बेबस लाचार की बद्दुआ भी लगती है:
"अबे ढोंगी तू काहे का संत है! पाखंडी चल भाग यहाँ से…."
हम सभी परिजन मंदिर के प्रांगण में बैठे अन्नकूट महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित भंडारा प्रसादी ग्रहण कर रहे थे की तभी ज़ोर से ये वाली आवाज़ आयी।
उस समय पंगत में कोई पैंतीस चालीस श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर रहे थे, वे सब के सब भोजन करना छोड़कर एकदम से चौंक गए और आवाज़ वाली ओर देखने लगे।
इतने में ही दिखा की एक वृद्ध वैरागी बाबा जिन्होंने भगवा दुपट्टा और धोती धारण कर रखा था, माथे पर तिलक और कांधे पर एक पुराना सा कटा फटा झोला टाँग रखा था, वे बदहवास से भागते हुए भंडारघर से बाहर निकलते हुए आए।
उनके पीछे पीछे ही एक टिपिकल छुटभैया सफेद पेंट शर्ट धारी स्थूलकाय व्यक्ति जिसने दो सोने की चेन तथा अनेक अंगूठियाँ हाथों में पहन रखी थी, वो अपशब्दों का प्रयोग करता हुआ आया और बलपूर्वक वैरागी बाबा का झोला छीनने लगा…
"चल दिखा तेरा झोला पाखंडी! बता कहाँ छुपा रखा है तूने वो एक किलो घी…"
और वो बाबा निरीह आँखों से हाथ जोड़े बस ये कहते रहे:
"सब तलाश ले बाबू सब तलाश ले..मैंने तेरा घी तेल हाथ भी नही लगाया…."
अपने हल्के से दो कौड़ी के राजमद में चूर वो चंदाखोर छुटभैया जैसे ही बाबा के साथ हाथपाई करने पर आमादा हुआ वैसे ही बड़े भैया, मैं और चार पाँच लोग तुरंत उठकर वहाँ गए और उसको खींचकर बाबा से अलग किया।
पाँच छह सौ रुपये मात्र के घी के लिए इतना आक्रोश! शायद असहायों को पीड़ित करने में ही इन छुटभैयों का अहं तुष्ट होता होगा तभी एक संत पर हाथ उठाने तक का दुःसाहस इसने कर लिय
_________🌱_________
*शनि,रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼 
https://chat.whatsapp.com/ElVx9sM9hWj0MtPTsHXdzT
-------------🍂-------------
  telegram ग्रुप  ...👉🏼
https://t.me/joinchat/z7DaIwjp8AtlNzZl
 ______🌱_________
Please Follow...
https://dulmera.blogspot.com/
उन बैरागी बाबा को पास में ही एक कुर्सी पर बैठाया मैंने और पानी पिलाने लगा पर वे निर्दोष लाचार व्यक्ति इतना रो रहे थे कि उनसे पानी तक पीया नही जा रहा था।
"तू देखना ये राक्षस सुखी नही रहेगा! भगत पर बिना कारण आरोप लगाने वाले इसका परिवार समेत नाश होगा!"
सुबक सुबक कर वो बाबा बस यही बोले जा रहे थे, दो मिनट सुस्ताकर पानी पीकर वो एकदम से उठे और उस मंदिर से चले गए। फिर वापस वो कभी दिखाई नही दिए।
अब मैंने ये जो घटना बताई ना आपको ये थी दीवाली के बाद नवम्बर मध्य की।
इस समय तक छुटभैये ने भंडारों के नाम पर चंदाखोरी, नक्शे पास करवाने/काम करवाने के लिए रिश्वत, कब्जे-वसूली कर कर के एक तीन मंजिला भवन, दो फोर व्हीलर, दो दुकानें और अच्छा खासा नगद रुपया बना लिया था।
31 दिसंबर के दिन फोन आया कि छुटभैये की मृत्यु हो गयी!
बताया गया कि घर से पार्टी कार्यालय जाने के लिए निकले इतने में ही घबराहट हुई भयानक, बस वो सीना पकड़कर घर के दरवाजे पर ही बैठ गए…
और बैठे ही रह गए!
चालीस के दशक में चल रहे निरोगी व्यक्ति का एकदम से हार्ट अटैक आ जाना तो चलो समझ आता है आज की जीवनशैली को देखते हुए, पर पहले अटैक में ही पूरे हो जाना और अस्पताल तक नही पहुँच पाना थोड़ा आश्चर्यजनक लगा।
जनवरी में ही इन छुटभैये के इकलौते लड़के को पुलिस ने सट्टा खेलते हुए धर दबोचा और सलाखों के पीछे भेज दिया।
मार्च में खबर थी कि इनकी एकलौती लड़की को तलाक देने की बात चल रही थी और वो मायके में परमानेंट आ बसी थी, साथ ही इन छुटभैये की धर्मपत्नी को ब्लड कैंसर डाइग्नोसिस हुआ था।
मई में सूचना आयी की छुटभैये के चमचों ने वाहनों, नगद और दुकानों पर कब्जा जमा लिया है और बस ले दे कर वो भवन बचा है परिवार के पास।
नाश ही हुआ उसका वास्तव में और बड़ी जल्दी नाश हुआ!
हाँ किसी निर्दोष भक्त की आत्मा बिना कारण सताई जाए तो उसकी अंतरात्मा की बद्दुआ सच मे लगती है।
निर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय….
कर्मों का फ़ल यहीँ भोगना है इसी धरा पर तुरंत।
(कुमार देव द्वारा बताई गई एक घटना )
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें