चिन्तन की धारा
पिछले दिन के गड्ढे,,
एक बात कह रहा हूँ,,मान लो बीस आदमियों को अलग अलग कोई मार्ग जिसपर पत्थर पड़े हैं वह साफ करने के लिए दिया गया है,, न किसी का दबाव न कोई डर भय, अपनी मर्जी अपनी स्वतंत्रता से पत्थर हटाने हैं,दो पांच जन ने दिनभर धींगा मस्ती की,, दूसरे जो मेहनत कर रहे थे उनपर कटाक्ष किए,,अरे क्यों मरे जा रहे हो,, धीरे धीरे करो,, कल हो जाएगा, परसों हो जाएगा क्या चिंता है,,
कुछ ने मार्ग पर निशान लगाए और अपने हिस्से के पत्थर बीनने शुरू कर दिए,, जब शाम हुई तो किसी ने शुरू ही नहीं किया था,, किसी ने निशान लगा दिए थे,, किसी ने आधा रास्ता साफ कर लिया था,, एकाध ऐसा भी था जो आधे से आगे ले गया था साफ करता करता,,
रात हुई खा पीकर सो गए,,अगले दिन फिर आए वहां,,तो जिनका जितना काम हुआ था उससे आगे शुरू किया,,तीसरे दिन जब कार्य फिर से शुरू हुआ तो किसी का मात्र एक फिट पत्थर हटाने बचे थे जो घण्टेभर में पूर्ण हो गया,,किसी का आधा बचा था तो वह मेहनत से लगा रहा,, किसी ने शुरू ही नहीं किया था वह कुढ़ रहा था और पत्थर हटाने के लिए निशान लगा रहा था,,
मान लो वह रात्रि जब वे सोए और सुबह उठे ऐसा होता कि पिछले दिन का सबकुछ भूल गए होते,,तब क्या होता?? ज्यादा संभावना है कि लड़ते,, पक्षपात का उलाहना देते,,कहते कि उसको तो काम हुआ हुआ जैसा मिल गया, दूसरे का भी आधा हो रक्खा है,, और मेरे से नया रास्ता साफ करवाया जा रहा है,, यह अन्याय है,,
लेकिन वहां उनको कोई काम बांटने वाला और दिनभर निगरानी रखने वाला कोई हो तो वह बता देगा कि कल तुमने इतना ही किया था यह देखो cctv फुटेज या रजिस्टर में उपस्थिति या अन्य कुछ,,
अब कहानी में थोड़ा ट्विस्ट है,, वह अधिकारी खुशामदखोर होता,, तो निक्कमे नाकारा लोग जिन्होंने कल मेहनत नहीं कि थी वे उसके लिए बियर की केन ले आते, जेब में कुछ माल रख देते,, कह देते कि आप ही माई बाप हैं,आप करें सो होई,,वह निक्कमो को जो कार्य पूरा होने वाला था उसपर बैठा देता और मेहनती को डांट डपटकर नया काम फिर से शुरू करने के लिए बाध्य करता,,
और चाहे यह कुछ भी हो लेकिन न्याय तो नहीं ही कहलायेगा,,इसलिए कर्म करने की व्यवस्था,, कितना कब क्यों कैसे करना है इसकी स्वतंत्रता परमात्मा ने मनुष्य को दी है,, लेकिन फल की व्यवस्था अपने हाथ रक्खी है, इसलिए परमात्मा का एक विशेषण न्यायकारी है,,वह कोई सरकारी अफसर नहीं या तुम्हारा कोई भाई भतीजावादी नहीं,,, न वह कोई खुशामदखोर है,,वह न्याय करता है,,
मृत्यु एक ऐसी ही कालरात्रि है,, जब हम यह जीवन छोड़कर दूसरे जीवन में जाते हैं,, लेकिन फर्क इतना है कि अगले जन्म अगले जीवन हमें कुछ याद नहीं रहता,, पिछले जन्म पिछले जीवन हमने कितना कार्य किया था कैसे किया था क्या किया था पता ही नहीं,,
तो वह परमपिता हमें वापस हमारे उसी काम पर लगा देता है जो हम कल अधूरा छोड़कर सोए थे,,इसलिए जहां हैं जिस अवस्था में हैं उसका रोना छोड़कर नित्य दिए गए कार्य की पूर्णता की और कदम बढ़ाते रहने चाहिए,,
बात तो बिल्कुल आसान है,,सुखी जीवन का मंत्र तो यही है,, बाकी सिद्धांतो के जितने जाल खड़े करने हैं करते रहो,, खुद ही उलझोगे,, हमें तो ईश्वरीय विधान में पूर्ण आस्था है,, कोई शिकायत नहीं,, पूरी ऊर्जा से पूरे उत्साह से पूरे मनोयोग से अपने बचे कार्य को पूरा करने में लगे हैं बिना शिकायत,, आप भी बिना शिकायत , पूरे मनोयोग से , पूरी ऊर्जा से अपने कार्य करने की आदतें बनाएं !!
अहा कैसा शुभ दिन शुभ घड़ी है। -स्वामी सूर्यदेव की प्रेरणा ।
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