चिन्तन की धारा
एक बार की बात है.
उस समय भारत में बाटा कंपनी का बोलबाला था एवं जूते चप्पल पहनने वाले अधिकांश लोग बाटा कंपनी के उत्पाद को ही प्राथमिकता देते थे.
इस तरह... भारत में बाटा कंपनी का सेल लगभग सेचुरेट हो गया कि अब भारत में इससे ज्यादा सेल बढ़ाना संभव नहीं है.
लेकिन, कंपनियों को ग्रोथ चाहिए ही चाहिए क्योंकि इसके बिना कंपनी चल ही नहीं पाएगी.
इसीलिए, नए मार्केट के तलाश में बाटा कंपनी ने अपने एक एक्सक्यूटिव को सर्वे के लिए दक्षिण अफ्रीका भेजा...
उस एक्सक्यूटिव ने दक्षिण अफ्रीका जाकर अच्छी तरह सर्वे किया और वहाँ से रिपोर्ट भेजा कि.... "दक्षिण अफ्रीका एक बेहद ही डेड मार्केट है और यहाँ एक भी पैसे का इन्वेस्ट करना... महज पैसे की बर्बादी होगी..!
क्योंकि, यहाँ दक्षिण अफ्रीका में तो कोई जूता-चप्पल पहनता ही नहीं है."
उसके हताशाजनक रिपोर्ट से कंपनी वाले बेहद निराश हुए एवं इसके क्रॉस एक्जामिनेशन हेतु अपने एक दूसरे एक्सक्यूटिव को दक्षिण अफ्रीका भेजा.
दूसरा एक्सक्यूटिव भी अफ्रीका गया और वहाँ से तुरंत एक रिपोर्ट भेजा कि.... "दक्षिण अफ्रीका एक बेहद ही पोटेंशियल मार्केट है और हमलोगों को बिना किसी देरी के अपना प्रोडक्ट यहाँ जल्द से जल्द लॉन्च कर देना चाहिए...
क्योंकि, हमलोग इस मामले में आलरेडी काफी लेट हो चुके हैं..!
इसका कारण ये है कि... यहाँ दक्षिण अफ्रीका में तो कोई जूता-चप्पल पहनता ही नहीं है."
इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि... अगर हम लोगों को कन्विंस कर पाएं तो यहाँ के सारे लोग हमारा ही जूता-चप्पल इस्तेमाल करेंगे... और, हमें एक बहुत बड़ा मार्केट मिल जाएगा.
अगर आपने ऊपर की कहानी ध्यान से पढ़ी है तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि.... दोनों एक्सक्यूटिव के लिए परिस्थिति एक ही थी कि.... दक्षिण अफ्रीका के लोग जूते-चप्पल नहीं पहनते हैं.
लेकिन, उसी सेम परिस्थिति में भी एक को निराशा दिखी तो एक तो संभावना...!
ऐसा इसीलिए हुआ... क्योंकि, पहला एक्सक्यूटिव निराश प्रवृत्ति का था जबकि दूसरा सकारात्मक प्रवृत्ति का था.
अतः, हम कह सकते हैं कि... परिस्थितियां तो सबके लिए एक ही होती है..
लेकिन, ये व्यक्ति के सोचने और समझने एवं दूरदर्शिता पर निर्भर करता है कि वो वर्तमान परिस्थितियों से निराश होता है अथवा उसमें उत्साह का संचार होता है.
ठीक यही बात वर्तमान के मोदी सरकार के संबंध में लागू होती है.
यहाँ भी कुछ लोगों को.... मौलाना साद, वजीफा, अजमेर के चादर, सबका साथ-सबका विकास आदि दिखाई देते हैं...
जबकि, मेरे जैसे सकारात्मक लोगों को वर्षों से नासूर बने कश्मीर समस्या का स्थायी समाधान, श्री राम जन्मभूमि का निर्माण, काशी कॉरिडोर, आतंकवाद का सफाया, पाकिस्तान को कंगाल कर देना, चीन और अमेरिका जैसे स्वघोषित दादाओं को कुत्ता सरीखा बनाकर रखना नजर आता है.
और, इन सबको देखने के बाद हमारे मन में भी दक्षिण अफ्रीका के उस दूसरे एक्सक्यूटिव की तरह उत्साह का संचार होता है कि.... मोदी सरकार में अपार संभावनाएं हैं..
क्योंकि, जिन्होंने महज सात-आठ साल में बिना किसी खून खराबे के इतना कुछ निपटा दिया..
वो, ही भविष्य में POK को भारत में मिला सकने की क्षमता रखता है तथा भारत को एक हिंदू राष्ट्र बना पाने में सक्षम है.
बाकी नकारात्मकता का क्या है...
नकारात्मकता का आलम तो ये है कि दुनिया को रावण जैसे दुर्दांत राक्षस से छुटकारा दिलवाने के बाद भी कुछ लोगों ने भगवान राम तक पर उंगली उठा दिया था.
इसीलिए, जिस तरह दुनिया में अंधेरा और उजाला दोनों होता है..
उसी तरह... दुनिया में नकारात्मकता और सकारात्मकता भी होती है.
अब पसंद आपकी है कि.... सकारात्मक सोच रखकर जीवन में उत्साह और उमंग रखते हैं...
अथवा, कुछेक नकारात्मक बात सोच सोच कर मन ही मन बेवजह का कुढ़ते रहते हैं.
जय महाकाल...!!! Kumar Satish जी का आलेख ..
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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...* 👉🏼
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