कहानी
घर के पास वाले फ्लैट में कुछ समय पहले ही कुछ लड़के रेंट पर रहने आए हैं। वैसे तो आजकल सोसायटी में बैचलर किरायदारों को घर नहीं मिलता है, पर मकान मालिक के झूठ के रिश्तेदार बनकर कोई भी रूल को तोड़ा या बदला तो जा ही सकता है।
हालांकि वो लोग करीब 15 दिन से रह रहे हैं यह मुझे पता भी तब चला जब उन्हें कल घर से निकलते देखा। इस बीच न कोई शोर शराबा न कोई गंदगी फैलाई उन्होंने। बाहर निकलते समय नमस्ते किया और चुपचाप चले गए।
पड़ोस वाली आंटी को यह सब शायद ठीक न लगा। वो शाम को मेरे पास आकर कहने लगीं;
हम इनकी मेंटनेंस में कम्प्लेन कर देते हैं, कह देंगे कि तेज़ आवाज़ में म्यूजिक चलाते हैं या कह देंगे कि घर के आगे गंदगी फैलाते हैं। और भी कुछ अजीब बहाने उन्होंने बताने शुरू किए।
मैने उनसे पूछा कि ऐसा करना ही क्यों हैं? उनके रहने से अगर कोई परेशानी होगी तब देखेंगे!
मेरी बात सुनकर बोली अरे इन लोगों को कोई सोसायटी में नहीं रखना चाहता। ऐसे लोग हो सकता है ड्रिंक करें, और आजकल तो ऐसे लोग वीकेंड पर पार्टी करते ही हैं! यह लोग बेकार ही यहां का माहौल बिगाड़ेंगे।
मुझे उनकी बात सुनकर यह समझ आ गया कि बिना किसी वजह के इनको बस उन्हें परेशान करना है। मैंने आंटी की उस बात का कोई जवाब न देते हुए पूछा;
राजीव भैया कैसे हैं आंटी?
राजीव भैया आंटी के इकलौते बेटे हैं, और अभी कुछ महीने के लिए UK गए हुए हैं, उनका नाम सुनते ही वो खिल उठीं। बताने लगी कि बहुत मज़े से रह रहा है। अक्सर वीडियो कॉल करता है, खाना बनाना सीख रहा है। इतने अच्छे लोग के यहाँ पीजी में हैं, वो उसकी केयर भी अच्छे से करते हैं। कई बार ऑफिस से थका हुआ आता है तो उसे साथ रह रहे अंकल दूध गर्म कर के दे देते है। तो कभी उसके साथ पराठे बनाते हैं।
मैं पहले पराए देश मे भेजने को लेकर बहुत टेंशन में थी। पर अब बड़ा सुकून है। ये विदेश के लोग इत्ते भी बुरे नहीं होते। यह कहकर वह जोर जोर से हँसने लगीं। उनके हँसने पर मैने देखा कि उनके दांतो के सेट में थोड़ा गैप आ गया है। ख़ैर...
मैने यह सुनते ही उनके दोनो हाथ अपने हाथ मे लिए और कहा;
आंटी अपने बच्चे को एक पराए देश मे भेजने पर जो चिंता, जो डर आपके थें, वही चिंता वही डर हर माँ के होते हैं जब वो अपने बच्चे को पढ़ने के लिए या जॉब के लिए बाहर भेजती हैं। पास में आए लड़को के परिवार वालों को भी बिल्कुल यही चिंता रही होगी। हमे नहीं पता कि कैसी विकट परिस्थितियों में वो आ पाए होंगे? न जाने कैसे माँ ने अपने तमाम डर को दबा के बच्चों को बड़े शहर में जाने की इजाजत दी होगी? न जाने कितने सपने लेकर वो यहाँ आए होंगे? हर इंसान के अपने संघर्ष होते हैं, जो बस वही समझ सकता है जो इसे भोगता है।
जिस तरह से आपको तसल्ली हुई कि आपका बच्चा खुश है, सुरक्षित है। और जैसे आप तारीफ कर रहीं हैं उन अंग्रेजों की, क्या आप नहीं चाहती कि उनकी माँएं भी यही तसल्ली का अनुभव करें जब वो उनसे उनके आसपास के लोगों के बारे में जानें?
जब तक वो हमें तकलीफ नहीं पहुंचा रहे, तब तक उनके सपनों को पूरा होने दीजिये। हो सकता है इन्हें दिया आपका दुलार राजीव भैया के पास ब्याज सहित पहुंचे।
मैं यह सारी बात एक ही सांस में कह गई। आंटी के चेहरे पर बार बार भाव बदलते रहे। अचानक उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा और उठ के जाने लगी। मैने कहा सॉरी आंटी आपको बुरा लगा न?
मेरी बात का बिन कुछ जवाब दिए वो बोली.... सामने पूछ आती हूँ 'बच्चों' को किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं....!
मैने उन्हें उनकी आँखों के आँसू को चुपके से पोंछते हुए देखा, और मुस्करा दी।
यही जीवन है।
-टीशा अग्रवाल
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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