सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

अहंकार

 

सोमवारीय चिन्तन
ठिठुराती सर्दी में किसी काम वश, एक दम्पति घर आये… छोटी सी बातचीत के बाद मैैनें चाय के लिए पूछ लिया.. मौसम भी था।

मुझे लगा भाईसाहब ने नहीं, उनके अंहकार ने चाय के लिए मना किया.. बोले कि " 27 साल हो गये.. चाय के हाथ भी नहीं लगाया.. घर में कोई नहीं पीता..कोई व्यसन नहीं.. चाय, काॅफी,  गुटखा….

वे जोश में आ गये थे कि संसार का सर्वश्रेष्ठ व्यसन मुक्त व्यक्ति मैं ही हूं।

अंहकार इसी ताक में रहता है कोई पूछे और में जागूं.. चाय का नाम आते ही जाग गया।जबकि ये उनके लिए चाय से ज्यादा खतरनाक था।

त्याग भी.. जो अंहकार पैदा कर दे, वो नुकसानदायक है। ये हम अपने लिए करते है। दिखाने या बताने के लिए नहीं।

वो सज्जन विनम्रता से भी मना कर सकते थे कि आप लोगों का मन हो रहा है तो लिजिए .. मै बस गुनगुना पानी लूंगा। चाय मुझे दिक्कत करती है।

अंहकार डबलरोल में काम करता है। पाने में भी और त्यागने में भी । अहंकार सिर्फ वजह ढूंढता है। ना मिले तो बना लेता है।

अंहकार एक भ्रम है, इसे लोग पैदा करते है। देखो… कितना धनवान है, देखो, कितना गुणी है। देखो, कितना सुन्दर है.. देखो, कितने एवार्ड मिले है। देखो.. क्या रुतबा है। देखो..कितने खर्च करता है। देखो कितना नाम है …

चेतना बनी रहे तो ये बातें असर नहीं करती , लेकिन चेतना भी कितनी आत्माऔं में जिन्दा है आजकल ??

लोगों की जय जयकार, अंहकार का ईधन है.. ये रीढ की हड्डी को कड़क और सीने का विस्तार करती है।

एक और सज्जन है जिन्हौने अपने अंहकार को पोषित करने के लिए मुझसे पूछा कि आज तक आपके अचीवमेंट्स क्या है। ये पेन्टिग, आर्ट फार्ट सब ठीक है। लेकिन इससे मिला क्या अब तक.. ? कमाई क्या की ?

ये सवाल मेरे लिए नही था। मुझे क्या मिला,उनको इससे कोई लेना देना नहीं था, दरअसल उनको बताना ये था कि आपके हमउम्र होने के बाबजूद मेरे पास जो प्रॉपर्टी, पैसा है वो असल अचीवमेंट है।...

सज्जन ने सीना चौड़ा करके कहा कि.. जीवन में पैसा ही काम आता है  "अपन ने तो सब तैयारी कर रखी है.. बच्चों के शादी ब्याह.. मकान. दुकान.. सबकी....

मैने रूचि नही ली। वो सोच रहे थे कि मैं पूछूं.. कितनी तैयारी है.. और वो विस्तार से बताये, लेकिन मैने पूछा कि.. चाय पिऔगे अदरक वाली ??

जो प्राप्त है वो प्रर्याप्त है। ईश्वर ने जो आनन्द दिया है वो भी एक अचीवमेंट ही है। रोज का दिन अच्छा निकल रहा है। संकट में कभी घबराये नहीं। कभी कुुछ मिला भी तो इतराये नहीं। जीवन में दरी पर भी सोया हूं और फाईव स्टार होटल मेँ भी… कभी स्टेट्स नही डाला कि फीलिंग सेड. या हैप्पी विद….

फिक्र बैंक बेलेंस की नहीं है। बस सुख दुख का बैंलेस बना रहे।  मुझे भौतिक अर्थ की नहीं ,जीवन के अर्थ की तलाश है..
ये चेतना बनी रहे कि हे ईश्वर जो भी है और जितना भी है वो सब तेरा है।
सिर्फ एक मुसाफिर हूं मैं तो….

... मैं क्या, हम सब मुसाफिर है ,.. वो सज्जन भी… लेकिन वो मानते कहां है....  (Kgkadam)

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रविवार, 26 फ़रवरी 2023

सत्यवादिता

 

   पिछले कुछ दिनों से महाराजा श्रेणिक के बगीचे से रोज ही आम चोरी हो जा रहे थे। राजा श्रेणिक ने वह अद्धभुत  वृक्ष महारानी चेलना के लिए विशेषत: लगवाए थे जिनमे साल में हर समय आम पैदा होते थे। कड़ी नगर व्यवस्था व बगीचे  की पहरेदारी होते हुए अपने आप में यह आश्चर्यजनक था। जब कुछ दिनों बाद भी चोरी नहीं रुकी तो राजा ने यह घटना अपने मंत्री व पुत्र अभयकुमार को बताई और यथाशीघ्र चोर का पता लगाने का आदेश दिया।

    अभयकुमार रात्रि को भेष बदलकर निकला – सोचा उद्यान के पास वाली बस्ती में जाकर देखता हूँ शायद कुछ सुराग मिल जाए चोर का। वहाँ एक चोराहे पर कुछ लोग इकठ्ठे होकर आपस में व्यंग्य व कथा कहानी सुनाकर एक दुसरे का मनोरंजन कर रहे थे। अभयकुमार भी उन के बीच में जाकर बैठ गया।

सभी व्यक्ति अपनी बात कह चुके तब अपनी कुछ कहने की बारी आने पर अभयकुमार ने कहा

" –बसंतपुर नगर में एक कन्या रोज राजा के बगीचे से पूजा के लिए फूल तोड़़ कर ले जाती थी व एक दिन माली द्वारा पकड़़ ली गयी। माली के धमकाने पर वह गिड़गिड़ाई व बोली– *"मुझे जाने दो आगे से फूल नहीं तोडूंगी।"*

"माली उसके रूप को देखकर मोहित हो गया ! बोला – *"अगर तु मेरी इच्छा पूरी कर दे तो मै तुझे छोड़़ दूँगा।"*

"युवती सकपकाई व फिर साहस रखते हुए बोली – *"अभी मै कुंवारी हूँ, कामदेव की पूजा करने जा रही हूँ! तुम्हारे स्पर्श से अशुद्ध हो जाउंगी ! अभी मुझे जाने दो, वादा करती हूँ कि विवाह होते ही प्रथम रात्रि को तुमसे मिलने आउंगी।*

"अशुद्ध होने की बात माली के दिमाग में जम सी गयी। उसने कहा – *"अपना वचन याद रखना।"*

*हाँ हाँ –मै अपना वचन अवश्य याद रखूंगी।"* युवती ने तुरंत से बगैर सोचे समझे जबाब दिया।

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कुछ समय बाद युवती का विवाह विमल नाम के एक युवक से हो गया। विवाह की प्रथम रात्रि को युवती ने पति से कहा *"–प्राणनाथ ! मेरे सामने एक धर्म संकट उपस्थित हो गया है, आप ही बताएं मै क्या करूं ?"*
यह कहकर सारी घटना माली के साथ हुई थी वह पति को बता दी।

युवक यह सुनकर एकाएक सन्न रह गया ! फिर कुछ सोचते हुए कहा - *तुम ने सत्य कहकर मेरा मन जीत लिया है ! जाओ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता सिर्फ अपने सत्य पर अटल रहना* और सारी बात मुझे आकर सत्य बताना।

युवती घर से निकली–सोलह श्रृंगार में सजी धजी माली के द्वार की ओर चल दी। कुछ दूर चलने पर उसे दो चोर दिखाई पड़े –उन्होंने उसे कहा – *"जल्दी से अपने सारे आभूषण हमें उतार कर दे दो, हम पराई बहन बेटी को हाथ नहीं लगाते"*

मृत्यु के भय से उसने कहा – *मुझे अपने वचन का पालन करने इसी रूप में जाना है ! मै वापस आकर आपको आभूषण दे दूंगी, मेरी बात का विश्वास कीजिये।"*
चोरों ने एक नजर एक दुसरे को देखा, फिर कुछ सोचकर उसे जाने की अनुमति दे दी।

कुछ दूर जाने पर रास्ते में उसे एक दैत्य मिला – *"हे कोमलांगी मै कई दिन से भूखा हूँ ! आज तुम्हे खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।"*

युवती ने निर्भीकता से कहा *"–दैत्यराज ! मेरा ये शरीर आपके किसी काम जाये, मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी लेकिन अभी मै किसी के वचन में बंधीं हूँ। आप मुझे जाने दीजिए। बस यहीं कुछ देर का ही इन्तजार कीजिये, वापसी में आप मुझे खा लेना।"*

दैत्य ने भी सुन्दरी की बात का विश्वास करके उसे जाने दिया। सुन्दरी माली के घर पहुंची –प्रणाम किया व अपने दिये हुए वचन की याद दिलाई ! माली आश्चर्यचकित था ! उसने हाथ जोड़कर उसे नमस्कार किया और कहा – *"बहन ! आप तो देवी हैं , पूजा करने के योग्य हैं। मुझे क्षमा कीजिये।  मेरा अपराध अक्षम्य है पर मुझे विश्वास है कि आप जैसी देवी जरूर मुझे क्षमा करके मुझे प्रायश्चित का मौका जरूर देंगी।* ऐसे कहकर यथायोग्य उपहार देकर उसे बिदा कर दिया।

सुन्दरी निर्भीकता से चलते हुए दैत्य के पास पहुंची और कहा –
*"हे दैत्यराज ! आप मुझे खा कर अपनी भूख मिटाएं। दैत्य ने क्षण भर को सोचा और कहा जाओ मै तुम्हारे सत्य और वचनबद्धता पर कायम रहने से खुश हुआ। मै तुम्हारा भक्षण करके घोर पाप का भागी नहीं बन सकता।*

अगली बारी चोरों की थी ! युवती की सारी कहानी सुनकर चोरों का मन बदल गया ! उन्होंने कहा *"–जाओ! निर्भीक होकर अपने निवास स्थान पर जाओ। तुम जैसी सत्य पालन करने वाली स्त्री तो हमारी बहन के समान है।*

घर जाकर सुंदरी ने सारी घटना पति को यथास्थिति बता दी ! उसने खुश होकर कहा- *प्रिये! मुझे तुम्हारी सत्यवादिता पर विश्वास था। इसीलिए तुम्हे जाने दिया और तुम्हारी विजय हुई ।*

कहानी सुनाकर अभयकुमार एक क्षण को चुप हो गया –फिर बोला *"सज्जनो ! आप सब ज्ञानी हैं , बुद्धिमान हैं, आप लोगों ने कहानी बड़े ध्यान से सुनी। कृपया आप मुझ बताएं कि इन सब में श्रेष्ठ कौन ? सुंदरी, उसका पति, चोर, दैत्य अथवा वह माली ?"* ऐसा कहकर अभयकुमार चुप हो गया।

स्त्रियाँ तुरंत से बोल पड़ी – *सुंदरी का साहस ही सबसे बड़ा है, वही सर्वश्रेष्ठ है।*

वृद्ध बोले – *"नहीं ! दैत्य कई दिन का भूखा था! उसने अपने हाथ में आये हुए प्राणी को जाने दिया,वह तो मनुष्य भी नहीं, इसीलिए वही सर्वश्रेष्ठ है।"*

युवकों ने कहा – *"नहीं ! कदापि नहीं, कोई भी व्यक्ति अपनी नवविवाहिता पत्नी को पर पुरुष के पास जाने की अनुमति नहीं दे सकता। इसीलिए उस युवक का ही त्याग सर्वश्रेष्ठ है।"*

तभी एक व्यक्ति भीड़ में से खड़ा हुआ और बोला- *क्या उन चोरों का त्याग श्रेष्ठ नहीं है जिन्होंने हाथ में आये हुए कीमती आभूषणों को ऐसे ही छोड़ दिया ? मेरी नजर में तो वही सर्वश्रेष्ठ है।*

अभयकुमार तुरंत उस की बात सुनकर चौंक गया। समझ गया कि यहीं कुछ दाल में काला है  और उससे पूछताछ की तो उसने आमों की चोरी की बात कबुल कर ली।

अभयकुमार ने कहा – *"सच सच बताओ! तुमने ही बगीचे से आम चुराए हैं ?"*

सभी चकित थे कि यह व्यक्ति जो पूछताछ कर रहा है कौन है। अभयकुमार ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन राजदरबार में पेश किया।

वह व्यक्ति बोला – *"महामंत्री जी ! मै व्यवसाय से चोर नहीं हूँ। सच मानिए! मेरा नाम मातंग है! मैंने वह आम अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा पूर्ण करने के लिए ही चुराए थे। क्योंकि आम इस ऋतू में कहीं और उपलब्ध नहीं थे। मुझे क्षमा कर दीजिए"*

राजा ने हुक्म दिया– *"इसका अपराध अक्षम्य है! इसे मृत्यु दण्ड दिया जाए।"*

अभयकुमार ने सोचा – इसका अपराध तो अपराध है पर शायद मृत्यु दण्ड का अधिकारी तो यह नहीं ! कुछ पल सोचा और मातंग  से पूछा – *"एक बात बाताओ –उद्यान के चारों ओर ऊँची दीवार होने और दरवाजे पर इतना कडा पहरा होने के बावजूद तुमने ये आम चुराए कैसे ?"*

*"हुजूर! मैने आकर्षणी विद्या सीखी है! उसी विद्या का प्रयोग करके मैंने फलों की डाल को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और उस पर से आम तोड़ लिए।"* मातंग  ने सिर झुकाकर जबाब दिया।

अभयकुमार ने राजा को मुखातिब होते हुए कहा – *"राजन! मेरी सलाह है कि आप मातंग से यह दुर्लभ विद्या सीख लें। उसके बाद ही इसे दण्ड दिया जाए।"*

श्रेणिक को अभयकुमार की बात पसन्द आई। उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना प्रारंभ कर दिया। ओर मातंग एक आसन पर बैठ गया और राजा को मन्त्र पाठ सीखाने लगा। परन्तु राजा मन्त्र जाप बार - बार  भूल जाते।  उन्होंने मातंग से गुस्से में कहा – *"तुम मुझे ठीक से विद्या नहीं सिखा रहे हो।"*

अभय कुमार ने कहा – *मगधेश ! गुरु का स्थान शिष्य से हमेशा ऊँचा होता है ! शिष्य गुरु की विनय करके ही विद्या सीख सकता है!*

श्रेणिक अभय का इशारा समझ गये! उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं उसके सामने नीचे खड़े हो गये। अबकी बार जब मन्त्र जाप किया तो कुछ समय के उपरान्त उन्हें मन्त्र याद हो गया।

विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गये और उन्होंने कहा – *"तुमने हमें विद्या सिखाई है और इसीलिए अब आपका दर्जा गुरु का है, गुरु को इतने सामन्य से अपराध के लिए दण्ड नहीं दिया जा सकता।"*

उन्होंने मातंग को यथोचित सम्मान व धन दे कर बिदा कर दीया।

*विनय बिना विद्या नहीं मिलती विद्या के अभाव में आपको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती! जब तक आपको यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति न हो जाए, सच्चा सुख यानी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती! यदि महान बनना है तो विनयी बनें। झुकना सीखें। आप कितने गुणवान हैं, यह आपका झुका हुआ मस्तक बताएगा। वृक्ष जितना फलदार होता है, वह उतना ही झुकता है! उसे अपना परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ती! हंस जैसी दृष्टि बनाइए, ताकि गुण को ग्रहण कर सकें और जो बेकार है,उसे छोड़ सकें !*

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

उर्मिला 18

 

उर्मिला 18

     पिता का श्राद्ध सम्पन्न होते ही राजकुमार भरत ने सबको सूचना दे दी कि वे राम को वापस लाने के लिए वन जाएंगे।
     राजकुटुम्ब से जुड़े लोग जो भरत को जानते थे, उन्हें इसकी आशा थी। वे जानते थे कि भरत कभी भी राज्य स्वीकार नहीं करेंगे। पर वे सारे लोग यह भी जानते थे कि राम भी चौदह वर्ष से पूर्व वापस लौट कर नहीं आएंगे।
     परिवार की स्त्रियां भी जानती थीं कि न भरत राज्य स्वीकार करेंगे न राम! यह पारिवारिक सम्बन्धों में समर्पण की पराकाष्ठा थी। ऐसे में कोई भी कुछ कह नहीं पा रहा था, क्योंकि सभी जानते थे कि इस स्थिति में राह केवल राम और भरत ही निकाल सकते थे।
     अपनी अपनी मर्यादा पर अडिग दो राजकुमारों के मध्य छिड़ा यह स्नेह का द्वंद समग्र संसार के लिए आदर्श बनने वाला था।
      अयोध्या के राजसिंहासन के आगे भूमि पर बैठे भरत ने भरे दरबार में कहा, "मैं भइया को वापस बुलाने जाऊंगा। असँख्य युगों की यात्रा के बाद सभ्यता को रामराज्य मिलने का सौभाग्य बना है, इसमें यदि हमारे कारण विलम्ब हो तो हम समूची सभ्यता के अपराधी होंगे। हमें भइया को वापस लाना ही होगा..." भरत ने एक बार चारों ओर दृष्टि फेरी और माण्डवी की ओर देख कर रुक गए। कहा, " संसार के सबसे बड़े पाप के बोझ से दबा मैं अयोध्या का शापित राजकुमार किसी और से क्या ही निवेदन करूँ, पर आप मेरे साथ चलिये राजकुमारी! माथे पर लगा दाग तो जीवन भर दुख देता रहेगा, पर यदि भइया भाभी के चरणों में गिर कर उन्हें लौटा लाये तो शायद सर उठा कर जी सकें।"
       माण्डवी कुछ बोलतीं इसके पूर्व ही समस्त राजकुटुम्ब बोल पड़ा, "हम आपके साथ चलेंगे युवराज! यह केवल आपका तप नहीं, राम को पाने की यात्रा समूची अयोध्या को करनी होगी।" भरत ने सुना, सबसे तेज स्वर उनकी माता कैकई का था।
      कैकई आगे भी बोलती रहीं, "मैं अपने पति और दोनों बेटों की ही नहीं, इस देश इस सभ्यता की अपराधी हूँ। पर क्या राम की इस अभागन माँ को प्रायश्चित का भी अवसर नहीं मिलेगा? मैं जानती हूँ कि मैंने पति के साथ ही अपना पुत्र भी खो दिया है, पर मुझे अपने राम से अब भी आशा है। वो मेरे दुखों का निवारण अवश्य करेगा।" कुछ पल ठहर कर कैकई ने एक बार भरत की ओर देखा और शीश झुका कर कहा, " हमें साथ ले चलिये युवराज! मुझे प्रायश्चित का एक अवसर अवश्य मिले।"
     भरत कुछ न बोले। सर झुकाए बैठे भरत की आंखों में केवल अश्रु थे। उधर उर्मिला और श्रुतिकीर्ति ने कैकई के पास पहुँच कर जैसे उन्हें थाम लिया था।
     उस दिन संध्या होते होते समूचे नगर को ज्ञात हो गया कि भरत राम को वापस लाने वन को जाने वाले हैं। आमजन के विचार बदलते देर नहीं लगती। सज्जनता में बहुत शक्ति होती है, उसका एक निर्णय समूचे समाज की सोच बदल देता है। जो जन कल तक भरत को रामद्रोही समझ कर उनकी आलोचना कर रहे थे, अब वे भी भरत की जयजयकार करते राजमहल के द्वार पर खड़े हो कर साथ चलने की आज्ञा मांग रहे थे।
     भरत बाहर आये! प्रजा के सामने शीश झुकाया और कहा, "चलिये! मेरे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने को आतुर जन, आप मेरे लिए देवतुल्य हैं। चलिये, हम अपने प्रिय को वापस बुला कर उन्हें उनका अधिकार सौंप दें। यही मेरे इस शापित जीवन की एकमात्र उपलब्धि होगी..."
      प्रजा जयजयकार कर उठी। यह स्नेह की विजय थी।

क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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रविवार, 19 फ़रवरी 2023

तनावभरा गिलास

 

Tension का ग्लास –
ये कथानक आपकी सोच बदल सकती है  !!

एक दिन की बात है जब एक मनोवैज्ञानिक अध्यापक छात्रो को तनाव से निपटने के लिए उपाय बताता है। वह पानी का ग्लास उठाता है। सभी छात्र यह सोचते है की वह यह पूछेगा की ग्लास आधा खाली है या आधा भरा हुआ। लेकिन अध्यापक महोदय ने इसकी जगह एक दूसरा प्रश्न उनसे पूछा ”जो पानी से भरा हुआ ग्लास मैंने पकड़ा हुआ है यह कितना भारी है?”

छात्रो ने उत्तर देना शुरू किया। कुछ ने कहा थोड़ा सा तो कुछ ने कहा शायद आधा लिटर, कुछ ने कहा शायद 1 लिटर ।

अध्यापक ने कहा मेरे नजर मे इस ग्लास का कितना भार है यह मायने नहीं रखता। बल्कि यह मायने रखता है की इस ग्लास को कितनी देर मै पकड़े रखता हूँ। अगर मै इसे एक या दो मिनट पकड़े रखता हूँ तो यह हल्का लगेगा, अगर मै इसे एक घंटे पकड़े रखूँगा तो इसके भार से मेरे हाथ मे थोड़ा सा दर्द होगा, अगर मै इसे पूरे दिन पकड़ा रखूँगा तो मेरे हाथ एकदम सुन्न पड़ जाएँगे और पानी का यही ग्लास जो शुरुआत मे हल्का लग रहा था उसका भर इतना बाद जाएगा की अब ग्लास हाथ से छूटने लगेगा। तीनों ही दशाओ मे पानी के ग्लास का भार नहीं बदलेगा लेकिन जितना ज्यादा मै इसे पकड़े रखूँगा उतना ज्यादा मुझे इसके भारीपन का एहसास होता रहेगा।

मनोवैज्ञानिक अध्यापक ने आगे बच्चो से कहा ”आपके जीवन की चिंताए (tension) और तनाव(stress) काफी हद तक इस पानी के ग्लास की तरह है। इन्हे थोड़े समय के लिए सोचो तो कुछ नहीं होता, इन्हे थोड़े ज्यादा समय के लिए सोचो तो इससे इससे थोड़ा सरदर्द का एहसास होना शुरू हो जाएगा, इन्हे पूरा दिन सोचोगे तो आपका दिमाग सुन्न और गतिहीन पड़ जाएगा ”

कोई भी घटना या परिणाम हमारे हाथों मे नहीं है लेकिन हम उसे किस तरह हैंडल करते है ये सब हमारे हाथों में ही है। बस जरूरत है इस बात को सही से समझने की।

आप अपनी चिंताए (tension) छोड़ दे, जितनी देर आप tension अपने पास रखोगे उतना ही इसके भार का एहसास बढ़ता जाएगा। यही चिंता बाद मे तनाव का कारण बन जाएगी और नयी परेशानिया पैदा हो जाएंगी।

सुबह से शाम तक काम करने पर इंसान उतना नहीं थकता जितना चिंता करने से पल भर मे थक जाता है – स्वामी विवेकानंद

अंत मे हमेशा एक बात याद रखें

चिंता (tension) और तनाव (stress) उन पक्षियो की तरह है जिन्हे आप अपने आसपास उड़ने से नहीं रोक सकते लेकिन उन्हे अपने मन में घोंसला बनाने से तो रोक ही सकते है । आज से ही उन्हें घर से उड़ाने को मचलिये, उड़ाते रहिये । घोंसले की तो सोच ही न पनप पाए ।।

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शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

उर्मिला 17

 

उर्मिला 17

      महाराज दशरथ का संस्कार कर वापस लौटे भरत शत्रुघ्न महारानी कौसल्या के कक्ष में निढाल पड़े थे। दुख के क्षणों ने उस पीड़ित परिवार को आपस में बांध दिया था। दो माताएं, तीनों वधुएं और दोनों राजकुमार, परिवार पर आई इस भीषण विपत्ति में शोक संतप्त पड़े थे।
      शोक के ज्वार को धीरे धीरे उतर ही जाना होता है। हर दुख को भूल कर भविष्य की ओर निहारना ही मनुष्य की नियति होती है। भरत समझ गए थे कि इस शोकाकुल परिवार की डोर अब उन्हें ही थामनी होगी, सो उन्होंने अपनी आंखें पोंछ ली थी।
      छोटे शत्रुघ्न के माथे पर प्रेम से हाथ फेरकर भरत ने कहा, " मंथरा को लात नहीं मारनी चाहिये थी, उससे क्षमा मांग लेना अनुज! उस बेचारी का क्या ही दोष... हमारा समय ही विपरीत चल रहा है।
      शत्रुघ्न ने शीश झुका कर कहा, "मुझसे अपराध तो हुआ ही है भइया! पर अब दुख हो रहा है। छोटी माँ पर बड़ा क्रोध आया था।  पर उन्हें तो कुछ कह नहीं सकता था, सो उनकी सबसे प्रिय सखी को ही दंडित कर के उन्हें दुख देने की सोच ली। मनुष्य अपनी चोट भूल भी जाय, पर अपने प्रिय की चोट नहीं भूल पाता। उस लात की चोट उससे अधिक माँ को लगी होगी। तब क्रोध में थे तो लग रहा था कि माँ को चोट दे कर ठीक किया, अब वही बात दुख भी दे रही है। फिर भी, उन्हें दण्ड तो मिलना ही था। सारे षड्यंत्र की जड़ आखिर वही तो थी..."
     "उन्हें इससे बड़ा दण्ड और क्या मिलेगा बबुआ जो उन्होंने स्वयं ले लिया है। अपने ही पति की मृत्यु का कारण होना क्या स्वयं में ही बहुत बड़ा दण्ड नहीं है? आज जब समस्त कुल एक कक्ष में एकत्र है, तब वे तिरस्कृत हो कर कहीं एकांत में पड़ी अश्रु बहा रही हैं, यह कोई छोटा दण्ड है? उन्होंने पहले अपना पति खोया, और अब पुत्र भी विमुख हो गए। इसके बाद भी किसी को उनपर दया नहीं आती और कोई उनतक अपनी सम्वेदना ले कर नहीं जाता, क्या यह छोटा दण्ड है बबुआ? जाने पूर्वजों के कौन से अपराध थे जो नियति ने समस्त राजकुल को दंडित किया है, अब आप सब भी किसी को दंडित करने की न सोचें। अब इस कुल को प्रेम और आदर्शों की डोर से बांधने का समय है, आप सब वही करें तो उचित होगा।" आंखों में जल लिए जो इतना बोल गयी, वह उर्मिला थी।
      भरत मुड़े उर्मिला की ओर और हाथ जोड़ कर कहा, "मेरी पीड़ा शायद तुम समझ सको उर्मिला! मैं भइया का अपराधी हूँ, और मेरा प्रायश्चित यही है कि जबतक भइया वापस आ कर अयोध्या का राज न सम्भाल लें, तबतक मैं माता की ओर दृष्टि न फेरूं... माण्डवी के हिस्से भी यही दण्ड आएगा। पर तुम उर्मिला..." भरत इससे आगे कुछ न कह सके, उनका गला रुन्ध गया था।
      राम का वह प्रिय अनुज जिसे वे स्वयं महात्मा कहते थे, उसके हृदय में समूचे संसार के लिए केवल और केवल प्रेम ही था। आज परिस्थितियां उसी महात्मा भरत की सबसे कठिन परीक्षा ले रही थीं।
      उर्मिला ही क्यों, सभी समझ रहे थे उनकी पीड़ा। भरत और माण्डवी को छोड़ कर अन्य सभी उठे और कैकई के कक्ष में पहुँचे। भरत के तिरस्कार ने कैकई के सर पर चढ़े षड्यंत्रों के बेताल को कब का उतार दिया था। या शायद अपनी योजना में उनसे आवश्यक सहयोग लेने के बाद समय ने अब मुक्त कर दिया था उन्हें। कैकई के पास अब सिवाय आत्मग्लानि के और कुछ नहीं था।
       उसी समय माता कौसल्या ने उन्हें अंक में भर कर कहा, " सत्ता के नियमो से बंधे राजकुमारों का निर्णय जो भी हो, पर हममें से कोई भी तुमसे रूष्ट नहीं है बहन! सबने तुम्हे क्षमा कर दिया है।
      कैकई ने आँख उठा कर चारों ओर देखा, सबलोग थे बस माण्डवी और भरत नहीं थे। वे कुछ न बोल सकीं।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )
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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

प्रेम की बात

 

प्रासंगिक तो है ...
पता नहीं क्यों मुझे 'प्रेम' शब्द सुनते ही सबसे पहले कृष्ण याद आते हैं।
     वे कृष्ण, जो एक बार गोकुल छोड़ते हैं तो कभी मुड़ कर नहीं देखते भी गोकुल की ओर... न यमुना, न बृंदाबन, न कदम्ब, न राधा, कोई उन्हें दुबारा खींच नहीं पाता! मथुरा-गोकुल से अधिक दूर नहीं है हस्तिनापुर, कृष्ण सौ बार हस्तिनापुर गए पर गोकुल नहीं गए। क्यों?
    
     मुझे लगता है यदि कृष्ण दुबारा एक बार भी गोकुल चले गए होते तो उनके प्रेम की वह ऊंचाई नहीं रह जाती, जो है।   प्रेम देह की विषयवस्तु नहीं, आत्मा का शृंगार है। प्रेम जिस क्षण देह का विषय हो जाय, उसी क्षण पराजित हो जाता है।   कृष्ण का प्रेम आत्मा का प्रेम था। वे कभी राधिका के साथ नहीं रहे। कृष्ण का स्मरण कर राधिका रोती रहीं, राधिका का स्मरण कर कृष्ण मुस्कुराते रहे। दोनों देह से दूर रहे, पर दोनों की आत्मा साथ रही। तभी कृष्ण का प्रेम कभी पराजित नहीं हुआ। वे जगत के एकमात्र प्रेमी हैं जिनका प्रेम अपराजित रहा...
     यह भी कितना अजीब है कि कृष्ण का स्मरण कर राधिका रोती रहीं, और राधिका का स्मरण कर कृष्ण मुस्कुराते रहे। वस्तुतः दोनों अपनी मर्यादा ही निभा रहे थे। पुरुष रो नहीं पाता। वह मर्मांतक पीड़ा भी मुस्कुरा कर सहता है। पुरुष होने का भाव पुरुष को अंदर ही अंदर मार देता है, फिर भी वह अपनी पीड़ा किसी को नहीं बता पाता। कृष्ण तो पूर्ण पुरुष के दावे के साथ आये थे, कैसे रोते?
     रोये थे मेरे राम! पिता के लिए रोये, माता के लिए रोये, भाई के लिए रोये, पत्नी के लिए रोये, मित्र के लिए रोये, मातृभूमि तक के लिए रोये...
     लोगों को लगता है कि कृष्ण कोमल थे, और राम कठोर। मुझे लगता है राम कोमल थे, कृष्ण कठोर... राम ने सबको क्षमा कर दिया। चौदह वर्ष की कठोर पीड़ा देने वाली मंथरा तक को कुछ नहीं किया, कैकई के प्रति तनिक भी कठोर नहीं हुए, पर कृष्ण ने किसी को क्षमा नहीं किया। दुर्योधन कर्ण तो छोड़िये, अपने सबसे प्रिय मित्र अर्जुन तक को क्षमा नहीं किया। पत्नी का अपमान देखने का पाप किया अर्जुन ने, तो उन्ही के हाथों उनके कुल का नाश कराया।
     राम क्षमा करना सिखाते हैं, और कृष्ण दण्ड देना। जीवन के लिए यह दोनों कार्य अत्यंत आवश्यक हैं।
     लोग पूछते हैं कि आखिर क्या कारण है कि विश्व की सारी सभ्यताएँ नष्ट हो गईं, पर भारत अभी भी स्वस्थ है। मेरा यही उत्तर होता है कि भारत ने राम और कृष्ण दोनों को पूजा है, इसी कारण दीर्घायु है।
      हाँ तो बात प्रेम की! या कहें तो बात कृष्ण की... कहते हैं, कृष्ण ने उद्धव को गोकुल भेजा था गोपियों को ज्ञान सिखाने के लिए... क्या सचमुच? शायद नहीं! कृष्ण ने उद्धव को भेजा था ताकि उद्धव जब वापस लौटें तो उनसे गोकुल की कथा सुन कर एक बार फिर वे गोकुल को जी सकें... जो आनंद अपने प्रिय के बारे में किसी और के मुख से अच्छा सुनने में मिलता है, उसे याद करते रहने में मिलता है, वह आनंद तो प्रिय से मिलने में भी नहीं मिलता। है न?
     कृष्ण ने विश्व को सिखाया कि प्रेम को जीया कैसे जाता है... कृष्ण अभी युगों तक प्रेम सिखाते रहेंगे।
      मुझे लगता है जब-जब राधा कृष्ण की कथा लिखी गयी है, तो केवल राधा की ओर से लिखा गया है। राधा का वियोग, राधा का समर्पण, राधा के अश्रु... किसी ने कृष्ण को नहीं लिखा। कृष्ण भले गोकुल नहीं गए, पर जीवन भर उसी गोकुल के इर्द-गिर्द घूमते रहे। हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, कुरुक्षेत्र... नहीं तो कहाँ द्वारिका, कहाँ इंद्रप्रस्थ...
  - सर्वेश जी श्रीमुख की लेखनी ही है, तभी तो इतनी सुंदर - मनोहर  है न !!

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सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

चिन्तन की धारा

 

सोमवारीय चिन्तन

यह अद्भुत देश जो प्रकाश के पुंज से घिरा हुआ है इसका नाम  "भारत"  है। ईश्वर की सृष्टि रचना की तरह यह देश विविधता में एकता का दुनिया में अकेला अनूठा संगम है। जहां हर पांच कोस पर पानी , भाषा और रहन सहन के तौर तरीके बदल जाते हैं। कुछ रह जाता है तो सबमें प्रेम , देश, समाज और प्राणी मात्र के प्रति। वर्तमान में काल परिवर्तन के कारण कुछ बदलाव आया ज़रूर है। ऐसे समाज को शब्दों और उनके अर्थ को लेकर तोड़ने का प्रयास करने वालों को आप क्या उपमा देंगे । सब व्यक्ति विशेष पर निर्भर करेगा।
  "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी " वाले तर्ज पर...लेकिन इसी बहाने........ कुछ चर्चा शब्दों और उनके अर्थों पर निशीथ जोशी जी ने की है । ऐसे लोगों की  जागरूकता के लिए,  जो राजनीतिक और निज स्वार्थ की पूर्ति लिए समाज और राष्ट्र को विखंडित करना चाहते हैं । करोड़ों करोड़ भारतवासियों के हृदय में, सांस में, रक्त में हर धड़कन में रचने बसने बहने वाले राम चरित मानस जैसे ग्रंथ पर टिप्पणी करके। उसको जला कर....
1. राजस्थान में बेटी, बहू, महिला को बाई जी कहना सम्मान देना माना जाता है। जैसे नर्स बाई.. क्या उत्तर प्रदेश  या देश के अन्य हिस्सों में किसी महिला के लिए इस शब्द का प्रयोग करने की हिम्मत है किसी में।
2. हम बचपन में इलाहाबाद जो वर्तमान का प्रयागराज है में, बातचीत के दौरान किसी को " लौंडा" कह कर बुला लेते थे क्या बिहार में किसी को इस शब्द से बुला सकते हैं।
3. आप देश के तमाम हिस्सों में छोले भटूरे खाते हैं। छोला मांग लेते हैं..पंजाब में छोले मांगने पड़ेंगे। यदि छोला कहा तो कहने वाले का "छोला" तोड़ दिया
जाएगा।
4..उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में किसी महिला से खाने को "कढ़ी " मत मांग लेना, मार मार कर गंजा कर दिया जायेगा। वहां झोली..भात ( हमारे क्षेत्र का कढ़ी  चावल)  कहा जाता है।
5.. कुमाऊं में किसी बच्चे को "छोरा" या "छोरी" कह दो पीट कर कर सुजा दिया जायेगा। जबकि राजस्थान में लड़कों को छोरा लड़कियों को छोरी कहना आम बात है।
6." भेल पूरी " महाराष्ट्र से निकल कर पूरे देश में छा गई है। कुमाऊं में भेल का अर्थ है "चूतड"..     तो क्या खा रहे हैं आप सब बड़े शौक से
7. गुजरात में सहज ही व्यंग्य में "गांडा" कह देते हैं यानी पागल , पर राजस्थान में कह नहीं सकते । गुजरात में तो लोग नाम भी रखते हैं - गांडा काका
यह तो कुछ उदाहरण है। तमाम उन मित्रों के लिए जो राम चरित मानस में एक चौपाई को लेकर सोशल मीडिया और मीडिया में तलवारें भांज रहे थे और आज भी जारी हैं। और बहुत से शब्द हैं जो अर्थ का अनर्थ कर देते हैं क्षेत्र विशेष के परिवर्तन पर...तो इस विविधता को बने रहने दें। मुगल आए , ब्रितानी आए, मंगोल आए, पुर्तगाली, जाने कितने अक्रांता आए, या तो सब चले गए या इसी समाज में मर खप गए लेकिन कोई भी इसकी विविधता को तोड़ नहीं पाया तो क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए बिहार के मंत्री चंद्र शेखर और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ उनके आका और समर्थक क्या तोड़ पाएंगे। यह समाज और राष्ट्र आपको उसी स्थान पर पहुंचा देंगे जहां पहले तमाम ऐसा प्रयास करने वाले पहुंच चुके हैं गुमनामी और अंधकार के गर्त में।  इसीलिए यह आभा में रत भारत कहलाता है....

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रविवार, 12 फ़रवरी 2023

उर्मिला 16

 उर्मिला 16


      महाराज दशरथ के मृत शरीर को सुगंधित औषधीय द्रव में रख दिया गया था। उनका अंतिम संस्कार ननिहाल गए भरत शत्रुध्न के आने के बाद ही सम्भव था। उन्हें दूत के द्वारा शीघ्र आने का संदेश भेज दिया गया था।

      भारतीय परम्परा में व्यक्ति की मृत देह का दाह संस्कार करना पुत्र का दायित्व है। मनुष्य जिस पुत्र को अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करता है, मृत्यु होते ही वही पुत्र उसके शरीर को अग्नि को सौंप देता है। शायद इसलिए कि अपनी संतान के प्रति उपजने वाले अति मोह को व्यक्ति कम कर सके। पर मोह में घिरा व्यक्ति जीवन भर इस परम्परा को देखते रहने के बाद भी अपने मोह को त्याग नहीं पाता।

       अयोध्या के राजकुल का सूर्य अस्त हो गया था, अब हर ओर पीड़ा थी, अश्रु थे, और था भय! नियति के हाथ का खिलौना बनी कैकई नहीं देख पा रही थीं, पर उनके अतिरिक्त हर व्यक्ति जानता था कि राज्य में मचे इस घमासान से सबसे अधिक दुख भरत को होगा। सभी यह सोच कर भयभीत थे कि भरत के आने पर क्या होगा?

       धराधाम से जब कोई प्रभावशाली सज्जन व्यक्ति प्रस्थान करता है तो कुछ दिनों तक वहाँ के वातावरण में शोक पसरा रहता है। समूची प्रकृति ही उदास सी दिखने लगती है। भरत का रथ जब अयोध्या की सीमा में प्रवेश किया तभी उन्हें अशुभ का आभाष होने लगा। रथ जब अयोध्या नगर में आया तो उन्हें स्पष्ट ज्ञात हो गया कि कुल में कुछ बहुत बुरा घट गया है। और रथ जब राजमहल के प्रांगण में घुसा तो महल के ऊपर राष्ट्रध्वज की अनुपस्थिति सहज ही बता गयी कि महाराज नहीं रहे।

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पिता की अनुपस्थिति में बड़ा भाई पिता के समान हो जाता है। छोटे भाई उसी के कंधे पर सर रख कर रो लेते हैं, उसी से लिपट कर अपना दुख बांट लेते हैं। "पिता नहीं रहे" इस बात का आभाष होते ही भरत और शत्रुघ्न को जिसकी सबसे पहले याद आयी, वे श्रीराम थे। विह्वल हो कर रथ से कूद घर की ओर दौड़ते दोनों युवकों के मुख से एक साथ निकला- भइया...

      कैकई को भरत शत्रुघ्न के आने की सूचना मिल गयी थी। वे पहले से ही भरत की आगवानी को खड़ी थीं। घर में प्रवेश करते ही भरत ने माता को देखा तो रोते हुए लिपट गए। बिलख कर कहा, "यह कैसे हो गया माँ? पिताश्री तो पूर्ण स्वस्थ थे। फिर एकाएक...?"

      कैकई देर तक भरत को गले लगाए रहीं। कुछ देर बाद जब भरत शांत हुए तो कहा, "इस अशुभ में भी तुम्हारा शुभ छिपा है पुत्र! महाराज द्वारा छीने जा रहे तुम्हारे अधिकार को मैंने अपनी योजना से वापस ले लिया है। अब तुम अयोध्या के होने वाले महाराज हो। शोक न करो पुत्र! अब पिता का संस्कार करो और राज्य संभालो।"

    "क्या? मेरा कौन सा अधिकार माँ? भइया राम के चरणों में रह कर इस राज्य की सेवा करने को ही अपना अधिकार और कर्तव्य दोनों माना है मैंने। फिर मैं अयोध्या का राजा?? क्या भइया भी...? हे ईश्वर! क्या अनर्थ हुआ है यहाँ..." भरत तड़प कर भूमि पर गिर गए।

     कैकई ने कठोर शब्द में कहा, "व्यर्थ प्रलाप न करो भरत! राम को कुछ नहीं हुआ। उन्हें महाराज ने चौदह वर्ष का वनवास दिया है, और तुम्हें अयोध्या का राज्य..."

     भरत एकटक निहारते रह गए कैकई को, जैसे उनकी वाणी चली गयी हो। कैकई ने प्रसन्न भाव से अपनी समूची योजना और महल में घटी घटनाओं को विस्तार से बताया। भरत कुछ नहीं बोल रहे थे, बस उनकी आंखें लगातार बरस रही थीं।

     कैकई जब सब कह चुकीं तब भरत की तन्द्रा टूटी। कुछ पल तक माता का चेहरा निहारते रहने के बाद बोले- "रे नीच! अभागन! इतना बड़ा पाप करने के बाद भी जी रही है, तुझे अपने जीवन पर लज्जा नहीं आती? मुझ निर्दोष को समस्त संसार के लिए अछूत बना देने वाली दुष्टा! जी करता है तेरा गला दबा कर मार दूँ तुम्हें..." रोते भरत के दोनों हाथ कैकई के गले तक पहुँचते, तबतक किसी ने उनके दोनों हाथों को थाम लिया।

     भरत ने देखा, वह माण्डवी थीं। रोती जनकसुता ने कहा, "इस राजकुल में पाप की सीमाएं आपके आने के पूर्व ही लांघी जा चुकी हैं आर्य! आप इसे और आगे न बढ़ाएं... वे जैसी भी हों, आपकी माँ हैं।

      क्रोधित भरत ने कहा, "आप हट जाइये राजकुमारी! इस नीच का पुत्र होना ही मेरे जीवन का एकमात्र अपराध है। इसे मारकर ही मैं अपने अपराध का प्रायश्चित करूंगा।"

     "रुकिये! हम दोनों ही भइया के अपराधी हैं, और हमारा प्रायश्चित भी उन्ही के चरणों में पहुँच कर होगा। पर वे इस षड्यंत्र के लिए हमें क्षमा कर भी दें, तो माँ पर हाथ उठाने के अपराध को क्षमा नहीं करेंगे। रुक जाइये!

      इतने देर में कोलाहल सुन कर उर्मिला और श्रुतिकीर्ति भी वहाँ आ गयी थीं। भरत ने देखा, तीनों जनक कन्याएं हाथ जोड़े रोती हुई उनसे मूक याचना कर रही हैं। वे जहाँ थे, वहीं बैठ गए।

----क्रमशः

(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

स्वास्थ्य पर बात

स्वास्थ्य चर्चा --
*रोजाना ये 3 चीजें खाएं,  घुटनों की ग्रीस को अल्पसमय में ही बढ़ाए*

*उम्र बढ़ने के साथ-साथ घुटनों की ग्रीस कम होने लगती है। लेकिन आजकल कम उम्र की महिलाओं को भी इस समस्‍या से जूझना पड़ता है। अगर किसी के घुटनों की ग्रीस खत्म हो चुकी हो और उनका चलना, उठना और सीढ़ी चढ़ना मुश्किल हो गया हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍हें रेगुलर खाने से आप अपने घुटनों की ग्रीस को आसानी से बढ़ा सकती हैं। तो चलिए किस बात की आइए ऐसी ही 3 चीजों के बारे में जानें। लेकिन सबसे पहले ये जान लें कि आखिर घुटनों में ग्रीस कम होने का असली कारण क्‍या है?*

*घुटनों की ग्रीस कम होने के कारण*

1    रात को जागने की आदत
2    अधिक चिंता करना
3    गिरने से चोट लगना
4    अधिक वजन होना
5    कब्ज रहना
6    खाना जल्दी-जल्दी खाने की आदत
7    फास्ट-फूड का अधिक सेवन
8    तली हुई चीजें बहुत ज्‍यादा खाना
9    कम मात्रा में पानी पीना या खड़े होकर पानी पीना
10    बॉडी में कैल्शियम की कमी 

*अखरोट*
घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट काफी फायदेमंद होता है। आप हर रोज दो अखरोट का सेवन जरूर कीजिये। ऐसा करने से घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि अखरोट में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ई, बी-6, कैल्शियम और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा अखरोट में एंटी-ऑक्‍सीडेंट के साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह एक प्रकार का फैट है जो सूजन को कम करने में हेल्‍प करता है।

*हरसिंगार के पत्‍ते*
हरसिंगार जिसे पारिजात और नाइट जैस्मिन भी कहते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पौधे आपको अपने घर के आस-पास भी देखने को मिल जाएंगे। इस पेड़ के पत्‍ते जोड़ों के दर्द को दूर करने और घुटनों की ग्रीस बढ़ाने में मददगार होते हैं। इसके पत्तों में टेनिक एसिड, मैथिल सिलसिलेट और ग्लूकोसाइड होता है ये द्रव्य औषधीय गुणों से भरपूर हैं। घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए हरसिंगार के 3 पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को 1 बड़े गिलास पानी में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी आधा से भी आधा रह जाये तब इसे छानकर हल्‍का ठंडा करके पियें। इस काढ़े का सेवन सुबह खाली पेट करें। 

*नारियल पानी*
खाली पेट नारियल का पानी पीने से भी घुटनों में लचीलापन आता है। एक महीना इस उपाय को करके देखें। आपको बहुत फायदा मिलेगा! जरूरी विटामिन और मिनरल के अलावा यह मैग्नीज जैसे तत्वों से भरपूर है। सूखने के दौरान इसमें नेचुरल ऑयल बनने लगता है जो हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करता है।

*अगर आपके घुटनों में भी ग्रीस की प्रॉब्लम है और चलते समय आपको दर्द होता है। तो आज से ही इन चीजों का सेवन करना शुरू कर दीजिये। यकीन मानिये ये उपाय आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है।*

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सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

शूद्र कौन

 

सोमवारीय चिन्तन ...
शूद्र !  तुम श्रेष्ठ  हो !
आज मैंने विष्णुपुराण निकाला ! उसके छटे अंश के दूसरे अध्याय में पराशर ऋषि ने वेदव्यास के  जीवन के इस प्रसंग का उल्लेख किया है ! मुनियों के मन में प्रश्न घुमड़ रहा था - कलियुग के धर्म का ! उस प्रश्न के समाधान के लिए वे मुनि वेदव्यास के पास आये ! वेदव्यास उस समय गंगा-स्नान कर रहे थे !  यह देख कर वे मुनिजन एक वृक्ष के नीचे बैठ कर   उनकी प्रतीक्षा करने लगे !
वेदव्यास ने एक डुबकी ली और उठे , कहा - शूद्रस्साधु: कलिस्साधुरित्येवं शृण्वतां वच: ! फिर से डुबकी ली और बोले - साधु साध्विति चोत्थाय शूद्र धन्योsसि चाब्रवीत्‌ !  वेदव्यास ने  फिर से डुबकी ली  और फिर कहा - योषित: साधु धन्यास्तास्ताभ्यो धन्यतरोsस्ति क: !
स्त्रियाँ धन्य हैं , उनसे अधिक धन्य कौन हैं ? इस प्रकार व्यास ने कलियुग की श्रेष्ठता , शूद्र की श्रेष्ठता तथा स्त्रियों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया  है !महर्षि व्यास जोर-जोर से  ताली बजा-बजाकर  शूद्रों और स्त्रियों की जय बोल रहे हैं ! कलियुग महान है , शूद्र महान हैं और स्त्री महान हैं !

भारत के चिन्तन में समष्टि की दृष्टि  कितनी गहरी है ! सब के लिए सब जी रहे हैं . लोकमें सब हैं,लोक सबका आश्रय है,विभिन्न जाति,बिरादरी,वर्ण,वर्ग,पंथ लोक में जन्म लेते हैं,लोक में ही समा जाते हैं  ।हजारों साल पहले हमारे देश की लोकमेधा ने विराटपुरुष की संकल्पना की थी , जो सहस्रशीर्ष ,सहस्रनेत्र ,सहस्रबाहु,और सहस्रपात है। उसमें कोटि-कोटि युगों का अन्तर्भाव है! विभिन्न जाति, वर्ग, वर्ण, धर्म उसके हाथ,पैर, नाक, कान, आंख, पेट, पीठ इत्यादि अंग हैं परन्तु वे सभी अंग अविच्छिन्न हैं तथा एक-दूसरे के लिये हैं । वे भिन्न हैं ही नहीं !वे सब के लिये सब हैं।इस सब के बीच जो नाम-रूप का भेद ,सीमा और असमानता है, वह दीखती तो है किन्तु वह तात्विक नहीं है! उसकी एकात्मसत्ता ही लोकसत्ता है !सर्वजन- सत्ता, सामान्यजनसत्ता, समष्टिजनसत्ता ! जीवन की अविच्छिन्नता !आज की भाषा  में कहें तो यह समष्टि सत्ता है । इस संकल्पना का मूलतत्व आधारभूत एकता है । समष्टिजन चेतना,सामान्यजनचेतना     लोकचेतना है । विविधता में एकता की अदम्य खोज ।निरन्तरता ! लेकिन संस्कृति की कुत्सित व्याख्या करने वाले "अभिधार्थ" पर अटक जाते हैं कि पैर से जन्म लिया अथवा मुख से जन्म लिया ?  अरे , जन्म तो वहीं से हुआ , जहाँ से होता है , लेकिन उस मूढ़मति  को  क्या कहा जाय , जो रूपक की व्यंजना नहीं  समझ सकते  या समझना नहीं चाहते  ।
पश्चिम का मानववाद   मनुष्य को आधारभूत इकाई मान कर चला है ,जबकि  भारत का दर्शन  जीवात्मा  [प्राणिमात्र ] को  आधारभूत इकाई मान कर चलता है । अद्वैत-दर्शन है , एक ही ब्रह्म है , एक ही परमात्मा है । जब दूसरा कोई है ही नहीं तब पराया कौन हो सकता है ?   नानकदेव का उद्घोष है -कुदरत के सब बन्दे । एक नूर से सब जग उपजा कौन भले  को मन्दे ।

भारत के चिन्तन पर विचार करें , जीवन- दर्शन को देखें - दलित और शास्त्रचिंतन घी-बूरे की तरह व्याप्त है।भारतीयसंस्कृति के महान व्याख्याता नारद हैं ,वे दासीपुत्र हैं । भागवत में नारद ने अपने पूर्वजीवन के चित्र दिये हैं ।भारतीयसंस्कृति के महान व्याख्याता वाल्मीकि हैं। भारतीयसंस्कृति के महान व्याख्याता वेदव्यास हैं , निषादकन्या [ दासी-वत] के पुत्र हैं, नीतिशास्त्र के व्याख्याता विदुर दासीपुत्र हैं, । हनुमान वानर आदिवासी हैं। शबरीकथा रामकथा के मर्म का प्रसंग है। कंस की दासी ने अन्त:पुर की कहानी कृष्ण को बता दी थी,वह विद्रोह भाव से सुलग रही थी।विद्या के लिये कठोर तप स्वाध्याय ,समर्पण , संतोष, नि:स्पृह - भाव की आवश्यकता है , जाति की नहीं ! इसके प्रमाण वेदों मे ही हैं , कितने ही तत्त्वद्रष्टा शूद्र हैं !

जाति नहीं कर्म आगे बढाता है : ऋग्वेद,मंडल१०,सूक्त३०-३४ का द्रष्टा है >कवष ऐलूष। यह शूद्र था।जुआरी भी था ।इसने अक्षसूक्त भी लिखा था ,जिसमें इसने अपने से ही कहा है कि >मत खेल जुआ।इसका एक सूक्त विश्वेदेवा को समर्पित है। एक अपां- नपात को।सरस्वतीनदी के तट पर जब सोमयाग हुआ, तब ब्राह्मणों ने इसे दास्या:पुत्र: कह कर बाहर कर दिया। यह कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया।अपां- नपात की स्तुति की।संयोग से सरस्वती का प्रवाह इसके चारों ओर आ गया । वह स्थल परिसारक- तीर्थ माना गया। इसने ब्राह्मणों को बताया कि जाति नहीं कर्म आगे बढाता है।इसके बेटे तुरकावषेय की गणना बडे विद्वानों में हुई। इसी प्रकार इतरा का पुत्र ऐतरेय शूद्र था।

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महाभारत में धर्मव्याध  की कथा और  व्याधगीता  है ।
महाभारत के वनपर्व में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कथा है >>> धर्मव्याध की ! यह व्याध मांसविक्रेता है ! और ब्राह्मण -पुत्र इसकी खोज करता है , और पूछते पूछते इसकी मांस की दूकान पर आता है और इससे प्रार्थना करता है , कि मुझे धर्म का उपदेश करो !
इस उपदेश को व्याधगीता भी कहा जाता है !

कहानी यों है कि ब्राह्मण -पुत्र शास्त्र का अध्ययन करता है और तपस्या भी करता है ! एक दिन एक पक्षी ने इस पर बीठ कर दी ,
तो ब्राह्मण -पुत्र के मन में विकार आया , उसने क्रोध से उस पक्षी को देखा और पक्षी जल कर जमीन पर गिर पड़ा !
ब्राह्मण -पुत्र ने सोचा कि यह मेरे तप और शास्त्रज्ञान का ही परिणाम है , अब मुझे सिद्धि मिल गयी है !
अब वह किसी ग्राम में गया और किसी द्वार पर नारायण हरि’ कह कर भिक्षा माँगी ! अन्दर से आवाज आयी - ठहरिए महाराज! ब्राह्मण -पुत्र ने थोड़ी देर खड़े होकर प्रतीक्षा की तथा फिर कहा >> नारायण हरि’ ! फिर अन्दर से आवाज आयी >> महाराज! ठहरिए - मैं अभी आ रही हूँ। जब तीसरी बार नारायण हरि’कहने पर भी कोई नहीं आया तो ब्राह्मण -पुत्र के मन में विकार आया >> उसने कहा कि >> तुझे पता नहीं, मैं कौन हूँ, मेरी अवमानना कर रही है तू?
तभी अन्दर से वह माँ बोली >> मुझे पता है ब्राह्मण -पुत्र ! लेकिन आप यह न समझना कि मैं वह पक्षी हूँ जिसको आप देखेंगे और वह जल जाएगा।
ब्राह्मण -पुत्र तो विस्मित हो गया !
थोड़ी देर बाद माँ भिक्षा लेकर आई। ब्राह्मण -पुत्र बोला , माँ भिक्षा बाद में लूँगा , पहले आप वह रहस्य समझाइये कि यह सब आपने कैसे जाना ?
माँ ने कहा, मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपको बताऊँ। आप अपनी भिक्षा लीजिए और यदि आपको इस विषय में जानना है तो मिथिला में चले जाइए, वहाँ पर एक वैश्य रहते हैं, वे आपको बता देंगे
।ब्राह्मणपुत्र वैश्य के पास गया, वह अपने व्यवसाय में लगा हुआ था और वहाँ उसने वही जिज्ञासा की !
उसने देखा और कहा आइए! पण्डित जी! बैठ जाइए! वह बैठ गया। थोड़ी देर के बाद ब्राह्मण कहने लगा मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ। वैश्य ने कहा, जी हाँ - आपको उस स्त्री ने मेरे पास भेजा है क्योंकि आपने देखकर चिड़ा जला दिया है।वैश्य ने भी कह दिया कि अभी तो मेरे पास समय नहीं, यदि बहुत जरूरी हो तो आप मांसविक्रेता व्याध के पास चले जाइये ! वह आपको सारी बात समझा देगा।
वह  ब्राह्मणपुत्र  व्याध के पास गया तो वह मांस काट-काट कर बेच रहा था।  व्याध बोला - आइए पंडित जी! बैठिए! आपको सेठजी ने भेजा है। कोई बात नहीं, विराजिए। अभी मैं अपना काम कर रहा हूँ, बाद में आपसे बात करूँगा। ब्राह्मण बड़ा हैरान हुआ। अब बैठ गया वहीं, सोचने लगा अब कहीं नहीं जाना, यहीं निर्णय हो जाएगा। सायंकाल जब हो गयी तो व्याध ने अपनी दुकान बन्द की, पण्डित जी को लिया और अपने घर की ओर चल दिया। ब्राह्मण व्याध से पूछने लगा कि आप किस देव की उपासना करते हैं जो आपको इतना बोध है।  उसने कहा कि चलो वह देव मैं आपको दिखा रहा हूँ। पण्डित जी बड़ी उत्सुकता के साथ उसके घर पहुँचे तो देखा व्याध के वृद्ध माता और पिता एक पंलग पर बैठे हुए थे। व्याध ने जाते ही उनको दण्डवत् प्रणाम किया। उनके चरण धोए, उनकी सेवा की और भोजन कराया। पण्डित कुछ कहने लगा तो व्याध बोला - आप बैठिए, पहले मैं अपने देवताओं की पूजा कर लूँ, बाद में आपसे बात करूँगा। पहले मातृदेवो भव फिर पितृ देवो भव और आचार्य देवो भव तब अतिथि देवो भव, आपका तो चौथा नम्बर है भगवन्! अब वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि यह तो शास्त्र का ज्ञाता है।धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में न तो उसने वर्ण को ही महत्त्व दिया और न पुरुष को और न उम्र को !  साधना और आचरण का  महत्त्व है !

इतिहास में हम देख सकते हैं कि अनेक  मुनिपत्नियाँ  शूद्र-कन्या थीं ।शिवजी के गण वे सभी कबीले थे , जिनको बाद में अनार्य अथवा शूद्र भी कहा गया था ।दक्षके यज्ञमें शिव नहीं बुलाये गये, और शिवहीन यज्ञ  भूत-प्रेत-प्रमथादि द्वारा विध्वस्त हुआ  , इसी से समझा जा सकता है कि शिव उस समय तक आर्येतर-जातियों के देवता थे !
- राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी की पोस्ट के अंश ।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

कौनसा पत्थर

 

इन दिनों उस पत्थरों की बड़ी चर्चा है जिनसे भगवान राम - माता सीता की मूर्ति/विग्रह बनेगा ।

कहीं पढ़ी कथा याद आई कि एक बार एक मंदिर का निर्माण हो रहा था,मूर्तिकार को भगवान की मूर्ति बनानी थी सो वह पत्थर की तलाश में निकला,पास ही नदी किनारे उसे दो पत्थर दिखाई दिये,उसने उन पत्थरों से कहा कि मेरे साथ चलो मैं तुम्हारा जीवन बदल दूंगा,तुमको भगवान बनाऊंगा।
-उस से क्या होगा पत्थरों ने पूछा?

उससे आपको सब कुछ मिलेगा, ढेर सारा सम्मान मिलेगा, क्या अमीर क्या गरीब राजा रंक सभी लोग तुम्हारे सामने हाथ जोड़े खड़े रहेंगे।
-अरे वाह फिर तो बना दो,पर कैसे बनाओगे?
-आपके ऊपर छेनी हथौड़ी चलाऊंगा, काट काट करूंगा कुछ दिनों बाद तुम्हारा ट्रांसफार्मेशन हो जाएगा और तुम पत्थर से भगवान बन जाओगे।
- अरे नहीं नहीं,मुझे दर्द नहीं झेलना,मैं यहीं पड़ा ठीक-ठाक हूं, पहले पत्थर ने मना कर दिया पर दूसरे पत्थर ने विचार किया कि जीवन में कुछ बड़ा बनना है तो दर्द तो सहना ही पड़ेगा सो वह तैयार हो गया ।
काम शुरू हो गया दूसरा पत्थर उसका मजाक उड़ाता था यह चुपचाप दर्द सहता था।कुछ ही दिनों में मूर्तिकार ने उससे एक भव्य प्रतिमा बनाई और मंदिर में लगा दी, अगले दिन मंदिर का उद्घाटन था तभी आयोजकों को याद आया कि  लोग नारियल कहां फोड़ेंगे, कोई पत्थर तो है ही नहीं,लोग भागे भागे गए और उसी पत्थर को जिसने मार खाने से इंकार कर दिया था , उसे ले आये। लोग आज तक उसपर पटक पटक कर नारियल फोड़ रहे हैं,पहला पत्थर सम्मान पा रहा है दूसरा मार खा रहा है।

  *मनुष्य जीवन में जो कुछ भी है वह सिर्फ और सिर्फ अपने फैसलों की वजह से ही है । पहले पत्थर ने कड़ा फैसला लिया संघर्ष किया और आज सुख का जीवन जी रहा है।*
दूसरे पत्थर ने कंफर्ट जोन को प्राथमिकता दी और आज तक मार खा रहा है।
यही फैसला हम सबको करना है कि हमें कौनसा पत्थर वाला मार्ग चुनना है । कुछ दिन कंफर्ट जोन का त्याग करके संघर्ष करके आगे बढ़ना है और सुख का जीवन व्यतीत करना है या अभी कंफर्ट जोन में रहकर आगे जीवन भर संघर्ष में रहना है।

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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

चार आने का हिसाब

 

*चार आने का हिसाब*

*बहुत समय पहले की बात है , नयासर का राजा बड़ा प्रतापी था , दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों से इसका कारण जानना चाहा, बहुत से विद्वानो से मिला, किसी ने कोई अंगूठी पहनाई तो किसी ने यज्ञ कराए , पर फिर भी राजा का दुःख दूर नहीं हुआ, उसे शांति नहीं मिली।*

*एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी , किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।*

*किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये।*

*राजा किसान के सम्मुख जा कर बोला – ” मैं एक राहगीर हूँ , मुझे तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं , चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।“*

*किसान – ” ना – ना सेठ जी , ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं , इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें , मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं।“*

*किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी , वह बोला , ” धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं ?”*

*“सेठ जी , मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ , और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ… “, किसान बोला।*

*“क्या ? आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं , और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं , यह कैसे संभव है !” , राजा ने अचरज से पुछा।*

*”सेठ जी”, किसान बोला ,” प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है …. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है।“*

*”तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते हो ?, राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।*

*किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया”*

*इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल देता हूँ , दुसरे से कर्ज चुका देता हूँ , तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिटटी में गाड़ देता हूँ ….”*

*राजा सोचने लगा , उसे यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था , पर वो जा चुका था।*

*राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।*

*दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया , अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।*

*बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिला और उसे कल की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।*

*राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।*

*” मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ , और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ;  बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ?” , राजा ने प्रश्न किया।*

*किसान बोला ,” हुजूर , जैसा की मैंने बताया था , मैं एक आना कुएं में डाल देता हूँ , यानि अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ , यानि इसे मैं अपने वृद्ध माँ-बाप की सेवा में लगा देता हूँ , तीसरा मैं उधार दे देता हूँ , यानि अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिटटी में गाड़ देता हूँ , यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े और मैं इसे धार्मिक सामजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ। “*

*राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था , वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।*
    
*शिक्षा* -  *मित्रों, देखा जाए तो पहले की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है ? पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं , लाइफ को बैलेंस्ड बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे !*

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बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

स्वास्थ्य चर्चा

 

स्वास्थ्य चर्चा
   बिस्तर पर लेटे हैं, नाक बंद है, साँस नहीं आ रही, मुँह से साँस लेनी पड़ रही है और मुँह से साँस लेने पर गला सूख जाता है, गले में इंफ़ेक्शन हो जाता है और दर्द भी।
इसके अतिरिक्त जरा सी धूल आसपास उठी तो तत्काल छींक आयीं और नाक बहनी शुरू। कुछ खट्टा - ठण्डा खा लिया या फिर कब्ज हो गई तो जुकाम शुरू।
इसके आगे की स्थिति जुकाम के साथ चेहरे व नाक में खुजली, सूजन और जलन।
इसके आगे तेज सिर दर्द (माइग्रेन), ठीक से सो न पाने, भोजन के ठीक से पचने के कारण होता है। माइग्रेन पहले कभी - कभी होता है, बाद में स्थायी।
अच्छा! सर्दियों में यह समस्या और बढ़ जाती है।
अब इसके समाधान पर बात करते हैं-
१- पेट को साफ़ रखना :- कब्ज या आँतों में जमा गंदगी जुकाम और अलर्जी का बड़ा कारण हैं। अतः आँतों की सफ़ाई व पाचन क्षमता की वृद्धि आवश्यक है।
•इसके लिए केवल एक सप्ताह प्रतिदिन प्रातः तीन से चार ग्राम हरड़ चूर्ण गर्म जल से लेना तथा जब भी भोजन करना उसमें घी का प्रयोग करना कब्ज से बचाता है।
•भोजन के पहले प्रतिदिन 300-500 ग्राम सलाद खाना उसके बाद तुरंत भोजन करना।
•रोटी-चावल का एक साथ सेवन नहीं करना और बड़ी भोजन से भी बचना।
•रात्रि में गुनगुने जल से त्रिफला का सेवन।

२- नस्य- : नासिका में अणु तेल या गाय के गुनगुने घी की बूँदे डालना। अजवाइन का नस्य अर्थात् धुँआ नासिका से लेना।
३- एक्यूप्रेशर पॉइंट-: नासिका के आसपास म्यूकस एरिया के पॉइंट को प्रेस करना व मसाज देना।
४- ठण्ड से बचाव-: ठण्ड से बचने के लिए आवश्यक वस्त्र पहनना व गुनगुने सरसों तेल की तलवों में व छाती, पसलियों की मालिश करना।
५- श्वसन प्रयोग-: अर्ध कपाल भाती। अनुलोम-विलोम का अभ्यास करना।
६- तुलसी ड्रॉप -: तुलसी ड्रॉप के दो-दो बूँद एक कप गर्म पानी में डालकर , दिन में चार बार लें।
उपरोक्त प्रयोग आपके लिए बहुत लाभकारी होगा।
- भूपेन्द्र जी की बातें

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