बुधवार, 30 नवंबर 2022

पीली सरसों

 

प्रयास रहेगा कि  *बुधवार स्वास्थ्य चर्चा*  पर छोटी छोटी बात होती रहे। धीरे धीरे अपनी आदतों में सुधार हो, कुछ सामान्य जानकारियों का ज्ञान हो - इसी विश्वास के साथ ।
राजीव कुमार जी बताते है -
1.कल पीली सरसों का तेल खुद बैठ कर निकलवाया गया वह भी कच्ची घानी से और traditional कोल्हू से ,जो धीरे धीरे घूमता है । धीरे धीरे घूमने के कारण तेल की गुणवत्ता उच्च स्तर की होती है । कच्ची घानी के कोल्हू में इमली के गुटके लगे होते हैं ।  आजकल बड़ी कंपनियों का तेल कोल्हू से नहीं निकलता । एक बड़ी कंपनी अडानी wilmar अपनी बोतलों पर कच्ची घानी का तेल लिख कर India के पढ़े लिखे बेवकूफों को अनपढ़ भी सिद्ध कर रही है ।

2. 90 रुपये किलो पीली सरसों ,8 रुपये किलो निकलवाई देकर 1 लीटर तेल 170 रुपये पड़ गया । खल 34 रुपये किलो बिक जाती है । खल कोहलू वाला ही ले लेता है । शुद्ध सरसों के तेल को आप कई महीनों तक store कर सकतें है  । एक बार मे कम से कम छह महीने का तेल निकलवा लेना चाहिये । काली सरसों 68 रुपये किलो है ।
3. खास बात यह रही कि शुद्ध  सरसों का तेल आंखों में से पानी निकाल देता है । निकालने वाले को  कम से कम पांच बार आंख धोनी पड़ीं । बाजार में मिलने वाले ब्रांडेड ,non ब्रांडेड तेल में मिलावट के कारण यह गुण समाप्त हो जाता है ।
4.  दूसरा शुद्ध सरसों के तेल की बोतल के आर पार सूरज की रोशनी भी नहीं निकल सकती । जबकि बाजार में मिलने वाले तेल चमकदार और पारदर्शी होते है क्योंकि ब्लीचिंग करने के लिये acid आदि डाले जातें हैं ।
5. बाजार में मिलने वाले ब्रांडेड  / unbranded सरसों के बहुत सस्ते पाम आयल और रिफाइन्ड आयल की मिलों से निकलने वाले waste material की मिलावट होती है ।
6. हमारे शहर में एक बहुत बड़ी रिफाइन्ड तेल की कंपनी है जो लगभग सब कंपनियों को तेल सप्लाई करती है उनका अपना बड़ा ब्रांड है । जिसको बेचने के लिये जापान के कोई सड़क छाप डॉक्टर से heart oil का सर्टिफिकेट ले लिया गया है । वह अपने घर के लिये पीली सरसों का तेल प्रयोग करतें हैं ।
7. पीली सरसों का तेल सही में heart oil है । हमारे एक मित्र को heart attack आ गया था । hero heart  से stunt डालवा कर आया है । डॉक्टर ने पर्ची पर पीली सरसों का तेल लिख कर दिया है ।  एक बार stunt पड़ गया तो 2-3 लाख तो गया पानी में । इतने का पूरी जिंदगी भर का तेल आ जायेगा ।
8. कोल्हू वाले से और मार्किट में रिसर्च करके पता लगा कि आजकल बड़े लोग पीली सरसों का तेल खुद निकलवा रहें हैं । यह कंपनियों वाला तेल तो केवल अब गरीब गुरवा ही प्रयोग कर रहा है । सरसों के तेल के साथ साथ ,नारियल , तिल ,असली ,बादाम आदि का तेल बड़े लोग खुद निकलवा रहे हैं । 10 साल में बहुत बड़ा बदलाव होगा ।
*ताज़ा खाएं - लोकल अपनाएं !!*

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रविवार, 27 नवंबर 2022

कम्फर्ट जोन

 


                                  
                           
*एक विद्वान किसी गाँव से गुजर रहा था,*
*उसे याद आया, उसके बचपन का मित्र इस गावँ में है, सोचा मिला जाए*।

*मित्र के घर पहुचा, लेकिन देखा, मित्र गरीबी व दरिद्रता में रह रहा है, साथ मे दो नौजवान भाई भी है।*

*बात करते करते शाम हो गयी, विद्वान ने देखा, मित्र के दोनों भाइयों ने घर के पीछे आंगन में फली के पेड़ से कुछ फलियां तोड़ी, और घर के बाहर बेचकर चंद पैसे कमाए और दाल आटा खरीद कर लाये।*

*मात्रा कम थी, तीन भाई व विद्वान के लिए भोजन कम पड़ता,*
*एक ने उपवास का बहाना बनाया,*
*एक ने खराब पेट का।*
*केवल मित्र, विद्वान के साथ भोजन ग्रहण करने बैठा।*
*रात हुई,*
*विद्वान उलझन में कि मित्र की दरिद्रता कैसे दूर की जाए?, नींद नही आई,*
*चुपके से उठा, एक कुल्हाड़ी ली और आंगन में जाकर फली का पेड़ काट डाला और रातों रात भाग गया।*

*सुबह होते ही भीड़ जमा हुई, विद्वान की निंदा हरएक ने की, कि तीन भाइयों की रोजी रोटी का एकमात्र सहारा, विद्वान ने एक झटके में खत्म कर डाला, कैसा निर्दयी मित्र था?*
*तीनो भाइयों की आंखों में आंसू थे।*

*2-3 बरस बीत गए,*
*विद्वान को फिर उसी गांव की तरफ से गुजरना था, डरते डरते उसने गांव में कदम रखा, पिटने के लिए भी तैयार था,*
*वो धीरे से मित्र के घर के सामने पहुचा, लेकिन वहां पर मित्र की *झोपड़ी की जगह कोठी नज़र आयी,*
*इतने में तीनो भाई भी बाहर आ गए,* *अपने विद्वान मित्र को देखते ही, रोते हुए उसके पैरों पर गिर पड़े।*
*बोले यदि तुमने उस दिन फली का पेड़ न काटा होता तो हम आज हम इतने समृद्ध न हो पाते*
*हमने मेहनत न की होती, अब हम लोगो को समझ मे आया कि तुमने उस रात फली का पेड़ क्यो काटा था।*

*जब तक हम सहारे के सहारे रहते है, तब तक हम आत्मनिर्भर होकर प्रगति नही कर सकते।*
*जब भी सहारा मिलता है तो हम आलस्य में दरिद्रता अपना लेते है।*
*दूसरा, हम तब तक कुछ नही करते* *जब तक कि हमारे सामने नितांत* *आवश्यकता नही होती, जब तक* *हमारे चारों ओर अंधेरा नही छा जाता*

*जीवन के हर क्षेत्र में इस तरह के फली के पेड़ लगे होते है। आवश्यकता है इन पेड़ों को एक झटके में काट देने की। प्रगति का इक ही रास्ता आत्मनिर्भरता।*
*हम सभी को सफल जीवन  जीने के लिए अपने सुविधा क्षेत्र ( कंफर्ट जोन) से बाहर निकलना ही होगा। इस तरह से ही काफी लोगो ने अपने जीवन में बड़ी बड़ी सफलताएं अर्जित की हैं।*

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शनिवार, 26 नवंबर 2022

उर्मिला 9

 

उर्मिला 9
     अयोध्या स्वर्ग की भाँति सज गयी थी। वहाँ का तृण तृण राममय था। राम को राजा बनते देखने की लालसा हर व्यक्ति में थी। हर व्यक्ति रामराज्य को जी लेना चाहता था।
      महिलाएं रोज आंगन के साथ साथ समूचे द्वार को गोरब-मिट्टी से लीप कर पवित्र कर देतीं।पुरुष-स्त्री दिन भर सजे सँवरे रहते। संध्या होते ही हर घर की चौखट, तुलसीचौरा, द्वार पर दीपकों की लड़ियाँ जगमगा जातीं।
     अंतःपुर में भी आनन्द पसरा हुआ था। तीनों माताएं अपने प्रिय राम को अयोध्यानरेश के रूप में देखने के लिए ब्याकुल थीं। उनकी हर वार्ता राज्याभिषेक से शुरू होती और वहीं पर समाप्त होती थी।
      जनक पुत्रियों के मध्य भी सदैव इसी आयोजन के सम्बंध में चर्चा हुआ करती थी। भरत और शत्रुघ्न तो भरत के ननिहाल गए थे, पर लक्ष्मण सदैव उत्साहित रहते थे। वे कभी पत्नी के साथ अपनी खुशियां बांटते तो कभी भाभियों सीता या माण्डवी को दरबार की खबरें बता रहे होते थे। पूरे राजमहल में बस दो लोग थे जो अब भी अतिउत्साह से इतर सामान्य भाव के साथ रह रहे थे। वे थे सिया और राम! वे बातें सुनते और मुस्कुरा उठते।
     और फिर एक दिन! संध्या के समय वाटिका में बैठी सीता और उर्मिला के पास माण्डवी दौड़ी हुई आईं। उनकी आँखों में जल और चेहरे पर चिन्ता झलक रही थी। स्वर कांप रहा था, पग लड़खड़ा रहे थे। रोती माण्डवी ने कहा, "अनर्थ होने वाला है दाय! अयोध्या का नाश होने वाला है।"
      सिया उठीं और माण्डवी को गले लगा लिया। उनकी पीठ थपथपाते हुए बोलीं- समय के हर निर्णय का कोई न कोई अर्थ अवश्य होता है माण्डवी, कुछ भी अनर्थ नहीं होता। क्या हुआ बहन? इतनी भयभीत क्यों हो?"
       "उस बूढ़ी दासी ने सब नाश कर दिया। उसने माता को भड़काया और माता भइया को वनवास भेजने के लिए कोप भवन में चली गईं। वे मेरे आर्य को अयोध्यानरेश बनाना चाहते हैं।" माण्डवी का स्वर टूट रहा था।
       सिया चुप रहीं। कुछ न कहा, बस माण्डवी की पीठ थपथपाती रहीं। माण्डवी ने ही फिर कहा, "माता अन्याय कर रही हैं। मैं आर्य को जानती हूँ, उन्हें राज्य का लोभ नहीं। राज्य भइया का है, और उनके स्थान पर राजा बनने का घिनौना विचार आर्य के मन को छू भी नहीं पायेगा। माता को कोई रोके दाय, अन्यथा सबकुछ तहस नहस हो जाएगा।"
      उर्मिला आश्चर्य में डूबी खड़ी हो गयी थीं। सिया ने दोनों को अपनी भुजाओं में भर लिया और कहा, "हम इस कुल की सबसे छोटी सदस्य हैं माण्डवी। हम पिताश्री और माताओं के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। पर स्मरण रहे, कुछ भी हो जाय हम कुल को एकत्र रखेंगे। हम कुछ टूटने नहीं देंगे। यही हमारा धर्म है..."
      सिया उर्मिला की ओर घूमीं और कहा, "तुम सुन रही हो न उर्मिला? कुछ भी हो जाय, यह परिवार नहीं बिखरना चाहिये। राजनीति की कालकोठरी में हो रही सम्बन्धों की परीक्षा में चारो भाई कितने सफल होते हैं यह वे ही जानें, पर आंगन की परीक्षा में हम चारों को सफल होना ही होगा। घर स्त्रियों का होता है, और वे ठान ले तो उन्हें ईश्वर भी नहीं तोड़ सकता।"
     "हम चार कब थीं दाय! हम एक ही हैं। हम तीनों कभी आपकी इच्छा के विरुद्ध नहीं होंगी।" उर्मिला समझ नहीं पा रही थीं कि क्या कहें। सिया ने कहा, "समय किसे कब कहाँ खड़ा करेगा यह हमें नहीं पता उर्मिला, पर यह तय रहे कि हम जहां भी होंगे परिवार के साथ होंगे। घर के पुरुष अगर टूट भी गए तो स्त्रियाँ उन्हें दुबारा बांध सकती है, पर स्त्रियां टूट जांय तो पुरुष घर को कभी बांध नहीं पाते। हमें घर को टूटने नहीं देना है।"
      "क्या होने वाला है दाय? मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।" उर्मिला की घबराहट कम नहीं हो रही थी।
      "क्या होगा, यह हमारे हिस्से का प्रश्न नहीं है उर्मिला! हमें बस यह प्रण लेना होगा कि कुछ भी हो जाय, महाराज जनक की बेटियां सब सम्भाल लेंगी। हम अयोध्या की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं होने देंगी।"
      तीनों ने एक दूसरे को मजबूती से पकड़ लिया था। यह जनकपुर का संस्कार था।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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रविवार, 20 नवंबर 2022

घर परिवार



पति मुस्कुराता हुआ अपने मोबाइल पर फटाफट उँगलियां दौड़ा रहा था! उसकी पत्नी बहुत देर से उसके पास बैठी खामोशी से देख रही थी, जो उसकी रोज़ की आदत हो गई थी और जब भी कोई बात अपने पति से करती तो जवाब ‘हाँ’ ‘हूँ’ में ही होता या नपे-तुले शब्दों में!
“किससे चैटिंग कर रहे हो?”
“फेसबुक फ्रेंड से।”
“मिले हो कभी अपने इस फ़्रेण्ड से?”
“नहीं”
“फिर भी इतने मुस्कुराते हुए चैटिंग करते हो?”
“और क्या करूँ बताओ?”
“कुछ नहीं, फेसबुक पे आपकी महिला मित्र भी बहुत -सी होंगी ना?”
“हूँ”
उँगलियों को हल्का -सा विराम दे मुस्कुराते हुए पति ने हुंकार भरी!
“उनसे भी यूहीं मुस्कुराते हुए चैटिंग करते हो, क्या आप सभी को भली-भांति जानते हो?”
पत्नी ने मासूमियत भरा प्रश्न पर प्रश्न किया!
“भली-भांति तो नहीं मगर रोजाना चैटिंग होते-होते बहुत कुछ हम आपस में एक दूसरे को जानने लगते हैं और बातें ऐसी होने लगती हैं कि मानो बरसों से जानते हो और मुस्कुराहट होठों पे आ ही जाती है, अपने -से लगने लग जाते हैं फिर ये!”
“हूँ और पास बैठे पराये -से!” पत्नी हुंकार सी भरने के बाद बुदबुदाई!
“अभी मजे़दार टॉपिक चल रहा है हमारे ग्रुप में! अरे, अभी तुमने क्या कहा था, ध्यान नहीं दे पाया! बोलो ना फिर से, अरे, यार किस सोच डूब गईं।”
पति मुस्कुराता हुआ तेज़ी से मोबाइल पर अपनी उँगलियाँ चलाता। हुआ एक नज़र पत्नी पे डाल बोला!
“किसी सोच में नहीं! सुनो, बस मेरी एक इच्छा पूरी करोगो?”
पत्नी टकटकी लगाए बोली!
“क्या अब तक तुम्हारी कोई अधूरी इच्छा रखी है मैंने? खैर, बोलो क्या चाहिए?”
“मेरा मतलब ये नहीं था, मेरी हर इच्छाएँ आपने पूरी की हैं मगर ये बहुत ही अहम है!”
“ऐसी बात तो बोलो क्या इच्छा?”
“एंड्रॉयड मोबाइल”
“मोबाइल! बस इनती- सी बात, ओके डन! मगर क्या करोगी बताना चाहोगी?” पति चोंक कर बोला!

पत्नी ने भीगी पलकों से प्रत्युत्तर दिया! “और कुछ नहीं, चैटिंग के ज़रिये आप मुझसे भी खुलकर बातें तो करोगे!”
------
इस चर्चा का मक़सद यही है की आज के  डिजिटल युग मे इंसान इतना व्यस्त हो गया है की वो अपनी निजी ज़िंदगी को भी समय नही देता है ।  पहले आप अपने परिवार को समय दो क्यूँकि डिजिटल जैसे - मोबाइल फेसबुक इंस्टाग्राम वग़ैरह से ज्यादा आपका परिवार है  ।


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शनिवार, 19 नवंबर 2022

उर्मिला 8

 

उर्मिला 8

बारात अयोध्या लौटी। महीनों तक अयोध्या के नगर जन अपने राजकुमारों के विवाह का उत्सव मनाते रहे।
    राजा दशरथ राम विवाह के बाद से ही बदल से गये थे। किसी भी पिता को सर्वाधिक आनन्द अपने पुत्र की गृहस्थी बसते देखने में आता है। उसे लगता है जैसे उसने अपनी यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा पास कर ली। आगे की यात्रा में सांसारिक संकटों के रोड़े उसके कमजोर हो रहे पैरों को चोटिल नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें अपनी ठोकर से उड़ा देने के लिए उसके पुत्र के बलशाली पैर अब आगे चल रहे होंगे।
     अत्यधिक खुशी या संतुष्टि अपने साथ वैराग्य ले कर आती है। राजा दशरथ के जीवन में भी अब वैराग्य उतर रहा था। उन्होंने लम्बे समय तक निर्विघ्न शासन किया था, वे सदैव अपनी प्रजा का आशीष पाने में भी सफल रहे थे। अपनी युवा अवस्था में संसार के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में स्थान बना चुके राजा दशरथ के पास अब राम लक्ष्मण जैसे तेजस्वी योद्धा पुत्र थे। उन्हें अब और किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं थी। वे पूर्ण हो चुके थे। इसी पूर्णता के भाव के साथ एक दिन उन्होंने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ को बुलाया और कहा- "इस राजमुकुट के भार से मुझे मुक्त करें भगवन! मेरी यात्रा पूर्ण हो गयी। मेरी अयोध्या को सौंप दीजिये अपने गुरुकुल का वह सर्वश्रेष्ठ अस्त्र, जिसे भविष्य में पुरुषोत्तम होना है।"
     महर्षि वशिष्ठ ने एक गहरी सांस ली। मुस्कुराए, और कहा- "अवश्य राजन! युग परिवर्तन का समय आ गया। चलिये! रघुकुल की तपस्या यहाँ से प्रारम्भ होती है।"
     राजा दशरथ कुलगुरु की बात समझ न सके, पर वे संतुष्ट थे। जो स्वयं राम के पिता थे, उन्हें किसी अनिष्ट की आशंका क्यों होती भला...?
     उधर अंतः पुर में आनन्द पसरा हुआ था। तीनों माताओं ने अपनी चारों पुत्रवधुओं को जैसे हृदय में रख लिया था। सिया, राम से जुड़ कर आई थीं, सो वे सबकी दुलारी थीं। वे सदैव माताओं के दुलार की छाया में होती थीं। कभी कौशल्या उनके बाल बना रही होतीं, तो कभी कैकई उन्हें अपने हाथों से उन्हें स्वादिष्ट भोजन करा रही होतीं थीं। माता कैकई उन्हें सबसे अधिक प्रेम करती थीं। माता सुमित्रा का तो जन्म ही परिवार में प्रेम बाँटने और और कुल की सेवा करने के लिए हुआ था। वे सभी बधुओं पर प्रेम बरसाती रहती थीं।
     उर्मिला को कौशल्या का सर्वाधिक स्नेह प्राप्त था। वे सदैव उनकी सेवा में लगी रहती थीं। माता कौशल्या बड़े प्रेम से उनसे मिथिला की कहानियां सुनती रहतीं।
     माण्डवी और श्रुतिकीर्ति भी बड़ों की सेवा में लगी रहती थीं। चारों बहनों का आपसी स्नेह अयोध्या में और भी प्रगाढ़ हो गया था।
      संध्या का समय था, चारों बहनें अन्तःपुर की वाटिका में बैठी आपस में बातें कर रही थीं, तभी एक दासी दौड़ी हुई आयी और कहा- "जानती हैं! महाराज, युवराज का राज्याभिषेक की योजना बना रहे हैं। प्रसन्न हो जाइए, सम्भव है कल परसो तक राजकुमार राम के राज्याभिषेक का दिन निश्चित हो जाय।"
     सचमुच चारों प्रसन्न हो उठीं। श्रुतिकीर्ति ने सिया को चिढ़ाते हुए सर झुका कर कहा, "प्रणाम महारानी! दासी का अभिवादन स्वीकार करें..."
     सिया ने मुस्कुराते हुए उसके माथे पर चपत लगाई और कहा, "धत! कोई महारानी और कोई दासी नहीं होगा रे! जैसे अबतक जीये हैं वैसे ही आगे जिएंगे। हमारा धर्म है परिवार को बांध कर रखना, हम वही करेंगे।"
     पीछे से उर्मिला ने कहा, "नहीं सिया दाय! आप अयोध्या की महारानी हो रही हैं। आप पाहुन के साथ मिल कर देश को बांधिए, परिवार को बांध कर रखने का दायित्व मेरा रहा। भरोसा रखियेगा, इस तप में आपकी बहन कभी नहीं टूटेगी।"
     सिया मुस्कुरा उठीं। वे जानती थीं, उर्मिला का कठोर तप खंडित नहीं होने वाला था।
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सोमवार, 14 नवंबर 2022

आज़ाद करना

 एक पचपन की औरत आयी अपने बेटे, बहु और पति के साथ। समस्या थी, सास-बहू का कलह जो अब बहु को अवसाद में डाल रहा था। बेटा एकलौता था और ना तो घर छोड़ माँ से ही अलग हो पा रहा था नाही अपनी पत्नी के दुख को सम्भाल पा रहा था। पिता का धैर्य भी अब जवाब दे चुका था। 


उस औरत ने बताया कि कैसे बहु तमाम ऐसी चीजें करती है जो उनके जमाने में औरतें कभी नहीं किया करती थी। वे तमाम चीजें थी- बहु का  जीन्स पहनना, फ़िल्म देखने जाना, ट्रेकिंग ट्रिप बनाना और ऐसी ही एक हजार एक टुच्ची बातें जो अभी के जमाने में पली-बढ़ी हर सामान्य लड़की करती है। बेटा पर भी बीवी की ऐसी हर बात को पूरा समर्थन देने का इल्जाम था। पति पर बहु की इन हरक़तों पर ध्यान ना देने का इल्जाम था। अतः पूरा परिवार ही  औरत के नजर में दोषी था इस बदले समीकरण के लिये। 


बेटे और पिता चाह रहे थे कि दोनों तरफ से कुछ compromise हो जाये तो गाड़ी किसी तरह आगे बढ़, इसीलिये family counselling की मांग की । पर psychologist ने साफ मना कर दिया और बोला अगली बार वह औरत अकेली आएगी।औरत ने विरोध किया कि हरयाणा से दिल्ली तक उसे अकेले ऐसे-कैसे बुलाया जा सकता है। डॉक्टरी चक्कर में तो साथ होना ही चाहिये लोगों को। वहाँ भी नहीं तो कम से कम  कार चलाने के लिए तो पुरुष चाहिए ही होगा। पर Psychologist ने एक नहीं सुनी। हालांकि बेटे को अलग से बता दिया गया था कि अगर माँ का डिसीजन ना बदले तो वह साथ लेकर आ जाये। 


पर वह औरत अकेली आयी। बेटे ने जबरदस्ती भेजा, बस से। दूसरे सेशन में भी सिर्फ मन का गुब्बार निकालती रही। कैसे उनकी जिंदगी सास-ससुर की सेवा में बीती और कैसे अब बहु उसका एक चौथाई भी नहीं करती जितना उन्होंने किया था। बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं है अब उस बेचारी के लिये। फिर उस काउंसलर ने उसे कुछ होमवर्क दिया, अगली बार आने से पहले फ़िल्म देखने जाना, अपने लिये एक मोबाइल खरीदना( उसके पास नहीं थी, नाही उसे जरूरत लगी कभी), और अपने पसंदीदा गानों की एक लिस्ट डाउनलोड करना खुद से।


 जब घर पहुंची तो बेटा इस लिस्ट को देखकर चिढ़ गया। उसकी बीवी दुःखी थी और यहाँ psychologist उसकी परम्परावादी घर बैठने वाली मां को फ़िल्म देखने भेज रही थी। पर उसने भी साथ दिया, मन मार कर ही सही। अगले सप्ताह काउंसलिंग के साथ फिर कुछ ऐसे ही होमवर्क मिले। कुछ सेशन बाद परिवार को बुलाया गया। लड़ाइयां अपने आप कम होती जा रही थी। 


सास को कई होमवर्क में बहु ने मदद किया था, पुरूषों के पास समय के अभाव की वजह से अगली फ़िल्म दोनों साथ देखने गए थे और काउंसलर के कहे अनुसार पार्लर भी। 


 हालांकि काउंसलिंग में और भी कई बातें थी, भावनाओं को समझना और उन्हें सम्भालना भी हुआ, पर बदलाव की मुख्य वजह यह थी कि पहली बार यह औरत वो चीजे कर पायी जो उसने अपनी सास की डर से कभी नहीं किया था। उसकी सास तो मर गयी पर परम्पराओ का जकड़न साथ रहा, अब यही जकड़न वह बहु पर लादना चाहती थी।लेकिन ज्यादा ध्यान से देखे तो दुःख बहु की हरकतों का नहीं था, दुःख था अपनी आजादी ना पाने का। मां को हमेशा किचन में देखने का आदि बेटा भी कभी नहीं पूछा फ़िल्म देखने चलने के लिये नाही पति ने कभी कहा जाओ सहेलियों के साथ कोई ट्रिप बनाओ। और सच कहा जाए तो उस औरत के दिमाग में भी कभी नहीं आया कि उसकी जिंदगी भी किसी अलग गति से अलग रास्ते पर चल सकती है। पर जब एक बार वह अपनी आजादी पाने लगी तो बहु की आजादी देखकर बुरा लगना भी बंद हो गया। काउंसलर ने सास-बहू के समीकरण के बजाय सास की जिंदगी पर ध्यान दिया, उसकी हॉबी ढूंढी, उसके सपनो पर बात की। 


इन दिनों वह औरत बहु के साथ शिमला जाने के प्लान को लेकर बहुत excited है।


पर ऐसी कहानियाँ तो हर घर में है। अक्सर जब हम पुरानी पीढ़ी के कठोरता की शिकायत करते हैं, तो यह भूल जाते हैं कि यह वह पीढ़ी थी जिसके अस्तित्व की रचना ही मानो जिम्मेदारी निभाने के लिये हुई। हम चाहते हैं वो हमारी आजादी समझे पर कभी कोशिश नहीं करते उन्हें ज्यादा आजाद करने की। पर कोई इंसान जो हमेशा अपने सपनों से समझौता करता रहा हो, उसे दूसरे की आजादी भी क्यों अच्छी लगेगी??


इसीलिये बेहतर है,नयी पीढ़ी को समझौता करने के बजाय पुरानी पीढ़ी की कुछ जिम्मेदारियाँ  छीन लेनी चाहिये, उन्हें भी आजाद कर देना चाहिये।


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रविवार, 13 नवंबर 2022

चाण्डाल मन

 एक संत एक छोटे से आश्रम का संचालन करते थे। एक दिन पास के रास्ते से एक राहगीर को रोककर अंदर ले आए और शिष्यों के सामने उससे प्रश्न किया कि यदि तुम्हें सोने की अशर्फियों की थैली रास्ते में पड़ी मिल जाए तो तुम क्या करोगे 

वह आदमी बोला - "तत्क्षण उसके मालिक का पता लगाकर उसे वापस कर दूंगा अन्यथा राजकोष में जमा करा दूंगा।" 


संत हंसे और राहगीर को विदा कर शिष्यों से बोले -" यह आदमी मूर्ख है।" 


शिष्य बड़े हैरान कि गुरुजी क्या कह रहे हैं ? इस आदमी ने ठीक ही तो कहा है तथा सभी को ही यह सिखाया गया है कि ऐसे किसी परायी वस्तु को ग्रहण नहीं करना चाहिए।

           

थोड़ी देर बाद फिर संत किसी दूसरे को रोककर अंदर ले आए और उससे भी वही प्रश्न दोहरा दिया। 


उस दूसरे राहगीर ने उत्तर दिया कि क्या मुझे निरा मूर्ख समझ रखा है ?, जो स्वर्ण मुद्राएं पड़ी मिलें और मैं लौटाने के लिए मालिक को खोजता फिरूं? तुमने मुझे समझा क्या है ?

           

वह राहगीर जब चला गया तो संत ने कहा -" यह व्यक्ति शैतान है। 


शिष्य बड़े हैरान हुए कि पहला मूर्ख और दूसरा शैतान, फिर गुरुजी चाहते क्या हैं ?

           

अबकी बार संत तीसरे राहगीर को  अंदर ले आए और वही प्रश्न दोहराया।

           

राहगीर ने बड़ी सज्जनता से उत्तर दिया--" महाराज! अभी तो कहना बड़ा मुश्किल है।इस  *चाण्डाल मन का क्या भरोसा,*  कब धोखा दे जाए ?  एक क्षण की खबर नहीं। यदि परमात्मा की कृपा रही और सद्बुद्धि बनी रही तो लौटा दूंगा।"


             संत बोले -


*" यह आदमी सच्चा है। इसने अपनी डोर परमात्मा को सौंप रखी है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा कभी गलत निर्णय नहीं होता।*


*ज्येष्ठ पांडव, सूर्यपुत्र कर्ण कर्म, धर्म का ज्ञाता, क्या कारण था की अपने छोटे भाई अर्जुन से हार गया जबकि कर्म और धर्म दोनों में वो अर्जुन के समकक्ष व श्रेष्ठ था। कारण था कि अर्जुन ने अपनी घर से निकलने से पहले ही अपनी जीवन रथ की डोरी,भगवान श्री कृष्ण के हाथ में दे रखी थी..!!*

  

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शनिवार, 12 नवंबर 2022

उर्मिला 7

उर्मिला 7

      भगवान परशुराम को आते देख कर वृद्ध राजा दशरथ का हृदय कांप उठा। उन्होंने कातर भाव से देखा महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर, जैसे कह रहे हों- इस ईश्वरीय कोप से हमारी रक्षा करें ऋषिगण...
      भगवान विष्णु ने परशुरामावतार सत्ताधारियों की निरंकुशता को समाप्त करने के लिए लिया था। सुदूर पश्चिम के बर्बर प्रदेशों से आने वाले राक्षसों के आक्रमण और कुछ समय तक आर्यवर्त में भी उनकी सत्ता स्थापित होने के कारण कुछ क्षत्रियों पर भी उनका प्रभाव पड़ा था और वे आततायी हो गए थे। भगवान परशुराम ने ऐसे क्षत्रियों को बार बार दंडित किया था। पर रघुकुल के शासक सदैव प्रजावत्सल होते आये थे, सो उनके साथ उनका कोई संघर्ष नहीं हुआ था।
       भगवान विष्णु का अंश होने के कारण भगवान परशुराम यह भी जानते थे कि अगला अवतार भी इसी कुल में जन्म लेगा, सो अगले युगनायक की पहचान कर उसका मार्ग प्रशस्त करना भी उनका दायित्व था।
       भगवान परशुराम के स्वागत के लिए महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र आगे बढ़े, और उनका यथोचित सम्मान किया। पर आगंतुक की इस सम्मान में कोई रुचि नहीं थी। उनकी दृष्टि जिसे ढूंढ रही थी, उसे देखते ही वे आगे बढ़े और उनतक पहुँच कर पूछा, "राम आप ही हैं?"
      राम के मुख पर दैवीय शान्ति थी। कहा, "जी भगवन!"
-शिव धनुष आपने ही तोड़ा है?
-जी प्रभु!
-फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं क्यों आया हूँ?
-जी भगवन!
- तो लीजिये भगवान विष्णु का यह महान धनुष, जो युगों से मेरे पास पड़ा शायद आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा है। इसपर प्रत्यंचा चढ़ाइए और सिद्ध कीजिये की आप ही राम हैं।
     भगवान परशुराम ने अपने कन्धे से एक अद्भुत धनुष उतारा और राम की ओर बढ़ा दिया। राजा दशरथ के साथ समस्त अयोध्या निवाशी आश्चर्य में डूबे इस महान दृश्य को चुपचाप देख रहे थे। पर दो लोग थे, जिनके मुख पर आश्चर्य नहीं, प्रसन्नता पसरी हुई थी। वे थे महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र!
      राम मुस्कुराए। भगवान परशुराम के हाथों से धनुष लिया और क्षण भर में प्रत्यंचा चढ़ा दी। फिर बाण चढ़ा कर बोले, "कहिये भगवन! इस बाण से किसका नाश करूँ?"
      भगवान परशुराम अठ्ठाहस कर उठे। उन्हें इस तरह हँसते हुए कभी न देखा गया था। बोले, "इस बाण को छोड़ने की आवश्यकता ही नहीं राम। आपके बाण चढ़ाते ही मेरी समस्त अर्जित शक्तियां आपकी हो गयी हैं और मैं शक्तिहीन हो गया हूँ। इसे उतार लें और मुझे महेंद्र पर्वत पहुँचाने की कृपा करें, क्योंकि इसी के साथ मेरी तीव्र गति से कहीं भी चले जाने की शक्ति भी समाप्त हो गयी है। यह आपका युग है राम! और जबतक आप हैं, तबतक मैं महेंद्र पर्वत पर ही तपस्यारत रहूंगा।"
       राम के चेहरे की मुस्कान बनी रही। पूर्व की भांति ही कहा, "जो आज्ञा भगवन!"
       भगवान परशुराम अब महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर मुड़े, और मुस्कुराते हुए कहा, "बधाई हो ऋषिगण!"
       उस युग के तीन महान तपस्वी एक साथ हँस उठे, जिसका रहस्य सिवाय राम के और कोई न समझ सका। महर्षि वशिष्ठ ने कहा, "रघुकुल को आपके आशीष की आवश्यकता है भगवन! कृपया सबको कृतार्थ करें।"
       राजा दशरथ, राम चारों भाई और चारों वधुएँ निकट आ गयी थीं और सभी हाथ जोड़ कर खड़े थे। परशुराम बोले, "राम को क्या आशीष दूँ, वे तो राम ही हैं। पूरे कुल को आशीष देता हूँ, कि परस्पर प्रेम बना रहे।" इतना कह कर परशुराम वधुओं के निकट चले गए और फिर कहा, "एक दूसरे पर विश्वास और समर्पण बनाये रखना पुत्रियों! तुम्हारे कुल को इसकी बहुत आवश्यकता है। सिया तो समूचे संसार के लिए लक्ष्मी स्वरूपा है, पर रघुकुल की लक्ष्मी तुम हो उर्मिला! सदैव स्मरण रखना, रघुकुल की प्रतिष्ठा तुम्हारी तपस्या से भी तय होगी..."
     सबको आशीर्वाद दे कर परशुराम पुनः महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर मुड़े। तीनों ऋषियों में कुछ वार्ता हुई, जिसे कोई न सुन सका। इसी के साथ परशुराम अपने धाम को लौट चले।
     बारात अयोध्या की ओर बढ़ चली।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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गुरुवार, 10 नवंबर 2022

मम राष्ट्र


अभी श्री अजीत प्रताप सिंह  की चर्चा देख रहा था , सुंदर लगी । आप भी आनंदित हों, राष्ट्र प्रथम के विचारों को जिएं, यही भावना !!

अमेरिका एक विशिष्ट राष्ट्र है। उसकी हर बात निराली है।

आपको पता है कि सारी दुनिया कुछ भी नापने के लिए अब मिटरी प्रणाली का इस्तेमाल करती है। आप दस किलोमीटर चलते हैं, चार किलोग्राम दाल खरीदते हैं, गर्मी में आपके शहर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस होता है।

पर अमेरिका में दूरी माइल्स में तय होती है, सामान पाउंड्स में तौला जाता है, और तापमान फारेनहाइट में लिया जाता है।

सारी दुनिया ग्राम, मीटर, सेल्सियस पर चलती है और अमेरिका पाउंड, माइल्स और फारेनहाइट में। कोई दिक्कत नहीं। पर कितनी अजीब और विशिष्ट बात है कि अमेरिकन्स को दुनिया के साथ दिखने की कोई फिक्र नहीं। और वे आपकी तरह बनने की कोशिश भी नहीं करते। आप जब उनसे बात करेंगे तो आप ही को उनकी तरह बनना होगा, उनके सिस्टम के हिसाब से चीजों को बताना होगा।

दुनिया में हर मुद्रा का अपना नाम है। अमेरिका में डॉलर चलता है। कई अन्य देशों की मुद्राओं का नाम भी डॉलर है। पर रुतबा है कि आप जब भी डॉलर कहेंगे तो उसे बाई-डिफॉल्ट USD, यूनाइटेड स्टेट्स डॉलर ही समझा जाएगा। रुपया भी कई देशों की मुद्रा है, पर रुपया को बाई-डिफॉल्ट INR, इंडियन रूपी नहीं समझा जाता।

हम हजार, लाख, करोड़ में बात करते हैं, और आज तक सामान्य भारतीय को मिलियन, बिलियन, ट्रिलियन समझने में दिक्कत होती है। कम से कम मुझे तो होती है।

यह धमक है। यह उनकी ब्रांडिंग है कि वे अपना सिस्टम उपयोग करेंगे, और आपको उनके सिस्टम को अपने सिस्टम में कन्वर्ट कर समझना होगा।

अमेरिकन नागरिक दुनिया भर में बोली जाने वाली इंग्लिश के लिए कहते हैं कि वॉव, क्या एक्सेंट हैं। आई लव योर एक्सेंट। अमूमन ब्रिटिश एक्सेंट की तारीफ करते हैं और ऑस्ट्रेलियाई एक्सेंट का मजाक उड़ाते हैं। और पलट कर आप कह दो कि आपका एक्सेंट भी कमाल का है तो माथा सिकोड़ लेंगे कि हमारा कोई एक्सेंट नहीं है। उन्हें लगता है कि उनकी इंग्लिश बाई डिफॉल्ट है।

कुछ महिने पहले मेरी अरुण से बात हो रही थी। अरुण आर्थिक मामलों का जानकार है। मुझे जब अर्थ सम्बंधित कोई बात समझ नहीं आती, तब उसकी शरण में चला जाता हूँ। वह प्रैक्टिकल बातें करता है और मैं ऐसी ही भावनात्मक। आज भारत दुनिया का एक दमदार मुल्क बनता दिख रहा है। वह मुझे वास्तविक स्थिति समझा रहा था। बातों-बातों में मैंने कहा कि ताकत होनी चाहिए और दिखनी भी चाहिए।

जब तक हम दूसरे देशों के पैमानों पर अपनी बात रखते रहेंगे, मुझे नहीं लगता कि हम अपने आत्मविश्वास को दिखा पाएंगे।

अभी कुछ ही दिन पहले भारतीय परिवहन मंत्री ऑस्ट्रेलिया में बोल रहे थे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि वे बेलौस होकर ऑस्ट्रेलियाई श्रोताओं के सम्मुख लाख और करोड़ में बात कर रहे थे। जैसे कह रहे हों कि हम तो ऐसे ही बोलेंगे, आपको समझना हो तो खुद हिसाब कर लो।

अभी परसों ही विदेश मंत्री रशिया में थे। कॉन्फ्रेंस में 'मिडिल ईस्ट' पर एक सवाल पूछा गया। वे उत्तर देते हुए बोले कि 'नार्थ एशिया' जिसे आप 'मिडिल ईस्ट' कह रहे हैं ... ... ...

यह दिखाता है कि भारत अपनी धमक दिखा रहा है। जैसे अमेरिका हर चीज में अमेरिकीपन दिखाता है, छोटी-छोटी चीजों में अब इंडियननेस की खुशबू आने लगी है।

आप क्रिकेट देखते होंगे। पाकिस्तानी या कोई भी मुस्लिम खिलाड़ी जब बोलेगा तो 'इंशाल्लाह', 'अल्लाह का शुक्र है' इत्यादि बातें करेगा। इसमें कोई गलती नहीं। कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। यह ब्रांडिंग है। आप देखिए कि यह ब्रांडिंग इतनी कारगर है कि रेडिकल मजहबी कैसा भी पापकृत्य कर लें, कोई इनके खिलाफ खुलकर नहीं बोल पाता। बल्कि इनके साथ विशिष्ट व्यवहार होता है, जैसे ये बाकी इंसानों से अलग हैं।

अभी कुछ दिन पहले गलत तरीके से विराट कोहली के कमरे का वीडियो वायरल हो गया। उस वीडियो में दिखा कि एक तौलिए पर हनुमान सहित कुछ मूर्तियां रखी हैं। अगर यह वीडियो सही है तो माना जा सकता है कि विराट ईश्वर में आस्था रखते हैं। अब सोचिए कि बाउंड्री पर विराट कोई कैच पकड़ लें और अपने जगतप्रसिद्ध उत्साह में 'बजरंगबली की जय' चिल्ला दें। सूर्य कुमार यादव ट्रॉफी लेते समय 'सब महादेव की कृपा है' बोल दें। सारे खिलाड़ी टैटुओं के भार से दबे पड़े हैं, उनमें से एक टैटू ॐ का हो, या आदियोगी बने हों।

इंडियननेस की ब्रांडिंग हर जगह होनी चाहिए।

भारत एक विशिष्ट राष्ट्र है। विशिष्टता बात-व्यवहार में दिखनी चाहिए।

बाकी,
मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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रविवार, 6 नवंबर 2022

दर्पण

 

*एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा-  मेरे कर्मचारी, मेरी पत्नी,मेरे बच्चे और सभी लोग मतलबी हैं।  कोई भी सही नहीं हैं क्या करूँ ?*
*गुरु थोडा मुस्कुराये और उसे एक कहानी सुनाई।*

*एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमे 100 शीशे लगे थे।एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी।उसने देखा 100 बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं और वो उन प्रतिबिम्ब बच्चो के साथ खुश रहने लगी।जैसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते।उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है और यहां बार बार आना चाहेगी।*
*थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया। उसने अपने चारो तरफ हजारों दु:ख से भरे चेहरे देखे।वह बहुत दु:खी हुआ। उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा तो उसने देखा सैंकड़ो हाथ उसे धक्का मार रहे है।उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है वह यहां दोबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़ दी।*
*इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमें हजारों शीशे लगे है।जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमें लौटा देती है।अपने मन और दिल को साफ़ रखें तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग की तरह ही है।*

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शनिवार, 5 नवंबर 2022

उर्मिला 6

 उर्मिला 6


जनकपुर के राजपरिवार ने अपनी चारों राजकुमारियों का विवाह संपन्न करा लिया। 

        पिता के बटवारे में बेटियों के हिस्से आंगन आता है। जब आंगन में बेटी के विवाह का मण्डप बनता है, उसी क्षण वह आंगन बेटी का हो जाता है। विवाह के बाद वर के पिता कन्या के पिता से थोड़ा धन लेकर मण्डप का बंधन खोल वह आंगन लौटा तो देते हैं, पर सच यही है कि पिता अपना आंगन ले नहीं पाता। आंगन सदा बेटियों का ही होता है। घर के आंगन पर बेटियों का अधिकार होने का अर्थ समझ रहे हैं न? अपने घर में भी स्मरण रखियेगा इस बात को... उस दिन राजा जनक के राजमहल के आंगन पर ही नहीं, जनकपुर के हर आंगन पर सिया का अधिकार हो गया। वह आज भी है...

       राजा ने बेटियों को भरपूर कन्या धन दिया। लाखों गायें, अकूत स्वर्ण, असंख्य दासियाँ... अब विदा की बेला थी। अपनी अंजुरी में अक्षत भर कर पीछे फेंकती बेटियां आगे बढ़ी, जैसे आशीष देती जा रही हों कि मेरे जाने के बाद भी इस घर में अन्न-धन बरसता रहे, यह घर हमेशा सुखी रहे। वे बढ़ीं अपने नए संसार की ओर! उनकी आंखों से बहते अश्रु उस आंगन को पवित्र कर रहे थे। उनकी सिसकियां कह रही थीं, "पिता! तुम्हारी सारी कठोरता को क्षमा करते हैं। तुम्हारी हर डांट क्षमा... हमारे पोषण में हुई तुम्हारी हर चूक क्षमा..."

      माताओं ने बेटियों के आँचल में बांध दिया खोइछां! थोड़े चावल, हल्दी, दूभ और थोड़ा सा धन... ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए, कि तेरे घर में कभी अन्न की कमी न हो! तेरे जीवन में हल्दी का रंग सदैव उतरा रहे, तेरा वंश दूभ की तरह बढ़ता रहे, तेरे घर में धन की वर्षा होती रहे। और साथ ही यह बताते हुए, कि याद रखना! इस घर का सारा अन्न, सारा धन, सारी समृद्धि तुम्हारी भी है, तुम्हारे लिए हम सदैव सबकुछ लेकर खड़े रहेंगे।

      जनकपुर की चारों बेटियां विदा हुईं तो सारा जनकपुर रोया। पर ये सिया के मोह में निकले अश्रु नहीं थे, ये सभ्यता के आंसू थे। गाँव के सबसे निर्धन कुल की बेटी के विदा होते समय गाँव की हवेली भी वैसे ही रोती है, जैसे गाँव की राजकुमारी के विदा होते समय गाँव का सबसे दरिद्र बुजुर्ग रोता है। बेटियां किसी के आंगन में जन्में, पर होती सारे गाँव की हैं। सिया उर्मिला केवल जनक की नहीं, जनकपुर की बेटी थीं।

      राजा दशरथ पहले ही जनकपुर के राजमहल से निकल कर जनवासे चले गए थे। परम्परा है कि ससुर मायके से विदा होती बहुओं का रोना नहीं सुनता। शायद उस नन्हे पौधे को उसकी मिट्टी से उखाड़ने के पाप से बचने के लिए... उसका धर्म यह है कि जब पौधा उसकी मिट्टी में रोपा जाय, तो वह माली दिन रात उसे पानी दे, खाद दे... अपने बच्चों की नई गृहस्थी को ठीक से सँवार देना ही उसका धर्म है।

      चारों वधुएँ अपने नए कुटुंब के संग पतिलोक को चलीं। जनकपुर में महीनों तक छक कर खाने के बाद अयोध्या की प्रजा समधियाने से मिले उपहारों को लेकर गदगद हुई अयोध्या लौट चली।

    समय ध्यान से देख रहा था उन चार महान बालिकाओं को, जिन्हें भविष्य में जीवन के अलग अलग मोर्चों पर बड़े कठिन युद्ध लड़ने थे। समय देख रहा था उन चार बालकों को भी, जिनके हिस्से उसने हजार परम्पराओं को एक सूत्र में बांध कर एक नए राष्ट्र के गठन की जिम्मेवारी दी थी।

     बारात जनकपुर की सीमा से जैसे ही बाहर निकली, एकाएक तेज आँधी चलने लगी। हाथी भड़कने लगे, रथ डगमगाने लगे, धूल से समूचा आकाश काला हो गया। अचानक सबने देखा, धूल के अंधेरे से एक विराट तेजस्वी मूर्ति निकल कर चली आ रही थी। निकट आने पर सबने पहचाना, वे पिछले युग के राम थे, परशु-राम।

क्रमशः

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च्यवनप्राश

सर्दियां आ रही हैं। ऐसे में खांसी जुखाम आदि कई तरह की शारीरिक परेशानियां सर्दियों में रहती है।

बहुत सारे लोग सर्दियों में चवनप्राश खाते हैं। जो यह बड़ी-बड़ी कंपनियां करोड़ों रुपए देकर अपनी-अपनी कंपनियों के चवनप्राश का विज्ञापन करवाती हैं। उनकी गुणवत्ता भी नाममात्र भी की होती है।

अतः  सलाह है कि सर्दियों में धूतपापेश्वर कंपनी का श्यामला चवनप्राश का ही प्रयोग करें। इसकी क्वालिटी बाकी कंपनियों के चवनप्राश से बहुत ही बढ़िया है।

अगर भविष्य में होने वाली कई तरह की शारीरिक परेशानियों  से बचना चाहते हैं और अपने आप को शारीरिक रूप से मजबूत रखना चाहते हैं तो इसमें 1 ग्राम स्वर्ण भस्म मिला लें।

अगर किसी को आंखों से संबंधित किसी भी तरह की समस्या है तो इसमें 5 ग्राम मोती पिष्टी मिला ले। आंखों की समस्याओं से संबंधित लाभ अवश्य मिलेगा।

स्वर्ण भस्म और मोती पिष्टी मिलाने का तरीका।

चवनप्राश आमतौर पर सख्त होता है, तो इसमें स्वर्ण भस्म और मोती पिष्टी मिलाने के लिए, चवनप्राश को एक बर्तन में निकाल ले। जिस बर्तन में चवनप्राश निकाला है उससे बड़ा बर्तन ले और उसमें पानी डाल ले। फिर चवनप्राश वाले बर्तन को पानी वाले बर्तन के अंदर रखकर पानी को धीमी आंच से गैस पर गरम करें।

थोड़ी ही देर में चवनप्राश भी लिक्विड फॉर्म में आ जाएगा। अब इसके अंदर स्वर्ण भस्म और मोती पिष्टी (अगर आपको आंखों से संबंधित समस्या है तो) डाल कर अच्छे से फेंट लें।

थोड़ा सा ठंडा होने के बाद चवनप्राश को वापिस उसी डिब्बे में वापिस डाल दें जिसमें से निकाला था और पूरा ठंडा होने दें।

चवनप्राश के सेवन की विधि-

हर रोज रात को सोने से पहले एक चम्मच चवनप्राश गुनगुने दूध के साथ ले। लगातार दो या 3 महीने लेने के बाद भविष्य में शरीर में होने वाली काफी समस्याओं और आंखों से संबंधित बीमारियों से कुछ हद तक छुटकारा मिलेगा

नोट: स्वर्ण भस्म और मोती पिष्टी भी धूतपापेश्वर कंपनी की लेने की कोशिश करें, नहीं मिले तो डाबर या ऊंझा की ले लें।

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