चिन्तन मनन की बातें
जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैं ,वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है, इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए।
मार्कण्डेय पुराण में एक कथा आती है---
राम लक्ष्मण वन में प्रवास कर रहे थे, मार्ग में एक स्थान पर लक्ष्मण का मन कुभाव से भर गया , मति भ्रष्ट हो गयी, वे सोचने लगे - कैकेयी ने तो वनवास राम को दिया है मुझे नहीं, मैं राम की सेवा के लिए कष्ट क्यों उठाऊँ?
राम ने लक्ष्मण से कहा - इस स्थल की मिटटी अच्छी दीखती है , थोड़ी बाँध लो,लक्ष्मण ने एक पोटली बना ली,मार्ग में जब तक लक्ष्मण उस पोटली को लेकर चलते थे तब तक उनके मन में कुभाव भी बना रहता था , किन्तु जैसे ही उस पोटली को नीचे रखते उनका मन राम सीता के लिए ममता और भक्ति से भर जाता था।
लक्ष्मण ने इसका कारण रामजी से पूछा तो श्रीराम ने कारण बताते हुए कहा - भाई! तुम्हारे मन के इस परिवर्तन के लिए दोष तुम्हारा नहीं बल्कि उस मिट्टी का प्रभाव है , जिस भूमि पर जैसे काम किए जाते हैं, उसके अच्छे बुरे परमाणु उस भूमि भाग में और वातावरण में भी छूट जाते हैं।
जिस स्थान की मिटटी इस पोटली में है, वहाँ पर "सुंद और उपसुंद" नामक दो राक्षसों का निवास था, उन्होंने कड़ी तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अमरता का वरदान माँगा।
ब्रह्मा जी उनकी माँग तो पूरी करना चाहा किन्तु कुछ नियन्त्रण के साथ, उन दोनों भाइयो में बड़ा प्रेम था, अतः उन्होंने कहा कि हमारी मृत्यु केवल आपसी विग्रह से ही हो सके,ब्रह्माजी ने वर दे दिया।
वरदान पाकर दोनों ने सोचा कि हम कभी आपस में झगड़ने वाले तो है नहीं, अतः अमरता के अहंकार में देवों को सताना शुरु कर दिया।
जब देवों ने ब्रह्माजी का आश्रय लिया तो ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नाम की अप्सरा का सर्जन करके उन असुरों के पास भेजा।
" सुंद और उपसुंद" ने इस सौन्दर्यवती अप्सरा को देखकर कामांध हो गये और अपनी अपनी कहने लगे तब तिलोत्तमा ने कहा कि मैं तो विजेता के साथ विवाह करुँगी , तब दोनों भाईयों ने विजेता बनने के लिए ऐसा घोर युद्ध किया कि दोनो मर गये।
वे दोनों असुर जिस स्थान पर झगड़ते हुए मरे थे , उसी स्थान की यह मिटटी है, अतः इस मिटटी में भी द्वेष , तिरस्कार , और वैर के सिंचन हो गया है।
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