सोमवार, 20 मार्च 2023

उर्मिला 19

 

उर्मिला 19

    भरत निकले अयोध्या से! हृदय में प्रेम था बस! कभी मन डर रहा था, राम क्या प्रण तोड़ सकते हैं? कभी मन कह रहा था, राम भक्तों की ही सुनते हैं।
    भरत के साथ थी पूरी अयोध्या! वे सारे लोग जिनका हृदय तो बस राम मय था। कौसल्या थीं, जिनके मुख पे अद्भुत शांति थी। राम को बस देख भर लेने की कोमल भावना थी, क्यों कि उनको ज्ञात था कि पांव पीछे खींचने वालों में नहीं है राम उनका!
     सुमित्रा थीं, जिन्होंने युगों पहले त्याग डाला था कभी अधिकार अपने। जिन्होंने भरे थे बच्चों में अपने भाइयों के प्रति समर्पण के ही सारे गुण! थी उनकी आंख में आशा की पतली जोत, कि उनके कुल का संकट दूर हो जाता तो जीवन धन्य होता।
     वहीं पर कैकई थीं। जिनके भाग्य में अब अश्रु थे, अपमान था, और थे तिरस्कृत दिन कि जो कटते नहीं थे। उन निरीह आंखों में भी था विश्वास, कि उनका राम उनसे रूष्ट तो हो ही नहीं सकता।
     उन्ही के संग निज गृह त्याग कर दौड़े चले थे लोग, जो अपने राम को उनकी अयोध्या सौंपने की जिद में थे। राम जी का नाम उनके मुख पे था। राम उनकी आंख में थे, हृदय में थे, धमनियों में रक्त बन कर दौड़ते से राम, कि सारी अयोध्या भाव में डूबी हुई थी। वे संसार के सबसे अनूठे लोग थे जी, थी वह संसार की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा...
     उन्ही के मध्य गुमसुम सर झुकाए चल रही थी वह, कि जिसका प्रेम था इस यात्रा के पार! परिवार की खातिर समय से जूझती सी उर्मिला, और धर्म की खातिर ही वन वन भटकता सा प्रेम उसका... सर उठाती थीं तो बस इस आश में कि देख लेंगे प्रेम को, भय झुका देता था सर कि प्रेम को यदि प्रेम की याद आ गयी तो धर्म की डोरी कहीं ना छूट जाए हाथ से... उर्मिला कब चाहती थीं कि लखन घर लौट आएं? उर्मिला बस चाहती थीं धर्म, पति का अमर होवे... कीर्ति उनकी धवल होवे... स्वयं की चिन्ता कहाँ थी उर्मिला को? उसे तो बस याद थे तो लक्ष्मण थे, और था तो कुलवधू का धर्म अपना... राम के युग में खड़ी वह मूक देवी ही हमारी उर्मिला थीं।
    एक संदेशा भरत ने भेज डाला था, कि मिथिला! धर्म पर्थ पर चल रहे हैं, आ सको तो संग आओ! और वह मिथिला थी भाई, राम खातिर दौड़ निकली। राह में जब भरत से राजा जनक की भेंट हो गयी, रो पड़े विदेह ने छाती लगा कर कहा कि हे संत! गर्व है मुझको, कि मेरे पुत्र हो तुम! तुम युगों की तपस्या की प्राप्ति हो, साधुता के ध्वज हो तुम, तुम अमर रघुवंश का सम्मान हो! राम वापस लौट आएं या न आएं, तुम सफल हो, तुम अमर हो...
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

_________🌱_________
*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
https://chat.whatsapp.com/H4lF9ksqjsfLHpBbVcmX3J
_________🌱__________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य