शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

 

राज शेखर तिवारी जी ने बताया कि
कोई डॉक्टर जितेंद्र कुमार हैं अलीगढ़ विश्वविद्यालय में ,  उन्होंने कुछ स्लाइड्स बनवा कर दिखायी है , उसमें बाक़ी बकवास जो उन्होंने करी है उस पर मैं स्पष्ट रूप से सनातन धर्म का दृष्टिकोण रख देता हूँ, आप लोग पोस्ट सुरक्षित रख कर यह उत्तर सोशल मीडिया के माध्यम से औरों को दें ..

01. पहला प्वाइंट उस मुर्ख ने ब्रह्मा और सरस्वती का दिया है । यह दोनों अवतारी देवता न होकर केवल आध्यात्मिक देवता हैं । अध्यात्म अर्थात् शरीर के अंदर , आपके मन में । भौतिक रूप से नहीं बल्कि सूक्ष्म रूप से इसे समझें ।

थोड़ी देर के लिए ब्रह्मा सरस्वती भूल जाएँ ।

आपका अपना मन , आपकी अपनी बुद्धि, आपका अपना चित् और आपका अपना अहंकार ही आपका अंतःकरण है । यही चारों चार मुँह वाले ब्रह्मा हैं ।

अब आपकी मेरी या धूर्त जितेंद्र कुमार की वाणी कहाँ से उत्पन्न होती है ? मन से । अर्थात् वह वाणी ही सरस्वती है , और मन से उत्पन्न होने के कारण , वह वाणी आपकी बेटी है ।

अब वाणी रहती कहाँ है ? वह रहती है आपके साथ ? और जो जीवन भर आपके साथ रहे वह आपकी पत्नी ।

तो पुराणों की यह भाषा है , अंतःकरण और वाणी के समष्टि को समझाने की ।

ब्रह्मा की सृष्टि मानसिक सृष्टि थी । बाद में प्रजापति इत्यादि के द्वारा भौतिक सृष्टि सृजन हुयी । क्योंकि मानसिक सृष्टि से व्यवहार चल ही नहीं सकता ।

02. दूसरा प्वांइट जलंधर के वध संबंधित है । यहाँ पर सतीत्व की महिमा बतायी गयी है ।

जलंधर ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा था पर उसका वध केवल इसलिए नहीं हो पा रहा था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा ( तुलसी ) एक सती थी , और जब तक वृंदा का सतीत्व भंग नहीं होता तब तक जलंधर का न तो वध होता और न ही विश्व का कल्याण ।

अब बड़ी बात क्या थी तो विश्व के कल्याण के लिए वृंदा का सतीत्व भंग किया गया ..

पर क्या इससे वृंदा या तुलसी की निंदा हुयी सनातन धर्म में ? नहीं वह पूजनीय हो गयीं और आज भी वृंदावन में नित्य विहार कर रही हैं । वृंदा ने नारायण को पत्थर रूप में अपने समक्ष रहने को कहा और आज भी ठाकुर जी ( श्री शालिग्राम) पत्थर के जैसे जड़ बनकर रहते हैं । तुलसी के अतिरिक्त नारायण को पत्थर बनाने का सामर्थ्य किसी और में नहीं आया ।

03. और तीसरी कथा रामावतार की है । इंद्र सभी इंद्रियों ( ग्यारहों ) का राजा होता है और जैसे व्यष्टि में हम बहक जाते हैं वैसे ही समष्टि में वह बहक गया , और आपको पता ही है की रामावतार में राम नहीं चाहते थे की लोग उन्हें ईश्वर रूप में पहचानें पर एक काम उन्हें ऐसा करना था की बाद में लोग कह सकें ऐसा करना तो केवल ईश्वर के लिए ही संभव है ,

और वह था किसी स्त्री जिसका शील भंग हुआ हो उसे पुनः सती बना देना , अहनी लियते इति अहिल्या । और आज भी अहिल्या की गिनती सती अहिल्या के रूप में होती है । वहाँ , ईश्वरीय पहचान करायी गयी है न की इंद्र का कुकृत्य ।

अपेक्षा करता हूँ की आप लोग इन उत्तर को और भी लोगों तक पहुँचाएँगे ।

हमारे पुराणों में शास्त्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर आपको ग्लानि करनी है बस उन कथाओं के उद्देश्य को समझना है ।
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