शनिवार, 17 दिसंबर 2022

अमर सिंह राठौड़

 कथा में प्रेरणा हो, सुखद है । पर ऐतिहासिक प्रेरक प्रसंग हो, तो अपने स्वर्णिम इतिहास पर गर्वित होने, सबक लेने के कारण बन जाते हैं । हमारा गौरवशाली अतीत हमारी आंखों में उतर आए, सीना चौड़ा होने की बातें हों, तो कौन भारतीय भला प्रेरित न हो !!

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मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था ।

दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौड़ ने अपनी पद चापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौड़ शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया ।


सलावत खां - ठहर जाओ अमर सिंह जी, आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।


अमर सिंह - मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है, फौज है, मैं किसी का गुलाम नहीं ।


सलावत खां - आप राजा थे ।अब सिर्फ आप हमारे सेनापति हैं, आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है । शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।


अमर सिंह - अगर मैं जुर्माना ना दूँ  !!


सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर, ये काफि़र आपके सामने हुकूम उदूली कर रहा है ।


अमर सिंह के कानों ने काफि़र शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया, तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी ।


मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा । अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया । दरबार में हड़कंप मच गया । वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया और शाहजहां का हाथ पकड़कर उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर वहां मौजूद खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।


दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।


बादशाह - हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया्, या खुदा ।


वज़ीर - जी जहाँपनाह ।


बादशाह - अमर सिंह बहुत बहादुर है, उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ । कहना, हमने माफ किया ।


वज़ीर - जी जहाँपनाह ।


हुजूर, लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता । समझ में नहीं आता, अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ?


बादशाह - सवाल वाजिब है, जवाब कल पता चल जाएगा ।


अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।


शाहजहां - अमर सिंह का कुछ पता चला ।


वजीर- नहीं जहाँपनाह, अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है।


शाहजहां - क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?


दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की, बड़े बड़े रुस्तम -ए- जमां मौजूद थे, लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी।


आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा, नाम था अर्जुन सिंह।


अर्जुन सिंह - हुज़ूर आप हुक्म दें, मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ।


बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा, यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है।


हिंदू बहादुर है लेकिन वह इसीलिए गुलाम हुआ। देखो, यही वजह है।


अर्जुन सिंह अमर सिंह के रिश्तेदार थे। अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी। अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है। इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है ।


*~शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा।*




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