सोमवार, 28 मार्च 2022

असलियत

 


एक होटल से हर रोज़ एक व्यक्ति खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाता था। होटल पर ग्राहकों की भीड़ भी इतनी ज़्यादा होती थी की एक आदमी का बिना पैसे दिये चले जाना कोई मुश्किल भी नहीं था।
जो लोग रोज़ वहाँ खाना खाने आते थे उस व्यक्ति को देख आपस में ज़िक्र करते की यहाँ ग्राहकों की भीड़ इतनी होती है की यह रोज बिना पैसे दिये मुफ़्त में खाना खाकर चला जाता है।
एक दिन किसी ने होटल के मालिक से इस बात की चर्चा की। एक आदमी है जो हर रोज़ आपके होटल से खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाता है आप क्यों नहीं इस तरफ़ ध्यान देते। जो जवाब होटल के मालिक ने दिया शायद उस पर हर कोई विश्वास ना कर पाये:-
उसने कहा की मैं यह सब देख रहा हूँ और जानता भी हूँ की यह बिना बिल चुकायें खाना खाकर चला जाता है। आप जो इस होटल में ग्राहकों की भीड़ देख रहे हो यह केवल इस व्यक्ति के कारण ही है। क्योंकि यह सुबह से ही यहाँ आकर खड़ा हो जाता है और इन्तज़ार करता है ग्राहकों की उस भीड़ का जिसमें से यह आसानी से खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाये।
मेरा यह मानना है की यह ज़रूर प्रभु से प्रार्थना करता होगा की ग्राहकों की भीड़ इकट्ठा हो और यह चुपचाप खाना खाकर चला जाये। इस की इस प्रार्थना की वजह से ही मेरा होटल ग्राहकों से भरा रहता है। मैं कैसे इससे कहूँ की तुम मुफ़्त में खाना खाकर चले जाते हो।

*यह एक बहुत ही गहरी सोच वा सीख हो सकती है उस समाज के लिये जो सोचते हैं कि मेरी मेहनत से ही मैं पैसा कमा रहा हूँ जबकि असलियत यह होती है की कहीं ना कहीं इसमें किसी ना किसी का योगदान प्रार्थना व आशीर्वाद ज़रूर होता है*

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