शनिवार, 6 मई 2023

उर्मिला 22

 

उर्मिला 22

     भरत की दृष्टि जैसे ही लक्ष्मण पर पड़ी, उन्हें लगा जैसे उन्होंने जग जीत लिया हो। लक्ष्मण मिल गए, तो अब राम भी मिल ही जायेंगे। भक्तिमार्ग का अकाट्य सत्य है कि भगवान से पहले उनके भक्त मिलते हैं। और यदि भक्त मिल जाय तो भगवान भी मिल ही जाते हैं।
     भरत के साथ चल रही भीड़ रुक गयी थी। भरत बिना कुछ बोले ही आगे बढ़ने लगे। लक्ष्मण ने दुबारा उन्हें सावधान करना चाहा, पर उनके मुख से बोल नहीं फूटे। भरत के चेहरे पर उनकी पीड़ा सहजता से पढ़ी जा रही थी। निश्छल व्यक्ति को अपने ह्रदय के भाव दिखाने नहीं पड़ते, उसका हृदय दूर से ही देख और पढ़ लिया जाता है।
     लक्ष्मण अपने हाथ मे लकड़ी उठाये भरत को आगे बढ़ते देख रहे थे। भरत तनिक निकट आये तो अनायास ही लक्ष्मण के हाथ से लकड़ी छूट गयी। भरत आगे बढ़ते रहे। लक्ष्मण के मुख पर पसरी कठोरता गायब होने लगी थी, और उनकी आंखों से यूँ ही जल बहने लगा था। भरत के तनिक और निकट आते ही उनके अंदर का बांध टूट गया और वे बड़े भाई के चरणों में झुक गए। व्यक्ति के संस्कार उसके आवेश पर सदैव भारी पड़ते हैं।
      भरत ने झपट कर उन्हें उठाया और उनसे लिपट कर रो उठे। रोते रोते ही कहा, "तुम्हे भी मुझपर संदेह हो गया न लखन! फिर तू ही बता, क्या करूँ ऐसे जीवन को लेकर कि जिसमें मेरा अनुज भी मुझपर भरोसा नहीं रख पाता! मुझे न अयोध्या चाहिये, न यह देह! भइया को वापस अवध ले चल मेरे भाई और मुझ अधम को मुक्ति दिला! अब बस यह पापी देह छूट जाय..."
     लक्ष्मण की पकड़ मजबूत हो गयी। उन्होंने भरत को अपनी भुजाओं में जकड़ लिया और फूट फूट कर रोने लगे। लक्ष्मण जैसे कठोर योद्धा को यूँ तड़प कर रोते किसी ने नहीं देखा था। पर प्रेम की शक्ति थी जिसने पत्थर को पिघला दिया था।
     अयोध्या की प्रजा के बीच खड़ी उर्मिला चुपचाप देखे जा रही थी पति को! जितने अश्रु लखन की आंखों से बह रहे थे, उतने ही उर्मिला की आंखों से भी बह रहे थे। परिवार की खातिर जिस पति को चौदह वर्षों के लिए भूल जाने का प्रण लिया था, अब उसे तड़पते देख कर प्रण तोड़ देने का मन हो रहा था। पर वह उर्मिला थी, उसे स्वयं को साधना आता था। वे अपनी सारी पीड़ा को हृदय में दबाए चुपचाप देखती रहीं।
     देर तक भरत से लिपट कर रोते रहने के बाद लक्ष्मण अलग हुए और भाई का हाथ पकड़ कर चुपचाप अपनी कुटिया की ओर चल पड़े। लक्ष्मण के पीछे उनके वनवासी शिष्य थे और उनके पीछे समूची अयोध्या...
      कुटिया बहुत दूर नहीं थी। लक्ष्मण-भरत जैसे दौड़ते हुए चल रहे थे। कुछ ही समय में वे कुटिया के सामने थे। लक्ष्मण की प्रतीक्षा में भूमि पर चुपचाप बैठे राम की दृष्टि जब भरत और लक्ष्मण पर पड़ी तो वे विह्वल हो गए। हड़बड़ा कर उठे और मुस्कुराते हुए भरत की ओर दौड़ पड़े।
       भरत ने जब राम को देखा तो उन्हें लगा, जैसे सबकुछ पा लिया हो। वे दौड़ते हुए आगे बढ़े और भइया भइया चिल्लाते हुए बड़े भाई के चरणों में गिर गए।
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क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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