सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

मां दुर्गा

आजकल नवरात्र चल रहा है... जिसे हमलोग दुर्गापूजा के नाम भी जानते हैं.

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि माँ भगवती को... "माँ दुर्गा" क्यों कहा जाता है ???
कुमार शतीश बताते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार...
भगवान श्री हरि ने वराह अवतार लेकर राक्षस हिरण्याक्ष का वध किया था और पृथ्वी को अपनी जगह पुनर्स्थापित किया था... जिससे सृष्टि में आया व्यवधान दूर हुआ था.

कालांतर में इसी हिरण्याक्ष के वंश में एक दैत्यराज रुरु हुआ था.

और, दैत्यराज रुरु का पुत्र हुआ ... "दुर्गम".

ये दुर्गम...ब्रह्मांड के तीनों लोगों पर शासन करना चाहता था.

लेकिन, तीनों लोकों पर शासन हेतु देवताओं को हराना उसके लिए बड़ी चुनौती थी..!

इसीलिए, दुर्गमासुर ने विचार किया कि देवताओं की शक्ति "वेद" में निहित है. (उस समय एक ही वेद थे)

तो, अगर किसी तरह वेद नष्ट हो जाये या विलुप्त हो जाये तो देवतागण खुद ही नष्ट हो जाएंगे.

इसके अतिरिक्त वेद के विलुप्त हो जाने से यज्ञ आदि भी नहीं हो पाएंगे जिससे देवताओं को भोग नहीं मिल पायेगा और वे शक्तिहीन हो जाएंगे जिसके बाद उन्हें जीतना आसान हो जाएगा.

इसीलिए, राक्षसगुरु शुक्राचार्य ने उसे सलाह दिया कि... देवताओं को हराने के लिए वेद का लुप्त होना आवश्यक है.

इसके बाद गुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर दुर्गमासुर... हिमालय में जाकर कठोर तपस्या करने लगा..

अंततः... दुर्गमासुर के इस कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उसे दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा.

मौके का फायदा उठाते दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी से... वेद मांग लिया और साथ ही मांग लिया कि वेदों के समस्त ज्ञान मुझ तक ही सीमित रहे.

वेद के अतिरिक्त दुर्गमासुर ने सर्वशक्तिशाली होने तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से अ-वध (नहीं मरने) का वरदान भी हासिल कर लिया.

तदुपरांत... ब्रह्मा जी द्वारा तथास्तु कहते ही... सारे देव और मनुष्य वेद को भूल गए.

वेद का स्मरण भूलते ही... ब्रह्मांड में जप, तप, स्नान , ध्यान, यज्ञ , पूजा, सदाचार आदि धार्मिक क्रियाएं थम गई.

जिससे, हर जगह धर्म की जगह अनाचार और पाप का बोलबाला होने लगा..

ब्रह्मा जी के ऐसे वरदान से बेहद ही अजीब स्थिति पैदा हो गई.. 

क्योंकि , यज्ञ आदि में भाग मिलने से देवता पुष्ट होते थे लेकिन वेद के लुप्त हो जाने के कारण यज्ञ आदि बंद हो गए जिससे देवता निर्बल होने लगे.

तदुपरांत... ब्रह्मा जी के वरदान से ताकतवर हुआ दुर्गमासुर... दैत्यों और राक्षसों की भारी सेना लेकर स्वर्ग पर चढ़ाई कर दिया.

लेकिन, चूँकि... यज्ञ आदि के नहीं होने के कारण देवतागण दुर्बल हो चुके थे और इस राक्षसी सेना का मुकाबला करने में असमर्थ हो चुके थे..

इसीलिए, वे स्वर्ग से दूसरी जगह पलायन कर गए और उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे.

इधर ... धार्मिक कार्य न होने के कारण पृथ्वी पर... मनुष्य भी धर्मच्युत हो गए और राक्षसों की देखा देखी वे भी... मदिरा सेवन, लूटपाट, चोरी, व्यभिचार आदि में लिप्त हो गए.

अन्याय , अनीति और दुराचार बढ़ने के कारण ब्रह्मांड का प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा गया.

जल, भोजन आदि के लोग तरसने लगे.

ऐसी विकट स्थिति में पृथ्वी पर जो थोड़े बहुत सज्जन लोग बचे थे... वे हिमालय की कंदराओं में जाकर बहुत ही कारुणिक रूप से माँ भगवती को पुकारना शुरू किया.

उनकी कारुणिक पुकार सुनकर माँ भगवती प्रकट हुई..
उस समय उन्होंने भूख-प्यास और बुढ़ापे को दूर करने वाले शाक-मूल को धारण किया हुआ था.

माता भगवती के प्रकट होते ही ... देवतागण भी बाहर आ गए जो दुर्बल हो जाने के कारण दुर्गमासुर के भय से इधर-उधर छुपे हुए थे.

सबने मिलकर माता भगवती को सारा वृतांत बताया.

माता भगवती ने सारा वृतांत सुनकर उन्हें भरोसा दिलाया और तत्काल में उन्हें खाने के लिए "शाक और फल" दिए.

इसी घटना के कारण... माँ भगवती का एक नाम "शाकम्भरी" भी है.

उधर जब दुर्गमासुर ने अपने दूत से ये सारा वृतांत सुना तो वो क्रोधित होकर एक बहुत बड़ी सेना लेकर मनुष्य और देवताओं को दंड देने के लिए निकल पड़ा.

दुर्गमासुर को सेना सहित आता देखकर मानव और देवताओ में भय व्याप्त हो गया और वे माँ भगवती से रक्षा हेतु निवेदन करने लगे.

जिसके बाद देवी भगवती ने चक्र को सारे मानव और देवताओं की रक्षा आदेश दिया... जिससे चक्र देवताओं और मनुष्यो की रक्षा करते हुए उनके चारों ओर घूमने लगा.

तत्पश्चात... देवी भगवती और राक्षसी सेना के बीच भयानक युद्ध छिड़ गया.

और, देवी भगवती के श्रीविग्रह से कालिका, तारा, भैरवी, मातंगी, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, बगला आदि 32 शक्ति प्रकट हुई.

तथा,  10 दिन के घनघोर युद्ध के बाद सारी राक्षसी सेना विनाश को प्राप्त हुई.

अपनी सेना के विनाश की खबर सुनकर 11वें दिन दुर्गमासुर खुद युद्ध भूमि में आया... 
लेकिन, माँ भगवती के हाथों मारा गया.

इस तरह... माँ भगवती ने दुर्गमासुर का अंत कर वेद को पुनर्स्थापित किया.

और... इसी दुर्दांत दुर्गमासुर के वध के कारण ही माँ भगवती को "माँ दुर्गा" भी कहा जाता है...!

इसीलिए... अभी नवरात्र में माँ दुर्गा की आराधना करते समय एक बार अपने इतिहास को याद जरूर कर लेना कि...
जिन सनातनी हिन्दू की पूर्वज महिलाएं तक... शुम्भ-निशुम्भ, मधु-कैटभ, दुर्गमासुर, महिषासुर जैसे दुर्दांत और शक्तिशाली राक्षसों का वध चुकी हों..

उनके वंशजों के लिए आज ये कुबुद्धि जैसे राक्षस किस खेत की मूली हैं ???

जरूरत है तो सिर्फ खुद को पहचानकर अपना पुरुषार्थ जागृत करने की...!
जय माँ दुर्गा...!!


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