सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

चिन्तन

 

चिन्तन मनन की बातें

संस्कार का निर्माण कैसे हो ?

लंदन में ही एक बहन हैं फ़ेसबुक मित्र उन्होंने यह प्रश्न किया है । उनके दो बच्चे बड़े हो रहे हैं और वे चाहती हैं कि पश्चिमी नंगेपन का उनके बच्चों पर कम से कम प्रभाव पड़े ।

प्रसन्नता यह है कि वे बहन स्वयम् भी पढ़ी लिखी हैं और इससे बड़ी प्रसन्नता यह है कि वे लंदन तथा पश्चिमी नंगेपन की भयावहता को समझ रही हैं । तीसरी प्रसन्नता यह है कि उन्होंने मुझे इस योग्य समझा कि प्रश्न पूछा ।

मित्रों , सनातन हिन्दू धर्म के एक एक शब्द पारिभाषिक हैं । एक एक शब्दों पर हमारे महात्माओं विद्वानों ऋषियों ने मंथन किया है और एक एक परिभाषा आधुनिक विज्ञान चकित होकर देख रहा है ।

तो संस्कार ( अथवा विकार ) का निर्माण कैसे होता है ?

क्या आँख से किसी वस्तु को देखने से संस्कार का निर्माण हो सकता है ? उत्तर है “ नहीं “ । हमारे दिनेश चन्द्र सरोज जी दिल्ली में हैं और उन्होंने भी स्वयम् सैकड़ों बार देखा होगा कि एक विशेष समुदाय फल सब्ज़ियों भोजन इत्यादि में “ थू+क” देता है ।

क्या ऐसा देखने से सरोज जी में वैसा संस्कार पड़ गया ? नहीं न !

अब आते हैं , मन पर । क्या मन के उपर बार बार देखने से संस्कार पड़ता है ? उत्तर है कि नहीं । जैसे आँखें क्षणिक हैं वैसे ही मन भी क्षणिक है । यह बात बौद्ध भी मानते हैं कि मन के द्वारा संस्कार ( अथवा विकार ) का निर्माण नहीं होता ।

तब कैसे होता है ?

तो इसका उत्तर है कि यह बुद्धि के द्वारा होता है ।

अब प्रश्न उठता है कि तब सभी फल सब्ज़ी अथवा भोजनालय चलाने वालों पर ऐसा संस्कार ( अथवा विकार ) पड़ चुका होता ।

इसको समझने के लिये और अंतरंग चलना पड़ेगा । बुद्धि के दो अवयव होते हैं ।

अपेक्षा बुद्धि
उपेक्षा बुद्धि..

अर्थात् कोई घटना आपके सामने घट रही है अथवा आप कोई वृतांत सुन रहे हैं । यदि आपने उसमें अपेक्षा कर दी तो संस्कार पड़ने लगेंगे और यदि उपेक्षा कर दी तो संस्कार नहीं पड़ेंगे ।

जब कोई सनातन हिन्दू धर्मी फल विक्रेता उन लोगों को क्रिया विशेष करता हुआ देखता है और उपेक्षा कर देता है तो उस पर वह संस्कार नहीं पड़ता ।

अब ठीक यही फ़ॉर्मूला..

बलात्कार
लड़की का दुपट्टा छीनना
राहजनी
चोरी चकारी
लव छेहाद

इत्यादि में लगा लें
और देख लें कि
इन सब बुराइयों में अपेक्षा बुद्धि होने के कारण
समुदाय विशेष
भारत के हर शहर गाँव में ही नहीं
इंग्लैंड अमेरिका में भी उपद्रव मचाये हुये हैं ।

उन बहन को यही समझाया कि बच्चों को बुराइयों के प्रति उपेक्षा करना सिखायें और उचित क्रियाओं के प्रति अपेक्षा । संस्कार का निर्माण होता चला जायेगा । -राजशेखर जी कहिन
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