रविवार, 31 अक्टूबर 2021

वो देख रहा है

 

एक दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है।
मैंने कहा, "जी कहिए.."
तो उसने कहा,अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे?
मैंने  कहामाफ कीजिये, भाई साहब! मैंने पहचाना नहीं आपको..."

तो वह कहने लगे, "भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते... लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"

मैंने चिढ़ते हुए कहा,"ये क्या मज़ाक है?" "अरे मज़ाक नहीं है, सच है। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंगा। तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पाएगा मुझे। "कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. "अकेला ख़ड़ा-खड़ा क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है, चल आजा अंदर.अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था कि बगल में वह आकर बैठ गए। चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पीया कि मैं गुस्से से चिल्लाया,अरे मॉं, ये हर रोज इतनी चीनी? "इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि 'भई, तुम नज़र में हो आज... ज़रा ध्यान से!'

बस फिर मैं जहाँ-जहाँ... वह मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में... थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..मैंने कहा, "प्रभु, यहाँ तो बख्श दो..."

खैर, नहाकर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में  महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, 'तुम नज़र में हो।'

कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि 'इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे' ...पर ये  तो गलत था, : पाप था, तो प्रभु के सामने ही कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,"आप आ जाइये। आपका काम हो  जाएगा।"

फिर उस दिन आफिस में ना स्टॉफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जातीं थीं मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, 'कोई बात नहीं, इट्स ओके...'में तब्दील हो गयीं।

वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूंठ- ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने।
शाम को ऑफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया...

"प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, कुछ नियम तो आप भी निभाएं... उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी..."
घर पर रात्रि-भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,
"प्रभु, पहले आप लीजिये।"

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। भोजन के बाद माँ बोली, "पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। क्या बात है ? सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?"

मैंने कहा माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है... रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।"

थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,
"आज तुम्हें नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी
कब तक सोयेगा .., जाग जा अब।
माँ की आवाज़ थी... सपना था शायद... हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया... अब समझ में आ गया उसका इशारा...

"तुम मेरी नज़र में हो...।"
जिस दिन ये समझ गए कि "वो" देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। सपने में आया एक विचार भी आँखें खोल सकता है।

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शनिवार, 30 अक्टूबर 2021

हैसियत

 

      *एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवों में घूम रहा था।*

*घूमते-घूमते उसके कुर्ते के सोने के बटन की झालर टूट गई, उसने अपने मंत्री से पूछा, कि इस गांव में कौन सा सुनार है, जो मेरे कुर्ते में नया बटन बना सके?*

      _*उस गांव में सिर्फ एक ही सुनार था, जो हर तरह के गहने बनाता था, उसको राजा के सामने ले जाया गया।*
     _*राजा ने कहा, कि तुम मेरे कुर्ते का बटन बना सकते हो ?*
     _*सुनार ने कहा, हुज़ूर यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है ! उसने, कुर्ते का दूसरा बटन देखकर, नया बना दिया। और राजा के कुर्ते में फिट कर दिया।।*
     _*राजा ने खुश होकर सुनार से पूछा, कि कितने पैसे दूं ?*
      _*सुनार ने कहा :- "महाराज रहने दो, छोटा सा काम था।"*
     _*उसने, मन में सोचा, कि सोना राजा का था, उसने तो सिर्फ मजदूरी की है। और राजा से क्या मजदूरी लेनी है...!*
     _*राजा ने फिर से सुनार को कहा कि, नहीं-नहीं, बोलो कितने दूं ?*
      _*सोनार ने सोचा, की दो रूपये मांग लेता हूँ। फिर मन में विचार आया, कि कहीं राजा यह न सोच ले कि एक बटन बनाने का मेरे से दो रुपये ले रहा है, तो गाँव वालों से कितना लेता होगा, और कोई सजा न दे दे। क्योंकि उस जमाने में दो रुपये की कीमत बहुत होती थी।*
     _*सुनार ने सोच-विचार कर, राजा से कहा कि :- "महाराज जो भी आपकी इच्छा हो, दे दो।"*
     _*अब राजा तो राजा था। उसको अपने हिसाब से देना था। कहीं देने में उसकी इज्जत ख़राब न हो जाये और, उसने अपने मंत्री को कहा, कि इस सुनार को दो गांव दे दो, यह हमारा हुक्म है।*
      _*यहाँ सोनी जी, सिर्फ दो रुपये की मांग का सोच रहे थे, मगर, राजा ने उसको दो गांव दे दिए।*

      _*इसी तरह, जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता है और मांगते हैं तो सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते हैं। देने वाला तो पता नहीं क्या देना चाहता है, लेकिन, हम अपनी हैसियत से बड़ी तुच्छ वस्तु मांग लेते हैं.*

     _*इसलिए संत-महात्मा कहते है, ईश्वर को सब कुछ अपना सर्मपण कर दो, उनसे कभी कुछ मत मांगों, जो वो अपने आप दें, बस उसी से संतुष्ट रहो। फिर देखो उसकी लीला। वारे के न्यारे हो जाएंगे। जीवन मे धन के साथ "सन्तुष्टि" का होना जरूरी है..!!*
आप सभी का दिन शुभ हो 🙏🏻😊

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सोमवार, 25 अक्टूबर 2021

नज़रिया

 

बहुत से मित्र क्रिकेट पराजय को राष्ट्र आपदा मान कर दुःखी हो रहे थे, तिलमिलाहट थी-छटपटाहट थी । उनके नज़रिये से उनका छोभ सही था, पर... नज़रिया ही बदलने की जरूरत है - अब तो कतई ज्यादा जरूरत आती लगी है । एक मित्र ने लिखा-
2018 में व्यापार के सिलसिले में विशाखापट्टनम जाना हुआ था। अगले दिन वापसी के लिये  एयरटिकट बुक थी। उस दिन मैं अपना काम निपटा कर होटल में जल्द वापिस आ गया।
होटल के बिल्कुल बगल में बिजली के खम्बे पर बैडमिंटन टूर्नामेंट का पोस्टर लगा हुआ था।
ईच्छा हुई के होटल के बिस्तर पर कमर तोड़ने से बेहतर है के लाईव बैडमिंटन टूर्नामेंट देखा जाये।

मैंने अपने स्थानीय मित्र को फोन किया और वह मेरे आग्रह पर अपनी गाड़ी में बिठा कर टूर्नामेंट स्थल तक ले गये।

मेन सीनियर कैटगरी का एक बेहतरीन मैच चल रहा था। मैच बिल्कुल एकतरफा था। मित्र से बात कर के पता चला के बैडमिंटन कोर्ट में हमारी दायीं ओर खड़ा खिलाड़ी स्टेट चैंपियन है। उसके समक्ष खड़ा प्रतिद्वंद्वी लगभग घुटने टेक चुका था।

अचानक माइक पर एक अनाउंसमेंट हुई। चूंकि अनाउंसमेंट स्थानीय भाषा में थी इसलिये मैं समझ ना पाया।

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बगल में बैठे मित्र से पूछा तो उन्होंने बताया के खिलाड़ियों को आशीर्वाद देने पधार रहे हैं।
अगले ही क्षण हमारे बीच सिक्योरिटी गार्ड्स से घिरे एक भारी भरकम आदमी की एंट्री हुईं।

मित्र ने बताया के वह नेताजी हैं।
नेताजी सफेद टीशर्ट और काली ट्रैक पेंट में सुसज्जित थे। स्पोर्ट्स टूर्नामेंट में शिरकत कर रहे नेताजी के स्पोर्टसवीयर पहन कर आना मुझे अच्छा लगा।

हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नेताजी के आसपास घूम रहे उनके पालतू कुत्तों ने उनका जयघोष करने लगे।

टूर्नामेंट के ऑर्गनाइजर नेता जी के पास आया और उसने नेताजी के हाथ में बैडमिंटन रैकेट थमा दिया और हाथ जोड़ कर आग्रह किया के वह बैडमिंटन कोर्ट पर अपना जलवा दिखायें।

नेताजी की कमर 40 से अधिक थी। टीशर्ट फाड़ कर उनकी तोंद ज़मीन पर गिरने को हो रही थी। वह चल रहे थे तो लग रहा था जैसे साक्षात कुम्भकर्ण चल रहा हो।

बैडमिंटन रैकेट थामे जी कोर्ट में खड़े हो गये।
प्रतिद्वंद्वी के रूप में उनके समक्ष स्टेट चैंपियन को खड़ा कर दिया गया।
बैडमिंटन हॉल पुनः तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और ना जाने क्यों मेरी हंसी छूट गयी।

बगल में बैठे मित्र ने मुझसे हंसने का कारण पूछा तो व्यंग्यात्मक लहज़े में मैंने उनसे कहा के यह स्टेट चैंपियन लड़का इस तोंदू नेता जी को दौड़ा दौड़ा कर बेहोश कर देगा।

परंतु जो मैंने कहा उसके बिल्कुल विपरीत हुआ।

स्टेट चैंपियन लड़का नेता जी से कत्तई नौसिखियों की तरह खेलने लगा। धीमी गति से शटल को नेता जी की ओर उछाल देता और नेता जी तीव्र गति से शटल को वापिस मार देते।

4 - 5 रैलीज़ में नेताजी ने स्टेट चैंपियन के पाले में धड़ाधड़ शलट मार दी। नेताजी के पालतू उनकी शान में जयघोष करने लगे। हॉल में तालियां गूंजने लगी।
इसी बीच नेताजी हांफने लगे। तत्क्षण एक चेला पानी का ग्लास लिये नेता के बगल में खड़ा हो गया। 4-5 शॉट लगा कर नेता जी की शरीर रूपी कार में पेट्रोल खत्म हो गया।

नेता जी के बेहोश होने से पहले उन्हें बाईज़्ज़त स्टेज पर बिठा दिया गया।

बैडमिंटन कोर्ट के दूजी ओर खड़े स्टेट चैंपियन की शक्ल देखने लायक थी।

शायद उसे एक ......."फिक्स मैच" खेलने का अनुभव नहीं था। हकीकत यह थी के अगर वह अपने पूरे जोशोखरोश से खेलता तो वास्तव में नेताजी बैडमिंटन कोर्ट के बीचोंबीच बेहोश हो जाते।

लेकिन उसे ......"नर्मी" से खेलने की हिदायत मिली हुई थी।
उसे नेता जी को विजयी बनाने का आदेश प्राप्त था।

.............…...................

बिना किसी लागलपेट कह रहा हूँ। ये जितने भी क्रिकेटर हैं .....सभी वतन के गद्दार और बोर्ड के वफादार हैं।
ये मानस नहीं हैं कठपुतलियां हैं।
इनका सरोकार ना तो जनमानस से है और ना ही जनभावनाओं से है।

इनके आका नोट उड़ाते हैं और यह किसी नचनियां की तरह नाचने लगते हैं।

गाहे बगाहे इनकी असलियत सामने आती रहती है। सट्टेबाज़ी से इनका चोलीदामन का साथ भी उजागर होता रहता है।
ना जाने कितनी बार यह स्पष्ट हो चुका है के यह खेल नहीं एक फिल्मी स्क्रिप्ट है।

लेकिन फिर भी राष्ट्र का एक बहुत बड़ा तबका इस बेहूदा और तीसरे दर्जे के तमाशे को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ कर देखता है।

राष्ट्र के प्रति अपने ईमान को नोटों के आगे गिरवी रख चुके क्रिकेटर्स को हम अपना आईडल समझते हैं।

बिके हुये किरदारों को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ना किसी बेहूदगी से कम नहीं है। यह खिलाड़ी नहीं ...क़ौमी गद्दार हैं।

टीम जीतती है तो राष्ट्र नहीं जीतता और टीम हारती है तो राष्ट्र नहीं हारता।

टीम जीतती है तो "पैसा" जीतता है और टीम हारती है तो भी "पैसा(दुगना)" ही जीतता है।

अगर वास्तव में आप अपने वतन से प्यार करते हैं तो मेरा करबद्ध निवेदन है इस खेल को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ कर ना देखें।  -रचित

चेन रिएक्शन

 

“हद हो गई, चाय रखी तो बताया क्यों नहीं? नई सफ़ेद ट्राउज़र्स (पतलून) गईं,” मैंने तेज गुस्से से कहा।
“मैंने तो बताया था, आप फोन में जाने कैसे खोए थे ! मेरा दूध उबल रहा था तो मुझे भागना पड़ा,” सुनीता रुआंसी होकर बोली।
चाय ट्राउज़र्स पर जरूर गिरी, मगर गलती उसकी न थी, यह जान कर भी मैं बड़बड़ाता रहा। सुनीता दूसरी ट्राउज़र्स लेकर आई, पहनने में मदद की और सुनती भी रही।
मूड बिगड़ने की शुरुआत कुछ एैसी हुई की सारे दिन की सैटिंग उसी से हो गई। एक के बाद एक, जैसे चेन रिएक्शन हो—
कैब में ड्राइवर से, बिल्डिंग में लिफ्टमैन से, ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट से और हद देखिए, जिसकी मैंने हर बार मदद की, अपनी प्रोग्रैमर, दिव्या, उससे भी; ये सब जैसे कि एक दूसरे से जुड़ गए थे, और मैं, लॉक्ड-इन एवरीथिंग। 
फिर बॉस ने भी एक पुरानी बात को लेकर सुना दिया। जवाब दे सकता था, आखिर हर काम मैं आत्मविश्वास और संज़ीदगी से करता था मैं।   लेकिन चुप ही रहा, उसी चेन रिएक्शन को याद करके।
घर भी जाने का मन न था। ऑफिस से निकल कर अनमने ढंग से टहलते हुए जा रहा था कि एक छोटी सी बच्ची टकरा गई। उसके हाथ में पकड़ा गैस का गुब्बारा छूट गया और ये जा, वो जा! मुझे लगा ये रोएगी, लेकिन वह बच्ची गुब्बारे को आसमान में जाते देख तालियाँ बजा कर खुश होने लगी।  मुझे भी अच्छा लगा, वह अपनी चीज खोने पर भी खुश थी। मैंने पास खड़े गुब्बारे वाले से उसे गुब्बारा दिलवा दिया। वह हँसते हुए चली गई।
आसपास कुछ और बच्चे भी यह दृश्य देख रहे थे। मैंने इशारे से उन्हें बुलाया, वे दौड़े आए और गुब्बारे लेकर खिलखिलाते हुए चले गए। मेरा भी मन प्रफुल्लित हो उठा। एक सीख भी मिली थी, उस छोटी बच्ची से!
नकारात्मक चेन रिएक्शन से, ऐसे माहौल से बचने की आदतें बनाइये आज से, अभी से !!

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रविवार, 24 अक्टूबर 2021

गरीब का झोपड़ा

 एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी. सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी . स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे. आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।


उन सज्जन ने अपनी पत्नी से कहा - उठ! द्वार खोल दे. पत्नी द्वार के करीब सो रही थी . पत्नी ने कहा - इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई अगर शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?


वर्षा जोर की हो रही है. कोई शरण माँगने के लिए ही द्वार आया होगा न! जगह कहाँ है? उस सज्जन ने कहा - जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी.   तू दरवाजा खोल!


लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है. दरवाजा खोला. कोई शरण ही माँग रहा था. भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी . वह अंदर आ गया . तीनों बैठकर गपशप करने लगे . सोने लायक तो जगह न थी .


थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी. फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा - खोल ! पत्नी ने कहा - अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? अगर किसी ने शरण माँगी तो?


उस सज्जन ने कहा - अभी बैठने लायक जगह है फिर खड़े रहेंगे . मगर दरवाजा खोल! जरूर कोई मजबूर है . फिर दरवाजा खोला . वह अजनबी भी आ गया . अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे . इतना छोटा झोपड़ा ! और खड़े हुए चार लोग!


और तब अंततः एक कुत्ते ने आकर जोर से आवाज की . दरवाजे को हिलाया . फकीर ने कहा - दरवाजा खोलो . पत्नी ने दरवाजा खोलकर झाँका और कहा - अब तुम पागल हुए हो!


यह कुत्ता है . आदमी भी नहीं! सज्जन बोले - हमने पहले भी आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था!! हमारे लिए कुत्ते और आदमी दोनों जीवात्मा है, आत्मा में क्या फर्क?


हमने मदद के लिए दरवाजा खोला था . उसने भी आवाज दी है . उसने भी द्वार हिलाया है . उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम करना है . दरवाजा खोलो!


उनकी पत्नी ने कहा - अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा - अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर थोड़े सटकर खड़े होंगे . और एक बात याद रख ! यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो!


यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!! जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह दिलों में होती है!


अक्सर आप पाएँगे कि गरीब कभी कंजूस नहीं होता! उसका दिल बहुत बड़ा होता है!!


कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं . पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है, उसमें मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है .


जरूरतमंद को अपनी क्षमता अनुसार शरण दीजिए . दिल बड़ा रखकर अपने दिल में औरों के लिए जगह जरूर रखिये .


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शनिवार, 23 अक्टूबर 2021

परीक्षा

 

एक नगर में रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव में स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था। एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस में चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए। कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हें रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया कि कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए हैं। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूंगा। कुछ देर बाद मन में विचार आया कि बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है।

आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते हैं, बेहतर है इन रूपयों को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे। मन में चल रहे विचारों के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया। बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे। कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?

पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, मेरे मन में कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस में देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो... अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए: बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। पंडितजी बस से उतरकर पसीना-पसीना थे।

उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया कि हे प्रभु! आपका लाख-लाख शुक्र है, जो आपने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच में आपकी शिक्षाओं की बोली लगा दी थी। पर आपने सही समय पर मुझे सम्भलने का अवसर दे दिया।
*कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूँजी दाँव पर लगा देते हैं..!!*

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सोमवार, 18 अक्टूबर 2021

हिसाब

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          *चार प्रकार के पुत्र*

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        *पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु , सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते है। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है । वैस ही सन्तान के रूप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है। जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है :-*

       . 1️⃣ *ऋणानुबंध पुत्रः- पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये।*

          2️⃣ *वैरानुबंध पुत्र :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा।*

             3️⃣ *उदासीन पुत्रः- इस प्रकार की सन्तान जो ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है। बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है। विवाह होने पर यह माता पिता से अलग हो जाते हैं।*

          4️⃣ *सेवक पुत्रः- पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है। जो बोया है, वही तो काटोगे।*

        *आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा। इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी। यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये है। यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये। मैं, मेरा, तेरा और सारा धन, यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा। साथ यदि कुछ जायेगा तो सिर्फ आपके कर्म ही साथ जायेंगे। इसलिए जितना हो सके सत्कर्म करें।*

          (संकलित )

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रविवार, 17 अक्टूबर 2021

देखभाल

 

कल अपनी पुरानी सोसाइटी में गया था। वहां मैं जब भी जाता हूं, मेरी कोशिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों से मुलाकात हो जाए।

कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।

*“भैया, प्रणाम।”*

मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,

*"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"*

मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।

*“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”*

बाबू हंसा,

*“आंटी तो गईं।”*

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*“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”*

अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,

*“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”*

*“भगवान जी के पास? ओह! कब?”*

बाबू ने धीरे से कहा,

*“दो महीने हो गए।”*

*“क्या हुआ था आंटी को?”*

*“कुछ नहीं। बुढ़ापा ही बीमारी थी। उनका बेटा भी बहुत दिनों से नहीं आया था। उसे याद करती थीं। पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं। कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा। बहुत मेहनत से ये मकान बना है।”*

*“हां, वो तो पता ही है। तुमने खूब सेवा की। अब तो वो चली गईं। अब तुम क्या करोगे?”*

अब बाबू फिर हंसा,

*"मैं क्या करुंगा भैया? पहले अकेला था। अब गांव से फैमिली को ले आया हूं। दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं रहते हैं।”*

*“यहीं मतलब उसी मकान में?”*

*“जी भैया। आंटी के जाने के बाद उनका बेटा आया था। एक हफ्ता रुक कर चले गए। मुझसे कह गए हैं कि घर देखते रहना। चार कमरे का इतना बड़ा फ्लैट है। मैं अकेला कैसे देखता? भैया ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो। वो वहां से पैसे भी भेजने लगे हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है। अब आराम से हूं। कुछ-कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं। भैया सारा सामान भी छोड़ गए हैं। कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं।”*

मैं हैरान था। बाबू पहले साइकिल से चलता था। आंटी थीं तो उनकी देखभाल करता था। पर अब जब आंटी चली गईं तो वो चार कमरे के मकान में आराम से रह रहा है।
आंटी अपने बेटे के पास नहीं गईं कि कहीं कोई मकान पर कब्जा न कर ले।

बेटा मकान नौकर को दे गया है, ये सोच कर कि वो रहेगा तो मकान बचा रहेगा।

मुझे पता है, मकान बहुत मेहनत से बनते हैं। पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसके आप सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं?

मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं। मकान के लिए बेटा मां को पास नहीं बुला पाया।
सच कहें तो हम लोग मकान के पहरेदार ही हैं।

जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है। जो हैं, उसके बारे में तो बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे।

मैंने बाबू से पूछा कि,

*"तुमने भैया को बता दिया कि तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है?"*

*“इसमें बताने वाली क्या बात है भैया? वो अब कौन यहां आने वाले हैं? और मैं अकेला यहां क्या करता? जब आएंगे तो देखेंगे। पर जब मां थीं तो आए नहीं, उनके बाद क्या आना? मकान की चिंता है, तो वो मैं कहीं लेकर जा नहीं रहा। मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*

बाबू फिर हंसा।

बाबू से मैंने हाथ मिलाया। मैं समझ रहा था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा। वो मकान मालिक हो गया है।

हंसते-हंसते मैंने बाबू से कहा,

*“भाई, जिसने ये बात कही है कि*
_*मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,*_
*उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा।”*

बाबू ने धीरे से कहा,

*“साहब, सब किस्मत की बात है।”*

मैं वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है।

लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी...

*“मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही?मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*

_मैं सोच रहा था, मकान लेकर कौन जाता है? सब देखभाल ही तो करते हैं।_
*मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,*
आज यह किस्सा पढ़कर लगा कि हम सभी क्या कर रहे है ....
जिन्दगी के चार दिन है - मिल जुल कर हँसतें हँसाते गुजार लें ...
क्या पता कब बुलावा आ जाए....

*इस धरा का इसी धरा पर,*
*सब धरा रह जायेगा....*

शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

अटल सत्य

 

एक राजा था। एक दिन वह बड़ा प्रसन्न मुद्रा में था,  सो वह अपने वज़ीर के पास गया और बोला कि *तुम्हारी जिंदगी की सबसे बड़ी ख़्वाहिश क्या हैं?*

वज़ीर शरमा गया और नज़रे नीचे करके बैठ गया। राजा ने कहा *तुम घबराओ मत , तुम अपनी सबसे बड़ी ख़्वाहिश बताओ।*

वज़ीर ने राजा से कहा *हुज़ूर आप इतनी बड़ी सल्लतनत के मालिक हैं,  और जब भी मैं यह देखता हूँ तो मेरे दिल में ये चाह जाग्रत होती हैं कि काश मेरे पास इस सल्लतनत का यदि दसवां हिस्सा भी होता तो मैं इस दुनिया का बड़ा खुशनसीब इंसान होता।*

ये कह कर वज़ीर खामोश हो गया। राजा ने कहा कि *यदि मैं तुम्हें अपनी आधी जायदाद दे दूँ तो।*

वज़ीर घबरा गया और नज़रे ऊपर करके राजा से कहा कि *हुज़ूर ये कैसे मुमकिन हो सकता है।  मैं इतना खुशनसीब इंसान कैसे हो सकता हूँ।*

राजा ने दरबार में आधी सल्लतनत के कागज तैयार करने का फरमान जारी करवाया और साथ के साथ वज़ीर की गर्दन धड़ से अलग करने का ऐलान भी करवाया। ये सुनकर वज़ीर बहुत घबरा गया।

राजा ने वज़ीर की आँखों में आँखे डालकर कहा *तुम्हारे पास तीस दिन का समय हैं,। इन तीस दिनों में तुम्हें मेरे तीन सवालों के जवाब पेश करना हैं। यदि तुम कामयाब हो जाओगे तो मेरी आधी सल्लतनत तुम्हारी हो जायेगी,  और यदि तुम मेरे तीन सवालों के जवाब तीस दिन के भीतर न दे पाये तो मेरे सिपाही तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देंगे।*

वज़ीर ओर ज्यादा परेशान हो गया। राजा ने कहा *मेरे तीन सवाल लिख लो,*

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वज़ीर ने लिखना शुरु किया। राजा ने कहा....।

1) *इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई क्या हैं*?

2) *इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा क्या हैं*?

3) *इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी क्या हैं*?

राजा ने तीनों सवाल समाप्त करके कहा *तुम्हारा समय अब शुरु होता हैं।*

वज़ीर अपने तीन सवालों वाला कागज लेकर दरबार से रवाना हुआ और हर संत-महात्माओं, साधु-फक़ीरों के पास जाकर उन सवालों के जवाब पूछने लगा। मगर किसी के भी जवाबों से वह संतुष्ट न हुआ।
धीरे-धीरे दिन गुजरते जा रहे थे। अब उसके दिन-रात उन तीन सवालों को लिए हुए ही गुजर रहे थे। हर एक-एक गाँवों में जाने से उसका पहना लिबास फट चुका था,  और जूतों के तलवे भी फटने के कारण उसके पैर में छाले पड़ गये थे।

अब अंत में शर्त का एक ही दिन शेष बचा था।  वजीर हार चुका था तथा वह जानता था कि कल दरबार में उसका सिर धड़ से कलम कर दिया जायेगा और ये सोचता-सोचता वह एक छोटे से गांव में जा पहुँचा। वहाँ एक छोटी सी कुटिया में एक फक़ीर अपनी मौज में बैठा हुआ था और उसका एक कुत्ता दूध के प्याले में रखा दूध बड़े ही चाव से जीभ से जोर-जोर से आवाज़ करके पी रहा था।

वज़ीर ने झोपड़ी के अंदर झाँका तो देखा कि एक फक़ीर अपनी मौज में बैठकर सुखी रोटी पानी में भिगोकर खा रहा है ।

जब फक़ीर की नजर वज़ीर की फटी हालत पर पड़ी तो वज़ीर से कहा,  कि *जनाबेआली आप सही जगह पहुँच गये हैं और मैं आपके तीनों सवालों के जवाब भी दे सकता हूँ।*

वज़ीर हैरान होकर पूछने  आपने कैसे अंदाजा लगाया कि मैं कौन हूँ,  और मेरे तीन सवाल हैं?  फक़ीर ने सूखी रोटी कटोरे में रखी और अपना बिस्तरा उठा कर खड़ा हुआ और वज़ीर से कहा साहिब अब आप समझ जायेंगे।

वजीर ने झुक कर देखा कि उस फकीर का लिबास हू ब हू वैसा ही था जैसा राजा उस को भेंट दिया करता था। वजीर सोच ही रहा था कि
फक़ीर ने वज़ीर से कहा *मैं भी उस दरबार का वज़ीर हुआ करता था और राजा से शर्त लगा कर गलती कर बैठा। अब इसका नतीजा तुम्हारे सामने हैं।*

फक़ीर फिर से बैठा और सूखी रोटी पानी में डूबो कर खाने लगा। वज़ीर निराश मन से फक़ीर से पूछने लगा *क्या आप भी राजा के सवालों के जवाब नहीं दे पाये थे ?*

फक़ीर ने कहा कि,  *नहीं मेरा केस तुम से अलग था।*

*मैने राजा के सवालों के जवाब भी दिये पर आधी सल्लतनत के कागज को वहीं फाड़कर इस कुटिया में मेरे कुत्ते के साथ रहने लगा।*

वज़ीर ओर ज्यादा हैरान हो गया और पूछा *क्या तुम मेरे सवाल के जवाब दे सकते हो?*

फक़ीर ने हाँ में सिर हिलाया और कहा *मैं आपके दो सवाल के जवाब मुफ्त में दूँगा मगर तीसरे सवाल के जवाब में आपको उसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी।*

अब वजीर ने सोचा यदि बादशाह के सवालों के जवाब न दिये तो राजा मेरे सिर को धड़ से अलग करा देगा इसलिए उसने बिना कुछ सोचे समझे फक़ीर की शर्त मान ली।

1. फक़ीर ने कहा तुम्हारे पहले सवाल का जवाब हैं  *"मौत"*
इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई मौत हैं।
मौत अटल हैं और ये अमीर-गरीब, राजा-फक़ीर किसी को नहीं देखती हैं। मौत निश्चित हैं।

2. अब तुम्हारे *दूसरे सवाल* का जवाब हैं *"जिंदगी"*
इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा हैं जिंदगी ।  इंसान जिंदगी में झूठ-फरेब और बुरे कर्मं करके इसके धोखे में आ जाता हैं, इतना कह कर अब  फक़ीर चुप हो गया।

वज़ीर ने फक़ीर के वायदे के मुताबिक शर्त पूछी, कि *तीसरे सवाल के जवाब की क्या कीमत अदा करनी होगी ?*

तो फक़ीर ने वज़ीर से कहा कि *तुम्हें मेरे कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पीना होगा।यह है तुम्हारे तीसरे सवाल की कीमत ।*

अब वज़ीर असमंजस में पड़ गया और उसने कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पीने से इंकार कर दिया। मगर फिर राजा द्वारा रखी शर्त के अनुसार सिर धड़ से अलग करने का सोचकर बिना कुछ सोचे समझे कुत्ते के प्याले का झूठा दूध बिना रुके एक ही सांस में पी गया।

फक़ीर ने जवाब दिया कि

*यही तुम्हारे तीसरे सवाल का जवाब हैं*।

3. यानि *"गरज"* इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी हैं "गरज"। गरज इंसान को न चाहते हुए भी वह सब काम कराती हैं जो इंसान कभी नहीं करना चाहता हैं। जैसे कि तुम!

तुम भी अपनी मौत से बचने के लिए और तीसरे सवाल का जवाब जानने के लिए एक कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पी गये, क्योंकि यह तुम्हारी गरज थी  गरज इंसान से सब कुछ करा देती हैं।

मगर अब वज़ीर बहुत प्रसन्न था क्योंकि उसके तीनों सवालों के जवाब उसे मिल गये थे।

वज़ीर ने फक़ीर का शुक्रिया अदा किया और महल की ओर रवाना हो गया।
जैसे ही वज़ीर महल के दरवाजे पर पहुँचा उसे एक हिचकी आई और उसने वहीं अपना शरीर त्याग दिया।
उसको मौत ने अपने आगोश में ले लिया।

*अब हम भी विचार करें कि क्या कहीं हम भी तो जिंदगी की सच्चाई को भूले तो नहीं बैठे हैं? जी हाँ,  जिंदगी की सच्चाई ये *मौत*  है।*

*ये मौत न छोटा देखती हैं न बड़ा, न सेठ साहूकार ।  ये तो न जाने कब किस को अपने आगोश में ले ले कुछ कहा नहीं जा सकता।*

*क्योंकि यही अटल सत्य हैं और ये  *मौत*  तो हर एक को आनी हैं।*

*और क्या हम जिंदगी के धोखे में तो नहीं आ पड़े हैं ?  जी हां बिल्कुल! हम धोखे में ही जी रहे हैं।*

*हम जिंदगी को ऐसे जीते हैं जैसे ये जिंदगी कभी खत्म ही नहीं होगी। हम जिंदगी में हर रोज नये-नये कर्मों का निर्माण करते हैं। इन कर्मों में कुछ अच्छे भी होते हैं,  तो कुछ बुरे।*

*हम जिंदगी के धोखे में ऐसे फंसे हुए हैं कि कभी भूल से भी मालिक का *शुक्रिया*  अदा नहीं करते हैं, कभी भी सच्चे दिल से मालिक का भजन सिमरन नहीं करते हैं।  बस जिंदगी को काटे जा रहे हैं। क्या हम भी तो जिंदगी की कमजोरी के शिकार तो नहीं बने बैठे हैं?*

*जी हाँ, हम सभी गरज के तले दबे हुए हैं। कोई अपने परिवार को पालने की गरज में झूठ-फरेब की राह पर चलने लगता हैं,  तो कोई चोरी और लूटपाट। हम सभी गरज की दलदल में ही फंसे हुए हैं।*

*जिंदगी की सच्चाई मौत को ध्यान में रखते हुए जियें, जिंदगी की झूठ में न फंसे। क्योंकि जितना हम जिंदगी की सच्चाई से मुख मोड़ेगें उतना ही हम धोखे का शिकार होते जायेंगे।*

*इसलिए समय रहते हुए ईश्वर का भजन सिमरन करते रहे और ईश्वर को याद करते हुए उनका शुक्रिया अदा करते रहें। क्योंकि न जाने कब ऊपर वाले का फरमान आ जाए।*

*यही जीवन का पहला* और
*यही जीवन का आखिरी सत्य है।*

सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

धैर्य

 🍬 *"मार्श मेलो थ्योरी"* 🍬


*एक टीचर ने*

*क्लास के सभी बच्चों को एक-एक स्वादिष्ट टॉफ़ी दी और फिर एक अजीब बात कही* 

सुनो, बच्चो ! 

आप सभी को दस मिनट तक अपनी टॉफ़ी नहीं खानी है और यह कहकर वह क्लास रूम से बाहर चले गए। 


कुछ पल के लिए क्लास में सन्नाटा छाया रहा, 

हर बच्चा अपने सामने रखी टॉफ़ी को देख रहा था और हर गुज़रते पल के साथ खुद को रोकना मुश्किल पा रहा था। 


दस मिनट पूरे हुए और टीचर क्लास रूम में आ गए।

 

समीक्षा की तो पाया कि  

*पूरी क्लास में सात बच्चे ऐसे थे, जिनकी टॉफ़ियां ज्यों की त्यों थी,*

जबकि बाकी के सभी बच्चे टॉफ़ी खाकर उसके रंग और स्वाद पर बातें कर रहे थे। 


टीचर ने चुपके से इन सात बच्चों के नाम अपनी डायरी में लिख लिये। 


किसी को कुछ नहीं कहा और पढ़ाना शुरू कर दिया।

इस टीचर का नाम 

*वाल्टर मशाल* था।


कुछ वर्षों के बाद टीचर वाल्टर ने अपनी वही डायरी खोली और सातों बच्चों के नाम निकाल कर उनके बारे में जानकारी प्राप्त की। 


*उन्हें पता चला कि सातों बच्चों ने अपने जीवन में कई सफलताओं को हासिल किया है और अपनी-अपनी फील्ड के लोगों में सबसे सफल रहे हैं।*


टीचर वाल्टर ने अपनी उसी क्लास के शेष छात्रों की भी जानकारी प्राप्त की और यह पाया कि उनमें से ज्यादातर बच्चे साधारण जीवन जी रहे थे 

जबकि उनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्हें कठिन आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है ।


इस शोध का परिणाम टीचर वाल्टर ने एक वाक्य में यह निकाला कि - 

*"जो व्यक्ति केवल दस मिनट धैर्य नहीं रख सकता, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता।"*


इस शोध को दुनिया भर में शोहरत मिली और इसका नाम 

*"मार्श मेलो थ्योरी"*

रखा गया था 

क्योंकि टीचर वाल्टर ने बच्चों को जो टॉफ़ी दी थी 

उसका नाम "मार्श मेलो" था।


 *इस थ्योरी के अनुसार दुनिया के सबसे सफल लोगों में कई गुणों के साथ एक गुण 'धैर्य' अवश्य पाया जाता है क्योंकि यह गुण इंसान में बर्दाश्त करने की ताक़त को बढ़ाता है, जिसकी बदौलत आदमी कठिन परिस्थितियों में भी निराश नहीं होता और वह एक सफल व्यक्ति बन जाता है इसलिए सफल जीवन और सुखद भविष्य के लिए धैर्य के गुण का विकास करें।*


इस  प्रेरणा दायक  कहानी को बार-बार पढते रहिये।


मुश्किलें हमेशा सवाल करती हैं

और 

धैर्य ही हमेशा जवाब देता है


*सफलता वक्त और बलिदान मांगती है,*

वो कभी भी प्लेट में  परोसी हुई नहीं मिलती है, 

*किसी कार्य को शुरूआत करना आसान है ,  लेकिन उसमें निरंतरता वनाये रखना कठिन है,*


हर कोशिश में शायद सफलता  नहीं मिल पाती , 

लेकिन 

*हर सफलता का कारण  कोशिश ही होता है*


अगर आप  रिस्क नहीं लेते हो 

तो आप हमेशा उन लोगो के लिए काम करोगे जो रिस्क  लेते हैं


*"दुनियां" की हर "चीज़"*

*"ठोकर" लगने से "टूट" जाती हैं*

    *एक "कामयाबी" ही है*

*जो "ठोकर" खाकर ही मिलती हैं.....*


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रविवार, 10 अक्टूबर 2021

लीला राम की

 

राम धनुष टूटने की सत्य घटना
       
     बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है। बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी। मण्डली में 22-24 कलाकार थे, जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे, वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे।
          पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे, वे हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे...। एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था! तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा... इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं, ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो.. पिछली बार धनुष तोड़ने में समय लग गया था...!

    इस बात पर फौजदार कुपित हो गया, क्योंकि लीला की साज-सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था.. और पिछला धनुष भी वही बनवाया था...! इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गई..। फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था...। संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था...। फौजदार, मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा, रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है, दे दीजिए.....? गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया ! छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेटकर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया...!

         रात में रामलीला शुरू हुआ तो फौजदार ने चुपके से धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया...। रामलीला शुरू हुआ पण्डित जी हारमोनियम पर राम-चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे... हजारों की संख्या में दर्शक शिव-धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे... रामलीला धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी..! सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े...। पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही..। कलाकार को सत्यता का आभास हो गया.. उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कातर दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है...! उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी.. हजारों लोगों के सामने.. और ये कलाकार की नहीं, स्वयं प्रभु राम की इज्जत दांव पर लगने वाली है..! पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का संकेत किया और स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू....
.
जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि, इस इशारे के बाद जैसे ही पंडित जी ने आँखें बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा.. हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे... वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था...सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए... नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी.. पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था... दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है... और क्यों हो रहा.... पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कहा---

लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।
.
पण्डित जी के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के धनुष को कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया...🙏
.
लोग बताते हैं हैं कि, ये सब कैसे हुआ.. और कब हुआ..
किसी ने कुछ नही देखा, सब एक पल में हो गया...
धनुष टूटने के बाद सब स्थिति अगले ही पल सामान्य हो गयी! पण्डित जी मंच के बीच गए, और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए.... लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोष कर रहे थे.. और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू निकल रहे थे...

राम "सबके" हैं... एक बार "राम का" होकर तो देखिए....

      🙏🙏   जय श्री राम 🙏🙏

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शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

लक्ष्य पर नज़र

 

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था।

उसकी पत्नी ने कहा: वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं। तब तक आप इंतजार करें।

कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा। उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया।

कुत्ता जोरों से हांफ रहा था। उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने किसान से पूछा... क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?

किसान ने कहा: नहीं, पास ही है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?

उस व्यक्ति ने कहा: मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए...
लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है।

किसान ने कहा: मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं। मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा कुत्ता थक गया है।  इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है।

वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था।

फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता।

अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा। इसलिए वह थक गया है।

देखा जाए तो यही स्थिति आज के इंसान की भी है।

जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन राह में मिलने वाले कुत्ते, व्यक्ति को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रहे हैं।

इंसान अपने लक्ष्य से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है।

यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। आपकी ऊर्जा को रास्ते में मिलने वाले कुत्ते बर्बाद करते है।

भौंकने दो कुत्तो को और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे बढ़ते रहो.. फिर एक ना एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी।

लेकिन इनके चक्कर में पड़ोगे तो थक ही जाओगे। अब ये आपको सोचना है कि किसान की तरह सीधी राह चलना है या उसके कुत्ते की तरह।
~~~
सफलता के लिए सही समय की नहीं, सही निर्णय की जरूरत होती है।
प्रेम दुर्लभ है उसे पकड़ कर रखें, क्रोध बहुत खराब है, उसे दबाकर रखें।
भय बहुत भयानक है, उसका सामना करें, स्मृतियाँ बहुत सुखद है उन्हें संजोकर रखें।

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मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

कानून

 

*सामायिक चर्चा.....*

जब अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश थे. बुश फ़ैमिली टेकसास के ख़ानदानी अमीरों में आते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी नई पीढ़ी पुराने से ज़्यादा सम्रद्ध शक्तिशाली और अमीर. जार्ज के पिता भी अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो वहीं जार्ज का भाई फ़्लोरिडा का गवर्नर. संक्षेप में समझिए तो ज़बर्दस्त भौकाल था इनका.

बुश की बेटी बीस वर्ष की थी. वह मित्रों के साथ टेकसास की राजधानी ऑस्टिन में एक रेस्टोरेंट  में गई और एक बियर का ऑर्डर किया. चूँकि पिता जी को टेकसास  में सब जानते थे, मैनेजर बेटी को पहचाना गया. यह भी वह जान गया कि बेटी अभी इकीस की नहीं हुई है, क़ानूनन बियर ऑर्डर नहीं कर सकती.

उसने पुलिस को फ़ोन कर दिया. पुलिस आई, बुश की बेटी गिरफ़्तार हुई. कल्पना कीजिए अमेरिका का राष्ट्रपति, दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति, उसकी बेटी उसी के शहर में गिरफ़्तार. अपराध भी यह कि एक बोतल बियर ऑर्डर की थी. अपराध ऐसा कोई भीषण अपराध भी न था. एक बियर का ग्लास. वह भी पिया नहीं.

पर अपराध तो अपराध ही है. विशेष कर अमेरिकन समाज में एक बार छोटे सामाजिक स्तर वाले व्यक्ति को माफ़ कर दिया जाएगा, लेकिन जितना बड़ा व्यक्ति उसकी ज़िम्मेदारी उतनी ज़्यादा.

बुश की बेटी पर हज़ार डालर के आस पास का जुर्माना लगा. उन्हें ऐल्कहाल के दुष्प्रभाव एक दिन की कक्षा अटेंड करनी पड़ी. और आठ घंटे की कम्यूनिटी सर्विस - संक्षेप में समझिए चौराहे पर खड़े होकर झाड़ू लगाना. सोचिए पिता जी राष्ट्रपति, चाचा राज्यपाल, ख़ानदान प्रदेश के सबसे अमीर खानदानो में और बेटी को एक बियर ऑर्डर करने के अपराध में चौराहे पर दिन भर झाड़ू लगानी पड़े.

ख़ास बात यह भी है कि ऐसे केस में न बुश इंटेरफ़ेयर करेंगे (करना भी चाहें तो भी क्या कर लेंगे - अमेरिका है) और बुश की बेटी ने भी हंसते हुवे सजा को स्वीकारा. स्वीकार किया कि उससे गलती हुई. माना कि सजा भुगतने के बाद अब वह एक अच्छे नागरिक की भाँति रहेगी. स्वीकार किया कि वह इस योग्य थी कि उसे सजा मिले, अब वह कोशिश करेगी कि भविष्य में कोई क़ानून न तोड़े.

यह जो क़ानून की समानता है - अमीर गरीब ताकतवर कमजोर क़ानून सबके लिए समान है. अमेरिका के निर्माताओं की प्रसंशा करनी पड़ेगी कि जिस देश में पूरी दुनिया के सबसे ताकतवर और सबसे अमीर लोग रहते हों, उस देश में क़ानून सबके लिए एक समान है. (नितिन जी की लेखनी)

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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

बदलाव

 

*सोमवारिय चिंतन...*

क्या आपने देखा है कि अगर आप गलत मोड़ लेते हैं ,तो Google मानचित्र कभी भी चिल्लाता नहीं है, निंदा करता है या आपको डांटता नहीं है।

यह कभी अपनी आवाज नहीं उठाता और न ही ये कहता है, "आपको आखिरी क्रॉसिंग पर बाएं जाना था, बेवकूफ! अब आपको लंबा रास्ता तय करना होगा और इसमें आपको बहुत अधिक समय लगने वाला है और आपको अपनी बैठक के लिए देर होने वाली है!

ध्यान देना सीखो और मेरे निर्देशों को सुनो, ठीक है???

" अगर उसने ऐसा किया, तो संभावना काफी है कि हम में से बहुत से लोग इसका इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं । लेकिन Google केवल री-रूट करता है , और आपको वहां पहुंचने का अगला सबसे अच्छा तरीका दिखाता है। इसकी प्राथमिक रुचि आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में है, न कि आपको गलती करने के लिए बुरा महसूस कराने में।

एक बहुत अच्छा सबक है ... अपनी निराशा और क्रोध को उन लोगों पर उतारना आसान है , जिन्होंने गलती की है।विशेष रूप से उन लोगों पर जो हमारे करीबी और परिचित हैं।

लेकिन सबसे अच्छा विकल्प समस्या को ठीक करने में मदद करना है, दोष देना नहीं।

क्या आपके पास हाल ही में री-रूटिंग क्षण थे ? औरों के साथ भी और अपनों के साथ भी ?

अपने बच्चों, जीवनसाथी, टीम के साथी और उन सभी लोगों के लिए Google मानचित्र बनें, जो आपके लिए मायने रखते हैं और जिनकी आपको परवाह है !!!

आइये हम स्वयं को re-routing मोड पर रखे ,चीजों को सृजनात्मक सकारात्मक सुंदर बनाये !

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रविवार, 3 अक्टूबर 2021

वास्तु दोष

 

सम्पत सिंह ने व्यापार में अच्छे पैसे कमाने के बाद फनवर्ल्ड के पास एक पाँच बीघा जमीन खरीदी, जिस पर एक दोमंजिला सुन्दर सा घर और चारों तरफ पेड़, पौधे और हरियाली रहने दी। उसमें सम्पत ने एक छोटा सा स्विमिंग पूल बनाया। स्विमिंग पूल के पास एक पचास साठ साल पुराना आम का पेड़ था उसको सम्पत्त ने जैसा था, वैसे ही रहने दिया। दरअसल सम्पत्त सिंह ने ये पाँच बीघे का फार्महाऊस इस आम के पेड़ के कारण ही खरीदा था, क्योंकि उसकी बीवी को आम बहुत पसंद थे।

जब सम्पत्त ने इस फार्महाउस को खरीदा और उसका रैनोवेशन करवा रहा था तो उसके बहुत से मित्रों ने उसे किसी वास्तू शास्त्र वाले से सलाह लेने को कहा। हालांकि सम्पत्त सिंह को वास्तू शास्त्र पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था, लेकिन दोस्तों का आग्रह था तो उसने शहर के जाने माने वास्तू शास्त्री मनु शर्मा को अपने फार्महाउस ले जाना तय किया।

मनु शर्मा विश्व प्रसिद्ध चालीस साल के तजुर्बा वाला वास्तूशास्त्री था। श्रीराम एक्सिलैंसी में खाना खाने के बाद सम्पत्त और मनु शर्मा फनवर्ल्ड की तरफ अपनी कार में जाने लगे। सम्पत्त सिंह बहुत आराम से गाडी़ चला रहे थे। हल्का हल्का संगीत गाडी़ में चल रहा था।

पीछे से कोई गाडी़ आती और हॉर्न बजाती, तो सम्पत्त सिंह बहुत आसानी से उसे साईड दे देते। मनु शर्मा को लगा कि सम्पत्त सिंह को बिल्कुल भी जल्दी नहीं है और पूरी दुनिया का वक्त सम्पत्त के पास है।

सम्पत्त की ड्राइविंग देखकर मनु शर्मा ने कहा, "भाई, तुम्हारी ड्राईविंग बिल्कुल सेफ है"। सम्पत्त हलका सा मुस्कुरा कर बोला, “सामान्यतया जो लोग ओवरटेक करते हैं, उनको कोई अर्जैन्ट काम होता होगा। तो हमें उसको साईड देनी चाहिये ना"।

जैसे ही वो फनवर्ल्ड के पास अपने फार्म हाऊस के नज़दीक पहुँचने लगे तो सड़क थोडी़ संकरी होने लगी। सम्पत्त ने अपनी गाडी़ की गति को और धीमी कर दिया।

अचानक बाँई गली से आठ नौ साल का एक बच्चा खिलखिलाता हुआ तेजी से दौड़ कर सम्पत्त वाली सड़क पर गाडी़ के सामने आते हूए दिखा, सम्पत्त की गाडी़ वैसे भी धीरे चल रही थी, उसने गाडी़ की स्पीड और धीरे कर ली। मनु ने पूछा, "अब तो वो बच्चा सड़क पार कर चुका है, अब इतनी धीरे क्यों चला रहे हो यार सम्पत्त" ?

सम्पत्त ने उत्तर दिया, "वो बच्चा दौड़ता दौड़ता गाडी़ के सामने आया, तो जा़हिर है उसके पीछे कोई और बच्चा दौड़ रहा होगा, इसलिए सम्पत्त गाडी़ को लगभग रोके हूए उस गली की तरफ देख रहा था जिधर से वो पहला बच्चा भाग कर आया था"।

मनु शर्मा ने सम्पत्त का कन्धा थपथपाया और कहा, "कमाल है यार, कितनी समझ, कितना धैर्य"। जैसे ही सम्पत्त अपने फार्महाउस में घुसा तो उसके कॉटेज के पीछे आम के पेड़ से 15-20 पक्षी पंख फड़फड़ाते हूए उडे़। सम्पत्त ने गाडी़ वहीं रोक दी और मनु शर्मा को कहा,  "कुछ देर यहीं रुको, मुझे लगता है कि मौहल्ले पडौस का कोई बच्चा आम के पेड़ से आम चुरा रहा है, तभी पक्षी एकदम उडे़।

अगर हम एकदम गाडी़ ले कर पेड़ के पास पहुँच गये तो पकडे़ जाने की हड़बडाहट में वो बच्चा आम के पेड़ से गिर जायेगा और उसको चोट लगेगी"।

सम्पत्त का यह उत्तर सुनकर दुनिया का मशहूर वास्तु शास्त्री मनु शर्मा सन्न रह गया। मनु शर्मा ने थोडी़ देर रुक कर कहा, "सम्पत्त, दोस्त तुम्हारे फार्महाउस को वास्तू शास्त्र की ज़रूरत ही नहीं है"। सम्पत्त ने मनु को पूछा, "ऐसा क्यों" ?

तो मनु ने कहा, *“कोई भी जगह जो तुम जैसे शाँत, धैर्यशील व्यक्ति की उपस्थिति से नवाज़ दी जाए वो जगह अपने आप ही वास्तू शास्त्र के हिसाब से शुभ हो जायेगी। सुकून और शाँति के एतबार से जब हमारा मन अपनी प्राथमिकता को छोड़कर दूसरे की प्राथमिकता को तरजीह देता है तो उससे दूसरे आदमी से ज़्यादा सुकून और खुशी स्वयं को मिलती है!!*

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शनिवार, 2 अक्टूबर 2021

सबक

 एक बुजुर्ग  आदमी से एक  युवक  मिलता है जो पूछता है:


"क्या मैं आपको याद हूँ?"


और बुजुर्ग  कहता है नहीं। तब युवक ने उसे बताया कि वह उसका छात्र था, 

तब शिक्षक पूछता है:


"आप  जीवन में क्या करते हैं?"


युवक उत्तर देता है:


", मैं एक शिक्षक बन गया।"


"अच्छा, मेरी तरह?" बूढ़े शिक्षक ने युवा से पुछा  .


"जी  वास्तव में, मैं एक शिक्षक बन गया क्योंकि आपने मुझे अपने जैसा बनने के लिए प्रेरित किया।"


जिज्ञासु बूढ़ा, युवक से पूछता है कि उसने किस समय शिक्षक बनने का फैसला किया। और युवक उसे निम्नलिखित कहानी बताता है:


"एक दिन, मेरा एक दोस्त, , एक अच्छी नई घड़ी लेकर आया, और मैंने फैसला किया कि मुझे यह चाहिए।


मैंने उसे चुरा लिया, मैंने उसकी जेब से निकाल लिया।


कुछ ही समय बाद, मेरे दोस्त ने देखा कि उसकी घड़ी गायब थी और उसने तुरंत हमारे शिक्षक से शिकायत की, जो आप थे।


फिर आपने कक्षा को संबोधित करते हुए कहा, 'आज कक्षा के दौरान इस छात्र की घड़ी चोरी हो गई। जिस किसी ने चुराया है, कृपया उसे लौटा दें।'


मैंने इसे वापस नहीं दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था।


आपने दरवाजा बंद कर दिया और हम सभी को खड़े होकर एक घेरा बनाने के लिए कहा।


आप एक-एक करके हमारी जेबों में तलाशी लेने जा रहे थे जब तक कि घड़ी नहीं मिल गई।


हालाँकि, आपने हमें अपनी आँखें बंद करने के लिए कहा था, क्योंकि आप उसकी घड़ी की तलाश तभी करेंगे जब हम सब अपनी आँखें बंद कर लें।


हमने निर्देशानुसार किया।


आप एक एक करके सबकी जेब तलाश करते रहे और जब आप  मेरी जेब में गए, तो आप ने घड़ी ढूंढी और ले ली। फिर  भी आप सबकी जेब ढूढ़ते रहे, और जब काम हो गया तो आपने कहा 'आंखें खोलो। हमारे पास घड़ी है।'


आपने किसी को ये  नहीं बताया की  ये  घडी मेरे  पास  थी  और आपने कभी इस प्रकरण का उल्लेख नहीं किया। आपने कभी यह नहीं बताया कि घड़ी किसने चुराई है। उस दिन आपने  मेरी मर्यादा को सदा के लिए बचा लिया। वह मेरे जीवन का सबसे शर्मनाक दिन था।


लेकिन यह वह दिन भी है जब मैंने चोरी  नहीं करने  का फैसला किया। आपने कभी कुछ नहीं कहा, न ही आपने मुझे डांटा या मुझे एक नैतिक सबक देने के लिए एक तरफ ले गए।


मुझे आपका संदेश स्पष्ट रूप से प्राप्त हुआ।


आपके लिए धन्यवाद, मैं समझ गया कि एक वास्तविक शिक्षक को क्या करना चाहिए।


क्या आपको यह प्रसंग याद है, प्रोफेसर?


बूढ़े प्रोफेसर ने जवाब दिया, 'हां, मुझे चोरी की घड़ी की घटना  याद है, मैं हर किसी की जेब में ढूंढ रहा था।  पर मुझे  यह  पता नहीं  की घडी  तुम्हारे  पास  से  मिली  क्योंकि मैंने भी देखते-देखते अपनी आँखें बंद कर लीं।'


यही है शिक्षा का सार : सिखाने के लिए किसी को अपमानित करने की जरूरत नहीं।



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