सोमवार, 25 अक्टूबर 2021

नज़रिया

 

बहुत से मित्र क्रिकेट पराजय को राष्ट्र आपदा मान कर दुःखी हो रहे थे, तिलमिलाहट थी-छटपटाहट थी । उनके नज़रिये से उनका छोभ सही था, पर... नज़रिया ही बदलने की जरूरत है - अब तो कतई ज्यादा जरूरत आती लगी है । एक मित्र ने लिखा-
2018 में व्यापार के सिलसिले में विशाखापट्टनम जाना हुआ था। अगले दिन वापसी के लिये  एयरटिकट बुक थी। उस दिन मैं अपना काम निपटा कर होटल में जल्द वापिस आ गया।
होटल के बिल्कुल बगल में बिजली के खम्बे पर बैडमिंटन टूर्नामेंट का पोस्टर लगा हुआ था।
ईच्छा हुई के होटल के बिस्तर पर कमर तोड़ने से बेहतर है के लाईव बैडमिंटन टूर्नामेंट देखा जाये।

मैंने अपने स्थानीय मित्र को फोन किया और वह मेरे आग्रह पर अपनी गाड़ी में बिठा कर टूर्नामेंट स्थल तक ले गये।

मेन सीनियर कैटगरी का एक बेहतरीन मैच चल रहा था। मैच बिल्कुल एकतरफा था। मित्र से बात कर के पता चला के बैडमिंटन कोर्ट में हमारी दायीं ओर खड़ा खिलाड़ी स्टेट चैंपियन है। उसके समक्ष खड़ा प्रतिद्वंद्वी लगभग घुटने टेक चुका था।

अचानक माइक पर एक अनाउंसमेंट हुई। चूंकि अनाउंसमेंट स्थानीय भाषा में थी इसलिये मैं समझ ना पाया।

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बगल में बैठे मित्र से पूछा तो उन्होंने बताया के खिलाड़ियों को आशीर्वाद देने पधार रहे हैं।
अगले ही क्षण हमारे बीच सिक्योरिटी गार्ड्स से घिरे एक भारी भरकम आदमी की एंट्री हुईं।

मित्र ने बताया के वह नेताजी हैं।
नेताजी सफेद टीशर्ट और काली ट्रैक पेंट में सुसज्जित थे। स्पोर्ट्स टूर्नामेंट में शिरकत कर रहे नेताजी के स्पोर्टसवीयर पहन कर आना मुझे अच्छा लगा।

हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नेताजी के आसपास घूम रहे उनके पालतू कुत्तों ने उनका जयघोष करने लगे।

टूर्नामेंट के ऑर्गनाइजर नेता जी के पास आया और उसने नेताजी के हाथ में बैडमिंटन रैकेट थमा दिया और हाथ जोड़ कर आग्रह किया के वह बैडमिंटन कोर्ट पर अपना जलवा दिखायें।

नेताजी की कमर 40 से अधिक थी। टीशर्ट फाड़ कर उनकी तोंद ज़मीन पर गिरने को हो रही थी। वह चल रहे थे तो लग रहा था जैसे साक्षात कुम्भकर्ण चल रहा हो।

बैडमिंटन रैकेट थामे जी कोर्ट में खड़े हो गये।
प्रतिद्वंद्वी के रूप में उनके समक्ष स्टेट चैंपियन को खड़ा कर दिया गया।
बैडमिंटन हॉल पुनः तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और ना जाने क्यों मेरी हंसी छूट गयी।

बगल में बैठे मित्र ने मुझसे हंसने का कारण पूछा तो व्यंग्यात्मक लहज़े में मैंने उनसे कहा के यह स्टेट चैंपियन लड़का इस तोंदू नेता जी को दौड़ा दौड़ा कर बेहोश कर देगा।

परंतु जो मैंने कहा उसके बिल्कुल विपरीत हुआ।

स्टेट चैंपियन लड़का नेता जी से कत्तई नौसिखियों की तरह खेलने लगा। धीमी गति से शटल को नेता जी की ओर उछाल देता और नेता जी तीव्र गति से शटल को वापिस मार देते।

4 - 5 रैलीज़ में नेताजी ने स्टेट चैंपियन के पाले में धड़ाधड़ शलट मार दी। नेताजी के पालतू उनकी शान में जयघोष करने लगे। हॉल में तालियां गूंजने लगी।
इसी बीच नेताजी हांफने लगे। तत्क्षण एक चेला पानी का ग्लास लिये नेता के बगल में खड़ा हो गया। 4-5 शॉट लगा कर नेता जी की शरीर रूपी कार में पेट्रोल खत्म हो गया।

नेता जी के बेहोश होने से पहले उन्हें बाईज़्ज़त स्टेज पर बिठा दिया गया।

बैडमिंटन कोर्ट के दूजी ओर खड़े स्टेट चैंपियन की शक्ल देखने लायक थी।

शायद उसे एक ......."फिक्स मैच" खेलने का अनुभव नहीं था। हकीकत यह थी के अगर वह अपने पूरे जोशोखरोश से खेलता तो वास्तव में नेताजी बैडमिंटन कोर्ट के बीचोंबीच बेहोश हो जाते।

लेकिन उसे ......"नर्मी" से खेलने की हिदायत मिली हुई थी।
उसे नेता जी को विजयी बनाने का आदेश प्राप्त था।

.............…...................

बिना किसी लागलपेट कह रहा हूँ। ये जितने भी क्रिकेटर हैं .....सभी वतन के गद्दार और बोर्ड के वफादार हैं।
ये मानस नहीं हैं कठपुतलियां हैं।
इनका सरोकार ना तो जनमानस से है और ना ही जनभावनाओं से है।

इनके आका नोट उड़ाते हैं और यह किसी नचनियां की तरह नाचने लगते हैं।

गाहे बगाहे इनकी असलियत सामने आती रहती है। सट्टेबाज़ी से इनका चोलीदामन का साथ भी उजागर होता रहता है।
ना जाने कितनी बार यह स्पष्ट हो चुका है के यह खेल नहीं एक फिल्मी स्क्रिप्ट है।

लेकिन फिर भी राष्ट्र का एक बहुत बड़ा तबका इस बेहूदा और तीसरे दर्जे के तमाशे को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ कर देखता है।

राष्ट्र के प्रति अपने ईमान को नोटों के आगे गिरवी रख चुके क्रिकेटर्स को हम अपना आईडल समझते हैं।

बिके हुये किरदारों को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ना किसी बेहूदगी से कम नहीं है। यह खिलाड़ी नहीं ...क़ौमी गद्दार हैं।

टीम जीतती है तो राष्ट्र नहीं जीतता और टीम हारती है तो राष्ट्र नहीं हारता।

टीम जीतती है तो "पैसा" जीतता है और टीम हारती है तो भी "पैसा(दुगना)" ही जीतता है।

अगर वास्तव में आप अपने वतन से प्यार करते हैं तो मेरा करबद्ध निवेदन है इस खेल को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ कर ना देखें।  -रचित

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