हिंदू धर्म और आस्था का माखौल उड़ाने वाले दुष्टात्मा Devdutt Pattanaik समेत रोमिला थापर, इरफान हबीब और तमाम वामपंथियों से आशा करूँगा कि शिवलिंग और शिवभक्त कन्नप्पा पर निर्लज्ज टिप्पणी करने से पहले Manan N जी के इस कालजयी लेख को पढ़े.....
भक्त कन्नप्पा नयनार/नायनमार के विषय में सत्य
__________________________
एक लिस्ट दे रहा हूं 30 चीज़ों की ... याद करने के लिए आपके पास 3 मिनट हैं ... केवल randomly याद नहीं रखना है , अपितु सीरीज में याद रखना है ... सीधा और उल्टा दोनों तरह से ...
1. 6 नंबर का ताश का पत्ता , ईंट का
2. भेड़ियों का समूह
3. ड्रैकुला
4. दूध की बोतल
5. टेबल लैंप
6. Zebra
7. शाहरुख खान
8. White board marker
9. Joker
10. कंप्यूटर के की बोर्ड का D
11. चावल का दाना
12. Mona Lisa
13. तकिया
14. रुद्राक्ष की माला
15. जूते का sole
17. सतलज नदी
18. धूम मचा ले धूम मचा ले धूम
19. विमल पान मसाला
20. सड़क पर चलता हुआ कोई व्यक्ति
21. सैमसंग फोन
22. ट्यूबलाइट
23. Pen
24. Election commission
25. गाड़ी का पहिया
26. टीवी
27. नरभक्षी आदमी
28. उड़ता हुआ सुपरमैन
29. दारू
30. दोस्त
आपके पास 3 मिनट हैं याद करने के लिए और याद करने के बाद 3 मिनट कुछ अन्य कार्य करिए , ज्यादा कुछ नहीं यूट्यूब पर कोई वीडियो देख लीजिए , porn ही देख लीजिए 😝 ,
और फिर फोन किसी अन्य को देकर उसे सुनाकर देखिए कि आपको कितने याद रह गए इन 30 में से सीरीज वाइज
कीजिए कीजिए , मज़ा आएगा ... समझ में भी तभी आएगा सत्य ...
कर लिया ?!
नहीं याद हुए ना series wise ?!
Hahahahaha, कोई बात नहीं ,किसी को नहीं याद होते series wise ...
अब जादूगर "मनन शाकाल" आपको बताएगा कि आपको कौन कौन से याद रह गए होंगे ...
आपको 6 नंबर ताश का पत्ता , ड्रैकुला , भेड़ियों का समूह , शाहरुख खान , धूम मचा ले धूम मचा ले धूम , विमल पान मसाला , रुद्राक्ष की माला , नरभक्षी आदमी , उड़ता हुआ सुपरमैन , दारू – इनमें से अधिकतर याद रह गए होंगे ...
है ना ?!
अब ऐसा कैसे किया जादूगर "मनन शाकाल " ने ??
ज्यादा मत सोचो , मैं बताता हूं....
मनुष्य का दिमाग नॉर्मल नीरस चीजों को भूल जाता है और सेंसेशनल असाधारण चीजों को याद आसानी से रख पाता है , जैसे Dracula, भेड़िया, सुपरमैन , विमल पान मसाला , रुद्राक्ष, नरभक्षी ... ये असाधारण चीज़ हैं , दिमाग इन्हें इसलिए याद अधिक रखता है क्योंकि : 1. ये नीरस नहीं हैं , दिमाग इनकी कल्पना करते ही कुछ भाव महसूस करता है ...
2. दिमाग को एंटरटेनमेंट चाहिए ...
क्लियर ?!
अब फिर से ज़रा इन चीजों की लिस्ट पर गौर करें ... इस बार ऐसे याद करें ...
आप अपने घर का main gate खोलते हैं और सामने सोफे पर आपको एक नंगा आदमी दिखाई देता है जिसके शरीर पर 6 नंबर का ताश का पत्ता खून से बना हुआ है , शायद उसके सिर पर ईंट गिर गई थी इसलिए खून बह रहा है
, आप आप उस आदमी से बचकर अपने बेडरूम में जाते हैं तो देखते हैं कि भेड़ियों का समूह आपके bed पर बैठकर dracula के साथ खून पी रहा है आपके बच्चे की दूध की बोतल में , आप वहां से जैसे ही मुड़ते हैं आपका पैर जलते हुए टेबल लैंप से टकरा जाता है और आप औंधे मुंह एक टोपी लगाकर नाचते हुए zebra के ऊपर गिर पड़ते हैं जिसका नाम शाहरुख खान है और उसने मुंह में एक penis जैसा दिखने वाला वाइटबोर्ड मार्कर पकड़ रखा है – आप इस zebra पर हंसते हैं क्योंकि वो आपको एक जोकर जैसा प्रतीत होता है और आप उसके साथ अपना पिछवाड़ा रगड़ते हुए अपने कंप्यूटर के कीबोर्ड पर D दबाते हैं , जिससे आपके बेडरूम के नीचे का तहखाना खुल जाता है और उस तहखाने में आपने एक 20 फिट का चावल का दाना छिपा रखा है जिसपर आपने मोनालिसा की तस्वीर बनाई है और वो मोनालिसा नंगी है और उसने अपने गुप्तांग को तकिए से ढका हुआ है , आप ये सब देखकर शांति महसूस करते हैं और अपनी जेब से संसार की सबसे कीमती 21 मुखी रुद्राक्ष की माला निकालते हैं और जप करने लगते हैं और आपको अपने जूते के sole के नीचे पूरी कायनात दिखने लगती है , आपका मंत्र है "सं संस सतलज नमः "
अब ये कहानी आप मात्र 3 बार पढ़िए ,और पढ़ते हुए imagine कीजिए जैसा कहानी में बताया जा रहा है ...
और अब दोबारा फोन पकड़ाएं किसी को और फिर बताना आरंभ करें लिस्ट ...
बता पा रहे हैं ना ... बिलकुल एक्यूरेट series wise ! ?
है ना ?
अब try कीजिए कि उल्टा बताने की ... तो 17. सतलज नदी , 16. जूते का sole 15. रुद्राक्ष की माला , 14. तकिया 13 . मोनालिसा 12. चावल का दाना .............
Hahahahahha!!!
Hahahahaha !
देखा जादूगर "मनन शाकाल" का कमाल ...सीधा ही नहीं उल्टा भी याद करवा दिया ना ?! अब आप चाहें दौड़ो या भागो या पोर्न देखो, आप ये लिस्ट नहीं भूलोगे कम से कम 1 महीना
हो गया विश्वास आपको के दिमाग असाधारण चीजों को आसानी से याद रख पाता है ?!
हो गया ?! या और demo दिखाऊं?
अब आते हैं नायनार/ नायनमार संतों पर ...
ये संत लोग बेसिकली शैव थे और ये संस्कृत के विद्वान होने के साथ साथ दक्षिण भारतीय भाषाओं के विद्वान भी हुआ करते थे ... इनका समयकाल लगभग 600 –800 AD है...
पहले , प्रागैतिहासिक काल में जब अर्जुन के वंशज (करीब 5000 साल पहले ) दक्षिण भारत में आए थे (जगह का नाम सुचींद्रन है) और वहां पर बसे थे तो कई हजार वर्ष तक वहां पर संस्कृत ही मुख्य भाषा रही , लेकिन समय के साथ वहां से संस्कृत का लोप हो गया और प्रांतीय भाषाओं ने उनकी जगह ले ली ... और ऐसे में बौद्ध–जैन राजाओं के आक्रमण की वजह से वहां पर सनातन धर्म का भी लोप हो गया ... ऐसे में नायनार संतों ने संस्कृत के पुराणों पर आधारित देवाधिदेव महादेव के भजन दक्षिण भारतीय लोकल भाषाओं में बनाने और गाने शुरू किए ... ये संत बहुत उच्च कोटि के कवि थे और फलस्वरूप ये बहुत पॉपुलर भी हो गए ...इतने पॉपुलर हो गए कि तत्कालीन चोल राजाओं (राजराज चोल , राजेंद्र चोल प्रथम ) आदि राजाओं ने स्वयं प्रयास कर के इनके द्वारा गाए भजनों का संकलन करवाया "तिरुमुराई " नाम के ग्रंथ में – जिसे अनऑफिशियली कई स्कॉलर्स पांचवा वेद भी कहते हैं ...
कवित्व को सनातन धर्म में बहुत ही ऊंचा स्थान दिया गया है , हमारे सारे के सारे ऋषि कवि हैं , वेद की ऋचाएं इस दैव कवित्व के कारण ही आई हैं ...
खैर , तो ये जो नयानार संत थे , इन्होंने दक्षिण भारत में फिर से सनातन धर्म के परचम को लहराया अपने कवित्व के कारण , कवित्व में एक बहुत बड़ी खासियत होती है कि उसमें आलंकारिक वर्णन किया जा सकता है ... जैसे किसी बहुत सुंदर स्त्री की चाल को " पहाड़ों पर बलखाती नदी" कहा जा सकता है , किसी के क्रोध को ज्येष्ठ माह की चिलचिलाती धूप कहा जा सकता है ...
ऐसे ही नायनार संतों ने भर भर के आलंकारिक वर्णन किए हैं , और ऐसे आलंकारिक वर्णन किए इसलिए जाते हैं जिससे सुनने वाले के मन में भाव उत्पन्न हो , रस उत्पन्न हो और जैसा आपने अभी देखा – रस उत्पन्न होते ही आपको लिस्ट याद रह गई ... तो नयनार ही नहीं अन्य दूसरे संतों ने भी मानव मस्तिष्क की इस अनोखी खूबी को पहचाना और ऐसे काव्यों की रचनाएं की जिसमें बहुत अधिक भाव हो – जिससे कही जाने वाली बात याद रहे और समय आने पर कोई समझदार व्यक्ति उनके आलंकारिक वर्णन को decode कर ले ..
यहां तक क्लियर ?!
अब आते हैं कन्नप्पा नायनार जी पर ...
कन्नप्पा नायनार के विषय में कहा जाता है कि : " जब वे युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला , जिसके प्रति उनकी भक्ति जाग गई और वे शिवलिंग को साफ करने के लिए पास में बहती एक नदी से अपने मुंह में पानी भरकर लाए तथा एक सूअर को मार कर, भगवान को उसका भोग लगाया, जो धार्मिक नियमों के खिलाफ है।
एक पुजारी ने कणप्पा की भक्ति को चुनौती दी, और अन्य भक्तों पर अपनी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए कणप्पा की भक्ति को परखने का फैसला लिया।
पुजारी ने मंत्र शक्ति से शिवलिंग की आंखों से खून बहाया ...
कणप्पा ने रक्ततस्राव को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह असमर्थ रहा। फिर उसने अपनी एक आंख बाहर निकाली और शिवलिंग की आंखों पर रख दी और फिर रक्ततस्राव तुरंत थम गया। पुजारी ने जब ऐसा होते देखा तो उसने फिर मंत्र शक्ति से शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त निकलवा दिया , कनप्पा अपनी दूसरी आंख निकालने ही वाले थे तभी उन्होंने सोचा कि दोनों आंखें निकालने के बाद तो मैं अंधा हो जाऊंगा और फिर कैसे सही जगह पर आंख लगा पाऊंगा , इसलिए उन्होंने शिवलिंग की दूसरी आंख पर पैर इसलिए लगाया जिससे वे अपनी आंखें ना होने के बाद भी सही जगह पर आंख लगा पाएं ..इसके बाद भगवान शिव प्रकट हुए और कणप्पा को शिव के साथ पूजा जाने का वरदान दिया। "
ये स्टोरी आपने पढ़ी , याद भी हो गई होगी ... जैसे वो ऊपर की लिस्ट याद हो गई थी आपको ...
अब समझिए , कि ये स्टोरी एक आलंकारिक वर्णन है ... भक्त कन्नप्पा के समय की सामाजिक परिस्थितियों का ...
कैसे ?!
समझाता हूं , एक एक sentence समझाता हूं ...
"जब कन्नप्पा युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला...."
इसका अर्थ है कि जब कन्नप्पा युवा थे तो उनके भीतर सत्य प्राप्त करने की बहुत ललक थी – "शिकारी " की उपमा बहुत बार बहुत जगह इस्तेमाल होती है सनातन की कथाओं में – जैसे भगवान वाल्मीकि के सामने हंसों के जोड़े को एक शिकारी ने मारा था जिससे भगवान वाल्मीकि का कवित्व सामने आया , रामायण में भी निषादराज बहुत बड़ा कैरेक्टर हैं – निषादराज का अर्थ ही "शिकारियों का राजा" होता है ...
शिकारी की उपमा इसलिए इस्तेमाल होती है क्योंकि वास्तविक ऋषि लोग आपकी तरह किताबें रट कर स्कॉलर नहीं बनते थे अपितु वे प्रैक्टिकल करते थे – बहुत अधिक अवेयरनेस के साथ प्रैक्टिकल करते थे चीज़ों का – इतनी अवेयरनेस एक शिकारी के साथ ही कंपेयर की जा सकती है जो बहुत ही अधिक ध्यान लगाकर बाण का संधान करता है और अपना लक्ष्य प्राप्त करता है ...
तो जब कहा जा रहा है कि "कन्नप्पा शिकारी थे " तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे निर्दोष जानवरों का शिकार करते घूमते थे ...
आगे देखिए ...
कहा जाता है कि : "जब कन्नप्पा युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला.."
कोई चीज़ जंगल में कब होती है ?! खासतौर पर कोई धार्मिक स्थल जंगल में कब होता है ?!
कोई धार्मिक स्थल जंगल में तब ही हो सकता है जब उस धार्मिक स्थल के सिस्टम को मानने वाली सभ्यता समाप्त हो गई हो और कालांतर में उस सभ्यता के लोगों को मानने वाले लोगों के घरों की जगह जंगल पनप गया हो (जैसे कंबोडिया के हिंदू नरसंहार के बाद वहां के अंगकोर वाट के मंदिरों पर जंगल का कब्ज़ा हो गया था ) ...
जंगल की उपमा का एक अर्थ और होता है – ऐसी जगह जहां "जंगली" पशु रहते हों – अर्थात ऐसे लोग जिन्हें वास्तविक ज्ञान विज्ञान से कोई लेना देना ही ना हो ... और अपनी अज्ञानता में अपने आप को ही भूल गए हों ...
तो जब कहा जा रहा है कि " जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला.." तो इसका अर्थ है कि उनके समय में लोग बिलकुल पशुओं की तरह हो गए थे : भोजन , मैथुन और निद्रा में प्रवृत्त !! और सनातन धर्म को भूल गए थे ...
आगे कहा जाता है कि "धूल में अटा पड़ा शिवलिंग "
अर्थात उनके समय में अधिकांश लोगों ने सनातन धर्म में मानना बंद कर दिया था – जिस कारण शिवलिंग धूल में अटा पड़ा था ...
आगे कहा जाता है कि "वे मुंह में पानी भरकर लाए शिवलिंग साफ करने के लिए "
इसका अर्थ है कि उन्होंने अपने भक्तिभावों को अपने मुख (वाणी ) के द्वारा व्यक्त किया और लोगों को सत्य (शिव ) की ओर वापस आने के लिए प्रेरित किया ...
आगे कहा जाता है कि " सूअर को मारकर भगवान का भोग लगाया " ... यहां सूअर कहा जा रहा है उस विचारधारा को जो वैचारिक मल खाकर खुश रहने को प्रेरित करती है ... वैचारिक मल मतलब ऐसा अधकचरा ज्ञान जो किसी काम का नहीं होता लेकिन फिर भी लोग उसे सुनते रहते हैं (जैसे निर्मल बाबा , रामपाल आदि )
तो जब कहा जा रहा है कि कन्नप्पा ने "सूअर मारकर उसके मांस का भोग लगाया " तो इसका अर्थ है कि कन्नप्पा ने ऐसी विचारधारा को मार दिया जो लोगों को वैचारिक मल खिलाती थी और ऐसी विचारधारा को जीवित रखने वाले मांस (scholars) को भी वापस शिव की तरफ प्रेरित कर दिया ...
कहानी में जिसे "पुजारी" कहा गया है वह कोई वास्तविक पुजारी नहीं है (मंदिर जंगल में है , शिवलिंग धूल से अटा पड़ा है ,वास्तविक पुजारी के होते ये संभव नहीं होता) बल्कि बेसिकली एक नैरेटिव विशेषज्ञ है जो भोले भाले लोगों को अपनी बातों में फंसा कर उन्हें सत्य से दूर करता है और अपना उल्लू सीधा करता है (ये "पुजारी" एक बौद्ध भिक्षु है , क्योंकि नयानार संत बौद्ध सिस्टम के विरुद्ध थे और इसीलिए वह, नयनार की पॉपुलैरिटी से स्वयं पर खतरा महसूस करता है और मंत्र शक्ति से (नैरेटिव बनाकर) शिवलिंग की आंखों से रक्तस्राव करवाता है ... अर्थात शैव सिस्टम को गलत साबित करने का प्रयास करता है ... जिससे लड़ते हैं अपने प्यारे कन्नप्पा अपने वास्तविक ज्ञान के द्वारा ...
कैसे ?!
बताता हूं , आइए समझिए कि – कन्नप्पा ने अपनी आंख क्यों लगाई शिवलिंग पर :
आंखें क्या signify करती हैं ?!
आंखें केवल देखना ही नहीं signify करती हैं अपितु "दिखाना"/दिशा निर्देश देना" और "समझ " को भी signify करती हैं ...
जैसे आप गुस्से में बच्चे को आंख दिखाते हैं ...अर्थात आप बिना बोले बच्चे को ये दिशा निर्देश दे रहे हैं कि वह जो कर रहा है – वह ना करे ...
या आंखों के इशारे से अपने दोस्त को कुछ समझा देते हैं ...
या समझ के परिपेक्ष्य में कह देते हैं कि "मेरी आंखें खुल गईं " ... है ना ...?
तो कन्नप्पा द्वार अपनी आंख शिवलिंग पर लगाने का अर्थ है कि कन्नप्पा ने अपनी सारी समझ , सारी सोच , सारी वैचारिक दृष्टि शिव को समर्पित कर दी ... और फलस्वरूप उसकी दृष्टि एक मनुष्य की दृष्टि से बढ़कर – " शिवदृष्टि " हो गई ...
हां भइया "शिवदृष्टि " – दक्षिण भारत के नयनार को वही शिवदृष्टि मिली थी – वही शिवदृष्टि जिसके विषय में मैं कश्मीरी शैव बोलता रहता हूं ... यह शिवदृष्टि बेसिकली प्रत्याभिज्ञान है जिसके बारे में भगवान सोमानंदनाथ बताते हैं ...
प्रत्याभिज्ञान का अर्थ होता है योगादि माध्यमों से अपने अंतः करण में संसार को अनुभव कर लेना ..और इसके रहस्यों को बिना पढ़े हुए ही जान लेना ..
तो कन्नप्पा नयनार जब अपनी एक आंख शिव को समर्पित करते हैं तो उनकी दृष्टि उनकी नहीं बचती अपितु शिवदृष्टि हो जाती है और उन्हें संसार के गहन गूढ़ सत्य समझ में आने लगते हैं (जैसे मुझे इस कथा के पीछे का सत्य दिखाई दिया ) ...
यहां तक क्लियर ?!
अब आगे देखिए ... शिवदृष्टि प्राप्त कर के कन्नप्पा ने बौद्ध भिक्षु को तो पराजित कर ही दिया होगा लेकिन समस्या यह होती है कि शिवदृष्टि अपने आप में काफी नहीं होती (विश्वास मानो, अनुभव से कह रहा हूं ) ...
शिवदृष्टि केवल आधी ही यात्रा होती है । शिवदृष्टि के परिपक्व हो जाने पर साधक यह तो अनुभव कर लेता है कि "संसार मैं ही हूं " लेकिन फिर भी रहता वह इंडिविजुअल ही है ... उसके श्राप – आशीर्वाद फलित हो जाते हैं , उसकी वाणी सत्य होने लगती है ... लेकिन रहता वह इंडिविजुअल ही है ...
वह शिवत्व में लीन नहीं होता , उसे शिव के साथ एक्य का अनुभव तो होता है लेकिन फिर भी उसमें अहंकार रहता है ... इसलिए जब कन्नप्पा को यह अनुभव हुआ तो उन्होंने अपनी शिवदृष्टि भी शिव को समर्पित करने की ठानी , अर्थात योग की एक बहुत गहन तपस्या में जाने का संकल्प लिया जिसमें उठते बैठते सोते जागते केवल और केवल एक ही ध्यान रहता है "भैरव" स्थिति का ... और इस तपस्या में वास्तविक और मानसिक ज्ञानेंद्रियां बहुत शिथिल हो जाती हैं , लेकिन मानसिक कर्मेंद्रियां कार्य करती हैं – अर्थात सत्य प्राप्ति के उपक्रम में "मैं कहां हूं " और "कहां जाना है " इसकी अनुभूति रहती है ... यही दर्शाया गया है कन्नप्पा द्वारा शिवलिंग पर पैर लगाने की स्टोरी के द्वारा ... अर्थात कन्नप्पा जब तपस्या में लीन होकर अपनी सारी इंटेलेक्ट भी समर्पित कर चुके थे शिव को , तब भी उन्हें उनके पथ पर चला रही थी उनकी वह कर्मेंद्रिय जो "कहां हूं और कहां जाना है " अर्थात चलने से रिलेटेड है – पैर यही signify करते हैं ...
तो कन्नप्पा ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और तब उनके अंतः करण में अहंकार की जगह शिव ने ले ली और वे शिव के साथ ही पूज्य हो गए ...
अब आगे समझिए ...
ये जो पूरी स्टोरी के आलंकारिक वर्णन का वास्तविक सत्य मैंने आपको बताया है , इसमें से आपको कितना याद रहा होगा ?!
टेक्निकल टर्म जैसे "प्रत्याभिज्ञान" , "शिवदृष्टि ", आप भूल हो जाएंगे आज नहीं तो कल ... और जो गहन बात बताई गई है अहंकार और शिवत्व से related– इसे तो आप में से 70% समझ भी नहीं पाए होंगे (सॉरी, आपकी बेइज्जती नहीं कर रहा , सत्य बता रहा हूं ) तो ऐसे में क्या किया जाए कि आपको पूरी स्टोरी याद रहे ?!
ऐसा sensational वर्णन किया जाए कि आपका दिमाग और मन उस वर्णन में रस ले और इस तरह से गहन फिलोसॉफिकल और आध्यात्मिक ज्ञान सैकड़ों वर्षों तक अक्षुण्ण रहे और फिर कोई शिवदृष्टि वाला व्यक्ति आकार उस पूरी बात को decode कर ले और वास्तविकता बता दे ...
आई बात समझ ?!
इस पूरी व्याख्या का श्रेय जाता है देवाधिदेव महादेव व माता पार्वती को जिन्होंने मुझ अज्ञानी और निपट मूर्ख को इस चेतना का वरदान दिया , श्रेय जाता है भगवान सोमानंदनाथ को ,श्रेय जाता है कश्मीरी हिंदुओं को जिनके कारण मैं कश्मीर शैव सिस्टम को पढ़ सका , श्रेय जाता है पूजनीय शैवाचार्य श्री Dileep Kumar Kaul भइया को जिनके दिशा निर्देश के कारण मुझे थोड़ा बहुत जो भी क्लियर हुआ है वह हो सका , श्रेय जाता है पियूष भाई को जिन्होंने मुझसे कन्नप्पा नायनार जी के विषय में सत्य बताने का आग्रह किया ...
सभी का आभार ...
नमः परमशिवाय
मनन