शनिवार, 27 नवंबर 2021

नियत

 



एक गांव में, प्रवीण शर्मा जी, पेशे से प्राइमरी अध्यापक थे।
उनका विद्यालय 7 किलोमीटर की दुरी पर एकदम वीराने में था

अक्सर लिफ्ट मांग के ही स्कूल पहुँचते थे और न मिले तो प्रभु के दिये दो पैर, भला किस दिन काम आएंगे।

धीरे धीरे उन्होंने कुछ जमापूंजी इकठ्ठा कर, एक स्कूटर ले लिया।

स्कूटर लेने के साथ ही उन्होंने एक प्रण लिया कि वो कभी किसी को लिफ्ट के लिए मना नहीं करेंगें।।
आखिर वो जानते थे जब कोई लिफ्ट को मना करे तो कितनी शर्मिंदगी महसूस होती है।

अब प्रवीण जी रोज अपने चमचमाते स्कूटर से विद्यालय जाते, और रोज कोई न कोई उनके साथ जाता। लौटते में भी कोई न कोई मिल ही जाता।

एक रोज लौटते वक्त एक व्यक्ति परेशान सा लिफ्ट के लिये हाथ फैलाये था, , अपनी आदत अनुसार प्रवीण जी ने स्कूटर रोक दिया। वह व्यक्ति पीछे बैठ गया |

थोड़ा आगे चलते ही उस व्यक्ति ने छुरा निकाल प्रवीण जी की पीठ पर लगा दिया।

"जितना रुपया है वो, और ये स्कूटर मेरे हवाले करो।" व्यक्ति बोला।

प्रवीण जी बहुत घबरा गए, डर के मारे स्कूटर रोक दिया। पैसे तो पास में ज्यादा थे नहीं, पर प्राणों से प्यारा, पाई पाई जोड़ कर खरीदा स्कूटर तो था।

आँखों में आंसू लिए और कांपते हुए हाथों से प्रवीण जी बोले कि आपसे  *"एक निवेदन है,"*
कि तुम कभी किसी को ये मत बताना कि ये स्कूटर तुमने कहाँ से और कैसे चोरी किया।

"क्यों?" व्यक्ति हैरानी से बोला।

"यह रास्ता बहुत उजड्ड है, निरा वीरान | सवारी मिलती नहीं, उस पर ऐसे हादसे सुन आदमी लिफ्ट देना भी छोड़ देंगे।"  प्रवीण जी बोले।

'ठीक है, कहकर' वह व्यक्ति स्कूटर ले कर चला गया।

प्रवीण जी ने अपने को सँभालते हुए ऊपर देखा और कहने लगे,"प्रभु जो आपकी इच्छा"

अगले दिन प्रवीण जी सुबह सुबह अखबार उठाने दरवाजे पर आए, दरबाजा खोला तो स्कूटर सामने खड़ा था। प्रवीण जी की खुशी का ठिकाना न रहा, दौड़ कर गए और अपने स्कूटर को बच्चे जैसा खिलाने लगे, देखा तो उसमें एक कागज भी लगा था।

*"ओ प्रवीण, यह मत समझना कि तुम्हारी बातें सुन मेरा हृदय पिघल गया।*

कल मैं तुमसे स्कूटर लूट उसे कस्बे में ले गया, सोचा भंगार वाले के पास बेच दूँ।
"अरे ये तो प्रवीण जी का स्कूटर है। " इससे पहले मैं कुछ कहता भंगार वाला बोला।

"अरे, प्रवीण ने मुझे बाजार कुछ काम से भेजा है।" कहकर मैं बाल बाल बचा। परन्तु शायद उस व्यक्ति को मुझ पर शक सा हो गया था।

फिर मैं एक हलवाई की दुकान पर गया, जोरदार भूख लगी थी तो कुछ सामान ले लिया। "अरे ये तो परवीन जी का स्कूटर है।
" वो हलवाई भी बोल पड़ा।

"हाँ, उन्हीं के लिये तो ये सामान ले रहा हूँ, घर में कुछ मेहमान आये हुए हैं।" कहकर मैं जैसे तैसे वहां से भी बचा।

फिर मैंने सोचा कस्बे से बाहर जाकर कहीं इसे बेचता हूँ। शहर के नाके पर एक पुलिस वाले ने मुझे पकड़ लिया।

"कहाँ, जा रहे हो और ये प्रवीण जी का स्कूटर तुम्हारे पास कैसे।" वह मुझ पर गुर्राया। किसी तरह उससे भी बहाना बनाया।

अबे ओए प्रवीण तुम्हारा यह स्कूटर है या आमिताभ बच्चन।

तेरी अमानत मैं तेरे हवाले कर रहा हूँ, इसे बेचने की न मुझमें शक्ति बची है, न हौसला।

पत्र पढ़ कर प्रवीण जी मुस्कुरा दिए, और बोले ,"शुक्रिया प्रभु, आपका बहुत बहुत शुक्रिया"।

जब हम दूसरों की मदद करते हैं तो भगवान् भी हमारी मदद करते हैं।

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सोमवार, 22 नवंबर 2021

बदलती राय

 

*चिन्तन के पल...*

समुद्र के किनारे जब एक लहर आयी तो एक बच्चे की चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी.. बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है

"समुद्र चोर है"

उसी समुद्र के एक,  दूसरे किनारे कुछ मछुवारे बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेते हैं. ...
वह उसी रेत पर लिखते हैं

"समुद्र  मेरा पालनहार है"

एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है....उसकी मां रेत पर लिखती है,

"समुद्र हत्यारा है"

एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया, वह रेत पर लिखता है

"समुद्र दानी है"

.... अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारा लिखा मिटा कर चली जाती है

मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा कि, लोगों की क्या राय है उस के बारे में ,वो अपनी लहरों में मस्त बार-बार आता जाता रहा ..

अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान और शांति समुद्र की भाँति अपने हिसाब से तय करो।

लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
चाय मक्खी में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और  देशी घी मे गिरे तो मक्खी को फेंक देते हैं ।।


लोगों को अपने हित की बात लगे तो अच्छा - अच्छा , पर सनातन सत्य भी कड़वा लगेगा तो थू थू...  लोग क्या कहेंगे ,से ज्यादा सही है अपना आचरण ,अपना व्यवहार , अपनी नीति -सोच सही रखें !!

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रविवार, 21 नवंबर 2021

बदला नज़रिया

 

एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेशा "LOVE YOU ALL" बोला करतीं थी।
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मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं बोल रही ।
वह कक्षा के सभी बच्चों से एक जैसा प्यार नहीं करती थीं।
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको फटी आंख भी नहीं भाता था। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आ जाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान । पढ़ाई के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था।
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मेडम के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता, मगर उसकी खाली खाली नज़रों से साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब है  (यानी प्रजेंट बाडी अफसेटं माइड) .धीरे धीरे मेडम को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मेडम की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मेडम उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करती।
राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।
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मेडम को वह एक बेजान पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर आत्मा नाम की कोई चीज नहीं थी। प्रत्येक डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर झुका लेता। मेडम को अब इससे गंभीर नफरत हो चुकी थी।
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पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो मेडम ने राजू की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें लिख मारी । प्रगति रिपोर्ट माता पिता को दिखाने से पहले हेड मास्टर के पास जाया करती थी। उन्होंने जब राजू की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखी तो मेडम को बुला लिया। "मेडम प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो राजू की प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे राजू के पिता इससे बिल्कुल निराश हो जाएंगे।" मेडम ने कहा "मैं माफी माँगती हूँ, लेकिन राजू एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ। "मेडम घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ कर चली गई स्कूल की छुट्टी हो गई आज तो ।
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अगले दिन हेड मास्टर ने एक विचार किया ओर उन्होंने चपरासी के हाथ मेडम की डेस्क पर राजू की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन मेडम ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर देखा तो पता लगा कि यह राजू की रिपोर्ट हैं। " मेडम ने सोचा कि पिछली कक्षाओं में भी राजू ने निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे।" उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है। "राजू जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से बेहद लगाव रखता है।" "
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यह लिखा था
अंतिम सेमेस्टर में भी राजू ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। "मेडम ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की रिपोर्ट खोली।" राजू ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव लिया। .उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। "" राजू की माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। । घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है.जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।
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नीचे हेड मास्टर ने लिखा कि राजू की माँ मर चुकी है और इसके साथ ही राजू के जीवन की चमक और रौनक भी। । उसे बचाना होगा...इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। " यह पढ़कर मेडम के दिमाग पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की । मेडम की आखो से आंसू एक के बाद एक गिरने लगे. मेडम ने साङी से अपने आंसू पोछे
अगले दिन जब मेडम कक्षा में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू ऑल" दोहराया।
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   मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं। क्योंकि इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे राजू के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में महसूस कर रही थीं..वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से अधिक था ।
पढ़ाई के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राजू पर दागा और हमेशा की तरह राजू ने सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक मेडम से कोई डांट फटकार और सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में न पड़ी तो उसने अचंभे में सिर उठाकर मेडम की ओर देखा। अप्रत्याशित उनके माथे पर आज बल न थे, वह मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने राजू को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर जबरन दोहराने के लिए कहा। राजू तीन चार बार के आग्रह के बाद अंतत:बोल ही पड़ा। इसके जवाब देते ही मेडम ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी बच्चो से भी बजवायी..
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  फिर तो यह दिनचर्या बन गयी। मेडम हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर उसकी खूब सराहना तारीफ करतीं। प्रत्येक अच्छा उदाहरण राजू के कारण दिया जाने लगा । धीरे-धीरे पुराना राजू सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आ गया। अब मेडम को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी करता ।
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उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था। देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और राजू ने दूसरा स्थान हासिल कर कक्षा 5 वी पास कर लिया यानी अब दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले के लिए तैयार था।
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कक्षा 5 वी के विदाई समारोह में सभी बच्चे मेडम के लिये सुंदर उपहार लेकर आए और मेडम की टेबल पर ढेर लग गया । इन खूबसूरती से पैक हुए उपहारो में एक पुराने अखबार में बदतर सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे उसे देखकर हंस रहे थे । किसी को जानने में देर न लगी कि यह उपहार राजू लाया होगा। मेडम ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर राजू वाले उपहार को निकाला। खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं द्वारा इस्तेमाल करने वाली इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक बड़ा सा कड़ा कंगन था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। मिस ने चुपचाप इस इत्र को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। बच्चे यह दृश्य देखकर सब हैरान रह गए। खुद राजू भी। आखिर राजू से रहा न गया और मिस के पास आकर खड़ा हो गया। ।
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   कुछ देर बाद उसने अटक अटक कर मेडम को बोला "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।" इतना सुनकर मेडम के आखो मे आसू आ गये ओर मेडम ने राजू को अपने गले से लगा लिया
राजू अब दुसरी स्कूल मे जाने वाला था
राजू ने दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले ले लिया था
समय बितने लगा।
दिन सप्ताह,
सप्ताह महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है?
मगर हर साल के अंत में मेडम को राजू से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला।। मगर आप जैसा मेडम कोई नहीं था।"
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फिर राजू की पढ़ाई समाप्त हो गया और पत्रों का सिलसिला भी सम्माप्त । कई साल आगे गुज़रे और मेडम रिटायर हो गईं।
एक दिन मेडम के घर अपनी मेल में राजू का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
"इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता। एक और बात .. मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं।। आप जैसा कोई नहीं है.........आपका डॉक्टर राजू
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पत्र मे साथ ही विमान का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था।
मेडम खुद को हरगिज़ न रोक सकी। उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह राजू के शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं।
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    उन्हें लगा समारोह समाप्त हो चुका होगा.. मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े डॉक्टर , बिजनेसमैन और यहां तक कि वहां पर शादी कराने वाले पंडितजी भी थक गये थे. कि आखिर कौन आना बाकी है...मगर राजू समारोह में शादी के मंडप के बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही एक बुड्ढी ओरत ने गेट से प्रवेश किया राजू उनकी ओर लपका और उनका वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह कड़ा पहना हुआ था कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया।
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   राजू ने माइक हाथ में पकड़ कर कुछ यूं बोला "दोस्तों आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलाउंगा।।।........
ध्यान से देखो यह यह मेरी प्यारी सी माँ दुनिया की सबसे अच्छी है यह मेरी माँ !  यह मेरी माँ हैं -
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!! प्रिय दोस्तों.... अपने आसपास देखें, राजू जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार और स्नेह नया जीवन दे सकता है...........

शनिवार, 20 नवंबर 2021

भक्ति में शक्ति

 

हरिराम एक मेडिकल स्टोर का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई  कहाँ रखी है।
वह इस व्यवसाय को बड़ी सावधानी और बहुत ही निष्ठा से करता था।

  दिन भर उसकी दुकान में  भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों  को सावधानी और समझदारी से देता था।

  परन्तु उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था । वह एक नास्तिक था,उसका मानना था की प्राणी मात्र की सेवा करना ही सबसे बड़ी पूजा है। और वह जरूरतमंद लोगों को दवा निशुल्क भी दे दिया करता था।
  और समय मिलने पर वह मनोरंजन हेतु अपने दोस्तों के संग दुकान में लूडो खेलता था।

एक दिन अचानक बारिश  होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, दोस्तों को बुला लिया और सब दोस्त मिलकर लूडो खेलने लगे।

  तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।

  हरिराम लूडो खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।

  ठंड से ठिठुरते हुए उस बच्चे ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए। बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि अब मेरी मां बच जाएगी।

उस लड़के की पुकार सुनकर लूडो खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई देने को उठा, लूडो के खेल में व्यवधान के कारण  अनमने से दवाई देने के लिए उठा ही था की बिजली चली गयी। अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।

दवा के पैसे दे कर लड़का  खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया।
अंधेरा होने के कारण खेल बन्द हो गया और दोस्त भी चले गऐ।

अब वह दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था। तभी लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा की शीशी थी। जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था और लूडो  खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि खेल समाप्त करने के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा !!

उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की विश्वसनीयता पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा।

यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को पिला दी, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी  छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपने लूडो खेलने के शौक को कोसने लगा और दूकान में खेलने के अपने शौक   को छोड़ने का निश्चय कर लिया
पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब उस गलत दी दवा का क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ  को बचाया जाए?

सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा।

पहली बार श्रद्धा से उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने भगवान का छोटा सा चित्र दुकान के उदघाटन के वक्त लगा दिया था , पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से परमात्मा के चित्र को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।

उन्होंने कहा था कि भगवान  की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और  हर बिगडे काम को ठीक करने की शक्ति है । हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने हाथ  जोड़कर, आंखें बंद करके कुछ बोलते हुऐ  देखा था।

उसने भी आज पहली बार दूकान के कोने में रखी उस धूल भरी भगवान की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम बहुत अधीर हो उठा। क्या बच्चे ने माँ को दवा समझ के जहर पिला दिया ? इसकी माँ मर तो नही गयी !!

हरिराम का रोम रोम कांप उठा ।पसीना पोंछते हुए उसने संयत हो कर धीरे से कहा- क्या बात है बेटा अब तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी...बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के निकट पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी?
हरिराम हक्का बक्का रह गया। क्या ये सचमुच परमात्मा का चमत्कार है !

हाँ! हाँ ! क्यों नहीं? हरिराम  ने चैन की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!
पर मेरे पास पैसे नहीं है।"उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।

कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना।  लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।

हरिराम की आंखों से अविरल आंसुओं की धार बह निकली। श्री बांके बिहारी को धन्यवाद  देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी छाती से पोंछने लगा और अपने माथे से लगा लिया
आज के चमत्कार को वह पहले अपने परिवार को सुनाना चाहता था।

जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी

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सोमवार, 15 नवंबर 2021

धर्म

 

*चिंतन के पल ....*  
   

      क्लास में आते ही नये टीचर ने बच्चों को अपना लंबा परिचय दिया.

बातों ही बातों में उसने जान लिया कि
लड़कियों की इस क्लास में सबसे तेज और सबसे आगे कौन सी लड़की है ?

       उसने खामोश सी बैठी उस लड़की से पूछा ~

बेटा, आपका नाम क्या है ?

   लड़की खड़ी हुई और बोली ~ जी सर , मेरा नाम है कल्पना !

         टीचर ने फिर पूछा ~ पूरा नाम बताओ बेटा ?
जैसे उस लड़की ने नाम में कुछ छुपा रखा हो.

    लड़की ने फिर कहा ~ जी सर ,
मेरा पूरा नाम कल्पना ही है.

टीचर ने सवाल बदल दिया ~ अच्छा ...
     
तुम्हारे पापा का नाम बताओ ?
लड़की ने जवाब दिया ~ जी सर ,
मेरे पापा का नाम है रामदयाल.

             टीचर ने फिर पूछा ? अपने पापा का पूरा नाम बताओ ?

               लड़की ने जवाब दिया ~
          मेरे पापा का पूरा नाम रामदयाल ही है, सर जी !

    अब टीचर कुछ सोचकर बोले ~
अच्छा अपनी माँ का पूरा नाम बताओ ?

    लड़की ने जवाब दिया ~ सर जी , मेरी माँ का पूरा नाम है जाह्नवि.

  टीचर के पसीने छूट चुके थे, क्योंकि अब तक वो, उस लड़की की फैमिली के पूरे बायोडाटा में जो एक चीज ढूंढने की कोशिश कर रहा था .... वो उसे नहीं मिली थी.

    उसने आखिरी पैंतरा आजमाया और पूछा  ~
  अच्छा तुम कितने भाई बहन हो ?

               टीचर ने सोचा, कि जो चीज वो ढूँढ रहा है शायद इसके भाई बहनों के नाम में वो क्लू मिल जाये ?

लड़की ने टीचर के इस सवाल का भी
बड़ी मासूमियत से जवाब दिया ~

     बोली ~ सर जी , मैं अकेली हूँ.
        मेरे कोई भाई बहन नहीं है.

         अब टीचर ने सीधा और निर्णायक सवाल पूछा ~
   बेटी, तुम्हारा धर्म और जाति क्या है ?

   लड़की ने इस सीधे से सवाल का भी सीधा सा जवाब दिया ~

बोली ~
सर, मैं एक विद्यार्थी हूँ, यही मेरी जाति है, और  ज्ञान प्राप्त करना ही मेरा धर्म है.

मैं जानती हूँ, कि अब आप मेरे पेरेंट्स की जाति और धर्म पूछोगे. ऊंची जात - नीची जात में बांटोगे !!
तो मैं आपको बता दूँ, कि
      मेरे पापा का धर्म है मुझे पढ़ाना  और ... मेरी मम्मी की जरूरतो को पूरा करना.
         और
मेरी मम्मी का धर्म है ...
मेरी देखभाल और मेरे  पापा की जरूरतों को पूरा करना.

लड़की का जवाब सुनकर टीचर के होश उड़ गये ...

उसने टेबल पर रख पानी के गिलास की ओर देखा, लेकिन उसे उठाकर पीना भूल गया.

तभी लड़की की आवाज ...
  एक बार फिर उसके कानों में किसी धमाके की तरह गूँजी ~

सर,
     मैं विज्ञान की छात्रा हूँ, और एक साइंटिस्ट बनना चाहती हूँ.
    जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगी, और अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर लूँगी, तब कभी फुरसत में सभी धर्मों के अध्ययन में जुटूँगी
❗ और जो भी धर्म ❗विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरेगा, उस पर अपनी पूरी श्रद्धा रखूंगी ।

लेकिन अगर धर्मग्रंथों के उन पन्नों में एक भी बात विज्ञान के विरुद्ध हुई, तो मैं उस पूरी पवित्र किताब को
अपवित्र समझूँगी.

क्योंकि साइंस कहता है?? ~
एक गिलास दूध में अगर एक बूंद भी केरोसिन मिली हो, तो पूरा का पूरा दूध ही बेकार हो जाता है.

लड़की की बात खत्म होते ही पूरी क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से  गूंज उठी.

तालियों की गूंज टीचर के कानों में बंदूक की गोलियों की गड़गड़ाहट की तरह सुनाई दे रही थी.

उसने आँंखों पर लगे   धर्म और जाति के मोटे चश्मे को उतार कर कुछ देर के लिए टेबल पर रख दिया.

थोड़ी हिम्मत जुटा कर ...
लड़की से बिना नजर मिलाये ही बोला ~ गर्व है तुम्हारी सोच पर !!

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रविवार, 14 नवंबर 2021

क़ीमत

 

एक बार दुनिया के सबसे धनवान व्यक्तियों में से एक बिल गेट्स से किसी ने पूछा:- "क्या इस धरती पर आपसे भी धनवान कोई है? "

बिल गेट्स ने जवाब दिया:- "हां, मेरी नज़र में एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी धनवान है।"
"कौन....? "
बिल गेट्स ने बताया....
"एक समय में जब मेरी प्रसिद्धि और अमीरी के दिन नहीं था । मैं न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था। वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा। पर मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया। अखबार बेचने वाले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने उससे छुट्टे पैसे ना होने की बात कही...
लेकिन लड़के ने मुझें अखबार देते हुए कहा:- "यह मैं आपको मुफ्त में देता हूं..."

बात आई और गई ...
कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे। उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया। मैं ये नहीं ले सकता..
उस लड़के ने कहा:- "आप इसे ले सकते हैं, मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूं, मैंने अखबार ले लिया ।"

तकरीबन 19 साल गुजरने के उपरांत अपनी ख्याति के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आई और मैंने उसे ढूंढना शुरू किया। कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया....
मैंने पूछा:- "क्या तुम मुझे पहचानते हो ? "

लड़का:- "हां,आप मि. बिल गेट्स हैं। "

गेट्स:- "तुम्हें याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ?"

लड़का:- "जी हां, बिल्कुल.. ऐसा दो बार हुआ था.."

गेट्स:- "मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूं....तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा.."

लड़का:- "सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि ऐसा करके आप मेरी मदद की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे.."

गेट्स:-  "क्यूं ..?"

लड़का:- "मैंने जब आपकी मदद की थी, उस वक़्त मैं एक गरीब लड़का था, जो सिर्फ़ अखबार बेचकर अपना गुजारा करता था। आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्यवान व्यक्ति हैं.. फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे...?"

बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति से भी अमीर था क्योंकि---

*"किसी की मदद करने के लिए उसने ख़ुद के अमीर होने का इंतजार नहीं किया था "....*

अमीरी पैसे से नहीं दिल से होती है। औऱ यकीनन किसी की मदद करने के लिए एक अमीर दिल का होना भी बहुत जरूरी है.....

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शनिवार, 13 नवंबर 2021

व्यवहार की सीख

 

एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा मिलनसार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुंचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?

उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहां पहुंचकर वह बोला— ''यह साड़ी कितने की दोगे?'' जुलाहे ने कहा- ''10 रुपए की।''

तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला- ''मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?'' जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा— ''5 रुपए।'' लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किए और दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत। उसने बताया - ''ढाई रुपए।''


लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया। अंत में बोला- ''अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?'' जुलाहे ने शांत भाव से कहा- ''बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।''

अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा- ''मैंने आपका नुकसान किया है। अतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूं।'' जुलाहे ने कहा— ''जब आपने साड़ी ली ही नहीं, तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं?''

लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा, ''मैं बहुत अमीर आदमी हूं। तुम गरीब हो। मैं रुपए  दे दूंगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।''

जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा- ''तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल होती जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपए से यह घाटा कैसे पूरा होगा?''

जुलाहे की आवाज में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी। लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आंखें भर आई और वह जुलाहे के पैरों में गिर गया।

जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा- ''बेटा! यदि मैं तुम्हारे रुपए ले लेता तो उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी जिन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूंगा। पर तुम्हारी जिन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहां से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप या अपने अभिमान को पहचानना ही मेरे लिए बहुत कीमती है।''

जुलाहे की ऊंची सोच-समझ और संयम की पराकाष्ठा ने लडके का जीवन बदल दिया।

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सोमवार, 8 नवंबर 2021

कर्मफल नियति

 

चिंतन के पल...

कर्म और कर्म फल की गति बहुत न्यारी होती है ।

आपने देखा होगा की बहुत से सेठ बहुत दान करते हैं और बहुत सी धर्मशाला और बहुत से अनाथालय और निःशुल्क अस्पताल और विद्यालय चला रहे होते हैं पर या तो वे कष्ट में पड़ जाते हैं या संतान शोक आदि हो जाता है ।

बहुत से लोग अचंभित हो जाते हैं की इतने अच्छे व्यक्ति को ईश्वर ने ( ईश्वर कह लें , प्रारब्ध कह लें , भाग्य कह लें , प्रकृति कह लें , फल कह लें , अनहोनी कह लें , बैड लक कह लें , आपके क्या शब्द प्रयोग करते हैं उस पर टिप्पणी नहीं है ) इतना शीघ्र क्यों उठा लिया ..

तो इसका संकेत भगवान मनु ने मनुस्मृति ( वही मनुस्मृति जो कुछ अज्ञानीयों द्वारा छाप छाप कर जलायी जाती है) में दिया है ..

वे कहते हैं की यदि किसी ने दूसरे का धन चोरी बेइमानी ( कम तौलना , अधिक लाभ पर बेचना , मूर्ख बनाकर बेचना ) या सूद खाकर बटोरा है तब उस धन का पाप ही उसे मिलेगा और उससे किया हुआ हर पुण्य कार्य ( धर्मशाला स्कूल अस्पताल इत्यादि) और तीर्थ यज्ञ इत्यादि का फल उसे मिलेगा जिसका वो धन था ।

अत: चालाकियाँ करके मनुष्य को धोखा दे सकते हैं , कर्म फल को नहीं और अगली कई पीढ़ियाँ उस पाप को ढोती रहती हैं ।

अत: हम बहुत चालाक न बनें और दूसरे का धन ( प्रत्यक्ष या परोक्ष सूद इत्यादि से ) न लूटें … प्रारब्ध को गणित भी आती है और न्याय भी …

दूसरों के ह्रदय को कष्ट पहुंचाना, तकलीफ़ देना , उसकी मजबूरी का फ़ायदा लेने की वृत्ति वाले कदापि कर्मफ़ल से बच न पाते हैं । निर्मल मन के होने की आदत बनाएं ।

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रविवार, 7 नवंबर 2021

स्वास्थ्य चर्चा - डेंगू से बचाव


आजकल डेंगू का बुखार बहुत ज्यादा फैला हुआ है जिसके कारण अस्पतालों में भारी भीड़ है और डेंगू जानलेवा भी बन जाता है ।

आमतौर पर डेंगू का बुखार जुलाई से नवंबर के मध्य ही ज्यादा होता है। डेंगू के बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है। यह एक तरह से फ्लू जैसी बीमारी है जो डेंगू के कारण होती है।

  डेंगू का मच्छर आमतौर पर सुबह और शाम के वक्त ही काटता है।
लक्षण-
     आमतौर पर डेंगू में बुखार 104 डिग्री होता है। सिर दर्द, हडियो और जोड़ में दर्द, जी मचलना, उल्टी लगना, आंखों के पीछे दर्द और शरीर पर लाल चकते होना इसकी मुख्य पहचान है।

आज तक डेंगू की कोई स्पेशल दवाई या गोली नहीं बनी है।

डेंगू का बुखार आमतौर पर एक सप्ताह तक रहता है। बुखार उतारने के लिए आयुर्वेदिक ओषधि महासुदर्शन घनवटी की दो– दो गोली सुबह और शाम चबा कर ले। अंग्रेजी दवाई पेरासिटामोल दे सकते हैं।

डेंगू का मच्छर 3 फीट से ऊंचा नहीं उड़ सकता इसलिए यह घुटनों से नीचे ही काटता है। अतः सबको सलाह है कि हर समय जूते पहनकर रखें।

डेंगू का बुखार होने पर सबसे बडी समस्या प्लेटलेट्स का कम होना है। आमतौर पर देखा गया है कि प्लेटलेट्स ज्यादा कम होने पर ब्लीडिंग होने के कारण मरीज की मृत्यु हो जाती है।

इसलिए सलाह है कि बुखार होने पर टेस्ट जरूर करवाएं , कहीं डेंगू वाला बुखार तो नहीं है और प्लेटलेट्स की भी जांच जरूर करवाएं।

डेंगू के मरीज को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड ही लेना चाहिए।

प्लेटलेट गिरने पर-

अगर प्लेटलेट कम है तो इनको बढ़ाने के लिए नारियल पानी, पपीते के पत्तों का जूस, गिलोय पानी में उबालकर उसका पानी, कीवी फ्रूट, पपीते का जूस और पपीते की गोली लगातार लेते रहे।

हर रोज दो कीवी फ्रूट जरूर खाएं।
दिन में दो बार नारियल पानी जरूर लें।
हर 15 मिनट में कोई ना कोई जूस जरूर लें।
पपीते के पत्तों की गोली दिन में तीन बार जरूर ले।
रात को सोते समय दूध में हल्दी उबालकर उसको पीएं।
दो गिलास पानी में 1 फीट गिलोय की डंडी को कुटकर हल्की आंच में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो ठंडा करके दिन में 4 बार उसको पिएं।

   सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी सोच को सकारात्मक रखें और यह सारी विधि करने से प्लेटलेट जल्दी ही बढ़ जाएंगी।

    अपने प्लेटलेटस को हर रोज चेक करवाएं एक बार प्लेटलेटस बढ़नी शुरू हो गई तो फिर एकदम से बढ़ जाती है।

   डेंगू के बुखार में प्लेटलेट गिरने के कारण खून पतला हो जाता है अतः ऐसी कोई गोली ना लें जिससे खून और पतला हो जाए और अगर शरीर पर कहीं भी खुजली हो रही हो तो खुजली बिल्कुल ना करें।

   डेंगू के बुखार में हैवी डाइट ना लें सिर्फ लिक्विड ही ज्यादा लें।

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दुनियादारी

 

जीवन का तीन पौन निकल गया पर सुदर्शन महतो इतने व्यग्र कभी नहीं हुए जितने उस दिन थे। जिसे दस वर्ष पूर्व ही इस तरह त्याग दिया कि फिर कभी उसका नाम तक ध्यान में नहीं आया, उसके लिए जाने क्यों आँखों से बार-बार लोर टपक उठता था। सन्तान का मोह सबसे बड़ा होता है। सुदर्शन महतो का तलमलाता हृदय कभी कह रहा था कि उन्हें दौड़ते हुए उसके पास चले जाना चाहिए, तो फिर उसी हृदय से आवाज आती, "नहीं! जिसने दुनिया के सामने मूँछ नीची कर दी उसके लिए कैसा मोह? उसके पास भूल कर भी नहीं जाना। मरती है तो मरे..."
सुदर्शन महतो इतने कठकरेजी नहीं थे कि बेटी मरती रहे और वे देखने भी न जाएं, पर समय और समाज के तानों नें उन्हें पत्थर बना दिया था।
गाँव के सभ्य लोगों में गिनती होती थी सुदर्शन महतो की, गाँव के किसी भी पँचायत में सबसे पहले बुलाया जाता था उन्हें। सरकारी स्कूल के चपरासी थे सुदर्शन महतो, पर समाज ने उन्हें मास्टर-डाक्टर के बराबर सम्मान दिया था। सम्मान के योग्य थे भी, उनकी सत्यनिष्ठा और प्रेम भरा व्यवहार पूरे जवार में प्रसिद्ध था।
पर जीवन की सारी कमाई ले कर डूब गई थी सुरतिया। एक झटके में सुदर्शन महतो आसमान से पाताल में जा गिरे थे।
सुरतिया उनकी सबसे छोटी पेटपोंछनी बेटी थी। अपने अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा मानते थे उसे सुदर्शन महतो। दूसरों के लिए डेढ़ सौ का कपड़ा किनते तो सुरतिया के लिए चार सौ से कम का सूट पसन्द नहीं आता था उन्हें। उनकी बड़ी लड़कियां मैटिक से आगे न बढ़ पायीं पर सुरतिया को इंटर तक पढ़ाया था उन्होंने। पर यही पढ़ाई ले डूबी। गाँव की दस लड़कियों के साथ इंटर की परीच्छा देने सीवान गयी सुरतिया जब लौट कर नहीं आयी तो बाप ने देखा, सुरतिया के साथ उनकी सारी प्रतिष्ठा भाग गई थी। उसके साथ की लड़कियों ने ही बताया कि वह अपने ही कॉलेज के "मकसूद अली" की मोटरसाइकिल पर बैठ कर चली गयी। गाँव मे किसी की बेटी भाग जाय तो यह खबर आग से भी तेज पसरती है। सुदर्शन महतो की नाक कट गई थी। लोगों के कहने पर उन्होंने मकसूद और उसके बाप पर अपहरण का केस किया, पर दस दिन के बाद कचहरी में जज साहेब के सामने सुरतिया ने कह दिया कि "हम अपने मन से मकसूद के साथ गए थे। हमलोगों ने बियाह कर लिया है। हमको अपने बाप माई से कवनो मतलब नहीं..."

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सुदर्शन महतो के लिए अब कुछ बचा नहीं था। कचहरी के बाहर सुरतिया से बस दो टुम बोल पाए सुदर्शन महतो, " एक दिन बड़ी पछतइबे बबुनी...", पर सुरतिया प्रेम के नशे में थी, वह मुह घुमा कर चली गयी। सुदर्शन महतो ने उसी दिन सुरतिया को मरा हुआ मान लिया। तबसे सुदर्शन महतो लाज के मारे घर से नहीं निकलते थे। उनकी सारी दिनचर्या घर में ही पूरी होती थी। कहीं जाते भी तो लोगों से बचते बचाते... सुरतिया उन्हें समाज से काट चुकी थी।
दस वर्ष बीत गए, पर कभी पिघले नहीं महतो जी।मकसूद का गाँव मात्र पाँच किलोमीटर दूर था, पर कभी भूल कर भी उधर नहीं गए। दो बरस बाद ही मकसूद ने सुरतिया को तलाक दे दिया, पर महतो जी ने उसके बारे में जानना भी नहीं चाहा। सुरतिया भी कौन सा मुह लेकर आती? बाद में लोगों ने बताया कि सिवान में ही अपने छह माह के बेटे को लेकर रहती है, और लोगों के घर चौका-बरतन करती है। महतो जी के लिए यह रेडियो-अखबार के समाचार जैसा था, उन्होंने सुन कर भी जैसे कुछ नहीं सुना।
तीन साल पूर्व उनके अंदर कुछ पिघला था। गाँव के राजेसर तिवारी से एक दिन सिवान सदर अस्पताल में मिली थी सुरतिया, उसके बेटे को निमोनिया हुआ था। राजेसर तिवारी ने महतो जी को बताया कि बहुत रो रही थी। हिचकते-हिचकते ही बोली कि बाबूजी से दू हजार रुपिया... गलती सही का हिसाब करने से अब क्या लाभ, अभागिन के पास जीने का बहाना यही बेटा ही है, बच जाय तो कइसे भी जिनगी गुजार लेगी...
पता नहीं पैसा महतो जी ने दिया या राजेसर तिवारी अपने पास से ले गए, पर अगली सुबह जब तक पहुँचे तबतक सुरतिया का बेटा निकल चुका था।
महतो जी का हृदय थोड़ा सा भीगा था उसदिन, पर फिर बात जैसे आयी-गयी हो गयी। महतो जी सुरतिया को देखने भी नहीं गए, उनके लिए सुरतिया जैसे थी ही नहीं... पर आज वे स्वयं को रोक नहीं पा रहे थे। उनके अंदर का सारा क्रोध, सारी घृणा, सारी पीड़ा जैसे सन्तान के मोह से हार रही थी। आज सुबह ही किसी ने बताया था सुरतिया फिर अस्पताल में है। अकेली... उसे टीबी है और अंतिम चरण में है।

हिन्दी फिल्मों का एक बड़ा ही प्रसिद्ध संवाद है-"प्रेम के आगे हर माँ-बाप हारते हैं"। असल में यह कोरा झूठ है। माँ-बाप अपने बच्चों के प्रेम के आगे नहीं हारते, वे हारते हैं अपने उस प्रेम के आगे जो स्वयं वे अपने बच्चों से करते हैं। महतो जी भी भले सदैव सुरतिया के प्रेम पर थूकते रहे थे, पर आज अपने प्रेम के आगे जैसे हार गए थे।

महतो जी दोपहर में सदर अस्पताल पहुँचे तो जाने क्यों उन्हें सुरतिया के सामने जाने में डर लग रहा था। वे भावनाओं में बह कर आये तो थे, पर उसका सामना नहीं करना चाहते थे। पर सामना तो करना था... पूरे दस वर्ष बाद वे देख रहे थे बेटी को, पर यह तो जैसे उनकी बेटी थी ही नहीं। भिखमंगे की तरह फटेहाल, देह में जैसे खून-पानी ही नहीं था। सूख कर हड्डी का ढाँचा हो गयी थी। महतो जी फफक पड़े। बच्चे कितना भी बड़ा अपराध कर दें, पिता उनका त्याग नहीं कर पाता। महतो जी के पास कहने सुनने को कुछ था नहीं, डाक्टर ने पहले ही बता दिया था कि अब अंतिम.... समय से खाना नहीं खाने के कारण... सीधे सीधे भुखमरी...
महतो जी ने कुछ कहने के लिए कहा- एक बार कह कर तो देखती बेटी...
पीली पड़ चुकी सुरतिया के मुह पर अजीब से भाव उभर आये। बोली- कौन सा मुह ले कर आती बाबूजी?
महतो जी की आँखे फिर भर गयीं। बोले- पूछना नहीं चाहता था पर पूछता हूँ, वैसा क्यों किया था?
सुरतिया चुपचाप पड़ी रही। बहुत समय बाद बोली- बाबूजी कहूँ तो बुरा नहीं न मानोगे?
-अब बुरा मानने के लिए बचा ही क्या है रे, कह ले...

- मैं तो बच्ची थी बाबूजी, समझ नहीं पायी कि गलत क्या और सही क्या है। गलती मेरी थी तो सजा भी अकेले ही भोग लिए। सुअर की तरह मार खाती रही पर कभी आपका नाम ले कर नहीं रोई। घर से निकाल दी गयी तो भीख माँग कर खाती रही पर आपके पास नहीं गयी। लोगों के घर झाड़ू-पोंछा करती रही, पर कभी आपको दोष नहीं दिया। गलती मेरी थी, किस मुह से आपको दोष देती? पर क्या सारा दोष मेरा ही था? बच्चे तो कोरा कागज होते हैं न... मैं घर में रहने वाली बच्ची, मुझे दुनियादारी की समझ नहीं थी, पर आपको तो थी न? क्या आपने कभी बताया था कि दुनिया में लड़कियों को बहला कर लूटने वाले भी घूम रहे हैं इनसे दूर रहना चाहिये? तनिक सोचिये तो, यदि आपने समय पर अच्छा बुरा समझाया होता तो आज आपकी बेटी ऐसी मिलती? आपने कभी आपने प्रेम से अपने पास बैठा कर अच्छा-बुरा समझाया नहीं था, उसने प्रेम का झूठ बोला मैं उसी को सच समझ बैठी। आपसे प्रेम मिला नहीं था, उसके प्रेम को देख कर लगा कि यही सबकुछ है सो बहक गयी। अब तो सब कुछ....
सुरतिया की सांस फूलने लगी थी। महतो जी अब खुल कर रो उठे थे... वे सरक कर बेटी के निकट आ गए थे, उसका सर अब उनकी गोद मे था।
कुछ देर बाद सुरतिया के मुह से कुछ शब्द फूटे, "भागने वाली लड़कियां बुरी नहीं होतीं बाबूजी, नादान होती हैं... खैर छोड़िये! अब तो सब... अच्छी-बुरी जैसी भी थी, अभागन आपकी बेटी ही थी न... मुझे याद रखियेगा न बाबूजी..."
सुदर्शन महतो चिल्ला उठे, सुरतिया उनकी जाँघ पर सर रखे ही निकल गयी...

दस वर्षों तक दुनियादारी से दूर रहने वाले सुदर्शन महतो आजकल हर मिलने वाले से एक बात जरूर कह जाते हैं, " हमारी तरह मूर्खता मत करना भाई, बेटी हो तो उसका मित्र बनना बाप नहीं।"
पता नहीं कोई उनकी बात सुनता भी है या नहीं...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख जी की रचना.

शनिवार, 6 नवंबर 2021

आचरण

 

अगर आप श्रीराम के जीवन की घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि वह मुसीबतों का एक अंतहीन सिलसिला था। सबसे पहले उन्हें अपने जीवन में उस राजपाट को छोड़ना पड़ा, जिस पर उस समय की परंपराओं के अनुसार उनका एकाधिकार था। उसके बाद 14 साल वनवास झेलना पड़ा।

जंगल में उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया। पत्नी को छुड़ाने के लिए उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध एक भयानक युद्ध में उतरना पड़ा। उसके बाद जब वह पत्नी को ले कर अपने राज्य में वापस लौटे, तो उन्हें आलोचना सुनने को मिली। इस पर उन्हें अपनी पत्नी को जंगल में ले जा कर छोड़ना पड़ा, जो उस समय  मां बनने वाली थी। फिर उन्हें जाने-अनजाने अपने ही बच्चों के खिलाफ जंग लड़नी पड़ी। और अंत में वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी से हाथ धो बैठे।

श्रीराम का पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग श्रीराम की पूजा करते हैं।

भारतीय मानस में  श्रीराम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टता पूर्वक किया।

अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमा पूर्ण रखा। उस दौरान वे एक बार भी न तो क्रोधित हुए, न उन्होंने किसी को कोसा और न ही घबराए या उत्तेजित हुए। हर स्थिति को उन्होंने बहुत ही मर्यादित तरीके से संभाला। इसलिए जो लोग मुक्ति और गरिमा पूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें राम की शरण लेनी चाहिए।

श्रीराम में यह देख पाने की क्षमता थी कि जीवन में बाहरी परिस्थितियां कभी भी बिगड़ सकती हैं। यहां तक कि अपने जीवन में तमाम व्यवस्था के बावजूद बाहरी परिस्थितियां विरोधी हो सकती हैं। जैसे घर में सब कुछ ठीक – ठाक हो, पर अगर तूफान आ जाए तो वह आपसे आपका सब कुछ छीन कर ले जा सकता है।

अगर आप सोचते है कि ‘मेरे साथ ये सब नहीं होगा’ तो यह मूर्खता है। जीने का विवेकपूर्ण तरीका तो यही होगा कि आप सोचें, ‘अगर मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं इसे शिष्टता से ही निपटूंगा।’

लोगों ने श्रीराम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि उन्होंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा।
दरअसल, श्रीराम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं-मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए। बल्कि श्रीराम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्य पूर्वक बिना विचलित हुए किया जाए।

इस लिए सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना है, आपने क्या किया, आपके साथ क्या हुआ और क्या नहीं। असली चीज यह है कि जो भी हुआ, उसके साथ आपने खुद को कैसे संचालित किया। श्रीराम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वे हमेशा ऐसा कर नहीं सके। उन्होंने कठिन परिस्थतियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक बनने का यही सार है।

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बुधवार, 3 नवंबर 2021

सत्य सनातन

 

दो दिन पहले अमेरिका और युरोप ने हलोवीन मनायी । कई मिलियन टन कद्दू 🎃 बर्बाद कर दिए गए और कद्दू के अंदर लाइट्स भी लगायी गयीं । किसी ग्रेटा या अगीता का नॉर्थ पोल नहीं पिघला और किसी वोक वामपंथी ने उन बर्बाद होते कद्दू के समक्ष किसी भूखे की पेट नहीं दिखी ।

इसी हलोवीन पर करोड़ों लोगों ने ( युरोप और अमेरिका मिलाकर ) प्लास्टिक के डरावने कपड़े पहने और फेंक दिए पर उस करोड़ों टन प्लास्टिक की बर्बादी पर किसी ने चूँ नहीं करी , किसी ने लेक्चर नहीं दिया ।

अभी पाँच नबंवर को “ गाय फ़ॉक्स डे “ इंग्लैंड में मनाया जाएगा और आतिशबाजी होगी । कोई कम्पनी लेक्चर नहीं देगी । इंग्लैंड के हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास महत्वपूर्ण काम हैं वे भारत के मीलाटों के जैसे केवल अपने त्योहारों पर नहीं जगते ।

एक डेढ़ महीने में करोड़ों क्रिसमस ट्री बेचारे काट दिए जाएँगे । किसी को कोई अन्तर नहीं पड़ेगा ।

31 दिसंबर की रात हर देश के हर शहर में आधिकारिक आतिशबाजी होगी । न्यूज़ीलैंड से अमेरिका तक । किसी के कुत्ते को डर नहीं लगेगा ।

परन्तु जैसे ही सनातनी भारत में पर्व आएगा , और वह सनातनी भारत जो पृथिवि जल अग्नि वायु और अवकाश को पंचभूत और अपने शरीर को भी उन् पंचभूतों से बना हुआ मानता है उस अनादि परंपरा को अधकचरा ज्ञान देने आलिम पैदा हो जाएँगे ।

*सामुहिक रूप से , जो भी कंपनी और ब्रांड दीपावली पर नॉर्थ पोल पिघला रही हो और 31 दिसंबर को कोमा में चली जाती हो उसकी भरपूर उपेक्षा कर दें ।*
- अमेरिका प्रवासी राज शेखर जी तिवारी द्वारा लिखित ।
आप तो पूरे आनंद और हर्षोल्लास से पंचदिवसीय पर्व को उत्साह वाले वातावरण में मनाइए !! अशेष शुभकामनाएं !!

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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

शुभ धनतेरस

 

आज दिन है धन तेरस का. माता लक्ष्मी का. माता लक्ष्मी जो माता सरस्वती और माता पार्वती के साथ आदि शक्ति की तीन  देवियों में आती हैं.

वर्तमान  समाज के ढांचे में रहते हुवे धन यश के सामर्थ्य को मन ही मन स्वीकार करते हुवे हमें परहेज़ रहा है इसकी महत्ता को सार्वजनिक स्वीकार करने हेतु ।
   हमने कहानियाँ गढ़ ली कि लक्ष्मी और सरस्वती का सदैव बैर रहा है (देवियों का नहीं बल्कि पैसे और बुद्धि का). लक्ष्मी जी के  वाहन उल्लू को हमने बेवक़ूफ़ी का प्रतीक बना दिया. Group of  owls अंग्रेज़ी में संसद को कहते हैं, जबकि यहाँ किसी सांसद को उल्लू कह दो तो भड़क जाता है. भारत ही नहीं दुनिया की हर प्राचीन संस्कृति में उल्लू को बुद्धि मत्ता का प्रतीक  माना गया है. ग्रीक संस्कृति में उल्लू को एथेना देवी का प्रतीक माना गया, रात्रि के अंधेरे को चीरने वाली दृष्टि रखने वाले उल्लू माहाराज को माना गया कि उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त है और इसी रूप में इनकी पूजा की गई.
हमारी संस्कृति में भी उल्लू को बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना गया है, पर समय के साथ सोसलिस्ट विचार धारा में हमने सामान्य जीवन में उल्लू को बेवक़ूफ़ घोषित कर दिया, अर्थात जो लक्ष्मी के वाहक हैं, धन सम्पदा रखते हैं  वह उल्लू हैं, मूर्ख हैं.

वैसे मन ही मन हम सब उपासक लक्ष्मी माता के हैं. धन सम्पत्ति, यश, वैभव किसे नहीं पसंद है, सार्वजनिक स्वीकारें या ना स्वीकारें. बातों में हम भले ही विद्या की देवी की बात करें, धन ऐश्वर्य की देवी के वाहन को उल्लू घोषित करें, मन ही मन सब चाहते हैं लक्ष्मी देवी की कृपा रहे. छात्र जीवन में भी भारतीय जीवन में सरस्वती माता की मूर्ति मुझे किसी विद्यार्थी के कमरे में न दिखी. हाँ गणेश जी के साथ लक्ष्मी माता की मूर्ति अवश्य होती थी. सबका लक्ष्य माता सरस्वती की साधना , माता पार्वती की आराधना के बाद माता लक्ष्मी के आशीर्वाद को पाना ही होता है। आपने शायद हाल ही में देखा हो नासा में दो अमेरिकन भारतीय लड़कियों को स्कालर्शिप मिली उनके हॉस्टल की फ़ोटो में बड़ी सी सरस्वती माता की फ़ोटो थी तो भारत का सेक्युलरिज़म ख़तरे में आ गया था.

पार्वती माता प्रतीक रही हैं, ताक़त, पराक्रम और शिव की पत्नी के रूप में. समय के साथ उनकी उपासना शिव की पत्नी के रूप में सीमित होती जा रही है. जबकि देखा जाए तो पार्वती माता वह शक्ति थी जिन्होंने शृष्टि के संहारक शिव को भी बस में कर रखा था.

*न सरस्वती के बग़ैर लक्ष्मी सम्भव हैं और ना ही सरस्वती और लक्ष्मी के बिना पार्वती. बुद्धि, यश, वैभव, सम्पदा, पराक्रम और प्रेम यह सब एक ही शक्ति के विभिन्न पहलू हैं, एक के बग़ैर दूसरा सम्भव नहीं.*

माता सरस्वती आपको बुद्धि, माता पार्वती आपको पराक्रम और माता लक्ष्मी आपको वैभव प्रदान करें.

धन तेरस की अशेष शुभ कामनाएँ.

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सोमवार, 1 नवंबर 2021

प्यास

 

गर्मियों की एक दोपहर, प्यास से बेहाल एक लड़का, सड़क किनारे लगे एक नलके को देख कर, पानी पीने के लिए, नलके का हैण्डल चलाने लगा।
पर बहुत प्रयास करने पर भी पानी नहीं आया। हार कर, उस लड़के ने पास के ही एक घर से पानी माँगा।
उस घर से, एक आदमी एक लोटा पानी लेकर बाहर आया। लड़के ने पानी के लिए हाथ बढ़ाया, तो वह आदमी बोला- ठहरो बेटा! यह पानी तुम्हारे लिए नहीं है। यह तो इस नलके के लिए है। असल में मेरे पास अधिक पानी नहीं है, बस यही पानी बचा हुआ है। एक बार यह पानी नलके में डाल दूँ, फिर तुम्हें पानी पिलाऊँगा।
लड़के ने कहा- आप क्या बात कर रहे हैं? आप कहते हैं कि बस इतना ही पानी है। यदि यह भी नलके में डाल दिया जाएगा तो मैं पीऊँगा क्या?
आदमी बोला- चिंता मत करो! बस यह पानी नलके में डाल कर नलके का हैण्डल चलाने भर की देर है, फिर तो पानी ही पानी हो जाएगा। तब तुम कितना ही पानी पी लेना।
विचार करें! भूमि में पानी तो है, पर बहुत समय से उस नलके का उपयोग नहीं होने के कारण वह पानी ऊपर नहीं आ रहा है। अब नलके में ऊपर से जो पानी डाला जा रहा है, वह इस नलके का अपना पानी निकालने के लिए है।
यों प्यास तो उस डाले गए पानी से भी बुझ सकती थी, तो उसे ही क्यों न पी लिया? प्यास तो बुझ जाती। पर वह नलके में न जाता तो नलका वापसी में अनन्त पानी कैसे देता?
बस ऐसा ही ज्ञान के लिए भी समझना चाहिए। यह जो ज्ञान आपके भीतर डाला जा रहा है, वह यदि आप भीतर उतरने दें तो इससे आपका स्वयं का ज्ञान, आत्मिक ज्ञान जाग जाएगा, तब अज्ञान का सर्वथा नाश हो जाएगा।
पर पानी डालने मात्र से ही पानी नहीं आएगा, हैण्डल भी चलाना पड़ेगा। तो इस ज्ञान को बुद्धि तक सीमित मत रखना। नलके का हैण्डल भी चलाना, इस ज्ञान पर मनन भी करना, इसे भीतर उतार लेना।
जैसे पौधा बीज के भीतर ही प्रतीक्षारत रहता है और जरा सी अनुकूलता मिलते ही फूट पड़ता है। न केवल स्वयं टूटता है, चट्टान को भी तोड़ डालता है। छोटा सा बीज, पहाड़ को फाड़ कर, चीर कर, हरा कर, अंकुर के कोमल पत्ते बाहर निकाल देता है।
ऐसे ही आपके भीतर भी संपूर्ण ज्ञान का बीज प्रतीक्षारत है। उसे पाने के लिए अधिक कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस इस बाहर से मिल रहे ज्ञान को भीतर उतार कर, मनन करने से वह ज्ञान उपलब्ध हो जाता है। असंभव लगता है पर संभव हो जाता है।
ज्ञानी कहते हैं कि फिर आप कहीं भी खड़े रहना, न केवल आपकी प्यास बुझ जाएगी, जो आपके पास से गुजरेगा वह भी प्यासा न रहेगा।

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