शनिवार, 4 मार्च 2023

स्वर्ग कहाँ

 

एक झेन साधु था नान इन। उसके पास एक आदमी मिलने आया। वह बड़े क्रोध में था। घर में कुछ झगड़ा हो गया होगा। क्रोध में चला आया। आकर जोर से दरवाजा खोला। इतने जोर से कि दरवाजा दीवाल से टकराया। और क्रोध में ही जूते उतारकर रख दिए।

भीतर गया। नान इन को झुककर नमस्कार किया।
नान इन ने कहा कि,
"तेरा झुकना, तेरा नमस्कार स्वीकार नहीं है। तू पहले जाकर दरवाजे से क्षमा मांग। और जूते पर सिर रख; अपने जूते पर सिर रख और क्षमा मांग।'

उस आदमी ने कहा, "आप क्या बात कर रहे हैं! दरवाजे में कोई जान है, जो क्षमा मांगूं! जूते में कोई जान है, जो क्षमा मांगूं।"

नान इन ने कहा : जब इतना समझदार था, तो जूते पर क्रोध क्यों प्रगट किया? जूते में कोई जान है, जो क्रोध प्रगट करो! तो दरवाजे को इतने जोर से धक्का क्यों दिया? दरवाजा कोई तेरी पत्नी है? तू जा। जब क्रोध करने के लिए तूने जान मान ली दरवाजे में और जूते में, तो क्षमा मांगने में अब क्यों कंजूसी करता है?

उस आदमी को बात तो दिखायी पड़ गयी। वह गया, उसने दरवाजे से क्षमा मांगी। उसने जूते पर सिर रखा। और उस आदमी ने कहा कि इतनी शांति मुझे कभी नहीं मिली थी। जब मैंने अपने जूते पर सिर रखा, मुझे एक बात का दर्शन हुआ कि मामला तो मेरा ही है।

तुम दुःख के कारण नहीं देखते। दुःख के कारण, सदा तुम्हारे भीतर हैं। दुख बाहर से नहीं आता।
नर्क भी कहीं और नहीं है। नर्क तुम्हारे ही अचेतन मन में है। स्वर्ग कहीं आकाश में नहीं है। तुम अपने अचेतन मन को साफ कर लो कूड़े करकट से, वहीं स्वर्ग निर्मित हो जाता है। स्वर्ग और नर्क तुम्हारी ही भाव दशाएं हैं  🙏🙏

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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