शनिवार, 23 जुलाई 2022

परीक्षा का भूत

 

परीक्षा परिणाम के बहाने चर्चा...
82% नम्बर
★★★★

तीन वर्ष पूर्व जब बेटा बारहवीं में 82% नम्बर लाया था तब मैंने उससे कहा था, "मैं तेरे पेपरस् की रीचेकिंग की एप्लिकेशन लगाऊंगी।", उसने हैरान होते हुए पूछा था, "क्यों?", मैंने सीरियस सा मुंह बनाते हुए उत्तर दिया था कि पेपर चेक करने वाले गलती से तुझे इतने सारे नम्बर दे गए हैं। तेरे इतने नम्बर आ ही नहीं सकते। मैं cbse से अपील करुँगी कि तेरे नम्बर काटकर आधे कर दें।"

मेरी बात सुनकर घर के सभी लोग हँसने लगे थे, और फिर हम सबने मिलकर हफ्तेभर तक उसके रिजल्ट का जश्न मनाया था...

उस समय जिसने भी बेटे का रिजल्ट सुना वह हैरान हुआ कि 95%+ नम्बरों के जमाने में हम 82% पर इतने प्रसन्न कैसे हैं?!

हम लोग प्रसन्न थे क्योंकि हम अपने बच्चे को जानते थे। हम जानते थे कि इन नम्बरों का उसके भविष्य पर ऐसा भी कोई असर नहीं पड़ने वाला। हम जानते थे कि वह पढ़ाई में सदैव एवरेज रहा है, लेकिन काम/जॉब/ऑक्यूपेशन के मामले में वह बहुत ही सिंसियर बच्चा है। उसे जीवन में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। आजकल इतने फील्ड्स, इतनी ऑप्शन्स उपलब्ध हैं कि अगर एक जगह एडमिशन न भी हो तो कहीं और ट्राई किया जा सकता है। यूँ भी, बेस्ट कॉलेजेस के बच्चे अक्सर जॉब में टॉप पर नहीं दिखते। टॉप जॉब्स में होते हैं एवरेज कॉलेजेस के वे बच्चे जो काम के मामले में अत्याधिक सिंसियर होते हैं और लाइफ में रिस्क लेना जानते हैं। यही सब बातें सोचकर हमने बेटे का पास होना दिनोंदिन तक सेलिब्रेट किया था...

आज बेटे का B.B.A(Logistics) का कोर्स कम्प्लीट होने वाला है। इस सेमेस्टर में उसने टॉप किया है। जब मैंने उससे पूछा कि क्या वह कोर्स में टॉप करने वाला है, तो उसका उत्तर था, "कोर्स टॉप करके अपना बनाबनाया नाम खराब थोड़ी न करना है।", उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दी... मेरा टिपिकल बॉयज जैसा बेटा शायद कुछ महीनों में M.B.A करने U.K चला जाये। उसको वहां के कई कॉलेजेस से ऑफर लैटर आ चुके हैं। उसने IELTS एग्जाम भी क्लियर कर लिया है। जबतक जाने का बने तबतक खाली भी नहीं बैठना है, इसलिए यहीं कई कम्पनीज़ में जॉब एप्लिकेशन भर दी थी। जिस भी कम्पनी में उसने इंटरव्यू दिया, वहीं उसे सेलेक्ट कर लिया गया। आज गेंद मेरे इस 82% वाले बच्चे के पाले में है, जिस कम्पनी को चाहे चुन ले...

आज बारहवीं का रिजल्ट आया है, तो मैंने सोचा यह किस्सा सुना दूँ। क्योंकि, बहुत से अभिभावक व बच्चे 95%+ नम्बर न आने को लेकर दुखी होंगे। इस लेख को पढ़कर शायद वे समझ सकें कि 95%+ या टॉप कॉलेज में एडमिशन भविष्य में सक्सेसफुल होने की गारंटी नहीं होते। अतः, बच्चे जितने भी नम्बर लाएं, उनके साथ मिलकर उन नम्बरों को व बच्चे की सफलता को सेलिब्रेट कीजिये। बच्चे खुश रहेंगे तभी उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे जीवन में खूब तरक्की भी करेंगे।

धन्यवाद😊

✍️ एक मित्र ने लिखा, अच्छा लगा । उधर देवेंद्र जी ने लिखा है  - बढ़ते_अंक_प्रतिशत_का_राज

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बिना किसी पूर्व भूमिका के सीधे-सीधे बता देता हूँ कि इसका असली राज सुपरफीशियल सिलेबस और प्रश्नों के घटिया स्तर में है।

ज्यादा नहीं बस कुछ समय पहले की बात है जब प्रश्नपत्रों के स्तर के कारण एआईपीएमटी के प्रि और मेन्स का कट ऑफ क्रमशः 60 और 55% तक ठहरा होता था।

मेरे एक छात्र ने एआईपीएमटी के प्रिलिम्स एग्जाम में बायलॉजी सेक्शन के प्रश्न छुए ही नहीं और जब मैंने उससे कारण पूछा तो उसका उत्तर ऐसा था कि मेरी हँसी छूट पड़ी-

"सर, मुझे पता था कि इतने सही प्रश्नों से मेरा प्रि में हो ही जायेगा और ज्यादा करने से मेन्स पर कोई फर्क पड़ना नहीं क्योंकि मुझे पता है उसमें मेरा होना नहीं तो बेकार में दिमाग पर लोड क्यों डालूँ, बस यही सोचकर आराम करता रहा।"

एम्स और जिपमेर भी अपने कठिन प्रश्नों के कारण अभेद्य किले माने जाते थे और उनको क्रैक करने वाले विद्यार्थी असामान्य प्रतिभावान होते भी थे।

फिर 2012-13 में नीट शुरू हुई और प्रश्नों को NCERT के अलावा बाहर से लेने पर रोक लगा दी गई।

'रोक' मतलब अगर NCERT की पुस्तक में अगर उसका उल्लेख नहीं तो वह प्रश्न व तथ्य आउट ऑफ सिलेबस माना गया।

नतीजा यह हुआ कि शिक्षक व छात्र दोंनों NCERT की किताबों को रटने लगे और कॉन्सेप्ट को एक ओर फेंक दिया गया।

इसका नतीजा हुआ कोचिंग्स में, स्कूलों में रट्टू लेकिन एंटरटेनर शिक्षकों व रट्टू छात्रों की भरमार।

तथ्य समझ आये न आये लेकिन एनसीआरटी की लाइन रटी हुई होनी चाहिए, यही मूलमंत्र बन गया जिसका नतीजा है कि अंक प्रतिशत बढ़ गए।

अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों हुआ और क्यों किया गया?

इसके पीछे दो कारण हैं-

1)आरक्षण में एस सी और एस टी का छात्रों के माइनस में नंबर आने के कारण न्यूनतम पात्रता से वंचित रहना। हालांकि बाद में न्यूनतम पात्रता का नियम भी हटा लिया गया लेकिन कॉलेजों में उन छात्रों को जाहिर तौर पर अच्छी नजरों से नहीं देखा गया।

2)भारत के संस्थानों की तबाही के अभियान में लगी सोनिया एंड कंपनी भला शिक्षा व्यवस्था को कैसे छोड़ देती? इतिहास को बर्बाद करके राष्ट्रीय मूल पर प्रहार तो पहले ही किया जा चुका था और फिर अब शिक्षा की गुणवत्ता को गिराने से बेहतर राष्ट्र की बरबादी भला और कैसे होती?

ये जो सौ प्रतिशत, 300 में से 300 अंक प्राप्त करके भी असंतुष्टि दिखाने का स्यापा कर रहें हैं ना, अगर अभी ठीक से पेपर बना दिया जाए तो इनकी बुद्धिमत्ता और इंटेलीजेंसी का किला खड़े-खड़े भरभराकर गिर जाएगा।

प्रश्नों की घटिया क्वालिटी ही इन उच्च प्राप्तांकों के मूल में है जो इन बच्चों में सफलता के घमंड और वास्तविक जीवन में दो असफलताएं मिलने पर आत्महत्या तक ले जाने वाले अवसाद  के लिए उत्तरदायी है।

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