देवशयनी एकादशी
२९ जून को जब भारत के और भारत भूमि के बाहर रहने वाले अनेक सनातन हिन्दू धर्मावलंबी पवित्र भाव से व्रत करेंगे उपवास करेंगे और सर्व कल्याण का भाव करेंगे
उसी दिन
लाखों निरीह जानवरों को
उसमें से अनेकों को जिन्हें पाला पोसा था
उन्हें भी धोखा देकर
और उन्हें तड़पा तड़पा कर
किताबी इस पवित्र धरा को रक्त रंजित करेंगे ..
चाहे जिस किसी भी संस्कृति में पशु बलि को उत्सव के रूप में मनाया जाय, हम उन तमाम संस्कृतियों के नष्ट होने की कामना करते हैं।
अगर कुरबानी अपराध नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी अपराध नहीं है।
अब तो पोल खुल गई, मान लीजिए कि जो कहते रहते हैं कि-
आइये हम "सर्व धर्म समान" की लीपापोती करें
आइये हम गंगी जमुनी का फर्जीवाड़ा करें
आइये बमदुल बब्बास के साथ भारत और विश्व
के कल्याण के बारे में सोचें ..
बेर केर को संग ? हुआ है ?? नहीं हो सकता ।।
दो नदियों का बहना तय है, ये संगम की बात दिल से निकालो, बहती रहे सीमाओं में, तो बहे....
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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Advut post. Dhaanywad
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