एक दिन स्कूल में हम बच्चे ईंट ढो रहे थे। पता नहीं कैसे हमारे हाथ से ईंट छूटी उसके कपड़ो पर गिर गई। चोट तो नहीं लगी, लेकिन वह बोला जितने के सारा कपड़ा है तुम्हारा, उतने का मेरा यह सूट है। संभव है कि वह अगर मुझे जानता, तो न कहता , क्योंकि जिस पिता के हम पुत्र थे उनकी सामाजिक - आर्थिक रूप से प्रतिष्ठा थी।
हम घर आये तो बहुत गुस्से में थे। कल जायेंगें तो बुलाकर बतायेगें की हम कौन है। दीदी , भाई सब ने बोला ,  हा एकाध झापड़ रख भी देना। पिताजी सुन रहे थे , कुछ बोले नहीं।
सुबह जब मैं जाने लगा तो पिताजी ने कहा  आज काम है। स्कूल मत जाओ , हम बोले -  नहीं , उस मैक्स को कहकर आ जायेंगें।
वह बोले यदि इसका उत्तर देने तुम जा रहे हो तो एक और कर्म पैदा कर रहे हो। एक दिन वह आयेगा तुम्हारे पास , तभी कह देना।
हम बोले वह मेरे पास क्यों आयेगा ? इतना धनी आदमी है, मेरी उसको क्या जरूरत है।
वह बोले इस जगत का एक ही शास्वत सिद्धांत है। वह है  कर्म का सिद्धांत। उसने जो कहा है , वही तुम्हारे पास लेकर आयेगा।
यह बात हम भी भूल गये।
ध्यान ही नहीं रहा। 
अभी कुछ वर्ष पूर्व जब पिताजी थे। हम और जनरल मैनेजर साहब घर गये थे। पिताजी का टेस्ट कराने के लिये SRL में फोन किया।
सैंपल लेने वाला आया।
उसने ब्लड सैंपल लिया। पिताजी का पैर छुआ।
हमसे बोला - डॉक्टर भइया पहचान नहीं रहे होंगे।
हम आपके साथ हाई स्कूल में पढ़े है। 
वह मैक्स ही था।
हम पूछे - और बताओ ?
कहा , कोई ठीक ठाक जॉब मिल जाती तो ठीक था। बाबू जी से कई बार मिले थे।
हम पिताजी कि तरफ देखे , वह गम्भीर मुद्रा बैठे थे।
हम कहे यार मेरे पास तो नहीं है जॉब , लेकिन भाई है, इन्हीं से कहते है।
मैनेजर साहब मैक्स से बोले कि ठीक है। अपना बॉयोडाटा भेज देना।
जब वह चला गया तो पिताजी कहे , वह आया था तुमने उस बात का कोई उत्तर नहीं दिया।
हम बोले मैं तो आश्चर्य में हूँ , करोड़पति आदमी कैसे सड़क पर आ गया।
(रविशंकर जी के) पिताजी बोले , कर्म छोटा बड़ा नहीं होता। महत्वपूर्ण यह है कि जीवन चक्र में वह तुमसे मिला।
जिस जगत को तुम लोग अव्यवस्थित समझते हो , वह बहुत व्यवस्थित है। यह शिक्षा तुम सभी के लिये है। अपने कर्मो , वचनों को ऐसा मत बनाओ जो किसी को पीड़ा दे।
तुम्हारे धर्म कि सारी शिक्षा यही है कि :
"अहंकार का परिष्करण करो, अंततः त्याग दो। सारे मानवीय गुण स्वयं आ जायेंगें।।"
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