आज के दिन/ सुनी सुनाई...
एक बेटी ने जब सुनाई अपनी यादें ...
उन दिनों जब फोन का मतलब बस लैंडलाइन फोन ही होता था। लोग एक बार घर से बाहर गए तो कह कर जाते थे, कहीं एसटीडी मिली तो कॉल करेंगे। तब न तो कोई हड़बड़ाहट थी और न ही कोई फिक्र! कम बात होने के बाद भी एक तसल्ली थी जीवन मे। किसी का कॉल आता, तो कोशिश रहती कि 60 सेकेंड से पहले फोन रख दें, क्योंकि दूसरे मिनट लगते ही दो कॉल के पैसे लग जाएंगे।
खैर, मुझे यह सब क्यों याद आया?
आज पहली अप्रैल है। और बचपन से लेकर अब तक पापा को अप्रेल फूल बनाना मेरा प्रिय शगल हुआ करता है।
जब घर में लैंडलाइन था, तो उसमें 162 डायल करने पर अपने ही फोन पर रिंग बजती थी। मैं हर साल 162 डायल कर के फोन रखती। फोन की घण्टी बजती और मैं उठाकर कहती...पापा आपका कॉल है!
पापा आते हेलो हेलो करते और मैं ताली बजा बजाकर हँसती...अप्रेल फूल बनाया:-) सालों से पापा को सेम तरीके से अप्रेल फूल बनाती। और वो बन भी जाते। और मुस्कराते।
अब जब दूर रहती हूँ तब भी हर साल फोन कर के कुछ न कुछ कहकर अप्रेल फूल बनाती ही हूँ। आज भी यही हुआ। पापा बन भी गए...और मैं ज़ोरों से चिल्लाई ; अप्रेल फूल अप्रेल फूल और पापा कहने लगे अरे..आज अप्रेल फूल डे है क्या?? तूने तो सुबह सुबह फूल बना दिया!
मैं एकदम खुश थी तब पीछे से माँ की आवाज़ आई;
"अरे आपको 5 मिनट पहले ही तो बताया था कि आज 1 अप्रेल है। वो जरूर फोन करेगी, उसकी बातों में मत आना और आज तो अप्रेल फूल मत ही बनना"
माँ की बात सुनकर मुझे पता चला कि, सालों से मैं नहीं...बल्कि पापा ही जानबूझकर अप्रेल फूल बनकर, मुझे ही फूल बनाते हैं। और जब मैं हँसती हूँ तो वो मन ही मन मुस्कराते हैं।
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