अभी श्री अजीत प्रताप सिंह की चर्चा देख रहा था , सुंदर लगी । आप भी आनंदित हों, राष्ट्र प्रथम के विचारों को जिएं, यही भावना !!
अमेरिका एक विशिष्ट राष्ट्र है। उसकी हर बात निराली है।
आपको पता है कि सारी दुनिया कुछ भी नापने के लिए अब मिटरी प्रणाली का इस्तेमाल करती है। आप दस किलोमीटर चलते हैं, चार किलोग्राम दाल खरीदते हैं, गर्मी में आपके शहर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस होता है।
पर अमेरिका में दूरी माइल्स में तय होती है, सामान पाउंड्स में तौला जाता है, और तापमान फारेनहाइट में लिया जाता है।
सारी दुनिया ग्राम, मीटर, सेल्सियस पर चलती है और अमेरिका पाउंड, माइल्स और फारेनहाइट में। कोई दिक्कत नहीं। पर कितनी अजीब और विशिष्ट बात है कि अमेरिकन्स को दुनिया के साथ दिखने की कोई फिक्र नहीं। और वे आपकी तरह बनने की कोशिश भी नहीं करते। आप जब उनसे बात करेंगे तो आप ही को उनकी तरह बनना होगा, उनके सिस्टम के हिसाब से चीजों को बताना होगा।
दुनिया में हर मुद्रा का अपना नाम है। अमेरिका में डॉलर चलता है। कई अन्य देशों की मुद्राओं का नाम भी डॉलर है। पर रुतबा है कि आप जब भी डॉलर कहेंगे तो उसे बाई-डिफॉल्ट USD, यूनाइटेड स्टेट्स डॉलर ही समझा जाएगा। रुपया भी कई देशों की मुद्रा है, पर रुपया को बाई-डिफॉल्ट INR, इंडियन रूपी नहीं समझा जाता।
हम हजार, लाख, करोड़ में बात करते हैं, और आज तक सामान्य भारतीय को मिलियन, बिलियन, ट्रिलियन समझने में दिक्कत होती है। कम से कम मुझे तो होती है।
यह धमक है। यह उनकी ब्रांडिंग है कि वे अपना सिस्टम उपयोग करेंगे, और आपको उनके सिस्टम को अपने सिस्टम में कन्वर्ट कर समझना होगा।
अमेरिकन नागरिक दुनिया भर में बोली जाने वाली इंग्लिश के लिए कहते हैं कि वॉव, क्या एक्सेंट हैं। आई लव योर एक्सेंट। अमूमन ब्रिटिश एक्सेंट की तारीफ करते हैं और ऑस्ट्रेलियाई एक्सेंट का मजाक उड़ाते हैं। और पलट कर आप कह दो कि आपका एक्सेंट भी कमाल का है तो माथा सिकोड़ लेंगे कि हमारा कोई एक्सेंट नहीं है। उन्हें लगता है कि उनकी इंग्लिश बाई डिफॉल्ट है।
कुछ महिने पहले मेरी अरुण से बात हो रही थी। अरुण आर्थिक मामलों का जानकार है। मुझे जब अर्थ सम्बंधित कोई बात समझ नहीं आती, तब उसकी शरण में चला जाता हूँ। वह प्रैक्टिकल बातें करता है और मैं ऐसी ही भावनात्मक। आज भारत दुनिया का एक दमदार मुल्क बनता दिख रहा है। वह मुझे वास्तविक स्थिति समझा रहा था। बातों-बातों में मैंने कहा कि ताकत होनी चाहिए और दिखनी भी चाहिए।
जब तक हम दूसरे देशों के पैमानों पर अपनी बात रखते रहेंगे, मुझे नहीं लगता कि हम अपने आत्मविश्वास को दिखा पाएंगे।
अभी कुछ ही दिन पहले भारतीय परिवहन मंत्री ऑस्ट्रेलिया में बोल रहे थे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि वे बेलौस होकर ऑस्ट्रेलियाई श्रोताओं के सम्मुख लाख और करोड़ में बात कर रहे थे। जैसे कह रहे हों कि हम तो ऐसे ही बोलेंगे, आपको समझना हो तो खुद हिसाब कर लो।
अभी परसों ही विदेश मंत्री रशिया में थे। कॉन्फ्रेंस में 'मिडिल ईस्ट' पर एक सवाल पूछा गया। वे उत्तर देते हुए बोले कि 'नार्थ एशिया' जिसे आप 'मिडिल ईस्ट' कह रहे हैं ... ... ...
यह दिखाता है कि भारत अपनी धमक दिखा रहा है। जैसे अमेरिका हर चीज में अमेरिकीपन दिखाता है, छोटी-छोटी चीजों में अब इंडियननेस की खुशबू आने लगी है।
आप क्रिकेट देखते होंगे। पाकिस्तानी या कोई भी मुस्लिम खिलाड़ी जब बोलेगा तो 'इंशाल्लाह', 'अल्लाह का शुक्र है' इत्यादि बातें करेगा। इसमें कोई गलती नहीं। कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। यह ब्रांडिंग है। आप देखिए कि यह ब्रांडिंग इतनी कारगर है कि रेडिकल मजहबी कैसा भी पापकृत्य कर लें, कोई इनके खिलाफ खुलकर नहीं बोल पाता। बल्कि इनके साथ विशिष्ट व्यवहार होता है, जैसे ये बाकी इंसानों से अलग हैं।
अभी कुछ दिन पहले गलत तरीके से विराट कोहली के कमरे का वीडियो वायरल हो गया। उस वीडियो में दिखा कि एक तौलिए पर हनुमान सहित कुछ मूर्तियां रखी हैं। अगर यह वीडियो सही है तो माना जा सकता है कि विराट ईश्वर में आस्था रखते हैं। अब सोचिए कि बाउंड्री पर विराट कोई कैच पकड़ लें और अपने जगतप्रसिद्ध उत्साह में 'बजरंगबली की जय' चिल्ला दें। सूर्य कुमार यादव ट्रॉफी लेते समय 'सब महादेव की कृपा है' बोल दें। सारे खिलाड़ी टैटुओं के भार से दबे पड़े हैं, उनमें से एक टैटू ॐ का हो, या आदियोगी बने हों।
इंडियननेस की ब्रांडिंग हर जगह होनी चाहिए।
भारत एक विशिष्ट राष्ट्र है। विशिष्टता बात-व्यवहार में दिखनी चाहिए।
बाकी,
मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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