सोमवार, 19 जून 2023

आदिपुरुष की बात

 

समकालीन चर्चा
दुनिया भर में 200 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं। फिर भी जब कोई भारत में रहते हुए, हिंदुओं के लिए, रामकथा पर फ़िल्म बनाएगा तो वाल्मीकि रामायण अथवा ज्यादा से ज्यादा तुलसी रामायण को ही रिफरेन्स के लिए इस्तेमाल करेगा। अन्यथा तो कल को कोई हनुमान जी को मंदोदरी का शीलभंग करने वाला चित्रित करके यह कह दे कि - हमनें तो थाईलैंड की रामायण बनाई है जी- तो बताइए, यह कितना हास्यास्पद और आपत्तिजनक होगा।
दिक्कत यह है कि ओम राउत ने जो रामकथा दिखाई है उसका एक सिंगल दृश्य भी रामायण के मूल कथानक से मैच नहीं खाता, जी हाँ, एक सिंगल दृश्य भी नहीं। पता नहीं इन्होंने भांग खाई थी अथवा मुन्तशिर को इलहाम हुआ था कि इन्होंने अपनी ही रामायण रच मारी है जिसमें क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर राम, बालि, हनुमान जैसे पात्रों के चरित्र की मूल गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा गया है।
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  सबसे ज्यादा कष्ट देने वाली बात यह है कि मूल रामायण में तो राम को सीताहरण के बारे में जटायु से पता चलता है, पर ओम राउत की रामायण में राम इधर से उधर दौड़ते हुए सीता को हरण करके ले जाते रावण को अपनी आंखों से देख रहे हैं। राम अपने तुणीर से एक बाण तक निकालने की जहमत नहीं करते और लाचारी से घुटनों के बल बैठकर अपनी आंखों से सीताहरण देखते रहते हैं। अरे भाई, ऐसी भी क्रिएटिव लिबर्टी की क्या ही भांग खानी थी जो राम के सामने ही उनकी पत्नी का अपहरण करा दिया और राम कुछ न कर पाए? रामायण के अनुसार नारायण के अवतार और ब्रह्मास्त्रधारी राम के लिए एक उड़ता चमगादड़ मार गिराना असंभव हो गया? क्या ही शर्म और आश्चर्य की बात है।
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इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि कभी यूथ को कनेक्ट करने के नाम पर, कभी "वन टाइम वाच है" बोलकर, कभी फ़िल्म का कलेक्शन दिखा कर, असली समस्या को सब बुद्धिजीवी इग्नोर क्यों कर रहे हैं?
संवाद में हमारे आराध्य पात्र से जो हल्की टपोरी भाषा का प्रयोग किया है, बेहद पीड़ाजनक ।
माना लें कि आदिपुरुष के संवाद, कॉस्ट्यूम या वीएफएक्स कोई मुद्दा नहीं हैं। पर दो बातों का जवाब दीजिए।
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पहली तो यह.... घुटनों के बल बैठ कर अपनी आंखों से सीताहरण देखते निर्बल निस्तेज राम को देख आपकी भावना आहत होती है या नहीं?
गोल-गोल मत घुमाइए। बस हाँ/ना बोलिये।
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दूसरी बात यह कि... आपको रामकथा की गरिमा के साथ न्याय करते हुए एक ढंग की फ़िल्म बनते हुए देखने की आशा थी अथवा अंटशंट तरीके से हजार करोड़ कमाने वाली रामकथा बनते देखने की?
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जब मूल उद्देश्य ही फेल हो गया तो आदिपुरुष की अरबों की कमाई के बखान का कोई औचित्य है?
विरोध तो होना ही चाहिए ।

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