सोमवार, 27 मार्च 2023

बैटर ऑप्शन

 

-रचित जी सतीजा ने एक प्रसंग बताया, उन्हें व्यवसायिक कार्य से लगभग हर रोज दिल्ली जाना होता है। वापसी पर मुरथल के एक ढाबे पर रात्रिभोज हेतु रुकते हैं ।
खाने का मेन्यू सेट है।
हाफ दाल
3 रोटी
1 प्लेट सलाद
2 कटोरी सफेद मक्खन
........और आखिर में खीर।

लगभग हर रोज एक व्यक्ति मेरी टेबल पर आता है।
मैं उसे वही मेन्यू बताता हूं।
.......बीते कुछ दिनों से वह मुझसे पूछने की जहमत भी नहीं करता।

मैं बैठता हूं .......सलाद परोस देता है और फिर एक एक कर बाकी सामग्री ले आता है।

कल रात मैं ढाबे पर आ कर बैठा।
चिरपरिचित बंधु जो हर रोज ऑर्डर लेता था वह कहीं दिखाई ना दिया।

मेरी नजरें उसे तालाश रही थी। इतने में एक नौजवान लड़का टेबल पर आया और बोला " भोला भईया नहीं आए हैं सर। उनका तबियत खराब था।"

मुझे नहीं पता था की जिस व्यक्ति को मैं रोज खाने का ऑर्डर देता हूं उसका नाम "भोला" है।

"आपका क्या नाम है ? " मैंने सामने खड़े नवयुवक से पूछा।

"हमारा नाम आकास है।" उसने फट से जवाब दिया।

मुरथल के ढाबों पर अधिकतर कर्मचारी बिहारी हैं।
नवयुवक का आका"श" को आका"स" कहना मुझे खला नहीं।
लड़का टिप टॉप था। सधी हुई कद काठी। तेल से चुपड़े कंघी किए हुए बाल।

सबसे बड़ी बात उसके जूते चमक रहे थे। लग रहा था की पालिश किए गए हैं।

मैंने अपना मैन्यू बताने की शुरुआत की ही थी की उसने मेरी बात काटते हुए कहा......पता है सर। हरा सलाद.... दाल .....मक्खन ....रोटी....खीर।
मैंने उसकी ओर देखा.....मुस्कुराया .....और कहा....." पता है तो ले आईए। भूख के मारे जान निकल रही है।"
वह किचन की ओर चला गया।

कुछ ही समय बाद वापिस आया।
बोला ....." सर। डोंट माइंड। एक बैटर ऑप्शन है।"

मैं एक क्षण ....... अवाक रह गया।

डोंट माइंड .......बैटर ऑप्शन......मेरे समाने ढाबे का एक वेटर खड़ा था या किसी मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से एम बी ए मेनेजर खड़ा था।
शक्ल देख कर तो लग ना रहा था की ऊन्ने अंग्रेजी का ए भी आता होगा।

मैं हतप्रभ था।

" क्या बैटर ऑप्शन है सर।" मैंने व्यंगतामक लहजे में पूछा।

लडके ने मेन्यू कार्ड उठाया। बोला ......." आप वेज थाली लीजिए सर। इसमें दाल है। दो सब्जी है। पुलाव है। सलाद है अउर मीठा मैं खीर भी है .......और सर ......ये थाली आपको आपका मेन्यू के मुकाबले बीस परसेंट सस्ता पड़ेगा।" लड़का एक सांस में कह गया।

पहले ......."डोंट माइंड ......बैटर ऑप्शन ".....यानी अंग्रेजी .....और फिर "20 परसेंट" यानी मैथेमेटिक्स।

अबे कौन है ये लड़का।

ध्यान से देखा तो वाकई बिल में बीस परसेंट का अंतर भी था।

उम्र के 42 बसंत देख चुका हूं।।
खत पढ़ लेता हूं मजमू .....लिफाफा खोले बिना।

"क्या करते हो?" मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उससे पूछा।

"यहीं काम करते हैं।" उसने जवाब दिया।

"इसके अलावा क्या करते हो? " मैंने पूछा।

" यूपीएससी का तैयारी कर रहे हैं सर। दिन में दिल्ली रहते हैं। ढाबा पर नाइट ड्यूटी रहता है।" आत्मविश्वास भरी आवाज़ में उसने जवाब दिया।

" बैटर ऑप्शन ले आओ।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

खाना खाया। बिल टेबल पर था और आकाश......नहीं नहीं ..... आका"स" समाने खड़ा था।

एक लम्बे अर्से बाद मैंने किसी वेटर को टिप नहीं दी।

वह टिप देने लायक व्यक्ति नहीं था।

मेरे पास पार्कर का एक पेन था। मैंने उसकी शर्ट की जेब में वह पेन लगा दिया।
उसकी आंखों की चमक देखने लायक थी।

एक वर्ग है.......जो बेशक घोर गरीबी में जी रहा है। दाने दाने का मोहताज है। रोज कुआं खोद रोज पानी पी रहा है......लेकिन फिर भी अपने लिए .........बैटर ऑप्शन खोज रहा है।
बेहतर विकल्प खोज रहा है। यह वर्ग दिन में किताबों में मुंह दिए सपनों की लड़ाई लड़ रहा है और रात में ढाबे पर खाना परोसता सर्वाइवल की लड़ाई लड़ रहा है।

........और जीतता भी यही वर्ग है क्योंकि इसके पास हारने को .....कुछ भी नहीं है।

मैं कल रात भविष्य के एक प्रशासनिक अधिकारी को पेन भेंट कर आया हूं।
परिस्थिति जितनी भी विकट हो संघर्ष जारी रखना ही ......."बैटर ऑप्शन" है।

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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रविवार, 26 मार्च 2023

मोह

 

एक सेठ जी थे | काफी बूढ़े हो गए थे | दाना दलने की एक चक्की थी उनकी | दूकान पर बैठे थे | बूढ़े होने पर भी दाना दल रहे थे | दलते जाते, कहते जाते- “इस जीवन से तो मौत अच्छी है |” इसी समय एक साधु दूकान के पास से होकर निकले| उन्होंने सेठ जी के ये शब्द सुने, सोचा कितना दुखी है यह व्यक्ति ! इसकी सहायता करनी चाहिये |
’उसके पास जाकर बोले –सेठ बहुत दुखी लगता है तू ! मेरे पास एक विद्या है ! यदि तू चाहे तो तुझे स्वर्ग ले जा सकता हूँ| चलता है तो चल! यहाँ के दुखों से छुटकारा मिल जायगा |  सेठ ने साधु की और देखा; बोला –“बहुत दयावान हो तुम, परन्तु मैं जा कैसे सकता हूँ?  इतना बुढा हो गया , अभी तक कोई संतान नहीं हुई | संतान हो जाय तो चलूँगा अवश्य|” साधु ने कहा –“बहुत अच्छा |”और चला गया |
कुछ वर्षों बाद सेठ के दो बेटे पैदा हो गये| साधु ने वापस आकर कहा- “चलो सेठ ! अब तो तुम्हारी सन्तान हो गई|” सेठ ने कहा –“हाँ हो तो गई, परन्तु अभी तक वह किसी योग्य तो नहीं | लड़के तनिक बड़े हो जाएँ, तब तुम आना | मैं अवश्य चलूँगा |
लड़के बड़े हो गये | साधु फिर आया तो सेठ नहीं था | पूछा उसने की सेठ कहाँ हैं ? तो पता लगा की मर गये हैं | साधु ने योग बल से देखा कि मर कर वह गया कहाँ ? तो उसने पता लगाया कि दूकान के बाहर जो बैल बंधा है, वही पिछले जन्म का सेठ है | उसके पास जाकर साधु ने कहा - अब चलेगा स्वर्ग को ?” 
सेठ (बैल) ने सर हिला कर कहा- “कैसे जाऊँ| बच्चे अभी नासमझ हैं | मैं चला गया तो कोई दूसरा बैल ले आयेंगे | जितनी अच्छी प्रकार से मैं बोझ उठता हूँ, उतनी अच्छी प्रकार से दूसरा बैल बोझ नहीं उठाएगा| तो मेरे बच्चों को हानि हो जायेगी | ना भाई अभी तो मैं नहीं जा सकता, कुछ देर और ठहर जा |” 
पांच वर्ष व्यतीत हो गये | साधु फिर वापस आया | देखा- दूकान के सामने अब बैल नहीं है| दूकान के मालिकों ने एक ट्रक खरीद लिया है | उसने इधर उधर से पूछा कि बैल कहाँ गया ? ज्ञात हुआ, बोझ ढोते ढोते मर गया | साधु ने फिर अपने योग बल का प्रयोग करके पता लगाया |
तो पता लगा कि- कि वह सेठ अपने ही घर के द्वार पर कुत्ता बन कर बैठा है | साधु ने उसके पास जाकर कहा _ अब तो बोझ ढोने कि बात भी नहीं रही | अब चल तुझे स्वर्ग ले चलूँ |”
कुत्ते के शरीर में बैठे सेठ ने कहा- अरे कैसे ले चलेगा ! देखता नहीं कि मेरी बहु ने कितने आभूषण पहन रखे हैं? मेरे लड़के घर में नहीं हैं, यदि कोई चोर आ गया तो बहु को बचायेगा कौन? नहीं बाबा! तुम जाओ, अभी मैं नहीं जा सकता |” साधू चला गया |
एक वर्ष बाद उसने वापस आकर देखा कि कुत्ता भी मर गया है  | उस साधु ने अपने योग बल द्वारा पुनः उस सेठ को खोजा | तो ज्ञात हुआ कि वह अपने घर के पास बहने वाली गन्दी नाली में कीड़ा बन के बैठा है | साधु ने उसके पास जाकर कहा- “देखो सेठ! क्या इससे बड़ी दुर्गति भी कभी होगी? कहाँ से कहाँ पहुँच गये तुम ! अब भी मेरी बात मानो |
आओ तुम्हें स्वर्ग ले चलूँ|” कीड़े के शरीर में बैठे सेठ ने चिल्ला कर कहा - “चला जा यहाँ से ! क्या मैं ही रह गया हूँ स्वर्ग जाने के लिए ? उनको ले जा मुझको यहीं पड़ा रहने दे | यहाँ पोतों पोतीओं को आते जाते देख कर प्रसन्न होता हूँ | स्वर्ग में क्या मैं तेरा मुख देखा करूँगा ?”

यह है मोह के चक्र में फंसे रहने का परिणाम | यह 😭मोह😭 का चक्र आत्मा को (सुसुप्त अवस्था) पहुंचा देता है यहि अधम योनि का कारण बनता है l  अतः इस प्रकार के कर्म मत करो ! कर्म करो अवश्य, परन्तु मोह और ममता  यानि तामसिक प्रवृतियों से दूर हटकर करो l
(- लखपत जी के संकलन से प्राप्त )
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शनिवार, 25 मार्च 2023

आत्मनिर्भर

 

एक बार दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक सरदारजी मिले। साथ में उनकी सरदारनी भी थीं।
सरदारजी की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन सरदारनी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के सहज प्रभाव को छोड़ दें, तो दोनों फिट थे।
सरदारनी खिड़की की ओर बैठी थीं, सरदारजी बीच में और सबसे किनारे वाली सीट मेरी थी।
उड़ान भरने के साथ ही सरदारनी ने कुछ खाने का सामान निकाला और सरदारजी की ओर किया। सरदार जी कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे।
सरदार जी ने कोई जूस लिया था। खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं। सरदारजी कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने कहा कि लाइए, मैं खोल देता हूं।
सरदारजी ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे कि बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।
मैंने कुछ पूछा नहीं, लेकिन सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।
सरदारजी ने कहा, बेटाजी, आज तो आप खोल देंगे। लेकिन अगली बार कौन खोलेगा? इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए। सरदारनी भी सरदारजी की ओर देख रही थीं। जूस की बोतल का ढक्कन उनसे भी नहीं खुला था। पर सरदारजी लगे रहे और बहुत बार कोशिश करके उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया। दोनों आराम से जूस पी रहे थे।
कल मुझे दिल्ली से गोवा की उड़ान में ज़िंदगी का एक सबक मिला।
सरदारजी ने मुझे बताया कि उन्होंने ये नियम बना रखा है कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिए सरदारजी सिर्फ सरदारनी की मदद लेते हैं, बाकी किसी की नहीं। वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं।
सरदारजी ने मुझसे कहा कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए। एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर होऊंगा, तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा। फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे। फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा। अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।
हम गोवा जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे। हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं। बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी, पर उन्हें कौन समझाए कि मुश्किल तो तब होगी, जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे। पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बेटों को दे कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं।
जहां जाना होता है एजेंट टिकट बुक करा देते हैं, एयरपोर्ट पर टैक्सी आ जाती है, होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है। स्वास्थ्य एकदम ठीक है। कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती। पर थोड़ा दम लगाता हूं तो वो भी खुल ही जाती है।
तय किया था कि इस बार की उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैं जीवन की फिल्म देख रहा था। एक ऐसी फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।
“जब तक हो सके, आत्मनिर्भर होना चाहिए।”...

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सोमवार, 20 मार्च 2023

उर्मिला 19

 

उर्मिला 19

    भरत निकले अयोध्या से! हृदय में प्रेम था बस! कभी मन डर रहा था, राम क्या प्रण तोड़ सकते हैं? कभी मन कह रहा था, राम भक्तों की ही सुनते हैं।
    भरत के साथ थी पूरी अयोध्या! वे सारे लोग जिनका हृदय तो बस राम मय था। कौसल्या थीं, जिनके मुख पे अद्भुत शांति थी। राम को बस देख भर लेने की कोमल भावना थी, क्यों कि उनको ज्ञात था कि पांव पीछे खींचने वालों में नहीं है राम उनका!
     सुमित्रा थीं, जिन्होंने युगों पहले त्याग डाला था कभी अधिकार अपने। जिन्होंने भरे थे बच्चों में अपने भाइयों के प्रति समर्पण के ही सारे गुण! थी उनकी आंख में आशा की पतली जोत, कि उनके कुल का संकट दूर हो जाता तो जीवन धन्य होता।
     वहीं पर कैकई थीं। जिनके भाग्य में अब अश्रु थे, अपमान था, और थे तिरस्कृत दिन कि जो कटते नहीं थे। उन निरीह आंखों में भी था विश्वास, कि उनका राम उनसे रूष्ट तो हो ही नहीं सकता।
     उन्ही के संग निज गृह त्याग कर दौड़े चले थे लोग, जो अपने राम को उनकी अयोध्या सौंपने की जिद में थे। राम जी का नाम उनके मुख पे था। राम उनकी आंख में थे, हृदय में थे, धमनियों में रक्त बन कर दौड़ते से राम, कि सारी अयोध्या भाव में डूबी हुई थी। वे संसार के सबसे अनूठे लोग थे जी, थी वह संसार की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा...
     उन्ही के मध्य गुमसुम सर झुकाए चल रही थी वह, कि जिसका प्रेम था इस यात्रा के पार! परिवार की खातिर समय से जूझती सी उर्मिला, और धर्म की खातिर ही वन वन भटकता सा प्रेम उसका... सर उठाती थीं तो बस इस आश में कि देख लेंगे प्रेम को, भय झुका देता था सर कि प्रेम को यदि प्रेम की याद आ गयी तो धर्म की डोरी कहीं ना छूट जाए हाथ से... उर्मिला कब चाहती थीं कि लखन घर लौट आएं? उर्मिला बस चाहती थीं धर्म, पति का अमर होवे... कीर्ति उनकी धवल होवे... स्वयं की चिन्ता कहाँ थी उर्मिला को? उसे तो बस याद थे तो लक्ष्मण थे, और था तो कुलवधू का धर्म अपना... राम के युग में खड़ी वह मूक देवी ही हमारी उर्मिला थीं।
    एक संदेशा भरत ने भेज डाला था, कि मिथिला! धर्म पर्थ पर चल रहे हैं, आ सको तो संग आओ! और वह मिथिला थी भाई, राम खातिर दौड़ निकली। राह में जब भरत से राजा जनक की भेंट हो गयी, रो पड़े विदेह ने छाती लगा कर कहा कि हे संत! गर्व है मुझको, कि मेरे पुत्र हो तुम! तुम युगों की तपस्या की प्राप्ति हो, साधुता के ध्वज हो तुम, तुम अमर रघुवंश का सम्मान हो! राम वापस लौट आएं या न आएं, तुम सफल हो, तुम अमर हो...
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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रविवार, 19 मार्च 2023

साहस

 सिकंदराबाद के निकट पिलखन गाँव की कहानी यह है।


1904 का सन् था, बरसात का मौसम और मदरसे की छुट्टी हो चुकी थी...

लड़कियाँ मदरसे से निकल चुकी थी...

अचानक ही आँधी आई और एक लड़की की आँखों में धूल भर गई, आँखें बंद और उसका पैर एक कुत्ते पर जा टिका...

वह कुत्ता उसके पीछे भागने लगा...

लड़की डर गई और दौड़ते हुए एक ब्राह्मण मुरारीलाल शर्मा के घर में घुस गई...

जहाँ 52 गज का घाघरा पहने पंडिताइन बैठी थी...

उसके घाघरे में जाकर लिपट गई, ‘‘दादी मुझे बचा लो..।’’


दादी की लाठी देख कुत्ता तो वहीं से भाग गया, लेकिन बाद में जहाँ भी दादी मिलती, तो यह बालिका उसको राम-राम बोलकर अभिवादन करने लगी,

दादी से उसकी मित्रता हो गई और दादी उसे समय मिलते ही अपने पास बुलाने लगी, क्योंकि दादी को पंडित कृपाराम ने उर्दू में नूरे हकीकत लाकर दी थी, दादी उर्दू जानती थी, परंतु अब आँखें कमजोर हो गई थी, इसलिए उस लड़की से रोज-रोज वह उस ग्रंथ को पढ़वाने लगी और यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा।


लड़की देखते ही देखते पंडितों के घर में रखे सारे आर्ष साहित्य को पढ़-पढ़कर सुनाते हुए कब विद्वान बन गई पता ही नहीं, पता तो तब चला, जब एक दिन उसका निकाह तय हो गया और दादी कन्यादान करने गई।

निकाह के समय जैसे ही उसने अपने दूल्हे को देखा तो वह न केवल पहले से शादीशुदा था वरन एक आँख का काना भी था, इसलिए लड़की को ऐसा वर पसंद नहीं आया, परंतु घरवालों और रिश्तेदारों ने दबाव डाला।

परंतु अबला ने जैसे ही देखा कि 52 गज के घाघरे वाली पंडिताइन कन्यादान करने आई है, अपने पोते के साथ तो एक बार फिर इतने वर्षो बाद दादी से चिपट गई थी, ‘दादी मुझे बचा लो, मैं काने से निकाह नहीं करूँगी।’


‘काने से नहीं करेगी तो तेरे लिए क्या कोई शहजादा आएगा?’

वह वधू दादी को छोड़ने का नाम न ले रही थी, दादी भी रोने लगी, उसे समझाने का प्रयास किया, कि ‘जैसा भी है, उसी से नियति समझकर शादी कर ले।


"अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप उसकी शादी काने से कर देतीं?" लड़की ने दादी से पूछा था।


‘तू भी तो मेरी ही बेटी है।’


‘सिर पर हाथ रखकर कहो कि मैं तुम्हारी बेटी हूँ।’


‘हाँ तुम मेरी बेटी हो।’ कहते हुए पंडिताइन ने उस मुस्लिम कन्या के सिर पर हाथ रख दिया था।


"तो फिर हमेशा के लिए अपने 52 गज के घाघरे में मुझे छिपा लो दादी।’’

"मतलब।"


‘अपने इस पौते से मेरा विवाह करके मुझे अपने घर ले चलो।’


‘क्या?’ कोहराम मच गया, एक मुस्लिम लड़की की इतनी हिम्मत की निकाह के दिन जात-बिरादरी की बदनामी करे और पंडित के लड़के से शादी करने की बात कह दे, आखिर इतनी हिम्मत आई उसके अंदर कहाँ से...

जब किसी ने पूछा तो, उसने बताया, ‘दादी को नूरे हकीकत यानी कि दयानंद सरस्वती का सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर सुनाते हुए।

कर्म से मुझे पंडिताइन बनने का हक वेदों ने दिया है और मैं इसे लेकर रहूँगी।’


पंचायत बैठी, लड़की अब अपनी बात पर अड़ गई कि शादी करेगी तो पंडित के लड़के से वरना नहीं, पढ़ेगी तो वेद पढ़ेगी वरना कुरान नहीं।

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चतुरसेन और पंडित के लड़के की यारी थी, चतुरसेन आर्य समाजी किशोर था और उसने पंडित के लड़के को मना लिया था कि मुस्लिम लड़की से शादी करेगा तो सात पीढ़ियों के पूर्वजों के पाप धुल जाएँगे। उधर पंडित कृपाराम ने दादी को समझाया और दादी भी मान गई। मुरारीलाल शर्मा ने भी हाँ भर दी।

लेकिन मुस्लिम जमात में कोहराम मच गया और उस मुस्लिम परिवार का हुक्का-पानी गिरा दिया... उसे मुस्लिम धर्म से बाहर निकाल दिया, कुएँ से पानी भरना बंद हो गया।

परंतु वह परिवार भी अब इसलाम की दकियानूसी बातों से तंग आ चुका था और उसने अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ चार दिन में ही घर में कुआँ खोदकर पानी की समस्या से छुटकारा पाया और अपनी बेटी की शादी हिन्दू युवक से करने के साथ-साथ सपरिवार वैदिक धर्म अंगीकार करने की घोषणा कर दी।

यज्ञ हवन के साथ उस युवती का पिता आर्य बन गया और नाम रखा चौधरी हीरा सिंह।


आज हीरा सिंह की बेटी की शादी थी, किसी ने कहा, ‘हिन्दू इसकी बेटी ले जाएँगे, लेकिन इसके घर का हुक्का-पानी तक न पिएँगे।’ ठाकुर बडगुजर ने जब यह सुना तो हीरासिंह का हुक्का भर लाया और पहली घूँट भरी और फिर हीरा के मुँह में नेह ठोक दी और हीरा जाटों, पंडितों, और ठाकुरों के साथ बैठकर हुक्का पीने लगा।

पंडित कृपाराम ने उसके नए कुएँ से पानी भरा और सबको पिलाया और खुद भी पिया।

मुरारीलाल शर्मा ने एक लंबा भाषण दिया और आर्य समाज के प्रख्यात भजनीक तेजसिंह ने कई भजन सुनाए और बिन दान-दहेज के उस मुस्लिम बालिका मदीहा खान का विवाह संस्कार ब्राह्मण के लड़के से हो गया।

उस जमाने में अपनी तरह का यह पहला अंतरधर्मीय विवाह था।


पंडित कृपाराम आगे चलकर स्वामी दर्शनानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए और उन्होंने हरिद्वार के निकट एक गुरुकुल महाविद्यालय स्थापित किया।

बालक चतुरसेन प्रख्यात उपन्यासकार हुए और आर्य समाज अनाज मंडी की स्थापना की और हीरा सिंह विधायक तक बना।


स्वामी दर्शनानंद, चतुरसेन शास्त्री, ठाकुर हीरासिंह आदि को आज सब जानते हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में सरस्वती (मदीहा खान) का कहीं नाम नहीं है, जिनकी प्रेरणामात्र से आधा दर्जन लोग विद्वान और समाजसेवी बने और सिकंदराबाद आर्य समाज वैदिक धर्म प्रचार का सबसे बड़ा गढ बन गया था।


संदर्भ

1. यादें,

2. मेरी आत्मकथा, चतुरसेन शास्त्री,

4. मेरा संक्षिप्त जीवन परिचय,

स्वामी दर्शनानंद सरस्वती, पृष्ठ 34

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पुस्तक मुस्लिम विदुषियों की घर वापसी का एक अंश

आर्यखंड टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड का उत्कृष्ट प्रकाशन

संकलन श्री तुफैल चतुर्वेदी जी द्वारा


🧊

शनिवार, 18 मार्च 2023

सरलता

 


      

एक संत एक छोटे से आश्रम का संचालन करते थे। एक दिन पास के रास्ते से एक राहगीर को पकड़कर अंदर ले आए और शिष्यों के सामने उससे प्रश्न किया कि यदि तुम्हें सोने की अशर्फियों की थैली रास्ते में पड़ी मिल जाए तो तुम क्या करोगे
वह आदमी बोला - "तत्क्षण उसके मालिक का पता लगाकर उसे वापस कर दूंगा अन्यथा राजकोष में जमा करा दूंगा।"

संत हंसे और राहगीर को विदा कर शिष्यों से बोले -" यह आदमी मूर्ख है।"

शिष्य बड़े हैरान कि गुरुजी क्या कह रहे हैं ? इस आदमी ने ठीक ही तो कहा है तथा सभी को ही यह सिखाया गया है कि ऐसे किसी परायी वस्तु को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
          
थोड़ी देर बाद फिर संत किसी दूसरे को अंदर ले आए और उससे भी वही प्रश्न दोहरा दिया।

उस दूसरे राहगीर ने उत्तर दिया कि क्या मुझे निरा मूर्ख समझ रखा है ?, जो स्वर्ण मुद्राएं पड़ी मिलें और मैं लौटाने के लिए मालिक को खोजता फिरूं? तुमने मुझे समझा क्या है ?
          
वह राहगीर जब चला गया तो संत ने कहा -" यह व्यक्ति शैतान है।

शिष्य बड़े हैरान हुए कि पहला मूर्ख और दूसरा शैतान, फिर गुरुजी चाहते क्या हैं ?
          
अबकी बार संत तीसरे राहगीर को पकड़कर अंदर ले आए और वही प्रश्न दोहराया।
          
राहगीर ने बड़ी सज्जनता से उत्तर दिया--" महाराज! अभी तो कहना बड़ा मुश्किल है।इस *चाण्डाल मन का क्या भरोसा,* कब धोखा दे जाए ? एक क्षण की खबर नहीं। यदि परमात्मा की कृपा रही और सद्बुद्धि बनी रही तो लौटा दूंगा।"

             संत बोले -

*" यह आदमी सच्चा है। इसने अपनी डोर परमात्मा को सौंप रखी है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा कभी गलत निर्णय नहीं होता।*

*ज्येष्ठ पांडव, सूर्यपुत्र कर्ण कर्म, धर्म का ज्ञाता, क्या कारण था की अपने छोटे भाई अर्जुन से हार गया जबकि कर्म और धर्म दोनों में वो अर्जुन से श्रेष्ठ था। कारण था कि अर्जुन ने अपनी घर से निकलने से पहले ही अपनी जीवन रथ की डोरी,भगवान श्री कृष्ण के हाथ में दे..!!

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सोमवार, 13 मार्च 2023

हुनर

 

चीन में एक राजा ने भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति बनवाने का निर्णय लिया।

कई प्रसिद्ध मूर्तिकार बुलाए गए और उनके सम्मिलित श्रम से कई महीनों के बाद बुद्ध की एक विशाल कांस्य प्रतिमा तैयार हुई।

जिस दिन बोधिसत्व की मूर्ति प्रजा के लिए खोली जानी थी, अपार भीड़ जुट गई।

मूर्ति को राजा ने अनावृत किया पर ये क्या? भगवान का चेहरा तो उदास दिख रहा है। कहां प्रसन्नमुख बुद्ध को बनाने की कोशिश की और कहां उदास बुद्ध.....

घोर निराशा फैल गई.....धन गया, श्रम गया और बना क्या? उदास बुद्ध....

राजा ने मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकारों को बुलाया, कहा - भगवान के चेहरे पर मुस्कान लाओ। मूर्तिकार खामोश कि बनी हुई प्रतिमा में कैसे परिवर्तन होगा।

राजा ने उन्हें लाचार देखके मुनादी करा दी कि जो भी मूर्तिकार बोधिसत्व के चेहरे पे मुस्कान ला देगा उसे मनोवांछित ईनाम मिलेगा।

बहुत तलाश के बाद एक वृद्ध मूर्तिकार खोजा गया। बड़ी मुश्किल से आने को तैयार हुआ पर आते ही शर्त रख दी कि मूर्ति पर जितने हथौड़े मारूंगा उतनी स्वर्ण मुद्रा लूंगा।

राजा पेशोपेश में कि इतनी बड़ी मूर्ति है न जाने ये कितनी बार हथौड़ी मार दे पर मन मसोसकर अनुमति देनी पड़ी।

बूढ़ा बड़े सधे कदमों से आगे आया, सीढ़ी लगवाकर बुद्ध के चेहरे के पास गया। आधे घंटे तक सोचता रहा, मुआयना करता रहा और हथौड़ी उठाकर भगवान के बाएं गाल के पास जोर से एक हथौड़ा मारा और सीढ़ी से नीचे उतरने लगा।

लोगों ने देखा भगवान के चेहरे पर बहुत प्यारी सी मुस्कान खिल रही थी। भीड़ ने वृद्ध मूर्तिकार को उठा लिया और उसके लिए अभिनंदन गीत गाए।

उसने पारिश्रमिक के रूप में राजा से बस एक स्वर्ण मुद्रा ली और अपने घर चला गया।

प्रश्न है क्या मूर्ति बनाने वाले बाकी सैकड़ों लोग मूर्तिकला निष्णात नहीं थे ? थे , पर एक हथौड़ा मारने वाले उस वृद्ध ने केवल मूर्तिकला सीखी ही नहीं थी उसे जीया भी था, उसने उस कला की निष्पत्ति समझी थी।

अभिजीत जी कहते हैं कि इसी तरह महत्वपूर्ण ये नहीं है कि आप क्या और कितना पढ़ते हैं, महत्वपूर्ण ये है कि आप उसकी निष्पत्ति किस रूप में निकालते थे, उसके सार को कैसे समझते हैं, कैसे प्रस्तुत करते हैं। आत्म चेतना, बोध और विश्लेषण क्षमता ये व्यक्ति के प्रज्ञावान होने के सूचक हैं बाकी अध्ययन तो कोई भी कर सकता है; बोधवान, प्रज्ञावान और चैतन्यवान हर कोई नहीं हो सकता।

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रविवार, 12 मार्च 2023

मर्सिडीज के काँच

 

रचित जी के एक व्यापारी मित्र हैं।
हाल फिलहाल में उन्होंने अपनी पुरानी गाड़ी बेच कर नई मर्सिडीज खरीदी है।

बीते बुधवार वह अपनी नई चमचमाती गाड़ी में फेक्ट्री से लंच करने घर आये।

उन्होंने मर्सिडीज घर के बाहर पार्क कर दी।

घर में धर्मपत्नी के हाथ का बना लज़ीज़ खाना खाया।
खाना खा कर कुछ समय सुस्ताने लगे।
इसी बीच फेक्ट्री से एक अर्जेंट कॉल आई।
वह घर के बाहर आये।
गाड़ी की ओर देखा तो उसकी दोनो टेल लाइट टूटी हुई थी।
स्पष्ट था के किसी ने पत्थर मार कर लाइट्स को फोड़ दिया था।
एक लग्जरी कार की लाइट्स की क्या कीमत होती है ....यह मैं बताना नहीं चाहता।

उनके घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगे हैं। कैमरा में एक शक्स का चेहरा कैद हुआ।
वह सड़क पर चल रहा था। अचानक उसे एक चमचमाती मर्सिडीज दिखाई दी। उसने दाएं देखा.....फिर बाएं देखा। फिर आगे पीछे देखा।

फिर उसने बगल में रखी ईंट उठाई ..... टेल लाइट्स पर पर प्रहार किया और सरपट वहां से भाग गया।

अब इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य.......लाइट्स फोड़ते व्यक्ति को हमारे मित्र के घर कार्यरत नौकर ने पहचान लिया।

जहां हमारे मित्र की कोठी है......उससे ठीक पांच कोठियां बाद एक व्यापारी का आलीशान मकान है।
लाइट्स फोड़ने वाला व्यक्ति उनके घर में चौकीदारी करता था।

उसे बुलाया गया। उसे पूछा के भाई ...... यह शुभकार्य जो तूने किया है.....किस खुशी में किया है?

वह खामोश रहा।

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फिर उससे कहा के सच सच बता दे ......नहीं तो सच उगलवाने के कई तरीके हैं।।

मारे डर के वह फूट फूट के रोने लगा।
बोला आप सेठ लोग के पास सारी दौलत है......सारा पैसा है.....हमारे पास तो इतना रुपया भी नहीं है के घरवाली का इलाज करवा सकें।

उसकी बात सुन सब सकपका गए।

उसे पानी पिलाया.....फिर लिम्का पिलाई गई.....फिर जब वह नार्मल हुआ तो उसने बताया के वह झारखंड का रहने वाला है ......चौकीदारी करता है। पत्नी बीमार है। इलाज करवाने के लिये पहले ही मालिक से एडवांस ले चुका है।
...........और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हो रही और पत्नी के इलाज का खर्च बढ़ता जा रहा है।

इसी झल्लाहट में वह बीते बुधवार मित्र के घर के आगे से निकला ......उसे नई गाड़ी खड़ी दिखाई दी और उसने गुस्से में उसकी लाइट्स फोड़ दी। उसे लगा के उसकी गरीबी का मूल कारण ......"सेठ लोग" हैं। 

अब कायदे से ऐसे आदमी का क्या इलाज बनता है।

पुलिस के हवाले कर दें।
मार मार कर मोर बना दें।

नहीं। 

संभवत आपको जान कर हैरानी होगी के जिस घर में वह चौकीदारी करता है.....उसके मालिक से हमारे मित्र ने संपर्क किया।

दोनो ने  मिल कर रांची के एक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में संपर्क स्थापित किया।

बीते शनिवार चौकीदार की पत्नी का इलाज हॉस्पिटल में शुरू हो चुका है।

इलाज के खर्च का एक हिस्सा वह व्यक्ति संभाल रहा है जिसकी चमचमाती गाड़ी की लाइट्स को बेवजह फोड़ दिया गया था।

.........और यकीन मानिये के यह उस व्यक्ति की महानता नहीं है .......यह उसका स्वभाव है। उदारता उसका स्वभाव है। पार्ट आफ नेचर है । 

भारत रत्न स्वर्गीय अटल जी ने कहा था......."छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता"

जो आगे बढ़ रहे हैं उनका मन उदार है.....उनका ह्रदय.....बड़ा है.....विराट है।

गरीब को लगता है के उसकी गरीबी का कारण चमचमाती गाड़ी में बैठा सेठ है!

समाजवाद तो गरीब का मूल कारण ही पूंजीवाद को मानता है।

लेकिन .......पूंजीवाद से घृणा बेमानी है.....बेतुकी है।
उस घृणा का मूल कारण किसी की सफलता नहीं है.....उसका मूल कारण स्वयं की असफलता है।

गाड़ी की लाइट्स फोड़ता व्यक्ति अपने दुःख से ........दुखी नहीं है.....वह किसी सफल व्यक्ति के........ सुख से .........दुखी है।

संभव हो तो ईर्षा छोड़ के अपने हृदय को उदार कीजिये। प्रयास कीजिये के आप भी किसी दिन धन संपत्ति अर्जित कर सकें।

पूंजीवाद से घृणा कर कुछ हासिल ना होगा...... हां.......अनुसरण करने से बहुत कुछ हासिल होगा।

130 करोड़ जनसंख्या के इस राष्ट्र में .......कामयाबी के करोड़ों रास्ते खुले हुऐ हैं।
सवाल यह है के हम अपने लिये कौनसा रास्ता चुनते हैं।

देर रात घर वापिस आ रहा था तो एक ट्रक के पीछे लिखा था......."जल मत....रीस कर"

शनिवार, 11 मार्च 2023

पहला कदम

 

सुनामी की हृदय विदारक घटना के बाद तमिलनाडु निकलने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका "आनंद विकटन" में एक सच्ची कहानी छपी थी।

एक दिन उनके कार्यालय में जयकुमार नाम का एक मछुआरा अपनी पत्नी राजवल्ली और दस वर्षीय पुत्र उदय के साथ पहुंच गया और कहा कि सुनामी में मेरे पुत्र के गुम जाने के बाद आपके समाचार पत्र में इससे संबंधित खबर छपी थी जिसके बाद सरकार की ओर से मेरे पुत्र को लापता/ मृत जानकर सरकार ने हमें एक लाख रुपए की राशि दी थी। अब चूंकि हमारा पुत्र जीवित है और वापस आ गया है तो आप इस राशि को सरकार को लौटाने में हमारी मदद करें क्योंकि स्थानिक प्रशासन ने ढेरों कागजी कार्यवाही का हवाला देकर यह राशि वापस लेने से मना कर दिया है।

अखबार वालों ने कहा - तो क्या हुआ पैसे रख लो।

उस गरीब मछुआरे ने कहा - नहीं! हमारे पुत्र का लौट आना ही सबसे बड़ा पारितोषिक है तो और हमें कुछ नहीं चाहिए। यह राशि अब रखना हमारे लिए अनैतिक होगा अतः आप इसे वापस करा दें।

भारत का मूल चरित्र यही है, यही है पाथेय कण जिसे भारत का  वो वर्ग सीख सकता है जो कभी जाति, कभी बोली, कभी क्षेत्र तो कभी पांथिक आधार पर या तो स्वयं अनैतिक और भ्रष्ट व्यवहार करता है या फिर अनैतिक और भ्रष्ट आचरण वालों को चुनता है, अपना नेतृत्व करने देता है।

जातिवादी नेता को वोट देकर ये अपेक्षा करना कि सर्व समाज का हित होगा, चरित्रहीन नेताओं को चुनकर ये मान लेना कि नारी सम्मान अक्षुण्ण रहेगा, क्षेत्रवादी नेता को प्रोत्साहन देकर ये सोच लेना कि राष्ट्रीय एकात्म भाव बना रहेगा और सत्ता के लिए सौदे- समझौते करने वालों को आदर देकर ये तय कर लेना कि राष्ट्र को अब कोई खतरा नहीं है, इस देश के दुर्भाग्य का कारण है, जिसके सबसे बड़े जिम्मेदार हैं यहां का कथित पढ़ा- लिखा समाज।

"नैतिकता" अंतरात्मा की शुद्धि के सिवा किसी चीज से नहीं आ सकता न उच्च शिक्षा से, न धन से और न ही किसी पद या प्रतिष्ठा से।

नैतिक बनना ही मनुष्य बनने की  यात्रा है, पहला क़दम है !!

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सोमवार, 6 मार्च 2023

अवसर

 

मौक़ा कभी व्यर्थ जाने ना दें।

एक युवक किसान की खूबसूरत बेटी से शादी करना चाहता था। वह अनुमति लेने के लिए किसान के पास गया।

किसान ने उसकी ओर देखा और कहा,

“बेटा, जा उस क्षेत्र में खड़ा हो। मैं एक-एक करके तीन बैल छोड़ने जा रहा हूँ। यदि तुम तीनों बैलों में से किसी एक की भी पूँछ पकड़ सकते हो, तो तुम मेरी पुत्री से विवाह कर सकते हो।”

युवक चारागाह में खड़ा होकर पहले बैल की प्रतीक्षा कर रहा था।

खलिहान का दरवाजा खुला और वह अब तक का सबसे बड़ा, विकराल दिखने वाला बैल निकला। उसने फैसला किया कि अगले दो बैल में से एक को इस से बेहतर विकल्प होना चाहिए, इसलिए वह एक तरफ हो गया और उस पहले बैल को पीछे के गेट से चारागाह से गुजरने दिया।

खलिहान का दरवाजा फिर से खुल गया। अविश्वसनीय !!  उसने अपने जीवन में इतना बड़ा और भयंकर कुछ भी नहीं देखा था। यह जमीन पर पांव फेरते हुए खड़ा था, घुरघुरा रहा था, स्लेजिंग कर रहा था क्योंकि वह उसकी ओर देख रहा था। अगला बैल जैसा भी हो, उसे इस से बेहतर विकल्प होना चाहिए था, उसने सोचा । फ़िर से वह बाड़ की ओर दौड़ा और बैल को चरागाह से पिछले द्वार के बाहर जाने दिया।

तीसरी बार दरवाजा खुला। उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। यह अब तक का सबसे कमजोर, सबसे छोटा बैल था। यह उसका बैल था। जैसे ही सांड दौड़ता हुआ आया, उसने अपने आप को बिल्कुल सही स्थान पर रखा और ठीक उसी क्षण कूद गया।

उसने पकड़ लिया... लेकिन बैल की पूँछ नहीं थी!

नैतिक.....

जीवन अवसरों से भरा है। कुछ का फायदा उठाना आसान होगा तो कुछ के लिए मुश्किल। लेकिन एक बार जब हम उन्हें (अक्सर कुछ बेहतर की उम्मीद में) पास होने देते हैं, तो वे अवसर फिर कभी उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए हमेशा पहले अवसर का लाभ उठाएं।

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रविवार, 5 मार्च 2023

उड़ान

 


                  

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। कुछ समय पश्चात राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे हैं । राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ। तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो। आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था।
ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा। “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया। सेवक बोला, “ जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”
राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ता देखना चाहते थे। अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा। फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे , पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था। वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।
फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया।“ “मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिस पर बैठने का आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।
हम सभी ऊँची उड़ान भरने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की क्षमता को भूल जाते हैं। जन्म जन्म हम वासनाओं की डाल पर बैठते आए हैं और अज्ञानवश ये भी हमें ज्ञात नहीं कि जो हम आज कर रहे हैं वहीं हमने जन्मों जन्मों में किया है और ये हम भूल ही गए हैं कि हम उड़ान भर सकते हैं।

अतृप्त वासनाओं की डाल पर बैठे बैठे हमें विस्मृत हो गया है कि ध्यानरूपी पंख भी हैं हमारे पास जिससे हम उड़ान भर सकते हैं पदार्थ से परमात्मा तक की, व्यर्थ से सार्थक की।

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शनिवार, 4 मार्च 2023

स्वर्ग कहाँ

 

एक झेन साधु था नान इन। उसके पास एक आदमी मिलने आया। वह बड़े क्रोध में था। घर में कुछ झगड़ा हो गया होगा। क्रोध में चला आया। आकर जोर से दरवाजा खोला। इतने जोर से कि दरवाजा दीवाल से टकराया। और क्रोध में ही जूते उतारकर रख दिए।

भीतर गया। नान इन को झुककर नमस्कार किया।
नान इन ने कहा कि,
"तेरा झुकना, तेरा नमस्कार स्वीकार नहीं है। तू पहले जाकर दरवाजे से क्षमा मांग। और जूते पर सिर रख; अपने जूते पर सिर रख और क्षमा मांग।'

उस आदमी ने कहा, "आप क्या बात कर रहे हैं! दरवाजे में कोई जान है, जो क्षमा मांगूं! जूते में कोई जान है, जो क्षमा मांगूं।"

नान इन ने कहा : जब इतना समझदार था, तो जूते पर क्रोध क्यों प्रगट किया? जूते में कोई जान है, जो क्रोध प्रगट करो! तो दरवाजे को इतने जोर से धक्का क्यों दिया? दरवाजा कोई तेरी पत्नी है? तू जा। जब क्रोध करने के लिए तूने जान मान ली दरवाजे में और जूते में, तो क्षमा मांगने में अब क्यों कंजूसी करता है?

उस आदमी को बात तो दिखायी पड़ गयी। वह गया, उसने दरवाजे से क्षमा मांगी। उसने जूते पर सिर रखा। और उस आदमी ने कहा कि इतनी शांति मुझे कभी नहीं मिली थी। जब मैंने अपने जूते पर सिर रखा, मुझे एक बात का दर्शन हुआ कि मामला तो मेरा ही है।

तुम दुःख के कारण नहीं देखते। दुःख के कारण, सदा तुम्हारे भीतर हैं। दुख बाहर से नहीं आता।
नर्क भी कहीं और नहीं है। नर्क तुम्हारे ही अचेतन मन में है। स्वर्ग कहीं आकाश में नहीं है। तुम अपने अचेतन मन को साफ कर लो कूड़े करकट से, वहीं स्वर्ग निर्मित हो जाता है। स्वर्ग और नर्क तुम्हारी ही भाव दशाएं हैं  🙏🙏

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