चिंतन के पल...
कर्म और कर्म फल की गति बहुत न्यारी होती है ।
आपने देखा होगा की बहुत से सेठ बहुत दान करते हैं और बहुत सी धर्मशाला और बहुत से अनाथालय और निःशुल्क अस्पताल और विद्यालय चला रहे होते हैं पर या तो वे कष्ट में पड़ जाते हैं या संतान शोक आदि हो जाता है ।
बहुत से लोग अचंभित हो जाते हैं की इतने अच्छे व्यक्ति को ईश्वर ने ( ईश्वर कह लें , प्रारब्ध कह लें , भाग्य कह लें , प्रकृति कह लें , फल कह लें , अनहोनी कह लें , बैड लक कह लें , आपके क्या शब्द प्रयोग करते हैं उस पर टिप्पणी नहीं है ) इतना शीघ्र क्यों उठा लिया ..
तो इसका संकेत भगवान मनु ने मनुस्मृति ( वही मनुस्मृति जो कुछ अज्ञानीयों द्वारा छाप छाप कर जलायी जाती है) में दिया है ..
वे कहते हैं की यदि किसी ने दूसरे का धन चोरी बेइमानी ( कम तौलना , अधिक लाभ पर बेचना , मूर्ख बनाकर बेचना ) या सूद खाकर बटोरा है तब उस धन का पाप ही उसे मिलेगा और उससे किया हुआ हर पुण्य कार्य ( धर्मशाला स्कूल अस्पताल इत्यादि) और तीर्थ यज्ञ इत्यादि का फल उसे मिलेगा जिसका वो धन था ।
अत: चालाकियाँ करके मनुष्य को धोखा दे सकते हैं , कर्म फल को नहीं और अगली कई पीढ़ियाँ उस पाप को ढोती रहती हैं ।
अत: हम बहुत चालाक न बनें और दूसरे का धन ( प्रत्यक्ष या परोक्ष सूद इत्यादि से ) न लूटें … प्रारब्ध को गणित भी आती है और न्याय भी …
दूसरों के ह्रदय को कष्ट पहुंचाना, तकलीफ़ देना , उसकी मजबूरी का फ़ायदा लेने की वृत्ति वाले कदापि कर्मफ़ल से बच न पाते हैं । निर्मल मन के होने की आदत बनाएं ।
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