शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

सब उसके हाथ

 

एक जापानी कथा है। एक युवक विवाहित हुआ। अपनी पत्नी को ले कर—समुराई था, क्षत्रिय था—अपनी पत्नी को लेकर नाव में बैठा। दूसरी तरफ उसका गांव था। बड़ा तूफान आया, अंधड़ उठा, नाव डावाडोल होने लगी, डूबने—डूबने को होने लगी। पत्नी तो बहुत घबरा गई। मगर युवक शांत रहा। उसकी शांति ऐसी थी जैसे बुद्ध की प्रतिमा हो।

उसकी पत्नी ने कहा, तुम शांत बैठे हो, नाव डूबने को हो रही, मौत करीब है!

उस युवक ने झटके से अपनी तलवार बाहर निकाली, पत्नी के गले पर तलवार लगा दी। पत्नी तो हंसने लगी।

उसने कहा : क्या तुम मुझे डराना चाहते हो ?

पति ने कहा : तुझे डर नहीं लगता? तलवार तेरी गर्दन पर रखी, जरा—सा इशारा कि गर्दन इस तरफ हो जाएगी।

उसने कहा : जब तलवार तुम्हारे हाथ में है तो मुझे भय कैसा?

उसने तलवार वापिस रख ली।

उसने कहा : यह मेरा उत्तर है। जब तूफान—आधी उसके हाथ में है तो मैं क्यों परेशान होऊं? डुबाना होगा तो डूबेंगे, बचाना होगा तो बचेंगे। जब तलवार मेंरे हाथ में है तो तू नहीं घबराती। मुझसे तेरा प्रेम है, इसलिए न! कल विवाह न हुआ था, उसके पहले अगर मैंने तलवार तेरे गले पर रखी होती तो? तो तू चीख मारती। आज तू नहीं घबराती, क्योंकि प्रेम का एक सेतु बन गया। ऐसा सेतु मेरे और परमात्मा के बीच है, इसलिए मैं नहीं घबराता।तूफान आए, चलो ठीक, तूफान का मजा लेंगे। डूबेंगे, तो डूबने का मजा लेंगे। क्योंकि सब उसके हाथ में है, हम उसके हाथ के बाहर नहीं हैं। फिर चिंता कैसी?

चितया दुःखं जायते……।

और कोई ढंग से चिंता पैदा नहीं होती, बस चिंता एक ही है कि तुम कर्ता हो। कर्ता हो तो चिंता है, चिंता है तो दुख।

इति निश्चयी सुखी शांत: सर्वत्र गलितस्पृह।

ऐसा जिसने निश्चयपूर्वक जाना, अनुभव से निचोड़ा—वह व्यक्ति सुखी हो जाता है, शांत हो जाता है, उसकी सारी स्पृहा समाप्त हो जाती है।

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