आज भोर में एक प्रश्न दृष्टिगोचर हुआ- यदि आपको जीने के लिए एक ऐतिहासिक युग चुनना हो, तो आप कौन सा युग चुनेंगे और क्यों?
प्रश्न पढ़कर मेरा मन किया कि मैं भी इसका उत्तर दूँ...
आज से कुछ पैंतीस वर्ष पूर्व की बात है। रात का समय था, हम लोग भोजन कर चुके थे। 'हम लोग' मने मम्मी, पापा, भाई और मैं। भोजन के उपरांत भाई टहलने की कहकर घर से बाहर चला गया। मैं मम्मी पापा के संग बैठी बातें कर रही थी। तभी भाई वापस लौट आया, वह हमारे लिए कसाटा आइसक्रीम लेकर आया था। हम चारों ने बैठकर बातें करते हुए सुकून से आइसक्रीम खाई। उस समय ऐसी कोई 'प्रसन्नता का अतिरेक' जैसी भावना मन में नहीं आयी, परन्तु मन में सहजता व सुकून की भावना अवश्य थी।
जानते हैं, उस दिन के पश्चात ईश्वर ने बड़े से बड़े रेस्टोरेंट में खाने का अवसर प्रदान किया, परन्तु उस दिन वाली कसाटा जैसा स्वाद फिर कभी नहीं मिल पाया...
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मुझे आज एक प्रश्न का उत्तर देना है, फिर क्यों मैं इस 'कसाटा आइसक्रीम' का किस्सा ले बैठी?!
चलिये, अब उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करती हूं, शायद कसाटा आइसक्रीम का अपने प्रिय युग से सम्बंध स्पष्ट कर पाऊं...
ऐतिहासिक युग का तो पता नहीं, परन्तु मैं आज से करीब पैंतीस वर्ष पीछे जाना चाहूंगी। उस समय हमारे पास बहुत अधिक मात्रा में संसाधन नहीं होते थे, सिर्फ़ जरूरतभर की वस्तुएं हुआ करती थीं। फिर भी मन में एक सुकून अवश्य स्थायी रूप से वास करता था।
आज के समय में कोई हमारे मैसेज या फ़ोन कॉल का रिप्लाई दस सेकेंड में न करे तो मन बैचेन होने लगता है, रिश्ते टूटते से प्रतीत होते हैं। कुछ वर्ष पहले किसी भी मित्र या रिश्तेदार को पत्र लिखकर, उसके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा महीनों किया करते थे, फिर भी मन में रिश्तों के होने की निश्चिंतता बनी रहती थी।
घर में एक बाथरूम होने के पश्चात भी घर का कोई सदस्य काम पर जाने में लेट नहीं होता था तब। हर सदस्य स्नान करके ही घर से बाहर कदम रखता था आज हर रूम के साथ अटैच्ड बाथरूम होने के पश्चात भी हर कोई लेट होकर दौड़ता नज़र आता है।
उस समय रसोईघर में रस बरसता था, घर का सादा खाना भी अमृत लगता था, और अगर कभी कोई घर का बड़ा खाने के बाद आम या कसाटा आइसक्रीम ले आता तो बैठे बिठाए पार्टी हो जाया करती थी। आज फाइव स्टार के भोजन में भी वो बात नहीं। आजकल पार्टियों में ढेरों प्रकार के व्यंजन होने पर भी वह कसाटा वाली पार्टी जैसा स्वाद नहीं।
तब अच्छे पैसे वाले लोग भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल किया करते थे। डीटीसी की बस में कब हँसते बोलते रास्ता कट जाता था, अहसास ही नहीं होता था। बस में बैठे बैठे ही एक से एक लेटेस्ट न्यूज़ सुनने को मिल जाती थीं सो अलग। आज पैसे वालों की बात छोड़िए, मध्यम वर्ग भी रीस में आकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करना नहीं चाहता। घर में जितने सदस्य हैं, उतनी ही गाड़ियां हैं।
उस समय शादी ब्याह में रेखा वशिष्ठ { स्वयं} जैसे कुछ लोग स्कूल की सफ़ेद स्कर्ट पहनकर खुशी खुशी चले जाया करते थे। यही सोचकर मन खुश हो जाता था कि मेरे मम्मी पापा मुझे अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। हर महीने केंद्रीय विद्यालय की साढ़े बारह रुपये फीस भर रहे हैं। आज का हिसाब बिल्कुल उल्टा है। जो जितने महंगे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ रहा है, वह उतना ही असंतुष्ट है। उन्हें रोज नए नए खिलौने, महंगे वस्त्र, लेटेस्ट इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स चाहियें।
उस समय और अबके समय की तुलना में गिनवाने को बहुत कुछ है। क्या क्या गिनवाऊं व क्या क्या छोड़ दूँ...
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बीता हुआ समय कभी लौटकर वापस नहीं आता। हमें वो पहले वाली सहजता फिर से शायद न मिले। परन्तु, इसका यह अर्थ नहीं कि हम प्रयास ही न करें। जीवन को सहज बनाये रखने के लिए हमसे जो बन पड़े हमें करते रहना चाहिए।
स्वयं सहज बने रहने के लिए व बच्चों को सहजता सिखाने के लिए घर में कुछ न कुछ प्रयास हम लोग करते रहते हैं। उनमें से कुछ आप भी जानिए, कदाचित आपको भी कुछ लाभ पहुँचे-
★हमारे घर में एक अनकहा नियम है। हम दोनों बच्चों के साथ दिन में एक या दो बार वॉक करने जरूर जाते हैं। अगर हम में से कोई एक फ्री है तो एक ही चला जाता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि मुझे दिन में तीन चार बार कभी बेटी के साथ तो कभी बेटे के साथ वॉक करने जाना पड़ता है। वॉक के समय बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है। वे अपने मन में चल रहे विभिन्न द्वंदों को प्रकट करते हैं, और हम धैर्यपूर्वक सुनते हैं। फिर हम बात बातों में अपना मत भी प्रकट कर देते हैं। बच्चे उस समय चाहे हमारे बताए उपाय से संतुष्ट न हों, परन्तु बाद में वे वही कार्य करते दृष्टिगोचर होते हैं। याद रखिये, आप बच्चों के नाम कितना कुछ छोड़कर जाते हैं, वह उन्हें याद नहीं रहेगा। परन्तु उन्हें सदैव स्मरण रहेगा कि आपने उनके साथ कितना समय व्यतीत किया, क्या क्या बात की व उन्हें क्या क्या परामर्श दिए।
★आज भी हमारे घर में बच्चों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने को प्रेरित किया जाता है। अपना कोई वाहन नहीं है उनके पास। सिर्फ पतिदेव के पास एक गाड़ी है, जिसमें बैठकर हम सब कभी कभार इकट्ठे घूमने चले जाया करते हैं।
★मेरे बच्चे बहुत कुछ आज के बच्चों जैसे हैं, खूब शॉपिंग करते हैं व खूब बाहर से भी खाते हैं। पर जब वे अपने माता पिता को देखते हैं कि वे स्कूल दफ्तर घर से टिफिन लेकर जाते हैं, वहाँ एक भी पैसा खाने पर खर्च नहीं करते, वे यह भी देखते हैं कि उनके माता पिता शादी ब्याह व पार्टियों में वही पुराने कपड़े रिपीट करने में जरा भी गुरेज नहीं करते; तब वे भी कहीं न कहीं सीखते हैं कम में सुकून से रहना। वे सीखते हैं घर के भोजन का स्वाद, वे सीखते हैं सहजता व बेफिक्री। उस 'कसाटा आइसक्रीम' की तरह वे भी दुनिया की बेस्ट पार्टी का आनन्द लेते हैं अपनी माँ के हाथ से बने गाजर के हलवे में।
यहाँ भी कहने को बहुत कुछ है। समझ नहीं पाती क्या कहूँ व क्या जाने दूँ!
खैर, इतना अवश्य कहूँगी कि समय लौटकर आये या न आये परन्तु इस विश्व को रहने लायक स्थान बनाने के लिए, मनुष्यों की बेचैनी को सहजता में परिवर्तित करने के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए... ✍️रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा
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