चिन्तन की धारा
पुत्री के लिए जो लोग बेटा सम्बोधन करने लगे हैं, वे अज्ञान में ऐसा कर रहे हैं । ये वाम विचारधारा है ,
इस वामी अवधारणा को भगाएं- "कि यह मेरी बेटी नही, बेटा है।"
बेटा को बेटा की तरह और बेटी को बेटी की तरह शिक्षा,संस्कार देना धर्मपरायण कर्त्तव्य है जो सर्वहितकारी है।
हमारे सम्पूर्ण धार्मिक ग्रन्थ में ऐसी ही व्यवस्था के कारण पुरुष और स्त्री ने अपने स्वाभाविक गुण से विभूषित हो समाज और धर्म का कल्याण किया है।
रामायण,महाभारत,पुराण के अलावे हर युग में स्त्री का शक्तिशाली रूप देखा जा सकता है।
तो यह कहना कि "यह मेरी बेटी नही बेटा है"-
यही से गड़बड़ शुरू हो जाता है। यही सब समस्या का मूल है। इस वामी अवधारणा को भगाएं। पुत्री के जन्मजात गुण को,उसके स्वाभाविक गुण को समझें ,विस्तार दें।
बेटी होने का गर्व दें।
बेटी प्रकृति है,शक्ति है।
शक्ति के बिना शिव शव हैं।
प्रकृति के बिना पुरुष का औचित्य नही है।
हमें पुत्री के पालन-पोषण पर गर्व करने का मौका तब मिलेगा जब हम कहेंगे -"यह मेरी बेटी है।"
न कि "यह मेरी बेटी नही बेटा है।"
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