शनिवार, 2 जुलाई 2022

लेन देन

 


एक भिखारी था ! रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा ? 
वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा ?

भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, “तुम हमेशा मांगते ही हो , क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो ?"

भिख़ारी बोला, “साहब मैं तो भिख़ारी हूँ , हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ , मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ ?"

सेठ ने कहा कि "जब तुम किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है ? मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ ?

अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ ?"

तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था। वह सेठ उस ट्रेन से उतरा और चला गया ?

इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयी बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई ?

वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ ?

लेकिन मैं तो भिखारी हूँ , किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ ? लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिये केवल मांगता ही रहूँगा ?

बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय लिया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले में वह भी उस व्यक्ति को कुछ न कुछ जरूर देगा ?

लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है ?

इस बात को सोचते हुये उसका पूरा दिन गुजर गया लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला ?

दुसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे , उसने सोचा क्यों न मैं लोगों को भीख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ ?

उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिये। उन फूलों को लेकर वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता ?
उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे ?

अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था ?

कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं ? वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था। जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे ,

लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी ? अब रोज ऐसा ही चलता रहा ?

एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे हैं जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी ?

वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं , आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।

सेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिये और भिख़ारी ने कुछ फूल उसे दे दिये ? उस सेठ को भिखारी की यह बात बहुत पसंद आयी ?

सेठ ने कहा "वाह क्या बात है..? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गये हो ?" इतना कहकर सेठ वह फूल लेकर स्टेशन पर उतर गया ?

लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई ? वह बार-बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा ?

अब उसकी आँखे चमकने लगीं थीं। उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है ?

वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला , “मैं भिखारी नहीं हूँ , मैं तो एक व्यापारी हूँ ?

मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ ? मैं भी अमीर बन सकता हूँ ?

लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है। अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा ?

एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उसमें से एक ने दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा कि

“क्या आपने मुझे पहचाना ?”

सेठ:- “नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं ?"

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए , हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं"?

सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे ?"

अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला: हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे। उसने हाथ जोड़कर कहा कि सेठ जी मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूँ ?

नतीजा यह निकला कि आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ ?

आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था , जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं ?

लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है , सेठ जी मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है। लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा , इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था ?

और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ ? तब मैं समझा कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ ?

भारतीय ऋषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा - सोऽहं शिवोहम !! समझ की ही तो बात है...?

भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी ही रहा ? लेकिन जब उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया , वह व्यापारी बन गया ?

इसी प्रकार जिस दिन हम ठान लेंगे कि हमें उस मंजिल तक पहुंचना है , तो फिर अपनी मनचाही मंजिल तक पहुंचने से आपको कोई नहीं रोक सकता ? आप एक बार खुद से वायदा तो कीजिये ? आप एक बार खुद पर भरोसा तो कीजिये ? कोई भी ऐसा लक्ष्य नहीं जिसे आप पा न सकें...?

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