रविवार, 30 जनवरी 2022

मूल्य काम का

 

एक परिचित ने बताया कि वह ग्रैजुएशन के फ़ाइनल ईयर में एमबीए एंट्रेंस की कोचिंग हेतु चंडीगढ़ गया था।
कड़की इतनी थी के जेब में गिनती के नोट हुआ करते थे।
कोचिंग इंस्टिट्यूट की फीस बमुश्किल अरेंज हुई थी।

एक रोज़ कोचिंग इंस्टिट्यूट में बगल में बैठे एक बन्धु से परिचय हुआ।

उसके हालात देख कर लग रहा था के वह भी जेब से खाली है।  विस्तृत रूप से बातचीत हुई तो उसने बताया के वह कोचिंग के साथ साथ बगल के रेस्टोरेंट में जॉब करता है।
कुछ दिनों पश्चात उसने कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ रही एक कन्या से परिचय करवाया।
वह उसकी गर्लफ्रैंड थी।
कन्या हाई फाई थी। मुझे याद है वह इंसिटीट्यूट में मारुति एस्टीम गाड़ी ड्रॉईव कर के आती थी।
दिखने में बहुत आकर्षक थी। खूबसूरत थी।
कन्या से बातचीत के दौरान पता चला के वह भी बन्धु के साथ उसी रेस्टोरेंट में पार्ट टाईम जॉब करती है।

एक शाम बन्धु से वार्त्तालाप हो रहा था। कन्या बगल में बैठी थी। मैंने बातों बातों में उससे पूछा के वह रेस्टोरेंट में क्या काम करता है।

उसने तपाक से कहा ....."I se rve food.....I am a waiter.."

वेटर.....!

मैं स्तब्ध रह गया। मैं इतना हैरान हुआ के कुछ समय तक शब्द मेरे हलक में फंस गये।

एक फटेहाल लड़का.....जो एक रेस्टोरेंट में वेटर था......उसकी एक चमचमाती गर्लफ्रैंड थी।

फिर मुझे झटके पर झटका लगा।
मैंने कन्या से पूछा के .....आप रेस्टोरेंट में क्या काम करती हैं।

उन्ने बताया के वह रेस्टोरेंट के रिसेप्शन पर बैठती है। उसने बताया के रेस्टोरेंट में कुछ कन्यायें हैं जो वेटर हैं ....यानि की खाना सर्व करती हैं।

एक शाम मैंने बन्धु को धर लिया .......मैंने कहा भाई एक बात बता। तेरे फोर्स 10 के जूते में बड़ा सा सुराख है जो सबको दिखता है।
तेरे कमीज़ का कॉलर इतना घिस चुका है के फटने को है।

काम तू एक वेटर का करता है। रेस्टोरेंट में आने वाले गेस्ट तुझे 10 - 20 रुपये टिप देकर जाते हैं।

अबे तुझ से  इतनी हाई फाई लड़की कैसे पट गयी?

और दूसरी बात.......यू अमीर लड़की को क्या दिक्कत है जो यह भी रेस्टोरेंट में पार्ट टाईम नौकरी कर रही है?

मेरा यह सवाल उसे इतना नागवार गुज़रा के उसने मुझसे बातचीत करना ही छोड़ दिया।

मुझे समझ में ना आया के बन्धु मुझसे नाराज़ क्यों है। ऐसा मैंने क्या कह दिया के उन्ने मुझसे बात करना ही छोड़ दिया।

एक शाम इंसिटीट्यूट में उसकी गर्लफ्रैंड मिल गयी। मैंने उसे पूछा के बन्धु नाराज़ क्यों है।

उन्ने कहा के हम सोचते थे के कि मैं एडवांस सोच का आदमी हूँ। परंतु मेरी सोच बैकवर्ड है।

बैकवर्ड.... यानि पिछड़ा।

यह शब्द मेरे हृदय को चीर कर निकल गया।

क्या वास्तव में मैं पिछड़ी सोच का आदमी था।

फिर एक रोज़ सुबह सुबह मैंने बन्धु को धर लिया।

हाथ जोड़े।  माफी मांगी।

बगल में कन्या भी बैठी थी। उससे भी कहा के अगर भूल चूक हो गयी हो तो माफ कर दे।

लड़का दिलदार था। अगले ही पल गले लगा लिया।

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मैं अगले एक माह उसके सम्पर्क में रहा और उस दौर में मुझे समझ आया के वास्तव में मेरी सोच में पिछड़ापन था।

वह एक रेस्टोरेंट में वेटर था ......शायद मैं इसलिये उसे हिकारत भरी नजरों से देख रहा था।

यह सोच का पिछड़ापन था।

जबकि उसके इश्क में गिरफ्त कन्या को उसकी जॉब पर गर्व था। उसे गर्व था के उसका बॉयफ्रेंड पैसों के लिये अपने परिवार पर निर्भर नहीं है।  उससे ही प्रेरित होकर कन्या ने भी पार्ट टाईम जॉब शुरू कर दी थी।

उस समय एक काम बड़ा लगता था ......स्टैंडर्ड का लगता था......और एक काम छोटा लगता था.....बिलो स्टेंडर्ड लगता था।  यह दिलोदिमाग का पिछड़ापन ही था।

उस समय जीवन में जो बदलाव हुये वह आज तक कायम हैं।

सम्भवतः जीवन में मुझे पहली बार समझ आया के नेचर ऑफ़ वर्क को उच्चतम और निम्नतम में विभाजित करने वाले शुद्ध रूप से वाहियात किस्म के प्राणी होते हैं।

मूल्य काम का है। मूल्य कर्म है। मूल्य पुरुषार्थ का है।

यह समझ आया के इस राष्ट्र में बेरोजगारी जैसी कहानी है ही नहीं।
कहानी प्राथमिकता की है।  Priority की है।

बेरोजगारी केवल एक बहाना है। जिस राष्ट्र में बाल मज़दूरी तक हो रही हो वहां आपका बेरोज़गार होना आपके निठल्लेपन और नकारापन कि निशानी है।

सरकार किसी की भी हो। बेरोज़गारी राष्ट्रीय मुद्दा ना था ....ना है ......और ना होगा।

यह व्यक्तिगत मुद्दा है।

जो व्यक्ति कर्म की महानता को पहचान गया वह कभी बेरोज़गार नहीं रह सकता। आज मैं फैक्ट्री चला रहा हूँ। कल को एक ऑटो चला कर आजीविका कमाने में रत्ती भर सँकोच नहीं करूंगा।

पुरुषार्थ के महत्व को समझना होगा।

सरकारों और हुक्मरानों के पास इस समस्या का हल नहीं है। समस्या हमारी है और हल हमारे पास है।
पुरुषार्थ के महत्व को समझते हुये किवाड़ से बाहर पाँव टेकना होगा।
मानसिक दृढ़ता के साथ आगे बढ़ने वाले आज कटोरा लेकर हुक्मरानों आगे नौकरी मांगने के लिये पंक्तिबद्ध नहीं हैं।

वह रोज़गार मांग नहीं रहे, रोज़गार बांट रहे हैं।

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