शनिवार, 1 जनवरी 2022

नज़रिया

 

बीते दिनों फैक्ट्री के पास खाली पड़े ग्राउंड में मेला लगा था। मॉल्स मल्टीप्लेक्स और होटल्स में घूमने वाले बच्चों को मेला दिखाने की उत्सुकता थी।

एक शाम मेले में जा पहुंचे। मुख्य आकर्षण के रूप में भांति भांति के झूले थे। उन झूलों के बीच "झूलों का बाप"  था।
झूलों का बाप यानि .....बड़ा चक्का।

बड़ा चक्का .....हम तो देसी भाषा उसे इसी नाम से जानते हैं। हालांकि अंग्रेज़ी में उसे शायद फेरस व्हील के नाम से पुकारा जाता है।

बड़े चक्के की सवारी करते समय मैं दार्शनिक हो जाता हूँ।
बड़े चक्के का नीचाई से ऊंचाई तक जाना मन को उत्साह .....उल्हास और रोमांच से भर देता है और ऊंचाई से नीचाई तक आने में डर और घबराहट महसूस होती है।

बड़ा चक्का जीवन का फ़लसफ़ा है। इंसान जब ऊंचाई पर जा रहा होता है तब उनका आत्मविश्वास ...उसका रोमांच उसकी अकड़ अलग ही स्तर पर होती है। लेकिन ऊंचाई से नीचे आने पर वही आत्मविश्वास डगमगा जाता है। वही रोमांच हताशा में तब्दील हो जाता है। वही अकड़ ठंडी पड़ जाती है।

बड़ा चक्का वास्तव में जीवन  चक्र है।

ख़ैर। मैं एक लंबे अरसे बाद बड़े चक्के में बैठा। मन रोमांचित था।
मेरे समक्ष एक व्यक्ति विराजमान था जिसके बगल में एक नन्ही सी लड़की बैठी हुई थी।

चक्का घूमा और घूमते ही सामने बैठे व्यक्ति की भाव भंगिमाएं बदलने लगी।

स्पष्ट दिखाई दे रहा था के वह डर रहा है।

अचानक किसी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से चक्का रुक गया। हम आसमान में लटके हुये थे। शहर का कोना कोना स्पष्ट दिखाई दे रहा था और मैं दृश्य का आनंद ले रहा था।

अचानक मेरी नज़र सामने बैठे व्यक्ति की ओर गयी। घबराहट से उसका चेहरा लाल हो चुका था।

मैंने उससे अंग्रेजी में वार्तालाप प्रारंभ किया और पूछा...."Do you understand english"

डरी सहमी आवाज़ में उसने कहा ....."Yes"....!

मैंने उससे कहा "Don't worry ...... Because if you do your daughter will panic"

मैंने उससे कहा के वह अपने डर या घबराहट को ना दिखाये क्योंकि उसके डर से उसके बगल में बैठी बच्ची घबरा जायेगी। अंग्रेजी में संवाद करने की मूल वजह थी के बच्ची हमारे वार्त्तालाप को समझ ना ले।

बच्ची पहले से ही बहुत बुरी तरह से डरी हुई थी।

मेरे समक्ष करीबन 70-80 फुट की ऊंचाई पर एक बाप बैठा था जिसका चेहरा डर से लाल हो चुका था और उसके बगल में एक नन्ही सी बच्ची बैठी थी जिसने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली थी।

मेरी बात सुन कर सज्जन ने बच्ची की ओर देखा। फिर उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया और अपनी बाहों में जकड़ लिया।

बच्ची इतनी डरी हुई थी के उसकी नन्ही सी आखों से आंसू टपकने लगे।

बच्ची को रोता देख ......बाप अपना डर अपनी घबराहट भूल गया और बोला......"डरना नहीं है। तू तो मेरी शेरनी है। डरना नहीं है।" इसी बीच चक्का चल पड़ा। चक्का ऊपर जाता फिर नीचे आता रहा।
बच्ची आँखें बंद करके बैठी रही। स्वयं बुरी तरह से डरा घबराया सज्जन बार बार बिटिया को कहता रहा....."डरते नहीं ....कुछ नहीं होगा। तू तो मेरी शेरनी है।"

चक्र पूरे कर के झूला रुक गया। बच्ची ने आँखें खोली। बाप ने बेटी को पुचकारा तो बिटिया बाप के गले से लिपट कर पुनः रोने लगी।

मैं इस दृश्य का साक्षी था।

उस आदमी को देख कर मेरी पहली प्रतिक्रिया थी के यह के निहायत ही फ़ट्टू और डरपोक किस्म का इंसान है जो बड़े चक्के में बैठ कर घबरा रहा है।

लेकिन कुछ ही क्षणों पश्चात उसके प्रति मेरी सारी धारणा धूल धूसरित हो गयी।

एक डरे हुये इंसान ने अपना डर भुलाते हुये जब अपनी डरी हुई बच्ची को अपनी बाहों में भर लिया तो मुझे महसूस हुआ के मैं गलत था।

वह स्वयं डर रहा था....बुरी तरह से घबराया हुआ था.....फिर भी अपनी बच्ची के लिये ढाल बना हुआ था।

खुद का मनोबल गिरा हुआ था और बिटिया को शेरनी बता कर उसका मनोबल बढ़ा रहा था।

फर्क नज़र का है। फर्क नज़रिये का है।

मैं उस बाप में एक डरपोक इंसान भी देख सकता था। लेकिन मुझे उसमें एक समर्पित पिता दिखाई दिया।

कुछ इसी तरह से ज़िंदगी को देखना होगा। ज़िंदगी की खामियों को नजरअंदाज ना करते हुये ज़िंदगी की खूबियां देखनी होंगी।

कुछ इसी तरह से स्वयं को देखना होगा। अपने भीतर समावेशित खूबियों को पहचाना होगा।

कुछ इसी तरह से इस दुनिया को देखना होगा।

पहले अच्छाई ....फिर बुराई देखनी होगी।

कमियां हैं ....हम सब में कमियां हैं। लेकिन खूबियां भी तो हैं।
हम सब कमाल हैं....बेमिसाल हैं। खामियां दुनिया को देखने दीजिये।
क्यों ना अपनी ख़ासियत देखी जाये? क्यों ना अपनी खूबियां देखी जायें?
इस नए वर्ष पर हमारी आदतें ऐसी ही बन जाये !!
【रचित】-लेखनी

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