाने के लिए किसी सभ्यता को आध्यात्म का उच्चतम स्तर छूना पड़ता है। हमारी इन माताओं, बहनों, भाइयों को यह सहज ही मिल गया है।
       जो लड़कियां अपने वस्त्रों के कारण हमें संस्कार हीन लगती हैं, वे हाथ जोड़े खड़ी हैं। उदण्ड कहे जाने वाले लड़के उत्साह में हैं, इधर से उधर दौड़ रहे हैं। मैं भी उन्ही के साथ दौड़ रहा हूँ।
      इस भीड़ की कोई जाति नहीं है। लोग भूल गए हैं अमीर गरीब का भेद, लोग भूल गए अपनी जाति- गोत्र! उन्हें बस इतना याद है कि उनके गाँव से होकर उनके राम जा रहे हैं।
    हमारे यहाँ कहते हैं कि सिया को बियह के रामजी इसी राह से गये थे। डुमरिया में उन्होंने नदी पार की थी। हम सौभाग्यशाली लोग हैं जो रामजी को दुबारा जाते देख रहे हैं।
      पाँच सौ वर्ष की प्रतीक्षा और असँख्य पीढ़ियों की तपस्या ने हमें यह सौभाग्य दिया है। हम जी लेना चाहते हैं इस पल को... हम पा लेना चाहते हैं यह आनन्द! माझा से लेकर गोपालगंज तक, मैं इस यात्रा में दस किलोमीटर तक चला हूँ, दोनों ओर लगातार भीड़ है।
     कोई नेता, कोई संत, कोई विचारधारा इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं कर सकती, यह उत्साह पैदा नहीं कर सकती। सबको जोड़ देने की यह शक्ति केवल और केवल धर्म में है, मेरे राम जी में है।
     गोपालगंज में कुछ देर का हॉल्ट है। साथ चल रहे लोगों के भोजन की व्यवस्था है, सो घण्टे भर के लिए ट्रक रुक गया है। लोग इसी समय आगे बढ़ कर पत्थर को छू लेना चाहते हैं। मैं भी भीड़ में घुसा हूँ, आधे घण्टे की ठेलमठेल के बाद ठाकुरजी को स्पर्श करने का सुख... अहा!कुछ अनुभव लिखे नहीं जा सकते।
     उसी समय ऊपर खड़ा स्वयंसेवक शालिग्राम पर चढ़ाई गयी माला प्रसाद स्वरूप फेंकता है। संयोग से माला मेरे हाथ में आ गिरती है। मैं प्रसन्न हो कर अंजुरी में माला लिए भीड़ से बाहर निकलता हूँ। पर यह क्या, किनारे खड़ी स्त्रियां हाथ पसार रही हैं मेरे आगे... भइया एक फूल दे दीजिये, बाबू एक फूल दे दीजिये। अच्छे अच्छे सम्पन्न घरों की देवियाँ हाथ पसार रही हैं मेरे आगे! यह रामजी का प्रभाव है।
     मैं सबको एक एक फूल देते निकल रहा हूँ। फिर भी कुछ बच गए हैं मेरे पास! ये फूल मेरा सौभाग्य हैं...
     कुछ लोग समझ रहे हैं कि एक सौ तीस रुपये में खरीद कर रामचरितमानस की प्रति जला वे हमारी आस्था को चोटिल कर देंगे। उन मूर्खों को कुछ नहीं मालूम... यह भीड़ गवाही दे रही है कि राम जी का यह देश अजर अमर है, यह सभ्यता अजर अमर है, राम अजर अमर हैं...

- इसे लिखा उन्ही प्रिय लेखक सर्वेश जी तिवारी ने है, जिनकी लिखी उर्मिला हम पढ़ते आये हैं ।।

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सोमवार, 30 जनवरी 2023

बाघ का स्वभाव

 


सोमवारीय चिन्तन की धारा --

पंचतंत्र में एक कथा आती है बूढ़ा बाघ और लोभी यात्री की ...

होता क्या है कि एक लोभी व्यक्ति जंगल से गुजर रहा होता है । अचानक उसे एक बूढ़ा बाघ आवाज़ देता है और कहता है

" हे दरिद्र विप्रदेव ! आज आपके भाग्य का लॉक अनलॉक हो गया है । मैं अकूत सम्पदा का स्वामी हूँ । भगवद प्रेरणा से अपनी समस्त सम्पदा का दान करने का इच्छुक हूँ । मेरा संकल्प है कि जो व्यक्ति इस कुंड में स्नान कर ईश्वर का ध्यान करेगा उसे मैं सोने का कंगन भेंट करूँगा । आओ विप्र इस योजना का लाभ उठाओ ।"

गरीब ब्राह्मण सोचता है कि एक बाघ भला सोने का कंगन क्यों बांटेंगा ? अपनी शंका वो उस बाघ से कहता है । प्रतिउत्तर में बाघ उसे वेद पुराण आदि शास्त्रों से सैकड़ो उक्तियां बताता है । यथा

वो कहता है कि
"जिस प्रकार बंजर धरती को वर्षा और भूखे को भोजन देना सार्थक है उसी प्रकार गरीब को दान देना भी सुफल देता है ।"

स्वयं को पंडित बताते हुए वो कहता है कि
"पंडित उसी को जानिये जो स्त्रियों को माता, पराये धन को मिट्टी और सभी प्राणियों से सम व्यवहार करें ।"

इस प्रकार शास्त्रों से बाघ सैकड़ो उक्तियों पर धर्म का प्रपंचित प्रवचन कर लोभी मनुष्य की शंका को निर्मूल कर उससे कहता है कि "जाओ मित्र धर्म पर निष्ठा लाओ और स्नान ध्यान कर ये सोने के आभूषण प्राप्त करो ।"

विप्र बेचारा प्रभावित हो बाघ को तारणहार समझ बैठता है । उसकी बातों में आकर वो कुंड में नहाने जाता है और वहां दलदल में फंस जाता है । बाघ उसकी सहायता करने के बहाने उसके समीप आता है और उसे मारकर खा जाता है ।

पंचतंत्र की इस कथा के उपदेश/ मोराल बहुत प्रासंगिक हैं । जिन्हें समझना अत्यंत आवश्यक है । इन्ही की वजह से ये कथा लिखी गयी है -

*अधर्मी लोग संकट में होने पर धर्म का सहारा लेते हैं ...*

*वो चाहे दुर्योधन हो या कर्ण - इन लोगों को धर्म की याद तब आयी जब इन्हें छल से मारा गया ।*

* वर्तमान युग में अधर्मी संविधान की आड़ ले रहे हैं ।*

*मानवाधिकारों की बात करने वाले ये नरपिशाच काश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर रेत में अपनी गर्दन गड़ाए हुए थे ।*

*हमारा पक्ष आज भी उस निरीह लोभी विप्र की तरह आसानी से इन राक्षसों पर भरोसा कर लेते हैं ...*

*इतिहास से हमें सीख लेते हुये स्पष्ट और दो टूक कहना आ जाना चाहिये ।*

*जिन लोगों का धर्म तुम्हें उलझाना हो - फसाना हो, तुम्हारा अंत करना हो,  उन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए ।*

*बाघ का धर्म ही मनुज की हत्या करना है । उस पर विश्वास विप्र को ले डूबेगा ये शाश्वत सत्य है ।*

*बाघ अपना स्वभाव कभी नहीं बदलता भले ही बूढ़ा हो जाये ।*

*अधर्मी के साथ धर्म निभाना मौत को दावत देना है ।*

*बाघ को आर्थिक और सामाजिक रूप से पंगु बना दीजिये ।*

आशा है अनुज अग्रवाल के द्वारा दिए संदर्भ आप उचित संदर्भों सह सार्थक समझेंगे 🙏

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रविवार, 29 जनवरी 2023

दो घड़ी धर्म की

 💐💐अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की💐💐


एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था। अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था। 


एक बार वह परदेस से लौट रहा था। साथ में धन था, इसलिए तीन-चार पहरेदार भी साथ ले लिए। 


लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुंचा, तो सोचा कि अब क्या डर। इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा। 


अच्छा होगा, यहीं से विदा कर दूं। उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया।


दुर्भाग्य देखिए कि वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा कि अचानक डाकुओं ने उसे घेर लिया। 


डाकुओं को देखकर सेठ का कलेजा हाथ में आ गया। सोचने लगा, ऐसा अंदेशा होता तो पहरेदारों को क्यों छोड़ता? आज तो बिना मौत मरना पड़ेगा। 


डाकू सेठ से उसका धन आदि छीनने लगे। 


तभी उन डाकुओं में से दो को सेठ ने पहचान लिया। वे दोनों कभी सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे। 


उनका नाम लेकर सेठ बोला, अरे! तुम फलां-फलां हो क्या? 


अपना नाम सुन कर उन दोनों ने भी सेठ को ध्यानपूर्वक देखा। उन्होंने भी सेठ को पहचान लिया। 


उन्हें लगा, इनके यहां पहले नौकरी की थी, इनका नमक खाया है। इनको लूटना ठीक नहीं है।


उन्होंने अपने बाकी साथियों से कहा, भाई इन्हें मत लूटो, ये हमारे पुराने सेठ जी हैं। 


यह सुनकर डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया। 


दोनों डाकुओं ने कहा, सेठ जी, अब आप आराम से घर जाइए, आप पर कोई हाथ नहीं डालेगा। 


सेठ सुरक्षित घर पहुंच गया। लेकिन मन ही मन सोचने लगा, दो लोगों की पहचान से साठ डाकुओं का खतरा टल गया। धन भी बच गया, जान भी बच गई। 

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इस रात और दिन में भी साठ घड़ी होती हैं, अगर दो घड़ी भी अच्छे काम किए जाएं, तो अठावन घड़ियों का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है। 


इसलिए अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की..!!


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कर्म का फल

 

⭕ कर्मों के फल से ना बच पाओगे !! ⭕
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🔷 एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे ।
धर्म-कर्म में यकीन करते थे ।
उनके पास जो भी व्यक्ति उधार मांगने आता,
वे उसे मना नहीं करते थे ।

सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार मांगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ?
इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"

🔷 जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी !
हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे ।"
और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी !
हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे ।"

और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है !
अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है ।"

ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे
और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था ।
जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता ।

🔷 एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार मांगने पहुँचा ।
उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है ।

हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था ।

चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार मांगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा ।

मुनीम ने चोर से पूछा - "भाई !
इस जन्म में लौटाओगे या अगले जन्म में ?"

🔷 चोर ने कहा - "मुनीम जी ! मैं यह रकम अगले जन्म में लौटाऊँगा ।"

🔷 मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए ।
चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय कर लिया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में उड़ा दूँगा ।

वो रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और वहीं भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा ।

अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं और वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है ।

🔷 एक भैंस ने दूसरी से पूछा - "तुम तो आज ही आई हो न, बहन !"

उस भैंस ने जवाब दिया - “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज़ उतारना है और तुम कब से यहाँ हो ?”

उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया - "मुझे तो तीन साल हो गए हैं, बहन ! मैंने सेठ जी से कर्ज़ लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी ।

सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी ।

अब दूध देकर उसका कर्ज़ उतार रही हूँ ।
जब तक कर्ज़ की रकम पूरी नहीं हो जाती तब तक यहीं रहना होगा ।”

🔷 चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो होश उड़ गए और वहाँ बंधी भैंसों की ओर देखने लगा ।

वो समझ गया कि उधार चुकाना ही पड़ता है,
चाहे इस जन्म में या फिर अगले जन्म में उसे चुकाना ही होगा ।

वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज़ उसने लिया था उसे फटाफट मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया ।

🔶 हम सब इस दुनिया में इसलिए आते हैं,
क्योंकि हमें किसी से लेना होता है तो किसी का देना होता है ।

इस तरह से प्रत्येक को कुछ न कुछ लेने देने के हिसाब चुकाने होते हैं ।

इस कर्ज़ का हिसाब चुकता करने के लिए इस दुनिया में कोई बेटा बनकर आता है
तो कोई बेटी बनकर आती है,
कोई पिता बनकर आता है,
तो कोई माँ बनकर आती है,
कोई पति बनकर आता है,
तो कोई पत्नी बनकर आती है,
कोई प्रेमी बनकर आता है,
तो कोई प्रेमिका बनकर आती है,
कोई मित्र बनकर आता है,
तो कोई शत्रु बनकर आता है,
कोई पड़ोसी बनकर आता है तो कोई रिश्तेदार बनकर आता है ।

चाहे दुःख हो या सुख हिसाब तो सबको देना ही पड़ता हैं ।
ये प्रकृति का नियम है,

इसलिए अपने कर्म ऐसे करें कि वो लौटकर आपके पास जरूर आएंगे ।

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बुधवार, 25 जनवरी 2023

अमृत धारा

 

स्वास्थ्य ---

           सर्व रोगों का एक इलाज

*अमृत धारा* के विषय में बाजारों में कितने ही विज्ञापन देखनें में आते हैं ! न जाने कितनी ही फार्मेशियों ने इसे अलग अलग नामों से पेटेन्ट करा कर प्रचार करने की चेष्टा की है ! और कितने ही लोग इस औषधि को बेचकर धनपति बन बैठे ! किसी ने इसका नाम अमृत धारा, किसी ने पियूष धारा, तो किसी ने पीयूष सिंधु, सुधा सिंधु, तो किसी ने चन्द्र धारा तो किसी ने चिरायु धारा आदि विविध नामों से रजिस्टर्ड करा रखा है ! यह अमृत धारा क्या चीज है ! तथा किस किस नाम से निर्माण की गई है, जान लीजिये, ताकी आप सभी ऐसी अनन्य गुण कारक तथा उत्तम और उपकारक चीज को स्वयं बनाकर अवश्य काम में लावें !!

           अमृत धारा बनाने की विधि

अजायन का सत् , पिपरमेन्ट का फूल , और कपूर - तीनो को समभाग लेकर (अलग अलग रख कर )  घर लाकर एक अच्छी मजबूत कार्क वाली बोतल में एक एक कर डाल दें ! दस या पन्द्रह मिनट बाद सब पिघल कर द्रव्य रूप ले लेगा " *यही अमृत धारा है !* कपूर यदि भीमसेनी मिले तो अच्छी अमृत धारा बनती है ! भीम सेनी कपूर महंगा होने  के कारण बाजार वाले इसका प्रयोग नही करते ! असली अमृत धारा उपर्युक्त तीन औषधि से ही बनती है !!

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               अमृत धारा के प्रयोग

*: १ : ज्वर :-* तुलसी, अदरक, और नागर बेल के पान, ( ये तीनो चीज ) या इनमें से किसी एक चीज का स्वरस पाव तोला ( तोले का चौथाई भाग ) लेकर उसमें तीन बूंद अमृत धारा की डालकर पिलाएं ! यह एक खुराक है ! ऐसे ही सुबह दोपहर शाम व रात को लें ! तीन चार दिन के प्रयोग से सर्व प्रकार के ज्वर दूर होते हैं ! तथा एक चम्मच गरम पानी के साथ तीन चार बूंद अमृत धारा की डालकर प्रात: व सायं पिलाने से मोतीझरा ज्वर आदि सर्व ज्वर शान्त होते हैं !!

*: २ : हैजा :-* अमृत धारा ४/५ बूंद ठन्डे पानी के साथ हर १०/१० मिनट के अन्तर से देते रहें ! ज्यों ज्यों दस्त और कै बन्द होती जावें ! त्यौं त्यौं इसका प्रयोग भी घटाते जावें ! अथवा प्याज का रस निकाल कर उसमें अमृत धारा की तीन बूंद डालकर देने से हैजा मिटता है !!

*: ३ : सिर दर्द :-* २/२ बूंद अमृत धारा की कपाल पर व कनपटियों पर मलने से सब तरह के सिर दर्द नष्ट हो जाते हैं !!

*: ४ : नेत्र रोग :-*  १ / २ बूंद अमृत धारा की कपाल पर व कनपटियों पर मलने से सब तरह के सिर दर्द व नेत्रों का दुखना नष्ट हो जाता हैं !!

*: ५ : कर्ण रोग :-* १० बूंद तिल्ली का तेल व एक तोला प्याज का रस में २ बूंद अमृत धारा की मिलाकर कान में डालने से कर्ण रोग शान्त हो जाते हैं !!

*: ६ : नाक के रोग :-* एक हिस्सा अमृत धारा और तीन हिस्सा तिल्ली या अरण्डी का तेल या १० बूंद गुलरोगन मिला कर उसमें रूई का फाहा भिगोकर नाक में लगाने से तथा शीशी खोलकर सुंघाने से पीनस रोग नष्ट होते हैं !!

*: ७ : मुख के छाले :-* चारआना भर कवाब चीनी पीसकर उसमें दो बूंद अमृत धारा की मिला मुख में मलने से छाले नष्ट हो जाते हैं !!

*: ८ : दांत व दाढ़ :-* दांत व दाढ़ पर अमृत धारा मलने से और कौचर में फाहा रखने या मलने से पीड़ा मिटती है ! तथा गले के भीतर बाहर की सूजन आदि सर्व मुख रोगों पर फायदा करती है !!

*: ९ : कास श्वांस :-* ४/५ बूंद अमृत धारा ठन्डे पानी में मिलाकर प्रात: व सायं लेते रहने से श्वांस, कांस, दमा, सब रोग नाश होते हैं ! तथा मीठे तेल में अमृत धारा मिलाकर छाती पर मालिस करने से श्वांस तथा खांसी व छाती आदि का दर्द शान्त होता है !!

*: १० : पसली :-* सौंफ या अजवाइन के अर्क या क्वाथ में ४/५ बूंद अमृत धारा की डालकर पीने से पसली का दर्द व न्यूमोनिया का रोग मिटता है ! अथवा केवल अमृत धारा को सौंठ के चूर्ण में मिला कर देने से भी आराम होता है ! और पसली पर अमृत धारा मलने से भी रोग शान्त होता है !!

*: ११ : छाती के रोग :-* हृदय पर अमृत धारा को तेल में मिलाकर मलना चाहिए ! और ऑवले के मुरव्बे में तीन चार बूंद अमृत धारा डालकर खिलाने से सर्व हृदय रोग मिटतें हैं !!

*: १२ : पेट दर्द :-* खाण्ड या पतासे मे ३/४ बूंद अमृत धारा डालकर खिलाने से पेट दर्द शान्त होता है ! यदि न मिटे तो आधा आधा घण्टे के अन्तर से सेवन कराया जाय तो अवश्य मिटता है !!

*: १३ : मंदाग्नि रोग :-* भोजन के पश्चात २/३ बूंद अमृत धारा ठन्डे पानी के साथ लेने से मन्दाग्नि के सब रोग शांत होते हैं ! अथवा सौंठ के अर्क के साथ पानी में मिला पीने से सब प्रकार के उदर विकार नाश हो जाते हैं !!

*: १४ : कमजोरी :-* १ तोला गाय के मक्खन और आधा तोला शहद में ४ बूंद अमृत धारा नित्य लेने से कमजोरी रोग का नाश होता है !!

*: १५ : जल जाने पर :-* अग्नि, तेजाब, गरम पानी, या गरम तेल में जल जाने पर १ या २ या ३ चूने का कंकर ले और उसको १० तोला पानी में भिगो दें ! १० मिनट बाद उसमे दो तोला मीठा तेल डालकर मलने से जलन शान्त होती है !!

*: १६ : अद्धिंग, लकवा, गठिया आदि :-* अमृत धारा में १ तोला सरसों का या मीठा तेल मिला कर मालिस करना और गरम कपड़े से सेंक करना या ऊपर पुरानी रूई गरम कर बांधने से वायु संबन्धी पीड़ा की शान्ति होती है !!

*: १७ : हिचकी :-* २ बूंद अमृत धारा को जीभ पर डालकर मुह बन्द कर कुछ अमृत धारा सूंघने से हिचकी बन्द होती है !!

*: १८ : प्लीहा रोग :-* प्लीहा स्थान पर अमृत धारा की मालिस करना और ३ मासे खांड में तीन चार बूंद अमृत धारा व एक मासा काला नमक मिलाकर बासी पानी के साथ पीना चाहिए !!

*: १९ : यकृत रोग :-* अमृत धारा की तीन चार बूंद त्रिफला के पानी में डाल कर सुबह साम पियें ! व यकृत स्थान पर अमृत धारा की मालिस करने से यह रोग शान्त हो जाता है !!

*: २० : अतिसार रोग :-* ठन्डे पानी में दो तीन बूंद अमृत धारा की मिलाकर सुबह साम पीने से दस्त, आमदस्त, मरोड़, पेचिश, अतिसार, आमातिसार, खट्टी डकार, अतिप्यास, पेट फूलना, पेट दर्द, भोजन करते ही कै या दस्त होना इत्यादि सर्वरोग शान्त होते हैं !!

*: २१ : दाद खुजली आदि :-* तिल्ली के तेल में अमृत धारा मिला सारे सरीर या किसी एक जगह की खुजली मिटती है !!

*: २२ : जुकाम :-* अमृत धारा को सूंघनें से जुकाम मिटती है !!

*: २३ : मृगी :-* सिर पर १/२ बूंद अमृत धारा की मालिस करें ! व २ बूंद अमृत धारा को गुलाब जल के अर्क में डालकर पियें !!

*: २४ : जहरी जानवरों के विष पर :-* जहरी जानवर, टाटिया, बिच्छू, भंवरा, तथा मक्खी आदि के डंक पर अमृत धारा मलने से आराम होता है ! जिस जगह पर विच्छू काटे उस जगह को थोड़ा ख़ुरच कर अमृत धारा मलने से जल्दी आराम होता है !!

यह अमृत धारा बहुत ही अनुपम योग है ! जिसे कितने ही वर्षों से आम जन में प्रसिद्ध है ! आप सब  भी इसे स्वयं बनाकर अपने अपने घरों में जरूर रखें ! ताकी छोटी छोटी परेशानी होने पर आप तुरन्त इसका प्रयोग कर लाभ लें सकें ।।

सोमवार, 23 जनवरी 2023

सोच का प्रभाव

सोमवारीय चिन्तन ...!!!

सोच/श्रद्धा/विश्वास का विज्ञान
●The Power of a Thought●

1 मई, 1992 के न्यूरोफिजियोलॉजी के साइंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध अनुसार वैज्ञानिकों ने दो समूहों पर प्रयोग किये। इस बेहद सामान्य प्रयोग में एक समूह एक्सरसाइज कर रहा था, तो वहीं दूसरा समूह बैठ कर सोच रहा था कि वे भी एक्सरसाइज कर रहे हैं। एक महीनें बाद निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि एक्सरसाइज कर रहे पहले समूह की मसल्स स्ट्रेंथ 30% तक बढ़ चुकी थीं, तो वहीं दूसरा ग्रुप, जो बैठ कर सिर्फ "सोच" रहा था, उसकी मसल्स स्ट्रेंथ आश्चर्यजनक रूप से 22% बढ़ गयी थी, वो भी बिना कुछ किये, सिर्फ "सोच" के सहारे...
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हमारी सोच और शरीर/मस्तिष्क पर उसके प्रभाव का उतना ही गहरा संबंध है जितना न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया सिद्धांत का। इसे और बेहतर समझने के लिए आइए, एक प्रयोग करते हैं।
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आप अगर दाहिने हाथ से लिखते हैं तो आंखें बंद कर सोचिए, कि आप हवा में अपना बायां हाथ घुमा कर अपने हस्ताक्षर कर रहे हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आप अपनी इमेजिनेशन में भी उसी प्रकार टेढ़ा-मेढ़ा लिख पा रहे होंगे, जैसा वास्तविकता में लिखते। यकीन नहीं तो कर के देख लीजिए। आख़िर क्या कारण है कि आप अपनी सोच तक में सीधा नहीं लिख पा रहे हैं?
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इसका कारण यह है कि हमारा दिमाग पूरी तरह मेकेनिकल प्रोसेस पर कार्य करता है और इसमें प्रत्येक लर्निग/अनुभव पैटर्न-आधारित कोड के रूप में स्टोर किये जाते हैं। यह पैटर्न आप उसी फॉर्म में एक्सेस कर सकते हैं, जिस फॉर्म में आपने अनुभव को दिमाग में स्टोर किया था। अर्थात, मैं आपसे A to Z सुनाने को कहूँ तो आप एक सांस में सुना देंगे, पर Z से A तक सुनाने में आप पस्त हो जाएंगे। अब सीधा सुनाओ या उल्टा, है तो अंग्रेजी वर्णमाला ही, डेटा नहीं बदला, फिर भी आप Z से A तक बिना अभ्यास के प्रवाह में इसलिए नहीं सुना पाते क्योंकि आपने कभी इस क्रम में डेटा स्टोर करने की कोशिश ही नहीं की। उदाहरण अनेक दिए जा सकते है, स्थापना सिर्फ यह कि ब्रेन पूरी तरह मेकेनिकल है।
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ब्रेन की वायरिंग पैटर्न बेस्ड होने का साइड इफ़ेक्ट यह है कि आपका ब्रेन बातों/अनुभवों/किस्सों के आधार पर स्टोर हुए "Fake Patterns" पर भी वास्तविक रेस्पॉन्स देता है, बशर्ते वह फेक पैटर्न आपके अंतर्मन में गहरे तक पैवस्त हो। यही कारण है कि चूंकि पूर्वकाल में खूंखार जानवरों के मध्य जंगलों में रहते आपके पूर्वजों ने आपको अंधेरे में न जाने के लिए आपको निरंतर कहानियां सुनाई, बाद में अंधेरे का संबंध अमानवीय शक्तियों से जोड़ दिया गया। हजारों वर्ष पीढ़ी दर पीढ़ी ये कहानियां सुनकर बड़ी हुईं और आज भी ये कहानियां आपके डीएनए में घुसी हुई हैं और इस कारण भले ही आज आप आराम से अपने कमरे में लेटे हो और आपको पता हो कि आसपास कोई खतरा नहीं, फिर भी अंधेरा हर तार्किक/अतार्किक व्यक्ति की असहज/भयभीत कर देता है। याद रखिये, डीएनए सूचना कभी नष्ट नहीं करता।
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अवचेतन में मौजूद पैटर्न से उत्पन्न वास्तविक रिस्पांस को समझना है तो कुछ दिन लगातार हॉरर फिल्में देखिए, कुछ दिन बाद रात में रसोई में बिल्ली द्वारा गिराए गए गिलास की आवाज भी आपको आतंकित करने लगेगी। कुछ दिन एलियंस की फ़िल्म देखते रहिए, उसके बाद आसमान में चमकती हर रोशनी आपको एलियंस का जहाज ही प्रतीत होगी, भले ही वो रोशनी का स्त्रोत कुछ और हो।
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इन्ही फेक पैटर्न्स पर वास्तविक रिएक्शन देने के कारण एक ग्रुप बिना एक्सरसाइज किये भी कसरत के लाभ प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि सपने के दौरान अगर आप किसी अप्रिय स्थिति में हैं तो किसी भी आघात के ठीक पूर्व आपका दिमाग एक झटके से आपको जगा देता है क्योंकि सोच में हुआ आघात भी आप पर वास्तविक प्रभाव डालता है और आपका जीवन खतरे में पड़ सकता है।
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दिमाग पर सोच के प्रभाव के कारण ही अगर मन में डॉक्टर के प्रति विश्वास हो तो वह आपको चूरन की गोली चटा कर भी स्वस्थ कर सकता है। यही कारण है कि अगर आपको विश्वास है कि फलाना जगह नारियल चढ़ाने से, अलाने जगह धागा बांधने से या किसी इष्ट के चरणों में शीश नवाने से आपका भला होगा, तो बहुत ज्यादा चान्सेस हैं कि आपका भला हो, आपके शरीर में गुणात्मक बदलाव आए। हो सकता है कि कहीं नारियल चढ़ाने पर उस दिन आपके साथ इत्तेफाकन कुछ अच्छा हो और आपका पैटर्न आधारित दिमाग उस घटना को उस दिन किये आपके धर्मकाज से जोड़कर आपको ऊर्जावान महसूस कराएगा।
यही कारण है कि एक देहाती माहौल में परियों/प्रेतों/भूतों की कहानियां सुनकर पैदा हुआ व्यक्ति अगर विभिन्न कारणों से कोई मानसिक विकार उत्पन्न कर लेता है तो उसे कोई मनोचिकित्सक कितना भी कोशिश कर ले, ठीक वह किसी ओझा द्वारा तैयार किये माहौल में ही होगा क्योंकि उसकी ब्रेन की वायरिंग ही ऐसी है।
चमत्कार नारियल, चुन्नी, ओझाओं में नहीं, चमत्कारी आपका दिमाग होता है, जो निरंतर आपको बेवकूफ बना रहा होता है।
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अब आप इसे कुदरत का मजाक कह लीजिए अथवा खूबसूरती पर सच यही है कि हमारा अवचेतन वास्तविकता से कहीं अधिक भ्रम से संचालित होता है। मानव मन की माया बेहद जटिल है। ये जो सोचता है, वही देखता है, वही महसूस करता है, और उस सोच के उसके दिमाग और शरीर पर प्रभाव पड़ते हैं। यह सब निरंतर प्रयोगों में साबित हुआ है और इसे Placeboo Effect का नाम दिया गया है।
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यकीन मानिए, सोच आपकी जिंदगी बदल सकती है।
विजय सिंह जी ठकुराय द्वारा ।।
*A Powerful Thought Can Change Your Life.*
So now go out there and "think" something good now.

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रविवार, 22 जनवरी 2023

परिवर्तन की घड़ी

 

*⭕  हृदय परिवर्तन  ⭕*

♦ एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था । बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।

♦ राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें । सारी रात नृत्य चलता रहा । ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी । नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा - *"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई । एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए ।"*

♦ अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला । तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा ।

♦ जब यह बात गुरु जी ने सुनी । गुरु जी ने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं ।

♦ वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया ।

♦ उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।

♦ नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा - "बस कर, एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है ।"

♦ जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "राजा ! इसको तू वेश्या मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है । इसने मेरी आँखें खोल दी हैं । यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ।" यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े ।

♦ राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ । आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही । क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?"

♦ युवराज ने कहा - "पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था । लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है । धैर्य रख ।"

♦ जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया । राजा के मन में वैराग्य आ गया । राजा ने तुरन्त फैंसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं । तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो ।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।

♦ यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि "हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना । बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।"

♦ समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती । एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है । बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है ।

♦ प्रशंसा से पिघलना मत, आलोचना से उबलना मत, नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहो, क्योंकि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा।

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शनिवार, 21 जनवरी 2023

उर्मिला 15

 

उर्मिला 15
    महारानी कौसल्या ने पुत्रवधुओं की सहायता से भूमि पर विह्वल पड़े महाराज को पुनः पलंग पर लिटाने का प्रयास किया, पर महाराज ने रोक दिया। बोले, " ऊंचे आसन का सुख बहुत भोग लिया कौसल्या, अब भूमि पर सो लेने दो। अंतिम यात्रा पर निकलने से पूर्व मनुष्य को भौतिक साधनों का त्याग कर ही देना चाहिये। कुछ करना ही चाहती हो तो मेरे सिरहाने तुलसी का गमला रख दो। थोड़ा गंगाजल पिला दो। अब यही वास्तविक सुख है।
    रोती स्त्रियों ने महाराज का आदेश पूरा कर दिया। उन्होंने आंखें मूंद ली। कुछ पल बाद आंखें खोली और कहा- "तुम्हे श्रवण कुमार का स्मरण है कौसल्या? उसके वृद्ध माता-पिता का वह शाप स्मरण है?"
     कौसल्या के मुख पर आश्चर्य मिश्रित भय पसर गया। वे सचमुच वह पुरानी घटना भूल गयी थीं। महाराज ने पुत्रवधुओं से कहा, "जानती हो पुत्रियों! मैंने पशु समझ कर उस निर्दोष और धर्मपरायण युवक की हत्या कर दी थी। तब उसके वृद्ध अंधे मातापिता ने प्राण त्यागते हुए मुझे शाप दिया था कि मैं भी एक दिन अपने पुत्रों के वियोग में तड़प कर प्राण त्याग दूंगा। नियति का न्याय देखो, उनका शाप फलीभूत होने जा रहा है।
     "नहीं पिताश्री! आपने तो भूल से उनपर प्रहार किया था। आपसे भूल हुई थी, अपराध नहीं। आपको शाप नहीं लगना चाहिये!" माण्डवी ने सांत्वना देने के लिए कहा।
     "यह तुम कह रही हो पुत्री? न्याय की भूमि मिथिला की बेटी ऐसा कह रही है? इसे समझाओ उर्मिला! मुझे वह शाप अवश्य ही लगना चाहिये। ईश्वर निर्बलों का एकमात्र अवलम्ब होता है, यदि अकारण ही सताए जाने पर मर्मांतक पीड़ा से तड़प उठे किसी निर्दोष की अंतिम इच्छा को वह भी न सुने तो संसार से उसके द्वारा गढ़ी गयी सभ्यता का नाश हो जाएगा। उस वृद्ध दम्पत्ति की अंतिम इच्छा पूरी होनी ही चाहिये। राजा दशरथ पुत्र वियोग में मरें यही धर्म होगा। मैं राम का पिता हूँ, नियति के न्याय पर प्रश्न उठा कर उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल नहीं करूंगा। मुझे प्राण त्यागने ही होंगे।"
      किसी के पास महाराज के तर्कों का उत्तर नहीं था, पर सभी उन्हें बहलाने का प्रयत्न कर रहे थे। परिवारजन होने के नाते वे यही कर भी सकते थे। महाराज ने फिर आंखें मूंद ली थीं।
      शाम के समय महाराज ने आंखें खोलीं। पुत्रवधुओं को पास बुलाया और कहा, " तुम लोग उस मिथिला की बेटी हो जिसने युगों युगों से संसार को आध्यात्म की शिक्षा दी है। मानव जीवन के सत्य को जितना मिथिला ने समझा है, उतना कोई और न समझ सका। मेरा जाना जीवन की एक सामान्य घटना है पुत्रियों, लेकिन मेरे जाने के बाद इस परिवार और इस राष्ट्र की बागडोर तुम्हारे हाथ में है और यह तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा है। मेरा राम यहाँ है नहीं, और वह साधु भरत अत्यंत भावुक है। मैं जानता हूँ, अपनी माता के अपराध को जानने के बाद मेरा भरत अत्यंत दुखी हो जाएगा और भावुकतापूर्ण व्यवहार करता रहेगा। ऐसी दशा में तुम्हें ही इस राज्य को थामना होगा पुत्रियों! अयोध्या का भविष्य तुम्हारे ही हाथों में है।
      तीनों बधुएँ हाथ जोड़ कर खड़ी थीं। पिता की हर बात चुपचाप सुन ली, और शीश झुका कर स्वीकार कर लिया। दशरथ फिर बोले, " उर्मिला! मैं चलता हूँ, मेरी अयोध्या का ध्यान रखना पुत्री। स्मरण रहे, अयोध्या की सेवा ही मेरी सेवा है।"
      उर्मिला आदि की आंखें भर गई थीं। उन्होंने चुपचाप अपना हाथ पिता के चरणों पर रख दिया था। दशरथ फिर बोले- माताओं का ध्यान रखना पुत्री! उन्हें अब तुम्हारे स्नेह की आश्यकता होगी। और सुनो! उस अभागन से कहना, मैंने उसे क्षमा कर दिया है।"
      कोई कुछ बोल नहीं सका। सबका गला भरा हुआ था। महाराज दशरथ ने आंखें मूंद ली और राम राम का जप करने लगे।
      रात बीत गयी। महाराज पूरी रात राम राम रटते रहे थे। भोर की पहली किरण से साथ उन्होंने आंखें खोलीं, अंतिम बार कक्ष में बैठे अपनों को देखा, और आंखें मूंद ली। उनके मुख से निकला- राम! राम! राम! इसी के साथ उनका शीश निर्बल हो कर दाईं ओर लुढ़क गया।
    जिससे बार बार देवता तक सहयोग मांगते थे, अपने युग का वह सर्वश्रेष्ठ योद्धा दो निर्बल अंधे बुजुर्गों के शाप के सम्मान में शीश झुका कर अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गया था। यह भारतभूमि पर सत्ता का उच्चतम आदर्श था।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )
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बुधवार, 18 जनवरी 2023

मन की घड़ी

 

स्वास्थ्य चर्चा
*BIO-CLOCK*
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*अगर हमें बाहर जाना है या कुछ काम है तो हम clock का  alarm 4.00 बजे सुबह का लगा कर सो जाते हैं.*

*पर कभी कभी हम Alarm के पहले ही उठ जाते हैं, या ठीक 4 बजे अलार्म बजने के कुछ पल पहले नींद खुल जाती है । This is Bio-clock.*

*बहुत से लोग ये मानते है कि वो 80 - 90 की age में ऊपर जाएंगे* 

*काफी लोग ये विश्वास करते हुए अपनी खुद की  Bio-clock दिमाग में उसी तरह से set कर लेते है, की 50-60 की उम्र में सभी बीमारियां उन्हे घेर लेंगी*

*तभी लोग सामान्यतः  50-60 की उम्र में बीमारियों से घिर जाते है और जल्दी भगवान को प्यारे हो जाते हैं.*

*Actually हम अंजाने में अपनी  गलत Bio-clock  सेट कर लेते है.*

*China में लोग आराम से live 100 साल जीते है. उनकी Bio-clock उसी तरह set रहती है*.

*So friends,*

*1. हम लोग अपनी Bio-clock इस तरह set करेंगे जिससे हम लोग कम से कम100 years जी सकें.*

*याद रखिए Age is just a Number, but "Old Age" is mindset. कुछ लोग 75 साल की उम्र में young महसूस करते है तो कुछ लोग at 50 years में भी खुद को बूढ़ा महसूस करते हैं.*

*2. हमे ये विश्वास बनाना है की हम 40 से 60 years की उम्र में उन सभी बीमारियों से दूर हो चूकेंगे जो पहले भी कभी हुई हो, जिससे हमारी bio-clock वैसे ही set हो जाए और there is no chance of getting any disease.*

*3. Look young.  अपनी वेशभूषा, और दिखना young जैसा रखिए, Do not allow the appearance of ageing.*

*4. Be active.  चलने के बजाए Jogging कीजिए.*

*5. ये विश्वास बनाइए की उम्र के साथ हेल्थ बेहतर होगी.  (It's true*).

*6. This mind is the reason for everything.*

*NEVER, EVER ALLOW THE BIO-CLOCK SET YOUR ENDING..... कभी भी Bio -Clock को आपके जल्दी स्वर्ग सिधारने की अनुमति मत दीजिए।*
क्योंकि हम जैसा अपने मन में सोचते हैं, हमारे शरीर की सारी प्रक्रिया उसी हिसाब से काम करती है l
अत: हमारी सोच हमेशा अपने जीवन में सकारात्मक होनी चाहिए l

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सोमवार, 16 जनवरी 2023

दादी लस्सी पीओगी

 बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।


उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया,


"दादी लस्सी पियोगी ?"


मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 25 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।


दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा,


"ये किस लिए?"


"इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !"


भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।


एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा... उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।


अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।


डर था कि कहीं कोई टोक ना दे.....कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये... लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी.....


लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी... हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,


"ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।"


अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं।


न जानें क्यों जब कभी हमें 10-20 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं?


क्या कभी भी उन रुपयों को बीयर , सिगरेट ,पर खर्च कर ऐसी दुआएं खरीदी जा सकती हैं?


जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें भले ही कोई अभी आपका साथ दे या ना दे, समर्थन करे ना करें। सच मानिए इससे आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है


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चिन्तन

 

चिन्तन की धारा ...
अपने हिन्दू धर्म की मूल प्रकृति ये है कि वो अलग-अलग मत, वाद, संप्रदाय और पंथों को एक साथ एकात्मता के हिन्दू धागे में सहेज कर रखता है। किसी को उसकी मान्यता के लिए कभी बहिष्कृत नहीं करता, किसी से ये नहीं कहता कि तुम यही मानो या तुम ये नहीं मानो और न ही किसी को ये कहता है कि तुम जो मान रहे हो वो सही नहीं है।

हमारे यहाँ जब आप अतीत में जायेंगे तो कम से कम सोलह दर्शन प्रचलित रहें जिसमें वैदिक और अवैदिक दर्शन दोनों थे।

मध्यकाल में अलग-अलग भक्ति-धाराएं जन्मी जिनमें कोई सगुण का उपासक था, कोई निर्गुण का, कोई राम और कृष्ण को अवतार मानते हुए उनकी बाल-लीलाओं पर न्योछावर होता था तो कोई कहता था कि ‘वो जिह्वा जल जाये जो ये कहती है कि ईश्वर अवतार लेता है।’ इसके बाद आर्य समाज जन्मा जो कहता था कि ईश्वर को मूर्ति और चित्र में तलाशना मूर्खता है तो लगभग उसी दौर में महान मूर्तिपूजक रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं का भी प्रचार-प्रसार हो रहा था। हिन्दू समाज ने इनमें से किसी में भी विभेद नहीं किया।

यह हमारा राष्ट्रीय भाव था जो नीचे आते -आते इस तरह हो गया कि एक हिन्दू परिवार में भी एक व्यक्ति आर्यसमाजी हो सकता है, दूसरा सनातनी मूर्तिपूजक हो सकता है, तीसरा सिख हो सकता है तो हो सकता है कि चौथा नास्तिक हो। ये भी हो सकता है कि घर में जो मूर्तिपूजक हैं उनमें एक शक्ति का उपासक है तो दूसरा शैव या वैष्णव है। इसीलिए गदर पार्टी के क्रांतिकारी लाला हरदयाल कहते थे- “यदि एक हिन्दू सनातन धर्म छोड़कर आर्य समाजी बन जाए या देव समाज छोड़कर राधास्वामी पंथ में सम्मिलित हो जाए या सिख संप्रदाय में चला जाए तो राष्ट्रीय-राज-मर्मज्ञ की दृष्टि से कोई हानि नहीं।"

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मैं हिन्दू हूँ तो वेदों को मानूँगा, पुराणों को मानूँगा पर कोई मुझसे ये नहीं कह सकता कि तुम त्रिपिटकों को या गुरुग्रंथ साहिब जी को छोड़ दो या उनको न मानो। इसी तरह जब हमारे यहाँ नए पंथ जन्में तो उनके प्रवर्तकों में से किसी ने भी ये नहीं कहा कि आगम, त्रिपिटक या आदिग्रंथ को स्वीकार करते हो तो रामायण और महाभारत को उठाकर फेंक दो। बंगाल में रामकृष्ण परमहंस को ठाकुर कहते हुए उनकी प्रतिमा का पूजन शुरू हुआ पर उनमें से किसी ने भी काली माँ की पूजा करनी बंद नहीं की। किसी सनातनी परिवार की बिटिया किसी बौद्ध, सिख या जैन के घर में गई तो किसी ने भी ये नहीं कहा कि उसका मतांतरण हुआ है। इसी तरह अगर कोई सिख लड़की या जैन लड़की हिन्दू परिवार में आती है तो कोई नहीं कहता कि उसने धर्म बदल लिया है। मैं हिन्दू हूँ और मंदिर में जाता हूँ पर अगर मुझे गुम्फा, गुरुद्वारे या जैन मंदिरों में भी जाना पड़ा तो भी कभी ये नहीं लगता कि ये पूजा और उपासना स्थल मेरे नहीं हैं।

मैं लगभग प्रतिदिन गुरुबाणी सुनता हूं तो उसे सुनते हुए कोई भी मेरे घर में नहीं कहता कि ये बाणी उसकी अपनी नहीं है और तुमको ये नहीं सुननी चाहिए।

इसका अर्थ ये है कि भारत भूमि के अंदर जन्मे विभिन्न मत-पंथ और संप्रदायों की मान्यताएं आपस में कितनी भी भिन्न क्यों न हो, उनके अंदर कुछ न कुछ तो सांझा अवश्य है जो सभी हिन्दू धर्म के सभी पंथों की धमनियों में समान रूप से प्रवाहित है। हमको ये पहचानना है कि ये योजक तत्व क्या है जो हिन्दू धर्म के अंदर के हरेक मत-मतान्तर में समान है और साँझा है।

सभी को एकात्मता के हिन्दू धागे में पिरोकर रखने वाला ये योजक तत्व है हम सबका ये विश्वास जो कहता है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने ढ़ंग से ईश्वर के किसी भी रूप की उपासना कर सकता है अथवा अगर ईश्वर को नहीं मानना चाहे तो उसकी मर्जी।” हम यानि हिन्दू धर्म के अंदर के तमाम मत-पंथ तो इतने उदार हैं कि हमें किसी की भी महत्ता और अस्तित्व को स्वीकार करने में कभी कोई समस्या ही नहीं होती। हम तो ये मानते हैं कि हरेक पंथ का जन्म किसी न किसी विशेष परिस्थिति और आवश्यकता के अनुरूप हुआ है और इसलिए वो अवांछित नहीं है। अगर किसी पंथ में कुछ अलग दिखता भी है तो उसका कारण केवल इतना है कि उस पंथ पर उन परिस्थितियों की छाप है जो उसके बनने के समय थी।

इसी सोच के चलते हिन्दू धर्म के अंदर का कोई भी मत-पंथ कट्टर नहीं हुआ। (अगर कोई हुआ भी तो उसे समग्र समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया)। उन्होंने ये जरूर कहा होगा कि उनका रास्ता अच्छा है पर ये कभी नहीं कहा कि वो और केवल उसका रास्ता ही सही और श्रेष्ठ है और ईश्वर की अनुभूति और साक्षात्कार केवल उनके रास्ते चलकर ही हो सकता है।

लाला हरदयाल ने कहा था- “हिन्दू धर्म में बहुत से पंथ और संप्रदाय हैं और उनके अलग-अलग प्रकार हैं। कोई अद्वैत को मानता है, कोई द्वैत को ही स्तुत्य समझता है। कोई आत्मा को सर्वव्यापी मानता है तो कोई इसका विरोधी है। परंतु हमारे राष्ट्र में सदियों से पूरी धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता रही है। इसी कारण इतने विभिन्न धार्मिक विचार प्रचलित हैं। मानव मस्तिष्क को किसी सिद्धांत के पिंजरे में कानून की सहायता से बंद नहीं किया जा सकता। जिन राष्ट्रों ने धार्मिक सहिष्णुता का उच्च सिद्धांत नहीं सीखा है, वे जरा-जरा से मतभेद के कारण सदाचारी और नेक आदमियों को जीवित जला देते हैं या पत्थरों से मार डालते हैं परन्तु हमारी हिन्दू सभ्यता ऐसे पापों से मुक्त रही है।”

हिंदू भारत की एकसूत्रता, एकबद्धता, एकात्मता और आपसी स्नेह के मूल में यही योजक साँझा तत्व है; जिसने अलग-अलग मत-पंथों यहाँ तक कि नास्तिक विचार वाले को भी सदियों से आपस में हिन्दू धर्म के अंदर जोड़ रखा है।

गर्व करिए इस पर  ।।

(अभिजीत सिंह जी की  पुस्तक  - इनसाइड_द_हिंदू_मॉल का एक अंश)

शनिवार, 14 जनवरी 2023

गुड़ तिल की बात

 

*सभी सनातनी मित्रों को आज मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ...!!*

मकर संक्रांति का मतलब हमलोग दही चूड़ा और तिलकुट ही जानते हैं. मतलब कि... जब से जन्म हुआ है हमलोग मकर संक्रांति को तिलकुट तो अनिवार्य रूप से खाते ही खाते हैं.

लेकिन, कुमार सतीश जी को हमेशा इस  बात से आश्चर्य होता था कि आखिर हमलोग मकर संक्रांति को तिल क्यों खाते हैं.
घर में पूछने पर मालूम पड़ा कि...
एक बार भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से बहुत नाराज हो गए थे और क्रोध में आकर अपने तेज से शनि देव के एक घर को जला दिए थे.
शनिदेव का वह घर है कुंभ राशि.
घर जलने के बाद शनि देव ने अपने पिता से क्षमा मांगी और उनकी वंदना की तो सूर्यदेव का क्रोध शांत हुआ.

पुत्र शनि देव पर कृपा करके सूर्य देव ने कहा कि वह हर साल जब भी राशि चक्र में भ्रमण करते हुए मकर राशि में आएंगे जो शनि देव का एक अन्य घर है तो शनि महाराज के घर को धन धान्य और खुशियों से भर देंगे.

और, इसके बाद शनि देव के घर जब सूर्य देव का आगमन हुआ तो शनि महाराज ने तिल और गुड़ से पिता सूर्य का पूजन किया तथा उन्हें खाने के लिए भेंट किया.

इसकी वजह यह थी कि शनि देव के घर कुंभ के जल जाने से शनिदेव के पास और कुछ नहीं था.

पुत्र द्वारा तिल और गुड़ भेंट करने से सूर्य देव बहुत प्रसन्न हुए और शनिदेव से कहा कि जो भी मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगे उस पर शनि सहित मेरी भी कृपा बनी रहेगी. उस घटना के बाद से ही मकर संक्रांति पर तिल गुड़ खाने की परंपरा चली आ रही है.

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लेकिन, बाद में पता लगा कि....
अरे यार, तिल में तो कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. एक चौथाई कप या मात्र 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है.

साथ ही साथ... तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं जिस कारण यह रक्त के ‘लिपिड प्रोफाइल’ को भी बढ़ाता है.

और तो और....  जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें तिल के सेवन से लाभ होता है.

और तो और तिल बैक्टीरिया तथा इनसेक्टिसाइड का भी शमन करता है.

इन सबके साथ सबसे बड़ी बात यह है कि... तिल और गुड़ की प्रकृति गर्म होती है.

और, सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने के बाद मौसम में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है...
तो, मौसम बदलने के कारण धरती पर मौजूद इंसानों में रोग आदि की संभावना बढ़ जाती है.

इस समस्या से निपटने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने प्रकृति में उपलब्ध चीजों का प्रयोग हमें बता दिया कि मौसम के परिवर्तन को रोकना तो हम इंसानों के वश में नहीं है,  लेकिन हम इन चीजों  का प्रयोग कर उसके दुष्प्रभावों को मिनिमाइज कर सकते हैं. भारतीय पर्व वैज्ञानिक है, कठिन बातों को सहज ही जीवन में उतार लेने की परम्परा ही पर्व है ।

और, उन्होंने अपनी रिसर्च और उसके निष्कर्ष को एक परंपरा का रूप दे दिया.

अब इस पूरे प्रकरण में दो-तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण है कि...
मकर संक्रांति पर्व से ये तो स्थापित है कि आज से हजारो लाखों साल पहले भी हमारे ऋषि मुनियों को... खगोल विद्या अर्थात सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने की बिल्कुल सटीक जानकारी थी..

साथ ही... मौसम बदलने से हमारे शरीर में हो सकने वाले दुष्प्रभावो की जानकारी थी...

यहाँ तक कि... उन्होंने अपने गहन रिसर्च से इन दुष्प्रभावों से निपटने का उपाय भी खोज निकाला था.

इसीलिए... जिन्हें भी ये लगता है कि आज से हजारों लाखों साल पहले मनुष्य या तो बंदर था या फिर गुफाओं और कंदराओं में रहता था... उन्हें अपने इस बेसिर-पैर की थ्योरी पर पुनर्विचार करने की जरूरत है.

यदि... हर कुछ इतने स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो जाने के बाद भी किसी को अबतक यही लगता है कि.... नहीं, उनकी थ्योरी सही है..

तो फिर... मैं यही कह सकता हूँ कि.... भाई, हो सकता है कि तुम्हारे पूर्वज बंदर ही रहे हों..
अथवा, जंगलों और कंदराओं में रहते हों...

लेकिन, हमारे पूर्वज तो महान वैज्ञानिक थे.... जिन्हें, खगोल विद्या से लेकर चिकित्सा विज्ञान एवं माइक्रोबायोलॉजी की पूरी जानकारी थी.

तो, फिर आखिर हम क्यों न गर्व करें अपने उन महान पूर्वजों एवं अपने सनातन संस्कृति पर ???
🙏🙏
पंचांग के अनुसार, सूर्य देव 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे.ऐसे में उदया तिथि के कारण 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी.

उर्मिला 14

 

उर्मिला 14
     सुमंत युवराज राम के न लौटने का समाचार दे कर चले गए थे। अयोध्या का वह निष्ठावान प्रधानमंत्री जानता था कि इस घोर विपत्तिकाल में उसे अपने साथ साथ महाराज के दायित्वों का भी निर्वहन करना है। उस महाविद्वान व्यक्ति को यह ज्ञात था कि यदि मंत्री पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों पर डटा रहे तो राष्ट्र बड़ी से बड़ी महामारी से भी सुरक्षित निकल आता है।
      महाराज के कक्ष में उनके साथ उनकी दो पत्नियां और तीनों पुत्रवधुएँ थीं। कैकई के हृदय में उत्पन्न हुए लोभ ने अनायास ही उन्हें शेष परिवार से अलग कर दिया था। मनुष्य समझ नहीं पाता, पर उसका लोभ सबसे पहले उन्हें अपनों से ही दूर करता है।
     राम सिया और लक्ष्मण के वन गमन का दुख उनके हृदय को भी चीर रहा था, पर अतिविह्वल महाराज को देख कर उन्होंने अपनी आंखों को समझा लिया था। सभी मिल कर महाराज को सांत्वना दे रहे थे। कौसल्या बार बार कह रही थीं- "आपके दो पुत्र तो अब भी आपके साथ हैं महाराज! आप की तीन बहुएं आपके साथ हैं। सम्भालिए स्वयं को, और संभालिये इस राज्य को!"
      महाराज ने एक बार सर उठा कर उनकी ओर देखा, फिर सर झुका लिया। जैसे कह रहे हों- मुझे न स्वयं की चिन्ता है न अयोध्या की। मुझे तो केवल और केवल अपने राम की चिन्ता है।
       सुमित्रा उनके भाव समझ गईं। कहा, "राम और लक्ष्मण की व्यर्थ चिन्ता न कीजिये महाराज, इस संसार की कोई भी शक्ति उनका अहित नहीं कर सकती। जो अपने एक बाण से ताड़का जस राक्षसी का अंत कर सकता है उसे कैसा भय? उनकी ओर से आप निश्चिन्त रहें।"
     दशरथ की आंखों से लगातार अश्रु बह रहे थे। वे अब भी भूमि पर ही पड़े हुए थे। उन्होंने कौसल्या की बात पर कोई उत्तर नहीं दिया। कक्ष में फिर शान्ति पसर गयी। माता के षड्यंत्र से आहत माण्डवी अपराधबोध से दबी चुपचाप सर झुकाए बैठी थीं। बोलीं उर्मिला! कहा, "नियति ने हम सभी के भाग्य में वियोग ही दिया है पिताश्री! पर वे लोग जिन्होंने राज का सुख छोड़ कर वनवास की पीड़ा चुनी है, हमें उनके तप का तो सम्मान करना होगा न! उठिए महाराज, आप उन महान पुत्रों के पिता हैं जिन्होंने आपकी प्रतिष्ठा के लिए छन भर में ही अपने सारे अधिकार त्याग दिए। उठिए और सम्भालिए अयोध्या को, ताकि चौदह वर्ष बाद जब वे लौटे तो हम कह सकें कि हमने तुम्हारी थाती सम्भाल कर रखी है। हम कह सकें कि, देखिये! आपकी अयोध्या उतनी ही सुन्दर है, जैसी आप छोड़ गए थे। उठिए पिताश्री! यह हमें ही करना होगा।"
      दशरथ अब बोले! कहा, "उसने स्वयं को बहुत बड़ा सिद्ध कर दिया पुत्री! उसने पिता के सम्मान के लिए बिना कोई प्रश्न किये वनवास स्वीकार कर लिया। वह गया तो उसकी पत्नी भी दुख भोगने चुपचाप चली गयी। साथ ही लक्ष्मण भी बड़े भाई की सेवा के लिए चला गया। सचमुच वे बहुत महान हैं उर्मिला, बहुत महान! वह युग-युगांतर तक इस सभ्यता का महानायक होगा! पर सोचो, मैं तो उनका पिता हूँ न? मेरा भी तो उनके प्रति कुछ दायित्व बनता है?"
      उर्मिला आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगीं। दशरथ के मुख पर मुस्कान तैर उठी। बोले, " उसने मेरी प्रतिष्ठा के लिए राज्य का त्याग किया है, क्या मैं उसकी प्रतिष्ठा के लिए प्राण भी नहीं त्याग सकता? मुझे मरना होगा उर्मिला! दशरथ को पुरुषोत्तम राम के पिता होने की मर्यादा निभानी ही होगी। वे मेरे प्रेम में वन गए, मैं उनके प्रेम में स्वर्ग जाऊंगा। मेरे दिन पूरे हुए महारानी कौसल्या, अब मुझे चलना होगा।"
       सभी घबड़ा उठे, पर दशरथ के मुख पर अब सन्तोष था। कहने लगे- "भयभीत मत होवो!मेरा पुत्र सृष्टि के अंत तक देवता के रूप में पूजा जागेगा। उसकी तपस्या व्यर्थ नहीं जाएगी, संसार उससे प्रेरणा लेगा और जीवन के गुण सीखेगा। वह नर नहीं है, नारायण है। पर मुझे अब चलना होगा... राम के युग में दशरथ की कथा यहीं समाप्त होती है।"
       स्त्रियां चीख उठीं, पर दशरथ की विह्वलता समाप्त हो गयी थी। वे अब उन्हें सांत्वना दे रहे थे।
क्रमशः

(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )
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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

मकर सक्रांति कब

 

सामयिक चर्चा ...
मकर संक्रांति 15 जनवरी को है ।
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संक्रांति काल का अर्थ है एक से दुसरे में जाने का समय. अंग्रेजी में इसे ट्रांजिशन भी कह सकते है. हम में से ज्यादातर लोग हमेशा से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं इसलिए उनको इस बार मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र लग रहा है है. लेकिन अब यह 2081 तक 15 जनवरी को ही होगा.

जैसा कि हम सब जानते हैं कि- सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन "मकर संक्रांति" के रूप में जाना जाता है. ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है. इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह फर्क पूरे 24 घंटे का हो जाता

सायं 4 बजे के बाद संध्याकाल माना जाता है और भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार संध्या काल के बाद सूर्य से सम्बंधित कोई भी गणना उस दिन न करके अगले दिन से की जाती है. इस हिसाब से वास्तव में मकर संक्रांति 2008 से ही 15 जनवरी को हो गई थी. लेकिन सूर्यास्त न होने के कारण 14 जनवरी को ही मानते आ रहे थे.

2023 में संक्रांति का समय 14 जनवरी की शाम को 9.35 का है, अर्थात सूर्यास्त हो चुका है इसलिए  15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई गई. वैसे तो 2008 से 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को हो चुकी है. 2081 से मकर संक्रांति 16 जनवरी को होगी. वैसे उसके बाद भी कुछ लोग कुछ बर्ष तक 15 जनवरी को मनाते रहेंगे.
संक्रांति का चन्द्र महीनों की तिथि से कोई मतलब नहीं है
संक्रांति की अपनी गणना है जो कि अंग्रेजी से संयोग कर जाती है ।
72 साल की रेंज में संक्रांति चक्र एक दिन बढ़ जाता है
275 में ये 21 दिसम्बर को थी जो कि अब 15 जनवरी तक आ गयी है
1935 से 2008 तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को रही और 1935 से पहले 72 साल तक यह 13 जनवरी को रही होगी. इन बातों को जानकार आपको अपने पूर्वजों पर गर्व करना चाहिए कि - जब दुनिया भर के लोग पशुओं की तरह केवल खाने और बच्चे पैदा करने का काम ही जानते थे तब हमारे पूर्वज ब्रह्माण्ड को पढ़ रहे थे.

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एक पत्थर तबियत से उछालो

 

"विटीफीड" .......यह नाम अब इतिहास के पन्नों में गुम हो चुका है।

wittyfeed ..... एक ऐसी वेबसाइट जो की दुनिया की  दूसरे नंबर की वायरल कन्टेन्ट वेबसाइट बन चुकी थी।

  रचित जी सतीजा कह रहे हैं -   दोहरा दूं....।
देश की नहीं दुनिया की दूसरे नंबर की वेबसाइट।
विटिफीड के संस्थापक 3 भारतीय लडके थे।
विनय सिंघल ,प्रवीन सिंघल  व शशांक वैष्णव ।।

तीनों ने मिल कर विटीफीड वेबसाइट बनाई और वायरल कंटेंट की दुनिया में आग लगा दी।
वेबसाइट पर ट्रैफिक इतना बढ़ा की दुनिया कि नंबर 1 कंपनी बजफीड ( जो की एक अमेरिकन कंपनी है) ......उसकी जड़ें हिल गई।

एक हिंदुस्तानी वेबसाइट ने विश्व की शीर्षतम वेबसाइट का सिंहासन हिला दिया।

तीन हिंदुस्तानी लडकों द्वारा निर्मित और संचालित वेबसाइट पर हर महीने  1000000000
यानी 10 करोड़ लोगों का ट्रैफिक था।

दिलजस्प आंकड़ा यह था की इस आंकड़े का 40 प्रतिशत ट्रैफिक अमेरिका का था। कहा जाने लगा की हर तीसरा अमेरिकी नागरिक विटीफिड की वेबसाइट पर हाजरी लगाता था।
विटीफीड उस दौर में 40 करोड़ रूपए की कंपनी बन चुकी थी।
100 से ऊपर कर्मचारी थे जिन्हे हर महीने 2 करोड़ से ऊपर की सैलरी दी जा रही थी।

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व्यापार का एक गोल्डन रूल है....!

*"व्यापार में एक ही तथ्य निश्चित  है की कुछ भी निश्चित नहीं है"*

40 करोड़ की विटीफीड ......जिसका आफिस इंदौर ....सिंगापुर .....अमेरिका के टाइम स्क्वेयर से लेकर विश्व के प्रमुख राष्ट्रों में था.....रातों रात बंद कर दी गई।

फेसबुक से फेसबुक ने विटिफीड को डी प्लेटफार्म कर दिया। 
वजह थी विटीफीड की बढ़ती लोकप्रियता .....वजह थी हर तीसरे अमरीकी का विटीफीड की वेबसाइट पर आना।
फेसबुक ने राष्ट्रपति चुनावों के दौरान विटीफीड पर इल्ज़ाम लगाया की वह अमेरिकी वोटर्स को बरगला रही है .....प्रभावित कर रही है....इंफ्लूएंस कर रही है।

एक रात पहले विनय ....प्रवीन और शशांक .....40 करोड़ की कंपनी के मालिक थे और अगली सुबह उनकी कंपनी 1 रूपये की भी नहीं थी।  हां......उनके ऊपर अपने कर्मचारियों को हर माह 2 करोड़ से अधिक सेलरी देने का दबाव जस का तस कायम था।

कहने को सब राख हो चुका था।
तबाह हो चुका था ....बर्बाद हो चुका था। 
कर्मचारियों की तनख्वाह तब तक देते रहे जब तक जेबें खाली नहीं हो गई।
अब ना तो काम था ......और ना ही कर्मचारियों को तनख्वाह देने लायक पैसा बचा था।
लेकिन  हौसला बचा हुआ था।
हिम्मत अभी बाकी थी।
जहां दिमाग कह रहा था की सब बर्बाद हो चुका है .....वहां दिल कह रहा था की एक बार फर्श से आसमान तक का सफर तय करेंगे।
विनय प्रवीन और शशांक झुके थे......टूटे नहीं थे।

तीनों ने फैसला किया के एक नई कम्पनी बनाई जाएगी जिसका स्वरूप विटीफीड से भी विराट और विशाल होगा।
जितना साम्राज्य खो दिया है ......उससे 10 गुना बड़ा साम्राज्य खड़ा करेंगे।

विनय और प्रवीन हरियाणे में पले बढ़े थे।
उन्होंने एक ऐसे आइडिया के बारे में सोचा जो बाकमाल ही नहीं अद्भुत और अविश्वसनीय भी था।
उन्होंने हरियाणवी और अन्य देसी भाषाओं का ओटीटी प्लेटफार्म बनाने की सोची।

यानी देसी भाषाओं का नेटफ्लिक्स।

हरियाणवी कलाकारों को लेकर फिल्में बनाई और अपने प्लेटफार्म पर दिखाने लगे।

ओटीटी प्लेटफार्म का नाम रखा ........STAGE....!

स्टेज ......यानी देसी भाषा का नेटफ्लिक्स।

रणबांकुरे फिर से दिन रात जुट गए।

जी तोड़ मेहनत की और उनके इस सफर में उनके कर्मचारियों ने भी उनका भरपूर साथ दिया।
कर्मचारियों ने 25 प्रतिशत तनख्वाह पर काम किया। बाकी तनख्वाह के बदले उन्हे कंपनी के शेयर दे दिए गए।

इसे हिम्मत और मेहनत की प्रकाष्ठा कहें की 40 करोड़ की कम्पनी की बर्बादी के एक साल के अंतराल में तीनों लड़कों ......या कहें तीनों लड़ाकों ने स्टेज प्लेटफार्म शुरू कर दिया।

वक्त पलट चुका था।
अंधेरी रात को चीर स्टेज ऐप सूर्य की लालिमा का बाहें फैलाए स्वागत कर रही थी।

स्टेज ऐप के लिए इन्वेस्टमेंट बीते दिनों प्रवीन विनय और शशांक प्रख्यात टेलीविजन शो .....शार्क टैंक में दिखाई दिए।

विटीफीड की रात ब रात डूबने की कहानी सांझा की और फिर वह क्षण आ गया जिस क्षण ......को देख हर देखने वाला हतप्रभ रह गया।

शार्क टैंक कार्यक्रम में बताया गया की तीनों रणबांकुरों की स्टेज ऐप के पास आज 1 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं।

....और किसी समय 40 करोड़ की बर्बादी देख चुके तीनों फाउंडर द्वारा निर्मित स्टेज ऐप .....की आज की वैल्यू आज 250 करोड़ रुपए है।

शार्क टैंक कार्यक्रम में आपबीती सुनाते तीनों की आखें नम हो उठी .......लेकिन आखों से बहते उन आसुओं में विटीफीड को खोने का गम नहीं था।
उन आंसुओं में 40 करोड़ की कम्पनी खो कर 250 करोड़ की कम्पनी बना देने की मेहनत छिपी थी।

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों।
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारों।

*कैसे आसमां  में छेद  हो नहीं सकता*
*एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।।*

स्टेज ऐप वह पत्थर है जो इन तीन देसी लडकों की बलशाली भुजाओं से आसमान की ओर फेंका गया है।

हिम्मत .....मेहनत और हौसले को नमन।।

बुधवार, 11 जनवरी 2023

कॉफ़ी बॉल

 

स्वास्थ्य चर्चा

हाइवे पर झपकी..यानी नज़र हटी 👀 दुर्घटना घटी ।

लॉन्ग ड्राइव पर अक्सर एक डर बना रहता है, झपकी का। बस 2 से 3 सेकेंड की झपकी भी सारा खेल बिगाड़ सकती है। आज एक जोरदार जुगाड़ प्रस्तुत है,  जिससे लॉन्ग ड्राइव पर आपको झपकी भी नहीं आएगी और थकान भी कम महसूल होगी।

शुद्ध देसी गुड़ और कॉफी पाउडर की समान मात्रा लीजिये और इनकी छोटी छोटी बॉल्स बना लें और हर एक घंटे में लॉन्ग ड्राइव के दौरान इन बॉल्स को चूसते रहें 😊। इन बॉल्स का स्वाद भी यम्मी होता है और असर भी एकदम कड़क और चकाचक। आप तो जानते ही हैं, कॉफ़ी में कैफीन पाया जाता है जो दुनिया भर में अलर्टनेस के लिए जबरदस्त उपाय माना जाता है।  

साइकोफार्मेकोलॉजी जर्नल में सन 1990 में 'इफ़ेक्ट ऑफ कैफीन ऑन अलर्टनेस' टाइटल के साथ एक डबल ब्लाइंड क्लीनिकल स्टडी पब्लिश हुई थी। कुछ युवाओं को 250 मिलीग्राम कैफीन की डोज़ 2 दिनों तक दी गयी। इन लोगों के परफॉरमेंस को तीसरे दिन देखा गया और पाया गया कि उन लोगों की तुलना में ये लोग ज्यादा सचेत और एनर्जी लिए थे जिन्हें 2 दिनों तक चार बार कैफीन की डोज़ नहीं दी गयी। गुड़ कॉफी की बॉल वाले नुस्खे को आप थोड़ी गंभीरता से लें। इस तरह की कई स्टडीज छप चुकी हैं।

इस नुस्खे का आईडिया दीपक जी आचार्य को  एक मलयाली मित्र ने सुझाया था। केरल में उनके पैतृक गाँव में जब नारियल की कटाई होती है और ऊंचे ऊंचे नारियल के पेड़ों पर चढ़कर नारियल उतारना होता है, उन्हें सचेत रहने की जरूरत महसूस होती है। ऐसे में गुड़ कॉफ़ी की बॉल मुंह में दबाकर काम को अंजाम दिया जाता है । इस नुस्खे को  खूब आजमाया है, लॉन्ग ड्राइव के दौरान। आप लोग इस जुगाड़ को जरूर आजमाएं ताकि लंबे सफर पर आप भी सचेत रहें, सुरक्षित रहें, और सोलो ट्रिप्स और लॉन्ग ड्राइव पर चलते रहें, यात्राएं होती रहें। बाय द वे, दफ्तर में दिन में आपको झपकी आती है तो इस जुगाड़ को जरूर ट्राय करके देखें। एनर्जी भी आएगी, झपकी भी गायब ।

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रविवार, 8 जनवरी 2023

आकुलता

 एक पंडी जी थे, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे भगवान के साक्षात दर्शन किया करते थे। 


एक बार मांगते खाते पंडी जी का डेरा किसी गांव में हुआ। गांव के जमींदार बहुत सम्पन्न थे और अब भगवदभजन में अपना मन लगाना चाहते थे, तो गांव के सिवान पर डेरा डाले पंडी जी के पास पहुंचे और बोले...


"हमको भी भक्ति करनी है। लोग कहते हैं कि आप भगवान को साक्षात देखते हैं तो हमको भी देखना है।"


पंडी जी कथा वाचन करते रहते, जमींदार साब के प्रश्न को अनसुना करते हुए। कई दिन बीत गए। डेरा उठाने का समय हो चला था, बहता पानी रमता जोगी। जमींदार साब फिर से पहुंच गए कि भगवान देखना है।


पंडी जी ने एक क्षण सोचा विचारा और जमींदार साब को लेकर बगल में बह रही नदी की ओर बढ़ गए। कमर भर पानी में पहुंच कर पंडी जी ने कहा, "डुबकी मारिए, और जब तक सांस हो, पानी में ही डूबे रहिए।"


जमींदार साब ने अपने भरसक प्रयास किया लेकिन सांस की वायु खतम हो जाने के बाद पानी में से खड़े होने लगे।


यह देखते ही पंडी जी ने लपक कर जमींदार साब की गुद्दी (गरदन का पीछे वाला भाग) दबोची, और चांप दिया पानी में फिर से। 


जमींदार साब लगे छटपटाने। जब सांस ही नहीं रह गई थी तो कोई भी छटपटाता। एक दम जब जान जाने की आकुलता उत्पन्न हो गई तो पंडी जी ने छोड़ दिया।


बाहर आने पर जब सांस व्यवस्थित हुई तब पंडी जी ने पूछा, "अभी किस चीज की इच्छा हो रही थी आपको?"


"सांस लेने की।"


"ऐसे समय तुम्हें घर बंगला गाड़ी कोई सांस के बदले में दे रहा हो तो?"


"पगला गए हैं का पंडी जी? उस समय सांस के अलावा कोई और क्या चाहेगा?"


तब पंडी जी ने गम्भीर स्वर में कहा, "जब ऐसी ही आकुलता हमें केवल भगवान के लिए होगी तो भगवान स्वयं भागे चले आयेंगे। वे आपकी धीमी से धीमी पुकार भी सुन लेंगे, जैसे गजराज की पुकार पर उसको ग्राह से बचाने नंगे पैर ही श्रीकृष्ण भाग चले थे।"





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चिन्तन की धारा - अपने लोग

 

अपनों से कैसी होड़  ?

पंजाब की किसी लड़की ने मुझसे पूछा कि हम लोग अपने धर्म की मार्केटिंग क्यों नहीं करते?

मैंने पूछा- कैसी मार्केटिंग?

उन्होंने कहा- जैसा सिख अपने लंगर का, बौद्ध बुद्ध के शांति उपदेश का और जैन भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा की शिक्षाओं का करते हैं।

मैं- मतलब आप ये कहना चाहती हैं कि जिस तरह सिख अपने लंगर का, बौद्ध बुद्ध के शांति उपदेश का और जैन भगवान महावीर की अहिंसा वाली शिक्षाओं के बारे में दुनिया को बताते हैं या दुनिया को अलग से उनकी ये विशेषताएँ दिखाई देतीं हैं, उनकी ही तरह हम हिन्दू भी अपनी इन्हीं चीज़ों को लेकर क्यों आगे नहीं आते? क्यों नहीं दुनिया को दिखाते कि ये सब किसी की कोई uniqueness नहीं है। ‘लंगर प्रथा’ अगर सिखों के यहाँ है तो हमारे यहाँ भी मंदिरों में भंडारे की प्रथा है, करुणा और शांति का उपदेश हमारे ऋषियों ने भी दिया है। यही न?

उन्होंने कहा- हाँ ! समझिये तो मेरा आशय यही है।

मैंने उनसे कहा- प्रतिस्पर्धा तो उनसे की जाती है जो पराये हों पर अपनों से कैसी प्रतिस्पर्धा और कैसी होड़? मध्यकाल में भारत के पंजाब क्षेत्र में गुरु नानक देव जी का प्राकट्य हुआ और उनके साथ गुरु सिखों के द्वारा लंगर प्रथा शुरू हुई। हम ये जानते थे कि हमारी वैदिक संस्कृति में त्याग, सेवा, सहायता, दान तथा परोपकार को सर्वोपरि धर्म के रूप में निरुपित किया गया है। वेद में कहा गया है- 'शतहस्त समाहर सहस्रहस्त संकिर’ यानि ‘सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से दान करो।’ हमारे ग्रंथों में अनेक राजाओं के द्वारा अलग-अलग स्थानों पर ‘अन्नक्षेत्र’ चलाने का वर्णन मिलता है। हमारे वेदों और दूसरे ग्रंथों में हमें जो आदेश दिया गया था, उसे मध्यकाल तक आते-आते हम क्षेत्र में हम विस्मृत कर चुके थे। इसलिए जब हमारे गुरुओं ने उस त्याग और दान की परंपरा को लंगर के जरिये से आगे बढ़ाया तो हमें लगा कि हमारे गुरुओं ने तो हमारी उन शिक्षाओं को पुनर्जीवन दिया है जिसे संजो कर रखने की आवश्यकता थी। तो आप बताइए कि गुरु नानक देव जी के द्वारा शुरू की गई लंगर प्रथा के मुकाबले पर हम क्या ये बताने लग जायें कि अब हमारे फलाने मंदिर में चौबीसों घंटे और बारहों मास भंडारा चलता है या फिर ये कहें कि हमारे यहाँ भी एक से बढ़कर एक दान के उदाहरण हैं? ये चाहतीं हैं आप?

आपने भगवान बुद्ध के करुणा की बात की, भगवान महावीर के अहिंसा की बात की तो मैं एक संकीर्ण हिन्दू बनकर सोचूँ तो अवश्य मैं इसके तुलना में अपने ग्रंथों से करुणा, शांति और मैत्री भाव सिखाने वाले उपदेश खोज कर दिखाने लगूंगा।पर क्यों? जब बुद्ध के करूणामय उपदेश लिए उनके शिष्य भारत से निकल कर चारों दिशाओं में दुनिया भर में फैल गए थे तो क्या दुनिया वाले बुद्ध को हिन्दू धारा से कुछ अलग करके देख रहे थे? भारत के बाहर के देशों के लोगों ने तो करुणावतार बुद्ध के उपदेशों का केवल अनुसरण किया, जबकि हमने उन्हें अवतार रूप में प्रतिष्ठित कर रखा है। बामियान में खड़ी बुद्ध की विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं जब पश्चिम से आने वाले व्यापारिक काफिलों की रहनुमाई कर रही थी तो क्या बुद्ध वहां खड़े होकर ये नहीं कह रहे थे कि मेरे पीछे हिन्दू धर्म की आदि भूमि भारत है? इसी बुद्ध के बारे में शिकागो धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “मैं यह बात फिर से दोहराना चाहता हूँ कि शाक्यमुनि ध्वंस करने नहीं आये थे, वरन वे हिन्दू धर्म की पूर्णता के संपादक थे, उसकी स्वाभाविक परिणति थे, उसके युक्तिसंगत विकास थे।”

तो आप बताओ हम अपने धर्म की पूर्णता के संपादक बुद्ध के उपदेशों की तुलना में अपने दूसरे महापुरुषों के उपदेश आगे लेकर आयें तो क्या ये युक्तिसंगत है?

जैसे वैदिक परंपरा हमारी है, उसी तरह गुरमत परंपरा और श्रमण परंपरा भी हमारी है। शरीर का कोई भी अंग सजता- सँवरता है, सुंदरता के किसी प्रतीक को धारण करता है तो वह पूरे शरीर को ही सुंदर बनाता है। इसी तरह वृक्ष पर जब कोई फूल खिलता है या उसकी कोई शाख विकसित होती है तो संपूर्ण वृक्ष सुंदर लगने लगता है और मजबूत होता है, यही दृष्टि एक हिन्दू के नाते मेरी है और संभवतः सारे हिंदुओं की है और नहीं है तो होनी चाहिए। यही सांस्कृतिक विकासशील चेतना हमें विरासत में मिली है और इसी का नाम हिन्दू धर्म है। इसलिए एक हिन्दू होते हुए मैं कभी भी मेरे अपनों से होड़ और प्रतिस्पर्धा करने की क्षुद्रता नहीं कर सकता।

भारत का बल्कि
हर हिंदू पूरा सिख है
हर सिख पूरा हिंदू है
हर जैन पूरा हिंदू है
हर हिंदू पूरा जैन है
हर बौद्ध पूरा हिंदू है
हर हिंदू पूरा बौद्ध है

यही दृष्टि होनी चाहिए।
(अभिजीत सिंह जी की पुस्तक  इनसाइड_द_हिंदू_मॉल के एक अंश का संपादित अंश)

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शनिवार, 7 जनवरी 2023

उर्मिला 13

 

उर्मिला 13
     यदि महाराज दशरथ केवल राजा होते तो अपने एक बाण से ताड़का जैसी बलशाली राक्षसी का वध करने वाले राम की सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं होते, पर वे राम के पिता भी थे। वह पिता, जो अपने बच्चों को सदैव बच्चा ही समझता रहता है।
     महाराज दशरथ के सामने अनेक दुविधाएं थीं। राम जैसे योग्य राजकुमार को राज्य से निष्कासित करना अयोध्या एक राजा के रूप में उनकी पराजय थी, तो अपने हृदय के टुकड़े को वनवास देना एक पिता के रूप में उनकी हार थी। अपनी एक पत्नी के जिद्द के आगे झुक कर शेष दो पत्नियों के दुख का कारण बनना एक पति के रूप में उन्हें तोड़ रहा था, तो जीवन के अंतिम चरण में प्रिय पुत्र के वियोग की आशंका उन्हें किसी बड़े अपराध का दण्ड लग रही थी। अपनी युवावस्था में देवताओं का सहयोग करने की सामर्थ्य रखने वाला योद्धा आज परिस्थितियों के आगे विवश हो कर बच्चों की भांति बिलख रहा था। वे रानी कौशल्या के कक्ष में निढाल से पड़े थे।
     तापस वेश में राम आये। उनके पीछे सिया और सबसे पीछे लक्ष्मण। तीनों ने उनके चरण छुए और जाने की आज्ञा मांगी। महाराज दशरथ कुछ बोल नहीं रहे थे। देर तक चुपचाप देखते रहने के बाद बोले- तुम्हारे विवाह के दिन मैंने महाराज जनक को वचन दिया था राम, कि "आज से आपकी बेटियां मेरी बेटियां हैं।" और मेरी यह बेटी मेरे जीवित रहते ही वल्कल वस्त्र पहन कर वन जा रही है? मेरे जीवित रहने का कोई एक कारण भी शेष है अब?
       "आपके आशीष की छाया में सिया वन में भी सुखी रहेंगी पिताश्री! आप चिन्ता न करें, आपका राम उन्हें कोई कष्ट नहीं होने देगा। आप हमारी चिन्ता न करें, चौदह वर्ष पश्चात हम इसी तरह खुशी खुशी आ कर आपसे पुनः आशीष प्राप्त करेंगे। आप हमें आज्ञा दें।
      दशरथ ने कोई उत्तर नहीं दिया। राम ने बहुत सी बातें कहीं, समझाईं, पर वे जैसे कुछ भी सुन नहीं रहे थे। तीनों ने माता कौसल्या के भी चरण छुए और कक्ष से निकल गए। बाहर मंत्री सुमंत रथ ले कर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
      राजा दशरथ ने अपनी ओर से अंतिम उपाय कर लिया था। सुमंत को कहा गया था कि राम को वन में घुमा कर किसी भी तरह वापस बुला लाना है। इस तरह कैकई की वनवास की मांग भी पूरी हो जाएगी और अयोध्या से उसके राम अलग भी नहीं होंगे।
       राम का रथ अयोध्या की सड़कों से निकला तो धीरे धीरे अयोध्यावासी भी उनके साथ चलने लगे। रथ के पीछे भीड़ बढ़ती गयी। लग रहा था जैसे समूची अयोध्या ही वन जाने के लिए निकल पड़ी हो। परिस्थितियों ने उन्हें अयोध्या की सत्ता और राम में से किसी एक को चुनने के लिए विवश किया था, यह लोक का अपना चयन था कि हमें राम के पीछे चलना है।
      रथ जब अयोध्या नगर की सीमा पर पहुँच गया तो राम ने रथ रुकवाया। पीछे चल रही भीड़ भी थम गई। राम को अपनी ओर मुड़ते देख कर अयोध्यावासी चिल्लाये- हमें स्वयं से दूर न कीजिये युवराज! हमें आपही के साथ रहना है। आप जहाँ रहेंगे, हम वहीं अपनी नई अयोध्या बसा लेंगे। हम अपने राम को नहीं छोड़ सकते..."
      राम हाथ जोड़ कर मुस्कुराए और कहा, "सुनिये! मुझपर विश्वास है आपको?"
     भीड़ चिल्लाई- हमें केवल और केवल अपने राम पर ही विश्वास है।
     "तो विश्वास रखिये! आज से लेकर सृष्टि के अंत तक यह भारत भूमि राम की ही रहेगी। जो राम का होगा वही इस देश का होगा, और जो इस देश से जुड़ेगा वह स्वतः राम का हो जाएगा।  मेरे देश की विपत्ति के समय में आप उसका साथ न छोड़ें, यहाँ रह कर भी आप सदैव राम के हृदय में रहेंगे। मैं वचन देता हूँ, चौदह वर्ष पश्चात आपसे पुनः मिलूंगा और हम साथ मिल कर नवयुग का निर्माण करेंगे।" राम ने यह बात कुछ इस तरह कही कि किसी की ओर से आपत्ति नहीं हुई। कौन था जो राम पर अविश्वास करता?
      भीड़ ने वहीं भूमि पर माथा टेक लिया। रथ आगे बढ़ चला।
      उधर अयोध्या के महल में घनघोर उदासी पसरी हुई थी। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। सब निढाल पड़े हुए थे। महाराज दशरथ के हृदय में बस एक आशा का दीपक जल रहा था कि कहीं सुमंत राम को समझाने में सफल हो जाएं और उन्हें वापस लौटा लाएं।
      तीसरे दिन मंत्री सुमंत वापस राजधानी लौटे। महाराज के कक्ष में गए। उन्हें देखते ही दशरथ हड़बड़ा कर उठे और कहा- कहाँ है मेरा राम? वह वापस लौट आया न? बोलो सुमंत, राम लौट आया न?
      सुमंत ने सर झुका कर कहा- क्षमा करें महाराज। मैं उन्हें रोक न सका, वे चले गए।
      राजा दशरथ ने पूरी शक्ति लगा कर मुट्ठी बांधी ओर एक जोर का मुक्का अपनी छाती पर मारा, जोर से राम का नाम लेकर चिल्लाये और धड़ाम से गिर गए।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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रविवार, 1 जनवरी 2023

मनुष्य होने की समझ

 

*चिन्तन की धारा....*

गाड़ी में चलिए या बस में। हर जगह लिखा रहता है कि ये महिला की सीट है। ये बुजुर्ग की सीट है। ये विकलांग की सीट है। आदि आदि ।

मेरा मानना है कि ये भारतीय तरीका नहीं है। ये ईसाई तरीका है। ईसाई मानसिकता ये मानती है कि मनुष्य में कोई सोच समझ नहीं होती। उसे सब कुछ बताना होता है वरना वह तो अन्याय ही करेगा।

भारत में यह भार हम मनुष्य पर छोड़ देते हैं। हम मनुष्य को मूर्ख नहीं मानते। हम मानते हैं कि उसमें तो इतनी समझ होगी ही कि स्त्री, वृद्ध और विकलांग को देखकर उन्हें अपनी सीट ऑफर कर देगा। इसके लिए हम कहीं कुछ लिखते नहीं बल्कि मनुष्य को ही इस तरह से तैयार करते हैं कि उसे लिखकर बताना न पड़े।

लिखकर बताने में सबसे बड़ा संकट टकराव का पैदा होता है। एक दूसरे का अधिकार बोध टकराता है और मनुष्य से मनुष्य के बीच में संघर्ष निर्मित होता है।

हमारी अधिकांश परंपराओं का आधार मनुष्य के समन्वय पर केन्द्रित हैं। जबकि आधुनिकता के नाम पर जो कुछ लाया जा रहा है वह अधिकार और संघर्ष पर केन्द्रित है।

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नववर्ष 2023

 🎉🎉💥💥. *HAPPY NEW YEAR !!*  🎉🎉💥💥

    नूतन कैलेंडर वर्ष शुभकारी हो, मंगलकारी हो, शाताकारी हो !    

    सब स्वस्थ रहें, सफलताओं को आनंद लें , ख़ुश रहें - ऐसा हो वर्ष 2023 !! 

    🙏🙏🙏🙏       

 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~                            ★ एक समय की बात है,एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे, समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोंद में सर रख कर सोया हुआ था!.

★ पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी, सन्तजी बहुत दु:खी हुए, उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है।

★ जो प्रात:काल शराब का सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ-बचाओ की आवाज आई।

★ सन्त ने देखा एक आदमी समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्तजी देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे।

★ स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया, थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया।

★ सन्तजी विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला, वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ  क्या कर रहे हो.? और ये बोतल...?

*उस व्यक्ति ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया :-*

★ महराज मैं एक मछुआरा हूँ,मछली मारने का काम करता हूँ,आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ, मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में (घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई।

★ कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था। और भोर के सुहावने वातावरण में यही पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया।

★ सन्तजी की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,केवल दूर से  देखकर बिना सोचे-समझे, उसके बारे में मैंने कितना गलत विचार किया जबकि वास्तविकता कुछ और थी।

★ अर्थात कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है, उसका  दूसरा पहलू भी हो सकता है...🍁                 ------------------------------------------------

💥 *अतः किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें, और समझकर फैसला करें...* 👏




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उर्मिला 12

 

उर्मिला 12

उर्मिला अपने कक्ष में अनमनी सी थीं, तभी वहाँ लक्ष्मण आये। उनके मुख पर क्रोध और निराशा के मिले जुले भाव थे। कहा, "आपने सुना उर्मिला! भइया वन जा रहे हैं, और उनके साथ भाभी भी जा रही हैं।
उर्मिला ने आश्चर्य से देखा उनकी ओर, फिर कहा, "मुझे भी यही आशा थी। सिया दाय को पाहुन के साथ जाना ही चाहिये था आर्य! यही उनका धर्म है।"
    "पर मैं क्या करूँ उर्मिला, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मन होता है कि इस षड्यंत्र के विरुद्ध विद्रोह कर दूँ। अयोध्या का एक एक व्यक्ति अपने राम के लिए उठ खड़ा होगा उर्मिला, इस पिशाचिनी की एक न चलेगी। पर भइया ही नहीं मान रहे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..."
     "कोई सज्जन व्यक्ति अपराध करता दिखे तो उसपर क्रोध नहीं, दया करनी चाहिये आर्य! माता कैकई को तो नियति मार ही रही है, अब कम से कम उनके पुत्र तो उन्हें अपशब्द न कहें। समय रघुकुल की परीक्षा ले रहा है, यह स्वयं को साधने का समय है। शांत होइये और पाहुन का अनुशरण कीजिये।" उर्मिला के मुख पर शान्ति थी।
     "तुमने ठीक कहा उर्मिला! मुझे भइया का ही अनुशरण करना चाहिये। मैं भी यही सोच रहा था। मैं भी उनके साथ ही वन जाऊंगा। पर तुम उर्मिला?"
      "मेरे लिए आप जो आदेश करें नाथ!"
      "मैं कुछ समझ नहीं पा रहा उर्मिला! मैं बस इतना जानता हूँ कि जहां मेरे भइया हों, वहीं होना मेरा धर्म है। पर आपके लिए क्या कहूँ, यह नहीं सूझ रहा। आपही बताइये न! आपको क्या आदेश दूँ?" लक्ष्मण विचलित थे।
       " मैं आपकी अर्धांगिनी हूँ। आपकी अनुपस्थिति में आपके समस्त कार्यों का दायित्व मेरा है। सच तो यह है कि पाहुन के वन जाने के बाद इस टूटे हुए कुल को सबसे अधिक आपकी आवश्यकता होगी, पर आप भी जा रहे हैं। आप सब के जाने के बाद ना माण्डवी दाय अपराधबोध से मुक्त हो सकेंगी, न छोटे पाहुन स्वयं को क्षमा कर सकेंगे। छोटी माँ के हिस्से तिरस्कार आएगा और बड़ी माँ मंझली माँ के हिस्से लम्बी प्रतीक्षा की पीड़ा आएगी। इस पीड़ित परिवार को चौदह वर्ष तक थाम कर रखना स्वयं में बहुत बड़ी तपस्या होगी। यदि आप आदेश करें तो मैं यही करूंगी।" उर्मिला के मुख पर आत्मविश्वास चमक रहा था।
       "आपने मुझे बहुत बड़े संकट से निकाल दिया उर्मिला! मैं सदैव आपका ऋणी रहूंगा। यह परिवार आपके जिम्मे रहा प्रिये! मैं भइया की सेवा में चलता हूँ।"
       लखन कह कर बाहर निकलने के लिए तेजी से मुड़े, पर दो डेग चल कर ही रुक गए। उनकी आंखें भर आईं। मुड़ कर देखा तो उर्मिला की आंखों से अश्रु बहे जा रहे थे। वे बैठ गए। कुछ पल बाद कहा, "अब तो चौदह वर्ष बाद मिलेंगे उर्मिला! क्या कहूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा।"
      "कुछ न कहिये आर्य! और अगले चौदह वर्षों के लिए भूल जाइए कि आपकी कोई पत्नी भी है। क्षण भर को भी ध्यान पाहुन के चरणों से विचलित न हो। मुझे भूल कर भइया-भाभी की सेवा में लगे रहना आपके हिस्से की तपस्या है और हर क्षण आपको याद रख कर इस परिवार की सेवा मेरी तपस्या। यदि हम सफल हुए तो चौदह वर्षों बाद इस परिवार के हिस्से में आनन्द के क्षण अवश्य आएंगे।"
      "तो चलूँ? मेरा घर संभालना उर्मिला!" लक्ष्मण की आंखें बहने लगी थीं।
      "सुनिये! अपने अश्रु मुझे दे जाइये। मैं स्त्री हूँ, आपके हिस्से का भी मैं ही रो लुंगी।" उर्मिला ने अपने आँचल के कोर से पति की आँख पोंछी और कहा, "जा रहे हैं तो मुस्कुरा कर जाइये प्रिय! ताकि आपकी अनुपस्थिति में आपका मुस्कुराता मुख ही मेरी आँखों मे बसा रहे। भरोसा रखिये, आपकी उर्मिला सब सम्भाल लेगी।"
      लक्ष्मण क्या ही मुस्कुराते, बस पत्नी को गले लगा लिया।
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