सोमवार, 8 मई 2023

सहज संस्कार

 

चिन्तन की धारा
   आप किसी भी अंग्रेजी फिल्म में देखेंगे, या किसी अंग्रेज या यूरोपियन के परिवार में देखने का अवसर मिलेगा तो ये अपने परिवार के दिवंगत व्यक्ति के पार्थिव अवशेषों को भी उसके नाम से बुलाते हैं. किसी मृत व्यक्ति के शरीर को, उसकी कब्र को या उसके दाह कर्म के बाद उसकी राख को भी वे उस व्यक्ति के नाम से ही बुलाते हैं. उनके लिए शरीर ही व्यक्ति है.

    वहीं एक हिन्दू व्यक्ति मृत्यु के ठीक बाद भी मृतक के शरीर को "बॉडी" कहता है.... बॉडी आ गई, बॉडी हॉस्पिटल में है... व्यक्ति जा चुका है. अब जो है वह सिर्फ बॉडी है. यानि हम अनायास ही यह समझते हैं कि व्यक्ति जो था वह शरीर नहीं था, आत्मा थी.

और ऐसा कहने वाला व्यक्ति कोई शास्त्रों का ज्ञाता हो, उसको तत्वज्ञान हो गया हो यह आवश्यक नहीं है. अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी सहज ही यही व्यवहार करता है. यह एक ऐसा ज्ञान है जो सबको संस्कारवश मिल ही जाता है, भगवद्गीता नहीं पढ़नी पड़ती.

    ज्ञान सिर्फ वही नहीं है जो पुस्तकों में हो. ज्ञान का अधिकांश, और सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्रासंगिक अंश वह है जो हमारी चेतना में संस्कारों के माध्यम से अनायास ही पहुंच जाता है. और सबसे प्रभावी ज्ञान वही है जो हमारे जीवन में, हमारे व्यवहार में वास करता है. जो जीवन में नहीं पहुंचा, सिर्फ पुस्तकों में रह गया वह ज्ञान मुक्त नहीं करता, आत्मा पर अहंकार का बोझ भर लादता है.

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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