गर्मी का दिन था।
जंगल में एक लकड़बग्घा प्यास से तड़प रहा था ,साथ ही साथ वो पानी के तलाश में जंगल में इधर उधर भटक रहा था।
तभी घूमते हुए उसे एक नदी दिखाई पड़ी।दूर से देखने पर नदी में पानी कम लग रहा था फ़िरभी उसने दौड़कर जल्दी से अपनी प्यास बुझाई।
भरपेट पानी पीने के बाद लकड़बग्घा मानो तृप्त हो गया।
अब उसने सोंचा कि गर्मी काफ़ी है तो क्यों न नदी के बीच में जाकर साफ़ व स्वच्छ पानी में स्नान भी कर लिया जाए ।लेकिन नदी की कितनी गहराई है ,उसे मालूम न था।
लकड़बग्घे ने वहीं खड़े एक ऊँट से पूछा... ताऊ,नदी में पानी कितना है, कहीं मैं डूब तो नहीं जाऊँगा स्नान करने में।
ऊँट ने अपना दाँत निपोरते हुए कहा... मेरे घुटने भर पानी है बच्चे ।मैं अभी अभी नहा कर निकला हूँ।जा तू भी नहा ले।
ऊँट की बात सुनते ही लकड़बग्घे ने छलाँग लगाई औऱ नदी के बीचों बीच जा पहुंचा। फ़िर वो अचानक डूबने लगा ।लकड़बग्घा क़भी गोते खाता तो कभी अपना सिर पानी से बाहर निकाल कर सांस लेता।जैसे तैसे उसने अपनी जान बचाई औऱ बाहर आया ।
बाहर आते ही उसने ग़ुस्से में ऊँट से कहा " बेवकूफ़,तुमने क्यों कहा,पानी घुटनों तक है... मैं तो डूबकर मरने वाला था कमीने ?"
ऊँट ने जवाब दिया " भड़क क्यों रहा है बच्चे, मैंने तो बिलकुल ठीक ही कहा था कि नदी में पानी मेरे घुटनों तक है,अब तुझें मेरी बात समझ में न आई तो मैं क्या करूँ। ".....!!
उसके बाद लकड़बग्घे को अपनी ग़लती का एहसास हुआ ।
......
दोस्तों.... ज़िंदगी में हर किसी का तजुर्बा अलग अलग होता है और वो सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत अनुभव की रौशनी में ही किसी विषय का जवाब देता है, मुमकिन है जो बातें उसके लिए फायदेमंद हो, हमारे लिए नुक़सान पहुंचाए ।
इसलिए ये हमेशा याद रखना चाहिए कि सिर्फ दूसरों के तजुर्बे को देखकर चलना जीवन में हमें कभी भी डुबो सकता है ।अपने विवेक से काम लेना ज़रुरी है। सावधान रहें, सतर्क रहें, मस्त रहें औऱ हमेशा हँसते खिलखिलाते रहें ।
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