“हद हो गई, चाय रखी तो बताया क्यों नहीं? नई सफ़ेद ट्राउज़र्स (पतलून) गईं,” मैंने तेज गुस्से से कहा।
“मैंने तो बताया था, आप फोन में जाने कैसे खोए थे ! मेरा दूध उबल रहा था तो मुझे भागना पड़ा,” सुनीता रुआंसी होकर बोली।
चाय ट्राउज़र्स पर जरूर गिरी, मगर गलती उसकी न थी, यह जान कर भी मैं बड़बड़ाता रहा। सुनीता दूसरी ट्राउज़र्स लेकर आई, पहनने में मदद की और सुनती भी रही।
मूड बिगड़ने की शुरुआत कुछ एैसी हुई की सारे दिन की सैटिंग उसी से हो गई। एक के बाद एक, जैसे चेन रिएक्शन हो—
कैब में ड्राइवर से, बिल्डिंग में लिफ्टमैन से, ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट से और हद देखिए, जिसकी मैंने हर बार मदद की, अपनी प्रोग्रैमर, दिव्या, उससे भी; ये सब जैसे कि एक दूसरे से जुड़ गए थे, और मैं, लॉक्ड-इन एवरीथिंग।
फिर बॉस ने भी एक पुरानी बात को लेकर सुना दिया। जवाब दे सकता था, आखिर हर काम मैं आत्मविश्वास और संज़ीदगी से करता था मैं। लेकिन चुप ही रहा, उसी चेन रिएक्शन को याद करके।
घर भी जाने का मन न था। ऑफिस से निकल कर अनमने ढंग से टहलते हुए जा रहा था कि एक छोटी सी बच्ची टकरा गई। उसके हाथ में पकड़ा गैस का गुब्बारा छूट गया और ये जा, वो जा! मुझे लगा ये रोएगी, लेकिन वह बच्ची गुब्बारे को आसमान में जाते देख तालियाँ बजा कर खुश होने लगी। मुझे भी अच्छा लगा, वह अपनी चीज खोने पर भी खुश थी। मैंने पास खड़े गुब्बारे वाले से उसे गुब्बारा दिलवा दिया। वह हँसते हुए चली गई।
आसपास कुछ और बच्चे भी यह दृश्य देख रहे थे। मैंने इशारे से उन्हें बुलाया, वे दौड़े आए और गुब्बारे लेकर खिलखिलाते हुए चले गए। मेरा भी मन प्रफुल्लित हो उठा। एक सीख भी मिली थी, उस छोटी बच्ची से!
नकारात्मक चेन रिएक्शन से, ऐसे माहौल से बचने की आदतें बनाइये आज से, अभी से !!
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