चिन्तन की धारा
बात में दम है , ऐसी घटनाएं ख़ुद मैंने देखी है , हाँ, इत्तेफाक हो सकता है । पर चर्चाओं का होना सुखद ... सावधानी दुर्घटना टालती है ।। समीर कुमार सिंह की इस चर्चा को महज़ जागरूकता के संदर्भ में लेवें -
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आपके लड़के की उम्र है १५ या २० साल। इस उम्र में उसको साल में पाँच छह बार जींस पैंट या टीशर्ट ख़रीदने की आदत होती है। वो जाकर ख़रीद लेता हैं। ख़रीदने के बाद पहनता है और घूमने या खेलने या कोचिंग करने निकल पड़ता है।
वहाँ उसको मिलते हैं उसके एक दो मुस्लिम दोस्त भी। वहाँ पर देखते ही तारीफ़ होती है किं ये टीशर्ट तो एकदम ग़ज़बे लग रहा है। कितने में लिये?
सही है यार।
इसके बाद वह मुस्लिम दोस्त बताता है....अरे एक मेरा दोस्त का या भाई का अमुक जगह पर मार्केट में एक दुकान है। वहाँ एकदम लेटेस्ट और ज़बरदस्त क्वालिटी के कपड़े या जूते मिलेंगे। इतने कम में तो सोच भी नहीं सकते हो।
अब आपके लड़के की आँखें चमक उठेंगी, उम्र ही ऐसी है, जितने नये कपड़े और जूते मिल जायें....कम पड़ते हैं। वह आज ही कपड़े ख़रीद कर पहना है लेकिन एक दो दिन में ही उस अमुक दुकान में जाएगा।
वहाँ जाते ही आपका नाम बता कर आपस में ये लोग इशारे कर लेते हैं। आपके लड़के को एकदम से सस्ते में जींस पेंट शर्ट जूते चप्पल आदि मिल जाएँगे और आपके लड़के को ऐसा लगेगा कि जैसे इस कोचिंग वाले दोस्त ने उसके ऊपर बहुत बड़ा एहसान कर दिया है।
जो मुस्लिम दोस्त आपके लड़के को ले गया था, उससे दोस्ती बढ़ेगी, दिन रात msg और कॉल पर बातें या मिलना जुलना ज्यादा बढ़ जाएगा। वह किसी भी चीज की ख़रीदारी के लिए सस्ते में दुकान बताएगा।
आपको पता नहीं चलेगा कि आपका ये हिंदू बेटा कब और कैसे अपने धर्म से विमुख होकर इस्लाम से प्रभावित हो गया है। उसको हिंदू दोस्तों से ज़्यादा मुस्लिम दोस्त बहुत अच्छे लगने लगेंगे क्योंकि कोई सस्ते में पैंट दे रहा है कोई चप्पल दे रहा है तो कोई १०० की जगह २५ में ही मोबाइल रिपेयर करके दे दे रहा है।
एकदम same सिचुएशन आपकी बेटी के साथ भी होता है , आपका ही लड़का नये नये चीजों को दिखा कर अपनी बहन को कहता है कि मेरा एक अब्दुल, आफ़ताब, साहिल दोस्त है जिसके वजह से इतने सस्ते में ये सारी चीजें मिली है।
और बेटी को तो १०० का माल २५ में नहीं बल्कि मुफ़्त में ....'गिफ्ट; के तौर पर दिया जाता है। वह बेटी मोबाइल, घागरा, पर्स आदि लेते लेते एक दिन रेस्टोरेंट में मुफ़्त का खाना खाने भी पहुँच जाती है जहां एक प्लेट की क़ीमत २ हज़ार से ३ हज़ार भी होता है एकदम शाही अन्दाज़ में भोजन हो जाता है और आपकी बेटी ऐसे लाइफ स्टाइल की मुरीद हो जाती है।
लड़कियों को ऐसी लाइफस्टाइल का बहुत ज़्यादा शौक़ होता है। बाद का हाल तो पता ही है अब वो बेटी अपने बाप को बुरा आदमी समझ सकती है लेकिन मुस्लिम दोस्तों को नहीं।
ये जो कई तरह से, महीनता के साथ आपकी ज़िंदगी में घुसते हैं ना, इसकी खबर आपको लगती ही नहीं है। आपको पता तब चलता है जब वो लोग पूरे खेल का परिणाम हासिल कर लेते हैं।
बचने का उपाय कोई बाहर वाला तो आकर नहीं दे सकता .....पर आप घर में बेटे बेटियों को पहले तो खर्च और दिखावा करने की आदत पर ढंग से समझाइए। उसको बताइए कि अच्छा स्वास्थ्य से बढ़ कर कोई सुंदरता नहीं होती।
दूसरा उस क़ौम के दुकान से कितना भी सस्ता मिले तो आप ले लो लेकिन किसी दोस्त के माध्यम से वहाँ मत पहुँचो। किसी के कहने पर मत जाओ। इसमें bheemte भी अपनी भूमिका निभाते हैं और आपको मुस्लिम दुकान का पता बतायेंगे। वैसे तो मजबूरी ना हो जाये तब तक ऐसे दुकान का रुख़ ही मत करो।
कल ही मुझे एक सिम कार्ड लेना था, दुकान गया तो देखा टोपी वाला लड़का तो अब काउंटर तक चला ही गया था तो बस rate पूछा और फिर लौट गया।
आगे बढ़ा तो एक हिंदू लड़के का दुकान दिख गया। मराठी करके का था। वहीं से सिम कार्ड लिया एयरटेल का २५० रुपया में। अरे यार इतना तो कर ही सकते हो। चार कदम आगे एक हिंदू दुकान भी है, हमें सिर्फ़ मन में निश्चय करके लौटने की प्रवृत्ति डालनी होगी।
साला मैं तो दिमाग़ में यह भी सोच रहा था कि फ़ेसबुक पर बॉयकॉट लिखता हूँ या पढ़ता हूँ तो यह बॉयकॉट करूँगा कब? अगले दिन से? अगले महीने से? .....या ये सोचूँ कि एक सामान ले लेता हूँ, क्या ही हो जाएगा और अगले बार से नहीं ख़रीदूँगा।।।। यही तो होता है इनके दुकान के सामने पहुँचने पर मनःस्थिति।
पर नहीं मैंने बस rate पूछा और वापिस बाइक स्टार्ट करके आगे निकल गया।
बाक़ी आप सब समझदार है, कैसे क्या करना है, घर में बेटे बेटियों को कैसे सम्भालना है, वह ख़ुद के विवेक से निर्णय लीजिए।
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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