कहानी
सात फेरे
" अभी अभी तो कोर्ट में मिले थे हम, अब मेरे पीछे पीछे घर आने का मतलब? "
" क्यों घर नहीं आ सकती मैं? "
" आ क्यों नहीं सकती , लेकिन अब क्या चाहती हो? सब कुछ तो दे दिया तुम्हें!"
" वही तो जानना चाहती हूँ, क्यो दे दिया, कोर्ट में क्यों मान ली दहेज लेने की झूठी बात,क्यों मान ली तलाक की इतनी कठिन शर्तें! "
" सब कुछ तुम्हारा और बच्चों का ही तो है , तुमने मांगा तो दे दिया! बच्चों के पालन पोषण में काम आयेगा "
" बच्चों की कस्टडी के लिए फाईट नहीं करोगे? "
" तुम से ज्यादा प्यार उन्हें कौन दे पायेगा, फिर तुम से अच्छी परवरिश क्या मैं दे पाऊंगा उन्हें ! "
" यह तुम कह रहे हो, पहले तो सब ऐब ही ऐब दिखते थे मुझमें! "
" पीछा छुड़ाना चाहते हो मुझसे और बच्चों से , इतना उब गए हो हमलोगों से! तुम्हारे बिना क्या मै अकेले सम्हाल पाऊंगी यह इतनी बड़ी कंपनी और बच्चों को ! "
" यह सब तो पहले सोचना चाहिए था ना, तुमने जो मांगा वही तो दिया है तुम्हे! अब हिम्मत क्यों हारती हो, सीए किया है तुमने, फिर तुम्हारे पिता ,मौसा और जीजा सब हैं ना तुम्हारे साथ! "
" सब कहने .. .. खैर मेरी छोडो, अपनी बताओ, इतनी मेहनत से जमाया हुआ विजनेस, कोठी, गाड़ी, बैंक बैलेंस सब मुझे दे दोगे तो खाओगे क्या और रहोगे कहाँ! "
" इतनी फिक्र क्यों करती हो मेरी, अभी मेरे हाथ पैर सलामत है , भूखा नहीं मरूँगा मै ! "
" यह दाढ़ी क्यों बढा रखी है, साधु सन्यासी बनने का इरादा है या वसु से व्रेक अप हो गया "
" वसु कंपनी सेक्रेटरी है , केस जीतने के बाद तुम्हारी सेक्रेटरी हो जायेगी ! और वह मुझे घास क्यों डालेगी , उसके बच्चे हैं, पति हैं, भरपूर गृहस्थी है! "
" फिर तुम्हारे साथ उसके अफेयर की बातें? "
" अपने उपर लगाये गये सभी आरोपों को स्वीकार तो मैंने कोर्ट में ही कर लिया है, फिर क्यों पूछती हो! "
" वही तो जानना चाहती हूँ क्यो स्वीकार कर लिया?"
' तो और क्या करता! कोर्ट में आरोप प्रत्यारोप कर तुम पर कीचड़ उछालता, अपनी ही पत्नी और बच्चों के हितों के विरुद्ध बातें करता ", तुम पर झूठे आरोप लगाता, तुम्हारा चरित्र हनन करता, अपने बच्चों की माँ और उसके रिश्तेदारों को झूठा ठहरा कर उन्हें भरे कोर्ट में रूसवा करता! यही सब तो करना चाह रहा था मेरा वकील!"
" मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो, कोई और मिल गई है क्या? "
" अपने वकील से क्यों नहीं पूछतीं, ! वैसे भी एक बद्चलन , वद् मिजाज , आवारा,और वोमनायजर का क्या ठिकाना! "
" मै तुम से सच जानना चाहती हूँ! "
" सच ही तो तुम नहीं जानना चाहती तुम , वही तो बताना चाह रहा था जब तुम मेरा हाथ झटक कर मायके चली गई और फिर सीधे कोर्ट में ही मिलीं! तुम ने उसी पर विश्वास किया जो तुम्हारे मौसा, तुम्हारे जीजा, और माँ बाप ने तुम से कहा! और फिर गीता पर हाथ रखकर जो कुछ उन्होंने कोर्ट में कहा है,:सब सच ही कहा होगा! अब कौन सा सच जानना बाकी रह जाता है!"
" यह कोर्ट नहीं है, हमारा ड्राइंग रूम है, तुम मेरी बातों का सीधा जबाब नही दे सकते? "
" अब हमारा कहाँ कुछ रहा, सब कुछ पहले भी तुम्हारा ही था, आगे भी सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही रहेगा! "
" तुम्हारे इसी संत महात्मा वाले रवैया ने मेरा जीना हराम कर दिया है! मुझे लगता है मैं सब कुछ जीत कर भी हारने जा रहीं हूँ! मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती अश्विन! मुझे माफ कर दो! " कहकर बिलखते हुए पत्नी ने कब पति का हाथ पकड़ लिया उसे पता ही नहीं चला।।
जनकजा कान्त शरण द्वारा ।
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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