मित्र ने बताया कि वे एक ओपन नेशनल स्पोर्ट्स टूर्नामेंट को लाईव देख रहे थे ।
एक मैच देखा जिसमें एक ओर धामपुर (उत्तर प्रदेश) का एक साधारण सा दिखने वाला लड़का दिल्ली के एक हाई फाई लड़के से भिड़ रहा था।
दिल्ली के लड़के की जुराब की कीमत उतनी ही थी जितनी धामपुर के लड़के ने पूरी किट पहन रखी थी।
टूर्नामेंट नॉयडा में था। दिल्ली के लड़के के साथ भरपूर पब्लिक स्पोर्ट था। धामपुर के लड़के के स्पोर्ट में केवल उसका कोच खड़ा था।
दिल्ली का लड़का जब पॉइंट स्कोर करता तो आस पास खड़े स्पोर्ट करने वालों की तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठता।
धामपुर का लकड़ा पॉइंट स्कोर करता तो कोच की शाबाशी की आवाज़ सुनाई देती।
पहला सेट धामपुर का लड़का जीत गया। 
दूसरे सेट में धमपुर का लड़का पब्लिक की हूटिंग से स्पष्ट रूप से प्रभावित दिखाई दिया। उसकी एकाग्रता डोलती दिखाई दी। पब्लिक के तानों की गूंज उनके चेहरे पर दबाव जमाने लगी। दिल्ली के लड़के ने मौके का फायदा उठाते हुये वापसी की और दूसरा सेट जीत लिया। 
तीसरा सेट शुरु होने को था। मैं धामपुर के लड़के के बगल में खड़ा था। कोच ने लड़के से कहा......"आसपास मत देख बस अपनी गेम की ओर देख।"
लड़के ने जब यह बात सुनी तो उसके चेहरे पर एक चमक आ गयी।
फ़ाइनल सेट शुरू हुआ तो धामपुर का लड़के की बॉडी लैंग्वेज देखने लायक थी।
ऐसा लगा के उसे आस पास खड़े दिल्ली के लौंडे के स्पोर्टस की हूटिंग सुनाई ही नहीं दे रही।
वह एकाग्रचित्त था।
उसकी आँखें उसके प्रतिद्वंद्वी की ओर थी और ऐसा लगा के उसके कानों ने प्रतिद्वंद्वी के समर्थकों के तानों को सुनना बंद कर दिया है।।
उसका पूरा ध्यान ......पूरी कॉनसन्ट्रेशन.....पूरी एकाग्रता अपने लक्ष्य की ओर ओर थी .....और लक्ष्य अपने प्रतिद्वंद्वी को पराजित करना था।
हुआ भी कुछ ऐसा ही।
धामपुर के एक साधारण से दिखने वाले लड़के ने दिल्ली के हाई फाई लौंडे को फ़ाइनल सेट में यूँ हराया ..........यूँ हराया के एक बार तो दिल्ली के लौंडे के समर्थक भी धामपुर के लड़के के लिये तालियाँ पीटने लगे।
धामपुर का लड़का मैच जीता ......बड़ी ही विनम्रता और शालीनता से दिल्ली के लौंडे की ओर गया और उससे हाथ मिलाया और फिर एक नज़र उन महानुभावों की ओर दौड़ाई जो उसके ख़िलाफ़ हूटिंग कर रहे थे .....फ़्तबियाँ कस रहे थे.....अनाप शनाप बातें कह रहे थे।
प्रतिद्वंद्वी चुप था और प्रतिद्वंद्वी के सर्मथन में खड़ी भीड़ चुप थी। जो कुछ समय पहले चीख चिल्ला रहे थे वह शांत हो चुके थे।।
निष्कर्ष क्या था?
खेल खेलते समय बाहर बैठे दर्शकों की परवाह करने वाला कभी खेल में विजयी नहीं हो सकता।
कारवां निकल जाता है और 🐕 भौंकते रहते हैं।
सोचिये।
अगर हम यह सोचेंगे .......के दुनिया क्या सोचेगी.....तो दुनिया क्या सोचेगी।
इसलिये दुनिया जो सोचती है....जो कहती है ....कहने दीजिये .....चीखने दीजिये....चिल्लाने दीजिये। उनके चीखने चिल्लाने से बेखबर और बेअसर अपने लक्ष्य की ओर एकाग्रचित्त होकर बढ़ते रहेगी।
इतना याद रखिये के ......कुत्ते भौंकते रहते हैं....और कारवां निकल जाता है। 
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