रविवार, 29 मई 2022

सोच

 

बाहर  बारिश  हो  रही  थी, और अन्दर  क्लास  चल रही  थी.
तभी  टीचर  ने  बच्चों  से  पूछा - अगर तुम  सभी  को  100-100 रुपया  दिए जाए  तो  तुम  सब  क्या  क्या खरीदोगे ?

किसी  ने  कहा - मैं  वीडियो  गेम खरीदुंगा..

किसी  ने  कहा - मैं  क्रिकेट  का  बेट खरीदुंगा..

किसी  ने  कहा - मैं  अपने  लिए  प्यारी सी  गुड़िया  खरीदुंगी..

तो, किसी  ने  कहा - मैं  बहुत  सी चॉकलेट्स  खरीदुंगी..

एक  बच्चा  कुछ  सोचने  में  डुबा  हुआ  था 
टीचर  ने  उससे  पुछा - तुम 
क्या  सोच  रहे  हो, तुम  क्या खरीदोगे ?

बच्चा  बोला -टीचर  जी  मेरी  माँ  को थोड़ा  कम  दिखाई  देता  है  तो  मैं अपनी  माँ  के  लिए  एक  चश्मा खरीदूंगा !

टीचर  ने  पूछा  -  तुम्हारी  माँ  के  लिए चश्मा  तो  तुम्हारे  पापा  भी  खरीद सकते  है  तुम्हें  अपने  लिए  कुछ  नहीं खरीदना ?

बच्चे  ने  जो  जवाब  दिया  उससे टीचर  का  भी  गला  भर  आया !

बच्चे  ने  कहा -- मेरे  पापा  अब  इस दुनिया  में  नहीं  है 
मेरी  माँ  लोगों  के  कपड़े  सिलकर मुझे  पढ़ाती  है, और  कम  दिखाई  देने  की  वजह  से  वो  ठीक  से  कपड़े नहीं  सिल  पाती  है  इसीलिए  मैं  मेरी माँ  को  चश्मा  देना  चाहता  हुँ, ताकि मैं  अच्छे  से  पढ़  सकूँ  बड़ा  आदमी बन  सकूँ, और  माँ  को  सारे  सुख  दे सकूँ.!

टीचर -- बेटा  तेरी  सोच  ही  तेरी कमाई  है ! ये 100 रूपये  मेरे  वादे के अनुसार  और, ये 100 रूपये  और उधार  दे  रहा  हूँ। जब  कभी  कमाओ तो  लौटा  देना  और, मेरी  इच्छा  है, तू  इतना  बड़ा  आदमी  बने  कि  तेरे सर  पे  हाथ  फेरते  वक्त  मैं  धन्य  हो जाऊं !

15  वर्ष  बाद..........

बाहर  बारिश  हो  रही है, और अंदर क्लास चल रही है !

अचानक  स्कूल  के  आगे  जिला कलेक्टर  की  बत्ती  वाली  गाड़ी आकर  रूकती  है  स्कूल  स्टाफ चौकन्ना  हो  जाता  हैं !

स्कूल  में  सन्नाटा  छा  जाता  हैं !

मगर ये क्या ?

जिला  कलेक्टर  एक  वृद्ध  टीचर के पैरों  में  गिर  जाते  हैं, और  कहते हैं -- सर  मैं ....   उधार  के  100  रूपये  लौटाने  आया  हूँ !

पूरा  स्कूल  स्टॉफ  स्तब्ध !

वृद्ध  टीचर  झुके  हुए  नौजवान कलेक्टर  को उठाकर भुजाओं में कस लेता है, और रो  पड़ता  हैं !

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शनिवार, 28 मई 2022

कन्नप्पा

 

हिंदू धर्म और आस्था का माखौल उड़ाने वाले दुष्टात्मा Devdutt Pattanaik   समेत रोमिला थापर, इरफान हबीब और तमाम वामपंथियों से आशा करूँगा कि शिवलिंग और शिवभक्त कन्नप्पा पर निर्लज्ज टिप्पणी करने से पहले Manan N   जी के इस कालजयी लेख को पढ़े.....

भक्त कन्नप्पा नयनार/नायनमार के विषय में सत्य
__________________________

एक लिस्ट दे रहा हूं 30 चीज़ों की ... याद करने के लिए आपके पास 3 मिनट हैं ... केवल randomly याद नहीं रखना है , अपितु सीरीज में याद रखना है ... सीधा और उल्टा दोनों तरह से ...

1. 6 नंबर का ताश का पत्ता , ईंट का
2. भेड़ियों का समूह
3. ड्रैकुला
4. दूध की बोतल
5. टेबल लैंप
6. Zebra
7. शाहरुख खान
8. White board marker
9. Joker
10. कंप्यूटर के की बोर्ड का D
11. चावल का दाना
12. Mona Lisa
13. तकिया
14. रुद्राक्ष की माला
15. जूते का sole
17. सतलज नदी
18. धूम मचा ले धूम मचा ले धूम
19. विमल पान मसाला
20. सड़क पर चलता हुआ कोई व्यक्ति
21. सैमसंग फोन
22. ट्यूबलाइट
23. Pen
24. Election commission
25. गाड़ी का पहिया
26. टीवी
27. नरभक्षी आदमी
28. उड़ता हुआ सुपरमैन
29. दारू
30. दोस्त

आपके पास 3 मिनट हैं याद करने के लिए और याद करने के बाद 3 मिनट कुछ अन्य कार्य करिए , ज्यादा कुछ नहीं यूट्यूब पर कोई वीडियो देख लीजिए , porn ही देख लीजिए 😝 ,
और फिर फोन किसी अन्य को देकर उसे सुनाकर देखिए कि आपको कितने याद रह गए इन 30 में से सीरीज वाइज

कीजिए कीजिए , मज़ा आएगा ... समझ में भी तभी आएगा सत्य  ...

कर लिया ?!

नहीं याद हुए ना series wise ?!

Hahahahaha, कोई बात नहीं ,किसी को नहीं याद होते series wise ...

अब जादूगर "मनन शाकाल" आपको बताएगा कि आपको कौन कौन से याद रह गए होंगे ...

आपको 6 नंबर ताश का पत्ता , ड्रैकुला , भेड़ियों का समूह , शाहरुख खान , धूम मचा ले धूम मचा ले धूम , विमल पान मसाला , रुद्राक्ष की माला , नरभक्षी आदमी , उड़ता हुआ सुपरमैन , दारू – इनमें से अधिकतर याद रह गए होंगे ...

है ना ?!

अब ऐसा कैसे किया जादूगर "मनन शाकाल " ने ??

ज्यादा मत सोचो , मैं बताता हूं....

मनुष्य का दिमाग नॉर्मल नीरस चीजों को भूल जाता है और सेंसेशनल असाधारण चीजों को याद आसानी से रख पाता है , जैसे Dracula, भेड़िया, सुपरमैन , विमल पान मसाला , रुद्राक्ष, नरभक्षी ... ये असाधारण चीज़ हैं , दिमाग इन्हें इसलिए याद अधिक रखता है क्योंकि : 1. ये नीरस नहीं हैं , दिमाग इनकी कल्पना करते ही कुछ भाव महसूस करता है ...
2. दिमाग को एंटरटेनमेंट चाहिए ...

क्लियर ?!

अब फिर से ज़रा इन चीजों की लिस्ट पर गौर करें ... इस बार ऐसे याद करें ...

आप अपने घर का main gate खोलते हैं और सामने सोफे पर आपको एक नंगा आदमी दिखाई देता है जिसके शरीर पर 6 नंबर का ताश का पत्ता खून से बना हुआ है , शायद उसके सिर पर ईंट गिर गई थी इसलिए खून बह रहा है
, आप आप उस आदमी से बचकर अपने बेडरूम में जाते हैं तो देखते हैं कि भेड़ियों का समूह आपके bed पर बैठकर dracula के साथ खून पी रहा है आपके बच्चे की दूध की बोतल में , आप वहां से जैसे ही मुड़ते हैं आपका पैर जलते हुए टेबल लैंप से टकरा जाता है और आप औंधे मुंह एक टोपी लगाकर नाचते हुए zebra के ऊपर गिर पड़ते हैं जिसका नाम शाहरुख खान है और उसने मुंह में एक penis जैसा दिखने वाला वाइटबोर्ड मार्कर पकड़ रखा है – आप इस zebra पर हंसते हैं क्योंकि वो आपको एक जोकर जैसा प्रतीत होता है और आप उसके साथ अपना पिछवाड़ा रगड़ते हुए अपने कंप्यूटर के कीबोर्ड पर D दबाते हैं , जिससे आपके बेडरूम के नीचे का तहखाना खुल जाता है और उस तहखाने में आपने एक 20 फिट का चावल का दाना छिपा रखा है जिसपर आपने मोनालिसा की तस्वीर बनाई है और वो मोनालिसा नंगी है और उसने अपने गुप्तांग को तकिए से ढका हुआ है , आप ये सब देखकर शांति महसूस करते हैं और अपनी जेब से संसार की सबसे कीमती 21 मुखी रुद्राक्ष की माला निकालते हैं और जप करने लगते हैं और आपको अपने जूते के sole के नीचे पूरी कायनात दिखने लगती है , आपका मंत्र है  "सं संस सतलज नमः "

अब ये कहानी आप मात्र 3 बार पढ़िए ,और पढ़ते हुए imagine कीजिए जैसा कहानी में बताया जा रहा है ...

और अब दोबारा फोन पकड़ाएं किसी को और फिर बताना आरंभ करें लिस्ट ...

बता पा रहे हैं ना ... बिलकुल एक्यूरेट series wise ! ?

है ना ?

अब try कीजिए कि उल्टा बताने की ... तो 17. सतलज नदी , 16. जूते का sole 15. रुद्राक्ष की माला , 14. तकिया 13 . मोनालिसा 12. चावल का दाना .............

Hahahahahha!!!

Hahahahaha !

देखा जादूगर "मनन शाकाल" का कमाल ...सीधा ही नहीं उल्टा भी याद करवा दिया ना ?!  अब आप चाहें दौड़ो या भागो या पोर्न देखो, आप ये लिस्ट नहीं भूलोगे कम से कम 1 महीना

हो गया विश्वास आपको के दिमाग असाधारण चीजों को आसानी से याद रख पाता है ?!

हो गया ?! या और demo दिखाऊं?

अब आते हैं नायनार/ नायनमार संतों पर ...

ये संत लोग बेसिकली शैव थे और ये संस्कृत के विद्वान होने के साथ साथ दक्षिण भारतीय भाषाओं के विद्वान भी हुआ करते थे ... इनका समयकाल लगभग 600 –800 AD है...

पहले , प्रागैतिहासिक काल में जब अर्जुन के वंशज (करीब 5000 साल पहले ) दक्षिण भारत में आए थे (जगह का नाम सुचींद्रन है) और वहां पर बसे थे तो कई हजार वर्ष तक वहां पर संस्कृत ही मुख्य भाषा रही , लेकिन समय के साथ वहां से संस्कृत का लोप हो गया और प्रांतीय भाषाओं ने उनकी जगह ले ली ... और ऐसे में बौद्ध–जैन राजाओं के आक्रमण की वजह से वहां पर सनातन धर्म का भी लोप हो गया ... ऐसे में नायनार संतों ने संस्कृत के पुराणों पर आधारित देवाधिदेव महादेव के भजन दक्षिण भारतीय लोकल भाषाओं में बनाने और गाने शुरू किए ... ये संत बहुत उच्च कोटि के कवि थे और फलस्वरूप ये बहुत पॉपुलर भी हो गए ...इतने पॉपुलर हो गए कि तत्कालीन चोल राजाओं (राजराज चोल , राजेंद्र चोल प्रथम ) आदि राजाओं ने स्वयं प्रयास कर के इनके द्वारा गाए भजनों का संकलन करवाया "तिरुमुराई " नाम के ग्रंथ में – जिसे अनऑफिशियली कई स्कॉलर्स पांचवा वेद भी कहते हैं ...

कवित्व को सनातन धर्म में बहुत ही ऊंचा स्थान दिया गया है , हमारे सारे के सारे ऋषि कवि हैं , वेद की ऋचाएं इस दैव कवित्व के कारण ही आई हैं ...

खैर , तो ये जो नयानार संत थे , इन्होंने दक्षिण भारत में फिर से सनातन धर्म के परचम को लहराया अपने कवित्व के कारण ,  कवित्व में एक बहुत बड़ी खासियत होती है कि उसमें आलंकारिक वर्णन किया जा सकता है ... जैसे किसी बहुत सुंदर स्त्री की चाल को " पहाड़ों पर बलखाती नदी" कहा जा सकता है , किसी के क्रोध को ज्येष्ठ माह की चिलचिलाती धूप कहा जा सकता है ...

ऐसे ही नायनार संतों ने भर भर के आलंकारिक वर्णन किए हैं , और ऐसे आलंकारिक वर्णन किए इसलिए जाते हैं जिससे सुनने वाले के मन में भाव उत्पन्न हो , रस उत्पन्न हो और जैसा आपने अभी देखा – रस उत्पन्न होते ही आपको लिस्ट याद रह गई ... तो नयनार ही नहीं अन्य दूसरे संतों ने भी मानव मस्तिष्क की इस अनोखी खूबी को पहचाना और ऐसे काव्यों की रचनाएं की जिसमें बहुत अधिक भाव हो – जिससे कही जाने वाली बात याद रहे और समय आने पर कोई समझदार व्यक्ति उनके आलंकारिक वर्णन को decode कर ले ..

यहां तक क्लियर ?!

अब आते हैं कन्नप्पा नायनार जी पर ...

कन्नप्पा नायनार के विषय में कहा जाता है कि : " जब वे युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला , जिसके प्रति उनकी भक्ति जाग गई और वे शिवलिंग को साफ करने के लिए पास में बहती एक नदी से अपने मुंह में पानी भरकर लाए तथा एक सूअर को मार कर, भगवान को उसका भोग लगाया, जो धार्मिक नियमों के खिलाफ है।
एक पुजारी ने कणप्पा की भक्ति को चुनौती दी, और अन्य भक्तों पर अपनी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए कणप्पा की भक्ति को परखने का फैसला लिया।
पुजारी ने मंत्र शक्ति से शिवलिंग की आंखों से खून बहाया ...

कणप्पा ने रक्ततस्राव को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह असमर्थ रहा। फिर उसने अपनी एक आंख बाहर निकाली और  शिवलिंग की आंखों पर रख दी और फिर रक्ततस्राव तुरंत थम गया। पुजारी ने जब ऐसा होते देखा तो उसने फिर मंत्र शक्ति से शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त निकलवा दिया , कनप्पा अपनी दूसरी आंख निकालने ही वाले थे तभी उन्होंने सोचा कि दोनों आंखें निकालने के बाद तो मैं अंधा हो जाऊंगा और फिर कैसे सही जगह पर आंख लगा पाऊंगा , इसलिए उन्होंने शिवलिंग की दूसरी आंख पर पैर इसलिए लगाया जिससे वे अपनी आंखें ना होने के बाद भी सही जगह पर आंख लगा पाएं ..इसके बाद भगवान शिव प्रकट हुए और कणप्पा को शिव के साथ पूजा जाने का वरदान दिया। "

ये स्टोरी आपने पढ़ी , याद भी हो गई होगी ... जैसे वो ऊपर की लिस्ट याद हो गई थी आपको ...

अब समझिए , कि ये स्टोरी एक आलंकारिक वर्णन है ... भक्त कन्नप्पा के समय की सामाजिक परिस्थितियों का ...

कैसे ?!

समझाता हूं , एक एक sentence समझाता हूं ...

"जब कन्नप्पा युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला...."

इसका अर्थ है कि जब कन्नप्पा युवा थे तो उनके भीतर सत्य प्राप्त करने की बहुत ललक थी – "शिकारी " की उपमा बहुत बार बहुत जगह इस्तेमाल होती है सनातन की कथाओं में – जैसे भगवान वाल्मीकि के सामने हंसों के जोड़े को एक शिकारी ने मारा था जिससे भगवान वाल्मीकि का कवित्व सामने आया , रामायण में भी निषादराज बहुत बड़ा कैरेक्टर हैं – निषादराज का अर्थ ही "शिकारियों का राजा" होता है ...
शिकारी की उपमा इसलिए इस्तेमाल होती है क्योंकि वास्तविक ऋषि लोग आपकी तरह किताबें रट कर स्कॉलर नहीं बनते थे अपितु वे प्रैक्टिकल करते थे – बहुत अधिक अवेयरनेस के साथ प्रैक्टिकल करते थे चीज़ों का – इतनी अवेयरनेस एक शिकारी के साथ ही कंपेयर की जा सकती है जो बहुत ही अधिक ध्यान लगाकर बाण का संधान करता है और अपना लक्ष्य प्राप्त करता है ...

तो जब कहा जा रहा है कि "कन्नप्पा शिकारी थे " तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे निर्दोष जानवरों का शिकार करते घूमते थे ...

आगे देखिए ...
कहा जाता है कि : "जब कन्नप्पा युवावस्था में एक शिकारी थे तो उन्हें जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला.."

कोई चीज़ जंगल में कब होती है ?! खासतौर पर कोई धार्मिक स्थल जंगल में कब होता है ?!
कोई धार्मिक स्थल जंगल में तब ही हो सकता है जब उस धार्मिक स्थल के सिस्टम को मानने वाली सभ्यता समाप्त हो गई हो और कालांतर में उस सभ्यता के लोगों को मानने वाले लोगों के घरों की जगह जंगल पनप गया हो (जैसे कंबोडिया के हिंदू नरसंहार के बाद वहां के अंगकोर वाट के मंदिरों पर जंगल का कब्ज़ा हो गया था ) ...

जंगल की उपमा का एक अर्थ और होता है – ऐसी जगह जहां "जंगली" पशु रहते हों – अर्थात ऐसे लोग जिन्हें वास्तविक ज्ञान विज्ञान से कोई लेना देना ही ना हो ... और अपनी अज्ञानता में अपने आप को ही भूल गए हों ...

तो जब कहा जा रहा है कि " जंगल में एक धूल से अटा पड़ा शिवलिंग मिला.."  तो इसका अर्थ है कि उनके समय में लोग बिलकुल पशुओं की तरह हो गए थे : भोजन , मैथुन और निद्रा में प्रवृत्त !! और सनातन धर्म को भूल गए थे ...

आगे कहा जाता है कि "धूल में अटा पड़ा शिवलिंग "

अर्थात उनके समय में अधिकांश लोगों ने सनातन धर्म में मानना बंद कर दिया था – जिस कारण शिवलिंग धूल में अटा पड़ा था  ...

आगे कहा जाता है कि "वे मुंह में पानी भरकर लाए शिवलिंग साफ करने के लिए "

इसका अर्थ है कि उन्होंने अपने भक्तिभावों को अपने मुख (वाणी ) के द्वारा व्यक्त किया और लोगों को सत्य (शिव ) की ओर वापस आने के लिए प्रेरित किया ...

आगे कहा जाता है कि " सूअर को मारकर भगवान का भोग लगाया " ... यहां सूअर कहा जा रहा है उस विचारधारा को जो वैचारिक मल खाकर खुश रहने को प्रेरित करती है ... वैचारिक मल मतलब ऐसा अधकचरा ज्ञान जो किसी काम का नहीं होता लेकिन फिर भी लोग उसे सुनते रहते हैं (जैसे निर्मल बाबा , रामपाल आदि )
तो जब कहा जा रहा है कि कन्नप्पा ने "सूअर मारकर उसके मांस का भोग लगाया " तो इसका अर्थ है कि कन्नप्पा ने ऐसी विचारधारा को मार दिया जो लोगों को वैचारिक मल खिलाती थी और ऐसी विचारधारा को जीवित रखने वाले मांस (scholars) को भी वापस शिव की तरफ प्रेरित कर दिया ...

कहानी में जिसे "पुजारी" कहा गया है वह कोई वास्तविक पुजारी नहीं है (मंदिर जंगल में है , शिवलिंग धूल से अटा पड़ा है ,वास्तविक पुजारी के होते ये संभव नहीं होता) बल्कि बेसिकली एक नैरेटिव विशेषज्ञ है जो भोले भाले लोगों को अपनी बातों में फंसा कर उन्हें सत्य से दूर करता है और अपना उल्लू सीधा करता है (ये "पुजारी" एक बौद्ध भिक्षु है , क्योंकि नयानार संत बौद्ध सिस्टम के विरुद्ध थे और इसीलिए वह, नयनार की पॉपुलैरिटी से स्वयं पर खतरा महसूस करता है और मंत्र शक्ति से (नैरेटिव बनाकर) शिवलिंग की आंखों से रक्तस्राव करवाता है ... अर्थात शैव सिस्टम को गलत साबित करने का प्रयास करता है ... जिससे लड़ते हैं अपने प्यारे कन्नप्पा अपने वास्तविक ज्ञान के द्वारा ...

कैसे ?!

बताता हूं , आइए समझिए कि – कन्नप्पा ने अपनी आंख क्यों लगाई शिवलिंग पर :

आंखें क्या signify करती हैं ?!

आंखें केवल देखना ही नहीं signify करती हैं अपितु "दिखाना"/दिशा निर्देश देना" और "समझ " को भी signify करती हैं ...

जैसे आप गुस्से में बच्चे को आंख दिखाते हैं ...अर्थात आप बिना बोले बच्चे को ये दिशा निर्देश दे रहे हैं कि वह जो कर रहा है – वह ना करे ...
या आंखों के इशारे से अपने दोस्त को कुछ समझा देते हैं ...

या समझ के परिपेक्ष्य में कह देते हैं कि "मेरी आंखें खुल गईं " ... है ना ...?

तो कन्नप्पा द्वार अपनी आंख शिवलिंग पर लगाने का अर्थ है कि कन्नप्पा ने अपनी सारी समझ , सारी सोच , सारी वैचारिक दृष्टि शिव को समर्पित कर दी ... और फलस्वरूप उसकी दृष्टि एक मनुष्य की दृष्टि से बढ़कर – " शिवदृष्टि " हो गई ...

हां भइया "शिवदृष्टि " – दक्षिण भारत के नयनार को वही शिवदृष्टि मिली थी – वही शिवदृष्टि जिसके विषय में मैं कश्मीरी शैव बोलता रहता हूं ... यह शिवदृष्टि बेसिकली  प्रत्याभिज्ञान है जिसके बारे में भगवान सोमानंदनाथ बताते हैं ...
प्रत्याभिज्ञान का अर्थ होता है योगादि माध्यमों से अपने अंतः करण में संसार को अनुभव कर लेना ..और इसके रहस्यों को बिना पढ़े हुए ही जान लेना ..

तो कन्नप्पा नयनार जब अपनी एक आंख शिव को समर्पित करते हैं तो उनकी दृष्टि उनकी नहीं बचती अपितु शिवदृष्टि हो जाती है और उन्हें संसार के गहन गूढ़ सत्य समझ में आने लगते हैं (जैसे मुझे इस कथा के पीछे का सत्य दिखाई दिया ) ...

यहां तक क्लियर ?!

अब आगे देखिए ... शिवदृष्टि प्राप्त कर के कन्नप्पा ने बौद्ध भिक्षु को तो पराजित कर ही दिया होगा  लेकिन समस्या यह होती है कि शिवदृष्टि अपने आप में काफी नहीं होती (विश्वास मानो, अनुभव से कह रहा हूं ) ...
शिवदृष्टि केवल आधी ही यात्रा होती है । शिवदृष्टि के परिपक्व हो जाने पर साधक यह तो अनुभव कर लेता है कि "संसार मैं ही हूं " लेकिन फिर भी रहता वह इंडिविजुअल ही है ... उसके श्राप – आशीर्वाद फलित हो जाते हैं , उसकी वाणी सत्य होने लगती है ... लेकिन रहता वह इंडिविजुअल ही है ...
वह शिवत्व में लीन नहीं होता , उसे शिव के साथ एक्य का अनुभव तो होता है लेकिन फिर भी उसमें अहंकार रहता है ... इसलिए जब कन्नप्पा को यह अनुभव हुआ तो उन्होंने अपनी शिवदृष्टि भी शिव को समर्पित करने की ठानी , अर्थात योग की एक बहुत गहन तपस्या में जाने का संकल्प लिया जिसमें उठते बैठते सोते जागते केवल और केवल एक ही ध्यान रहता है "भैरव" स्थिति का ... और इस तपस्या में वास्तविक और मानसिक ज्ञानेंद्रियां बहुत शिथिल हो जाती हैं , लेकिन मानसिक कर्मेंद्रियां कार्य करती हैं – अर्थात सत्य प्राप्ति के उपक्रम में  "मैं कहां हूं " और "कहां जाना है " इसकी अनुभूति रहती है ... यही दर्शाया गया है कन्नप्पा द्वारा शिवलिंग पर पैर लगाने की स्टोरी के द्वारा ... अर्थात कन्नप्पा जब तपस्या में लीन होकर अपनी सारी इंटेलेक्ट भी समर्पित कर चुके थे शिव को , तब भी उन्हें उनके पथ पर चला रही थी उनकी वह कर्मेंद्रिय जो "कहां हूं और कहां जाना है " अर्थात चलने से रिलेटेड है – पैर यही signify करते हैं ...
तो कन्नप्पा ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और तब उनके अंतः करण में अहंकार की जगह शिव ने ले ली और वे शिव के साथ ही पूज्य हो गए ...

अब आगे समझिए ...

ये जो पूरी स्टोरी के आलंकारिक वर्णन का वास्तविक सत्य मैंने आपको बताया है , इसमें से आपको कितना याद रहा होगा ?!

टेक्निकल टर्म जैसे "प्रत्याभिज्ञान" , "शिवदृष्टि ", आप भूल हो जाएंगे आज नहीं तो कल ... और जो गहन बात बताई गई है अहंकार और शिवत्व से related– इसे तो आप में से 70% समझ भी नहीं पाए होंगे (सॉरी, आपकी बेइज्जती नहीं कर रहा , सत्य बता रहा हूं ) तो ऐसे में क्या किया जाए कि आपको पूरी स्टोरी याद रहे ?!

ऐसा sensational वर्णन किया जाए कि आपका दिमाग और मन उस वर्णन में रस ले और इस तरह से गहन फिलोसॉफिकल और आध्यात्मिक ज्ञान सैकड़ों वर्षों तक अक्षुण्ण रहे और फिर कोई शिवदृष्टि वाला व्यक्ति आकार उस पूरी बात को decode कर ले और वास्तविकता बता दे ...

आई बात समझ ?!

इस पूरी व्याख्या का श्रेय जाता है देवाधिदेव महादेव व माता पार्वती को जिन्होंने मुझ अज्ञानी और निपट मूर्ख को इस चेतना का वरदान दिया ,  श्रेय जाता है भगवान सोमानंदनाथ को ,श्रेय जाता है कश्मीरी हिंदुओं को जिनके कारण मैं कश्मीर शैव सिस्टम को पढ़ सका , श्रेय जाता है पूजनीय शैवाचार्य श्री Dileep Kumar Kaul  भइया को जिनके दिशा निर्देश के कारण मुझे थोड़ा बहुत जो भी क्लियर हुआ है वह हो सका , श्रेय जाता है पियूष भाई को जिन्होंने मुझसे कन्नप्पा नायनार जी के विषय में सत्य बताने का आग्रह किया ...

सभी का आभार ...

नमः परमशिवाय
मनन

रविवार, 22 मई 2022

कर्म ही पूंजी

 रचित जी के एक मित्र व्यापारी हैं। 

हाल फिलहाल में उन्होंने अपनी पुरानी गाड़ी बेच कर नई मर्सिडीज खरीदी है। 


बीते बुधवार वह अपनी नई चमचमाती गाड़ी में फेक्ट्री से लंच करने घर आये। 


उन्होंने मर्सिडीज घर के बाहर पार्क कर दी। 


घर में धर्मपत्नी के हाथ का बना लज़ीज़ खाना खाया। 

खाना खा कर कुछ समय सुस्ताने लगे। 

इसी बीच फेक्ट्री से एक अर्जेंट कॉल आई। 

वह घर के बाहर आये। 

गाड़ी की ओर देखा तो उसकी दोनो टेल लाइट टूटी हुई थी। 

स्पष्ट था के किसी ने पत्थर मार कर लाइट्स को फोड़ दिया था। 

एक लग्जरी कार की लाइट्स की क्या कीमत होती है ....यह मैं बताना नहीं चाहता। 


उनके घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगे हैं। कैमरा में एक शक्स का चेहरा कैद हुआ। 

वह सड़क पर चल रहा था। अचानक उसे एक चमचमाती मर्सिडीज दिखाई दी। उसने दाएं देखा.....फिर बाएं देखा। फिर आगे पीछे देखा। 


फिर उसने बगल में रखी ईंट उठाई ..... टेल लाइट्स पर पर प्रहार किया और सरपट वहां से भाग गया। 


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अब इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य.......लाइट्स फोड़ते व्यक्ति को हमारे मित्र के घर कार्यरत नौकर ने पहचान लिया। 


जहां रचित जी के  मित्र की कोठी है......उससे ठीक पांच कोठियां बाद एक व्यापारी का आलीशान मकान है। 

लाइट्स फोड़ने वाला व्यक्ति उनके घर में चौकीदारी करता था। 


उसे बुलाया गया। उसे पूछा के भाई ...... यह शुभकार्य जो तूने किया है.....किस खुशी में किया है? 


वह खामोश रहा। 

फिर उससे कहा के सच सच बता दे ......नहीं तो सच उगलवाने के कई तरीके हैं।।


मारे डर के वह फूट फूट के रोने लगा। 

बोला आप सेठ लोग के पास सारी दौलत है......सारा पैसा है.....हमारे पास तो इतना रुपया भी नहीं है के घरवाली का इलाज करवा सकें। 


उसकी बात सुन सब सकपका गए। 


उसे पानी पिलाया.....फिर लिम्का पिलाई गई.....फिर जब वह नार्मल हुआ तो उसने बताया के वह झारखंड का रहने वाला है ......चौकीदारी करता है। पत्नी बीमार है। इलाज करवाने के लिये पहले ही मालिक से एडवांस ले चुका है। 

...........और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हो रही और पत्नी के इलाज का खर्च बढ़ता जा रहा है। 


इसी झल्लाहट में वह बीते बुधवार मित्र के घर के आगे से निकला ......उसे नई गाड़ी खड़ी दिखाई दी और उसने गुस्से में उसकी लाइट्स फोड़ दी। उसे लगा के उसकी गरीबी का मूल कारण ......"सेठ लोग" हैं।  


अब कायदे से ऐसे आदमी का क्या इलाज बनता है। 


पुलिस के हवाले कर दें। 

मार मार कर मोर बना दें। 

नहीं।  

संभवत आपको जान कर हैरानी होगी के जिस घर में वह चौकीदारी करता है.....उसके मालिक से हमारे मित्र ने संपर्क किया।


दोनो ने  मिल कर रांची के एक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में संपर्क स्थापित किया। 


बीते शनिवार चौकीदार की पत्नी का इलाज हॉस्पिटल में शुरू हो चुका है। 


इलाज के खर्च का एक हिस्सा वह व्यक्ति संभाल रहा है जिसकी चमचमाती गाड़ी की लाइट्स को बेवजह फोड़ दिया गया था। 


.........और यकीन मानिये के यह उस व्यक्ति की महानता नहीं है .......यह उसका स्वभाव है। उदारता उसका स्वभाव है। पार्ट आफ नेचर है ।  


भारत रत्न स्वर्गीय अटल जी ने कहा था......."छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता"


जो आगे बढ़ रहे हैं उनका मन उदार है.....उनका ह्रदय.....बड़ा है.....विराट है। 


गरीब को लगता है के उसकी गरीबी का कारण चमचमाती गाड़ी में बैठा सेठ है! 


समाजवाद तो गरीब का मूल कारण ही पूंजीवाद को मानता है। 


लेकिन .......पूंजीवाद से घृणा बेमानी है.....बेतुकी है। 

उस घृणा का मूल कारण किसी की सफलता नहीं है.....उसका मूल कारण स्वयं की असफलता है। 


गाड़ी की लाइट्स फोड़ता व्यक्ति अपने दुःख से ........दुखी नहीं है.....वह किसी सफल व्यक्ति के........ सुख से .........दुखी है। 


संभव हो तो ईर्षा छोड़ के अपने हृदय को उदार कीजिये। प्रयास कीजिये के आप भी किसी दिन धन संपत्ति अर्जित कर सकें। 

पूंजीवाद से घृणा कर कुछ हासिल ना होगा...... हां.......अनुसरण करने से बहुत कुछ हासिल होगा। 


130 करोड़ जनसंख्या के इस राष्ट्र में .......कामयाबी के करोड़ों रास्ते खुले हुऐ हैं। 

सवाल यह है के हम अपने लिये कौनसा रास्ता चुनते हैं। 

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शनिवार, 21 मई 2022

कर्म

कौरवों की राज सभा लगी हुई है। एक ओर कौने में पाण्डव भी बैठे हैं। दुर्योधन की आज्ञा पाकर दुःशासन उठता है और द्रौपदी को घसीटता हुआ राज सभा में ला रहा है। आज दुष्टों के हाथ उस अबला की लाज लूटी जाने वाली है। उसे सभा में नंग किया जायेगा। वचनबद्ध पाण्डव सिर नीचा किए बैठे हैं।

द्रौपदी अपने साथ होने वाले अपमान से दुःखी हो उठी। उधर सामने दुष्ट दुःशासन आ खड़ा हुआ। द्रौपदी ने सभा में उपस्थित सभी राजों महाराजों, पितामहों को रक्षा के लिए पुकारा, किन्तु दुर्योधन के भय से और उसका नमक खाकर जीने वाले कैसे उठ सकते थे। द्रौपदी ने भगवान को पुकारा अन्तर्यामी घट−घटवासी कृष्ण दौड़े आये कि आज भक्त पर भीर पड़ी है। द्रौपदी को दर्शन दिया और पूछा किसी को वस्त्र दिया हो तो याद करो? द्रौपदी को एक बात याद आई और बोली—‟भगवान् एक बार पानी भरने गई थी तो तपस्या करते हुए ऋषि की लँगोटी नदी में बह गई, तब उसे धोती में से आधी फाड़कर दी थी। कृष्ण भगवान ने कहा—द्रौपदी अब चिन्ता मत करो। तुम्हारी रक्षा हो जायगी और जितनी साड़ी दुःशासन खींचता गया उतनी ही बढ़ती गई। दुःशासन हारकर बैठ गया, किन्तु साड़ी का ओर छोर ही नहीं आया।

यदि मनुष्य का स्वयं का कुछ किया हुआ न हो तो स्वयं विधाता भी उसकी सहायता नहीं कर सकता। क्योंकि सृष्टि का विधान अटल है। जिस प्रकार विधान बनाने वाले विधायकों को स्वयं उसका पालन करना पड़ता है वैसे ही ईश्वरीय अवतार महापुरुष स्वयं भगवान भी अपने बनाये विधानों का उल्लंघन नहीं कर सकते। इससे तो उनका सृष्टि संचालन ही अस्त−व्यस्त हो जायेगा।

इस सम्बन्ध में उन लोगों को सचेत होकर अपना कर्म करना चाहिए जो सोचते हैं कि भगवान सब कर देंगे और स्वयं हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। जीवन में जो कुछ मिलता है अपने पूर्व या वर्तमान कर्मों के फल के अनुसार। बैंक बैलेन्स में यदि रकम नहीं हो तो खातेदार को खाली हाथ लौटना पड़ता है। मनुष्य के कर्मों के खाते में यदि जमा में कुछ नहीं हो तो कुछ नहीं मिलने का। कर्म की पूँजी जब इकट्ठी करेंगे तभी कुछ मिलना सम्भव है। भगवान और देवता भी  बिना आपके कर्म के कुछ नहीं कर पाएंगे - कर्मशील होंगे तो किसी भी कृत्य पर उनका आशीर्वाद झलक पड़ेगा !! कर्म करते रहिए !!

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सोमवार, 16 मई 2022

परिवार

 


महाभारत काल में जब पांडव वनवास काल में थे तो अपना जीवन एक कुटिया में रहकर बिता रहे थे जिसके बारे में जब दुर्योधन को पता चला तो उसने पांडवों को नीचा दिखाने के लिए पूर्ण ऐश्वर्य के साथ वन में जाने की सोची ताकि वो पांडवो को ईर्ष्या से जलता देख सके |

जब दुर्योधन वन के लिए निकला | तब उसकी रास्ते में गंधर्वराज से मुलाकात हुई | उसी वक्त दुर्योधन ने सोचा कि गंधर्वकुमार को हराकर पांडवो को अपनी ताकत का प्रमाण देना का अच्छा मौका हैं | ऐसा सोच उन्होंने गंधर्व राज पर आक्रमण कर दिया लेकिन गन्धर्व राज अत्यंत शक्तिशाली थे | उन्होंने दुर्योधन को हरा दिया और उसे बंदी बना दिया | जब इसकी सुचना पांडवो को मिली तब युधिष्ठिर ने भाईयों को आदेश दिया कि वे जाकर दुर्योधन को वापस लायें | यह सुनकर भीम ने कहा – भ्राता ! यूँ तो दुर्योधन हमारा भाई हैं लेकिन वो सदैव हमारा अहित सोचता हैं तो ऐसे में उसकी मदद क्यूँ की जाये | तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – भले ! हमारा और हमारे भाईयों का बैर हैं लेकिन वो एक घर की बात हैं जिसे जग जाहिर करना गलत हैं |पारिवारिक झगड़े परिवार में ही रहे उसी में परिवार की इज्जत हैं |इसे यूँ प्रदर्शित करना पूर्वजो का अपमान हैं |बड़े भाई की आज्ञा मान पांडव गंधर्वराज से युद्ध करते हैं और दुर्योधन को छुड़ा लाते हैं |

आज कल परिवार में झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं  , लेकिन ये आम बात हैं ,परन्तु इनका बयान अन्य के सामने करना गलत हैं | इससे जग हँसाई होती हैं और आपके परिवार की कमजोरी सभी के सामने उजागर होती हैं |

परिवार में कितना ही बैर क्यूँ ना हो लेकिन विपत्ति में हमेशा अपनों का साथ देना चाहिये |
बुजुर्ग कह गए हैं -
रहना भाइयों संग ही, भले बैर हो !
खाना माँ के हाथ का ही, भले जेर हो !! (जेर - जहर )
  
आजकल आम बात में परिवार में मनमुटाव हो जाता है , लेकिन अगर इसकी भनक दूसरों को लगती हैं तो वे आपका मजाक उड़ाते हैं | साथ ही इसका फायदा उठाकर आपको नुकसान भी पहुँचा सकते हैं |

अगर आप परिवार के झगड़ों की बाते अन्य के सामने करते हैं तो आपके बुजुर्गों एवम उनके संस्कारों पर लोग प्रश्नचिन्ह लगाते हैं जिससे परिवार की साख मिट्टी में मिल जाती हैं | अतः जहाँ तक हो सके, कोशिश करें कि पारिवारिक मनमुटाव को परिवार में ही सुलझाएं, उसका बाहर बयान कर परिवार की नींव कमज़ोर ना करें |

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रविवार, 15 मई 2022

विवेक

 

पुराने जमाने की बात है। एक राजा ने दूसरे राजा के पास एक पत्र और सुरमे की एक छोटी सी डिबिया भेजी।

पत्र में लिखा था कि जो सुरमा भिजवा रहा हूं, वह अत्यंत मूल्यवान है। इसे लगाने से अंधापन दूर हो जाता है।

राजा सोच में पड़ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि इसे किस-किस को दे।

उसके राज्य में नेत्रहीनों की संख्या अच्छी-खासी थी, पर सुरमे की मात्रा बस इतनी  थी जिससे दो आंखों की रोशनी लौट सके।

राजा इसे अपने किसी अत्यंत प्रिय व्यक्ति को देना चाहता था। तभी राजा को अचानक अपने एक वृद्ध मंत्री की स्मृति हो आई।

वह मंत्री बहुत ही बुद्धिमान था, मगर आंखों की रोशनी चले जाने के कारण उसने राजकीय कामकाज से छुट्टी ले ली थी और घर पर ही रहता था।

राजा ने सोचा कि अगर उसकी आंखों की ज्योति वापस आ गई तो उसे उस योग्य मंत्री की सेवाएं फिर से मिलने लगेंगी।

राजा ने मंत्री को बुलवा भेजा और उसे सुरमे की डिबिया देते हुए कहा, ‘इस सुरमे को आंखों में डालें। आप पुन: देखने लग जाएंगे। किन्तु ध्यान रहे यह केवल 2 आंखों के लिए है।’

मंत्री ने एक आंख में सुरमा डाला। उसकी रोशनी आ गई। उस आंख से मंत्री को सब कुछ दिखने लगा।

फिर उसने बचा- खुचा सुरमा अपनी जीभ पर डाल लिया।

यह देखकर राजा चकित रह गया। राजा ने उस मंत्री से पूछा, ‘यह आपने क्या किया?

अब तो आपकी एक ही आंख में रोशनी आ पाएगी। लोग आपको काना कहेंगे।’

मंत्री ने जवाब दिया, ‘राजन, चिंता न करें। मैं काना नहीं रहूंगा। मैं आंख वाला बनकर हजारों नेत्रहीनों को रोशनी दूंगा। मैंने चखकर यह जान लिया है कि सुरमा किस चीज से बना है। मैं अब स्वयं सुरमा बनाकर नेत्रहीनों को बांटूंगा।’

राजा ने मंत्री को गले लगा लिया और कहा, ‘यह हमारा सौभाग्य है कि मुझे आप जैसा मंत्री मिला।

विवेक जागृत रहे तो समाज की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है अन्यथा व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ से आगे नहीं बढ़ पाता ।

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शनिवार, 14 मई 2022

चप्पल की नाप

 


रात 8 बजे का समय रहा होगा, एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है. गांव का रहने वाला था पर व्यवहारिक लगा ,उसका बोलने का लहज़ा गाँव वालो की तरह का था, पर बहुत ठहरा हुआ लग रहा था. लगभग 22 वर्ष का रहा होगा .

दुकानदार की पहली नज़र पैरों पर ही जाती है. उसके पैर में लेदर के शूज थे,सही से पाॅलीश किये हुये थे

दुकानदार - क्या सेवा करू ?
लड़का - मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये,किंतु टिकाऊ होनी चाहिये
दुकानदार - वे आई है क्या ?उनके पैर का नाप ?"

लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, उसको चार बार फोल्ड किया एक कागज़ पर पेन से  आऊटलाईन बनाई दोनों पैर की.

दुकादार - अरे मुझे तो नाप के लिये नम्बर चाहिये था.

वह लड़का ऐसा बोला मानो कोई बाँध फूट गया हो "क्या नाप बताऊ साहब?
मेरी माँ की जिंदगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पलच नही पहनी, माँ मेरी मजदूर है, काँटे झाड़ी में भी जानवरो जैसे मेहनत करकर के मुझे पढ़ाया । पढ़कर,अब नोकरी लगी. आज पहली तनख़्वाह मिली , अब घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊ ? तो मन मे आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ ."

दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी .
"चलेगी क्या "वह उसके लिये तैयार था.

दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया; "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"

"अभी तो बारह हजार,रहना - खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाते है यहाँ, और दो - तीन हजार माँ को भेज देता हूँ."

अरे फिर आठ सौ रूपये कहीं  ज्यादा तो नहीं  .....तो बीच में ही काटते हुए बोला .... नही कुछ नही होता

दुकानदार ने बाॅक्स पेक कर दिया उसने पैसे दिये.
ख़ुशी ख़ुशी वह बाहर निकला.

चप्पल जैसी चीज की, कोई किसी को इतनी महंगी भेंट नही दे सकता. ......... पर दुकानदार ने उसे कहा- "थोड़ा रुको! दुकानदार ने एक और बाॅक्स उसके हाथ में दिया. "यह चप्पल माँ को तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाय तो दूसरी पहन लेना नँगे पैर नही घूमना,और इसे लेने से मना मत करना."

दुकानदार की और उसकी दोनों की आँखे भर आईं.

दुकानदार ने पूछा "क्या नाम है तेरी माँ का?" .
"लक्ष्मी "उसने उत्तर दिया.
दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा, उन्हें "मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?

वह पेपर जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी,वही पेपर मुझे चाहिये.
वह कागज़ दुकानदार के हाथ मे देकर ख़ुशी ख़ुशी चला गया ।

वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में फ्रेम करवा कर रख़ा.
दुकान के पूजाघर में  देख दुकानदार के बच्चों ने  पूछ लिया कि ये क्या है पापा  ?"

दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला;
"लक्ष्मीजी के पैर " है बेटा
एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है . इससे धंधे में बरकत आती है."

बच्चों ने, दुकानदार ने और सभी ने मन से उन पैरों को प्रणाम किया,......

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सोमवार, 9 मई 2022

पहचान

 

कैसे पहचानेंगे??

असम में जाना हुआ तो वहां श्रीमंत शंकरदेव शिशु निकेतन में जाना हुआ,,बच्चों में बड़ा उत्साह था जैसे किसी जादूगर के आने पर होता है,,

बात शुरू हुई तो मैंने बच्चो से पूछा--आप लोग कहीं जा रहे हैं,, सामने से कोई कीड़ा मकोड़ा या कोई सांप छिपकली या कोई गाय भैंस या अन्य कोई ऐसा विचित्र जीव दिख गया जो आपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा,, तो प्रश्न यह है कि आप कैसे पहचानेंगे कि वह जीव  अंडे देता है या  बच्चे ?? क्या पहचान है उसकी ?? बच्चे मौन रहे बस आंतरिक खुसर फुसर चलती रही,,

मिनट दो मिनट बाद मैंने ही बताया कि बहुत आसान है,, जिनके भी  कान दिखाई देते हैं बाहर,, वे सब बच्चे देते हैं और जिन जीवों के कान बाहर दिखाई नहीं देते वे अंडे देते हैं,,,

फिर दूसरा प्रश्न पूछा--ये बताइए आप लोगों के सामने एकदम कोई प्राणी आ गया,, आप कैसे पहचानेंगे की यह  शाकाहारी है या  मांसाहारी???क्योंकि आपने तो उसे भोजन करते देखा नहीं है,, बच्चों में फिर वही कौतूहल और खुसर फ़ुसर की आवाजें,,,

मैंने कहा--देखो भाई बहुत आसान है,, जिन जीवों की आंखों की बाहर की यानी ऊपरी संरचना  गोल है वे सब मांसाहारी हैं,, जैसे--कुत्ता, बिल्ली, बाज, चिड़िया, शेर, भेड़िया, चील,, या अन्य कोई भी आपके आस पास का जीव जंतु जिसकी आंखे गोल हैं वह मांसाहारी है,, ठीक उसी तरह जिसकी आंखों की बाहरी संरचना   लंबाई लिए हुए है,, वे सब शाकाहारी हैं,, जैसे हिरन,, गाय, हाथी, बैल, भैंस, बकरी,, इनकी आंखे बाहर की बनावट में लंबाई लिए होती हैं,,
अब ये बताओ कि मनुष्य की आंखें गोल हैं या लंबाई वाली,,, सब बच्चों ने कहा कि लंबाई वाली,, मैंने फिर पूछा कि यह बताओ इस हिसाब से मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या मांसाहारी??सबका उत्तर था  शाकाहारी,,

फिर दूसरी बात यह बताई कि जिन भी जीवों के नाखून तीखे  नुकीले होते हैं वे सब मांसाहारी होते हैं,, जैसे शेर बिल्ली, कुत्ता बाज गिद्ध या अन्य कोई तीखे नुकीले नाखूनों वाला जीव,,
जिनके नाखून चौड़े #चपटे होते हैं वे सब शाकाहारी होते हैं,, जैसे गाय, घोड़ा, गधा, बैल, हाथी, ऊंट, बकरी,
अब ये बताओ बालकों कि मनुष्य के नाखून तीखे नुकीले हैं या चौड़े चपटे??
बालकों ने कहा कि चौड़े चपटे,, अब ये बताओ इस हिसाब से मनुष्य कौनसे जीवों की श्रेणी में हुआ??सब बालकों ने कहा कि शाकाहारी,,,

फिर तीसरी बात बताई,,जिन भी जीवों पशु प्राणियों को #पसीना आता है वे सब शाकाहारी होते हैं जैसे घोड़ा बैल गाय भैंस खच्चर आदि अनेकों प्राणी,,
मांसाहारी जीवों को पसीना नहीं आता है,, इसलिए कुदरती तौर पर वे जीव अपनी  जीभ निकालकर लार टपकाते हुए हांफते रहते हैं,, इस प्रकार वे अपनी शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं,,
तो प्रश्न यह है कि मनुष्य को पसीना आता है या जीभ से एडजस्ट करता है??
बालकों ने कहा कि पसीना आता है,, अच्छा यह बताओ कि इस बात से मनुष्य कौनसा जीव सिद्ध हुआ,, सबने एकसाथ कहा--शाकाहारी,,,

ऐसे ही अनेकों विषयों पर बच्चों से बात की,, आनंद आ गया,,, अध्यापन से जुड़े भाई बहन चाहें तो बच्चों को सीखने पढ़ाने के लिए इस तरह बातचीत की शैली विकसित कर सकते हैं,, इससे जो वे समझेंगे सीखेंगे वह उन्हें जीवनभर काम आएगा याद रहेगा,,पढ़ते वक्त  बोर भी नहीं होंगे,,,

ॐ श्री परमात्मने नमः            -  स्वामी सूर्यदेव

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रविवार, 8 मई 2022

नालायक बेटा

 


बंधुओ, मैं दुनिया की बहुत भाग्यशाली महिला हूं  । मेरे चार बेटे व एक बेटी है । बड़ा बेटा कनाडा में रहता है, दूसरा बेटा दिल्ली में, तीसरा देहरादून में और चौथा यही मेरे पास गांव में रहता है । बेटी का विवाह हो गया है।
    मदर्स डे था । सुबह जैसे ही मेरी आंख खुली, मेरे कनाडा वाले बेटे ने मुझे हैप्पी मदर्स डे का संदेश भेजा । फिर थोड़ी देर के बाद उसका फोन भी आया । वह बहू और सभी नाती-नातिन कहने लगे कि हम तुम्हें बहुत मिस करते हैं । आज मदर्स डे था, इसलिए याद किया । ठीक हो ना । मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि तभी दिल्ली वाले बेटे का भी फोन आ गया । उसने तो हद ही कर दी है । कहा- मां तेरी बहू तुझे बहुत चाहती है और आज मदर्स-डे है ना,  इसीलिए उसने आज तेरे पसंद का खाना भी बनाया है । हम सभी तुझे बहुत याद करते हैं । अगर इस वर्ष दिवाली में छुट्टी नहीं मिली तो अगले साल गर्मियों में हम गांव जरूर आएंगे । अपना ध्यान रखना । तीसरा बेटा जो देहरादून में रहता है, वह कवि होने के साथ ही बहुत अच्छा सामाजिक व्यक्ति भी है । उसने तो देहरादून में मदर्स-डे पर एक फंक्शन रख दिया था । वाह क्या सुंदर कविताएं सुनाई और शहर के तमाम बुद्धिजीवियों को जोड़कर मातृत्व पर क्‍या खूब भाषण दिलवाए । धन्य हो गई मैं अपने ऐसे बेटों को पाकर । बेटी भी ससुराल में सुखी है। रोज कुशल खबर लेती रहती है। उसने तो गिफ्ट भी भेजा है।
    हां... मैं बताना भूल गई कि मेरा एक छोटा बेटा भी है, जो कि मेरे साथ यहीं गांव में ही रहता है । नालायक कहीं का ।
    कल सारे दिन काम में लगा रहा । मुझे दिनभर हर बार हर चीज में टोके जा रहा था कि मां यह पहनो, ऐसा मत करो, उधर मत जाओ, धूप में थोड़ा घूम आओ, तुमने दवाई खाली...   । बस वही रोज की रटी-रटाई बातें । लेकिन रात होने तक उसने एक बार भी हैप्‍पी मदर्स डे नहीं कहा । उसे न तो facebook चलाना आता है न whatsapp. मुझे तो मेरी बेटी ने सिखा दिया था। आज के जमाने में सोशल मीडिया से जुड़ना कितना आवश्यक है, पर वह क्या जाने …. अगर जानता तो एक बार तो कहता ...हैप्पी मदर्स डे मां…. बेवकूफ कहीं का …….
    पर चाहती हुँ की हर मां के पास एक नालायक बेटा जरूर हो !! लायक बेटे साथ छोड़ जाते हैं, सफलता की चकाचौंध में मोतिया हो जाता होगा न !!

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शनिवार, 7 मई 2022

एक गिलास पानी

 


सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी। खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह तल्ख़ मिजाज़ का था और सभी से तेज स्वर में बात कर रहा था।_

उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, यह फॉर्म भर कर लायीं हैं, कुछ भी सही नहीं। सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो, जेब का पैसा लगता तो दस लोगों से पूछ कर भरतीं आप।"

एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था, वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहीँ रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया।

क्लर्क ने उस व्यक्ति की तरफ आँखें तरेर कर देखा और गर्दन उचका कर  'क्या है?'
का इशारा किया।

उस व्यक्ति ने कहा, "सर, काफी देर से आप बोल रहे हैं, गला सूख गया होगा, पानी पी लीजिये।"

क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो!

और कहा, "जानते हो, मैं कडुवा सच बोलता हूँ, इसलिए सब नाराज़ रहते हैं, चपरासी  मुझे पानी तक नहीं पिलाता!"

वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और फिर पंक्ति में अपने स्थान पर जाकर खड़ा हो गया।

अब उस क्लर्क का मिजाज बदल चुका था, काफी शांत मन से उसने सभी से बात की और सबको अच्छे से सेवाए देनी शुरू की।

शाम को उस व्यक्ति के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ वही क्लर्क था, उसने कहा,

"भाईसाहब, आपका नंबर आपके फॉर्म से लिया था, धन्यवाद देने के लिये फ़ोन किया है।

मेरी माँ और पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती, आज भी जब मैं घर पहुंचा तो दोनों बहस कर रहीं थी, लेकिन आपका गुरुमन्त्र काम आ गया।"

वह व्यक्ति चौंका, और कहा, "जी? गुरुमंत्र?"

"जी हाँ, मैंने एक गिलास पानी अपनी माँ को दिया और दूसरा अपनी पत्नी को और यह कहा कि गला सूख रहा होगा पानी पी लो। बस तब से हम तीनों हँसते-खेलते बातें कर रहे हैं।

अब भाईसाहब, आप आज हमारे घर पर खाने पर आइये।"

_"जी! लेकिन , खाने पर क्यों?"

क्लर्क ने भर्राये हुए स्वर में उत्तर दिया,

_"गुरू माना है तो इतनी दक्षिणा तो बनेगी ना आपकी और ये भी जानना चाहता हूँ, एक गिलास पानी में इतना जादू है तो खाने में कितना होगा?"

दूसरो के क्रोध को प्यार से ही दूर किया जा सकता है। कभी कभी हमारे एक छोटे से प्यार भरे बर्ताव से दूसरे इंसान में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाता है और प्यार भरे रिश्तो की एकाएक शुरूआत होने लगती है जिससे घर और कार्यस्थल पर मन को सुकुन मिलता है।

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सोमवार, 2 मई 2022

जज़्बा मजबूती का

 

बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी और की नही होती।
मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है।  जितने ऊपर अमूमन हवाई जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है?तेरी दुनिया क्या है?
तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।
धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।
अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है अपने इलाके को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके। धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।

यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता। यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है, तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।

हिंदी में एक कहावत है... "बाज़ के बच्चे मुँडेरों पर नही उड़ते....."

बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।

वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर,आपके बच्चों को "ब्रायलर मुर्गे" जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि..

*"गमले के पौधे और जमीन के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।"*

माता पिता अपने बच्चो को कोमल नही कठोर बनाएँ
शस्त्र और शास्त्र दोनो की विद्दा अवश्य दें 🙏 यही आपका प्रथम कर्तव्य है,

AC की हवा मे तभी बैठने दें जब वह गर्मी मे रहना सीख जाए, गाडी की चाबी  तभी दें जब वह कई किलोमीटर पैदल चलने से हिचकिचाता न हो...।।

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रविवार, 1 मई 2022

अपना अपना अनुभव

 

गर्मी का दिन था।

जंगल में एक लकड़बग्घा प्यास से तड़प रहा था ,साथ ही साथ वो पानी के तलाश में जंगल में इधर उधर भटक रहा था।

तभी घूमते हुए उसे एक नदी दिखाई पड़ी।दूर से देखने पर नदी में पानी कम लग रहा था फ़िरभी उसने दौड़कर जल्दी से अपनी प्यास बुझाई।

भरपेट पानी पीने के बाद लकड़बग्घा मानो तृप्त हो गया।

अब उसने सोंचा कि गर्मी काफ़ी है तो क्यों न नदी के बीच में जाकर साफ़ व स्वच्छ पानी में स्नान भी कर लिया जाए ।लेकिन नदी की कितनी गहराई है ,उसे मालूम न था।

लकड़बग्घे ने वहीं खड़े एक ऊँट से पूछा... ताऊ,नदी में पानी कितना है, कहीं मैं डूब तो नहीं जाऊँगा स्नान करने में।

ऊँट ने अपना दाँत निपोरते हुए कहा... मेरे घुटने भर पानी है बच्चे ।मैं अभी अभी नहा कर निकला हूँ।जा तू भी नहा ले।

ऊँट की बात सुनते ही लकड़बग्घे ने छलाँग लगाई औऱ नदी के बीचों बीच जा पहुंचा। फ़िर वो अचानक डूबने लगा ।लकड़बग्घा क़भी गोते खाता तो कभी अपना सिर पानी से बाहर निकाल कर सांस लेता।जैसे तैसे उसने अपनी जान बचाई औऱ बाहर आया ।

बाहर आते ही उसने ग़ुस्से में ऊँट से कहा " बेवकूफ़,तुमने क्यों कहा,पानी घुटनों तक है... मैं तो डूबकर मरने वाला था कमीने ?"

ऊँट ने जवाब दिया " भड़क क्यों रहा है बच्चे, मैंने तो बिलकुल ठीक ही कहा था कि नदी में पानी मेरे घुटनों तक है,अब तुझें मेरी बात समझ में न आई तो मैं क्या करूँ। ".....!!

उसके बाद लकड़बग्घे को अपनी ग़लती का एहसास हुआ ।

......
दोस्तों.... ज़िंदगी में हर किसी का तजुर्बा अलग अलग होता है और वो सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत अनुभव की रौशनी में ही किसी विषय का जवाब देता है, मुमकिन है जो बातें उसके लिए फायदेमंद हो, हमारे लिए नुक़सान पहुंचाए ।

इसलिए ये हमेशा याद रखना चाहिए कि सिर्फ दूसरों के तजुर्बे को देखकर चलना जीवन में हमें कभी भी डुबो सकता है ।अपने विवेक से काम लेना ज़रुरी है। सावधान रहें, सतर्क रहें, मस्त रहें औऱ हमेशा हँसते खिलखिलाते रहें ।

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